अफ्यूश्जन स्नान में शरीर के निर्दिष्ट अंग पर पानी की एक या एक से अधिक धाराएं लक्षित होती है और इन से किसी तरह का दवाव नहीं पड़ता। इसका पहले पहल इस्तेमाल फादर नईप्प ने अपने जल चिकित्सा (हाइड्रोथेरेपी) संस्थान में किया था।
• ठंडा अफ्यूश्जन स्नान -
सामग्री -
किसी टोंटी में जुड़े पाइप या बड़े मग से ठंडा पानी शरीर पर डालने की व्यवस्था।
पानी का तापमान -
18 से 24 डिग्री सेल्सियस।
विधि -
मरीज को शरीर के उस अंग को ध्यान में रखकर आराम से बैठना या खड़े होना चाहिए जिसका उसे उपचार कराना है। इसके बाद उस अंग पर ठंडा पानी डाला जाता है।
सावधानियां -
ध्यान रहे कि उपचार करने से पहले उस अंग को गर्म करना चाहिए।
लाभ -
संक्षिप्त अवधि (30 सेकंड से लेकर 3 मिनट तक)का अफ्यूश्जन स्नान टॉनिक की तरह असर करता है, जबकि दीर्घ अवधि के स्नान से रक्त संकुलता से छुटकारा मिलता है। सिर्फ ठंडा पानी डालने से बुखार कम होती है।
• न्यूट्रल अफ्यूश्जन -
सामग्री -
ठंडे अफ्यूश्जन में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु।
पानी का तापमान - 32 से 36 डिग्री सेल्सियस।
विधि -
ठंडे अफ्यूश्