प्रस्तावना -
रक्षाबंधन भारत की कुछ बड़े त्यौहार में से एक है पूरे भारत में रक्षाबंधन के पहले सावन के त्योहार से ही रक्षाबंधन की तैयारियां शुरू हो जाती है और सावन माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का यह पवित्र त्यौहार मनाया जाता है।
Rakshabandhan essay |
रक्षाबंधन मुख्यता हिंदुओं में विशेष रुप से मनाया जाता है। परंतु भारत की अखंडता और एकता कुछ ऐसी है कि लगभग सभी धर्मों की लोग रक्षाबंधन के इस त्यौहार को उत्साह पूर्वक मनाते हैं।
रक्षाबंधन क्यों मानते है -
रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन की पवित्र रिश्ते पर आधारित है वैसे तो भाई बहन के रिश्ते के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं होती मगर रक्षाबंधन के इस त्यौहार पर बहने अपने भाइयों राखी बांधकर उन्हें उनके कर्तव्य का अहसास करवाती हैं और बदले में भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं।
इस दिन बहने भाइयों की कलाई पर विभिन्न प्रकार की रंग बिरंगी रेशमी और सोने चांदी की राखियां बांधती है और भाई अपनी बहनों को तरह-तरह के उपहार भेंट करते हैं।
रक्षाबंधन कैसे मनाए -
रक्षाबंधन के दिन महिलाएं सुबह सवेरे उठ कर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर नए कपड़ों में सबसे पहले भगवान का पूजन करती हैं और पूजा की थाल सजाकर भाइयों को राखी का उपहार देती है।
राखी के दिन घरों में तरह-तरह के पकवान व मिष्ठान बनाए जाते हैं और विवाहित महिलाएं महीनों पहले से अपने मायके जाने की तैयारियां करने लगती हैं वही अविवाहित लड़कियां भी राखी रक्षाबंधन के लिए अपने गहनों व कपड़ों की खरीददारी में जुड़ जाती हैं और अपनी पसंद की राखी भी खरीद कर रखती हैं।
रक्षाबंधन का त्यौहार सभी लोग हंसी खुशी के साथ मनाते हैं चाहे अमीर हो या गरीब हर कोई अपनी क्षमता अनुसार इस त्यौहार को मनाते हैं कहीं राखी रेशम के धागे के रूप में देखने मिलती है तो कहीं सोने व चांदी के रूप में चाहे राखी का कोई भी स्वरूप हो लेकिन इस त्यौहार को मनाने की भावनाएं सब की एक ही होती हैं।
रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं -
रक्षा बंधन से जुड़ी पौराणिक कथा अनुसार एक समय था जब देव और दानव असुरों के बीच भीषण युद्ध छिड़ा हुआ था एवम् इस युद्ध में असुरों ने देवताओं को पराजित कर उनका समस्त राजपाठ, धन - दौलत एवम् सिंहासन हड़प लिया इसके बाद देवलोक एवम् पृथ्वी लोक पर अपना आधिपत्य स्थापित कर भी जब असुरों का मन नहीं भरा तो वे समस्त संसार में अपना अतांक फैलाने लगे थे अब देवता भी उनका सामना नहीं कर पा रहे थे तभी भगवान इन्द्र घबरा कर देवों के गुरु बृहस्पति के पास जा कर सारा वृतांत बताने लगे वाहा उपस्थित इंद्राणी सहित अन्य देव और देवियों ने भी सारा वृतांत सुना और तभी गुरु बृहस्पति ने अपनी मंत्र शक्ति द्वारा अभिमंत्रित एक धागा देवी (शची) इंद्राणी को दे कर श्रावण पूर्णिमा के दिन अपने पति की कलाई में बांध कर उनकी जीत की कामना करने को कहा। देवी इंद्राणी ने भगवान इंद्र की कलाई में वह अभिमंत्रित धागा बांधने के पश्चात, देवता पुनः असुरों से युद्ध कर जीत गए और अपना राजपथ लेने में सफल हुए इसलिए सभी ने देवताओं की जीत का श्रेय गुरु बृहस्पति द्वारा दिए गए उस अभिमंत्रित धागे को दिया।
और तभी से श्रावण पूर्णिमा के दिन कलाई में धागा बांधने को शुभ माना जाने लगा कहा जाता है कि समय के साथ इस प्रथा ने ही रखी के त्यौहार का रूप ले लिया।
इसी प्रकार रक्षा बंधन के त्यौहार से जुड़ी एक और पौराणिक कथा प्रचलन में है जिसके अनुसार बली नामक राजा ने तीनों लोकों पर जीत हासिल कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था जिस कारण इंद्रदेव चिंतित होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करने पहुंचे और इंद्रदेव की बात मानकर विष्णु जी राजा बलि द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में वामन का अवतार लेकर भिक्षा मांगने गए राजा बलि विष्णु जी का एक महान भक्त था परंतु विष्णु जी को वामन अवतार में पहचान ना सका लेकिन राजा बलि के गुरु को आभास हो गया था उनके समक्ष खड़े वामन में जरूर ही कोई माया छिपी हुई है।
गुरु के समझाने पर भी राजा बलि खुद को राजा धर्म से रोक नहीं पाए और अपने द्वार पर खड़े एक वामन को भिक्षा देने से मना नहीं कर पाए परंतु अपने गुरु द्वारा पहले ही सावधान किए जाने से राजा बलि ने शिक्षा के लिए एक शर्त रखी की वामन को केवल 3 पग भूमि दान में दी जाएगी, वामन तीन पग में जितनी भी भूमि मापे गा वामन को भिक्षा स्वरूप दे दी जाएगी।
राजा बलि की इसी भूल के कारण वामन रूप धरे भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनो लोक माप लिए और राजा बलि को रसातल पर जाने को मजबूर कर दिया राजा बलि कि भगवान विष्णु के परम भक्त थे यही कारण था कि राजा बलि ने भगवान विष्णु से सदैव उनके साथ रहने का वचन लिया अपने साथ भगवान विष्णु को भी रसातल पर ले गए।
इस बात से चिंतित माता लक्ष्मी देव ऋषि नारद के परामर्श स्वरूप राजा बलि से मिलने गए और उनकी कलाई में कलावा बांध कर राजा बलि को अपना भाई बना लिया और भेंट स्वरूप भगवान विष्णु को अपने साथ वापस ले आई कहां जाता है उस दिन भी सावन मास की पूर्णिमा तिथि थी।
रक्षाबंधन संबंधी ऐतिहासिक कथाएं -
कहां जाता है की सिकंदर महान की पत्नी में उनके शत्रु पुरू को राखी बांध कर अपना भाई बना कर अपना भाई माना और भेंट स्वरूप अपने भाई को ना मारने का वचन लिया शायद यही वजह रही होगी की राजा पुरु ने अपनी द्वारा दिए गए वचन का सम्मान किया और अपनी जान गवादी।
उसी प्रकार एक और कहानी है जो महारानी कर्मावती और मुगल बादशाह हुमायूं के लिए प्रचलित है जिसके अनुसार महारानी कर्मवती द्वारा बादशाह हुमायूं को पत्र द्वारा राखी भेज अपना भाई मान कर वचन स्वरूप मदद की पुकार की और बादशाह हुमायूं ने मुस्लिम होने के बाद भी राखी का मान रखते हुए रानी कर्म वती की रक्षा की।
उपसंहार -
भाई बहन का रिश्ता तो दुनिया के हर एक धर्म में पवित्र है यह रिश्ता किसी भी विशेष दिन पर आधारित नहीं है परन्तु रक्षाबंधन का ये पवित्र त्यौहार भाइयों को उनकी बहनों के प्रति कर्तव्य निष्ठ बन कर सदैव उनकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है। सनातन धर्म में रक्षाबंधन का ये त्यौहार सदियों से बनाया जा रहा है।
इसके लिए अनेकों पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथा भी प्रचलित है जहा विषम परिस्थितियों में भाई ने अपनी बहन को दिए वचन के फल स्वरूप अपनी जान भी हस्ते हुए दे दिया है मगर बहन को कुछ होने नहीं दिया।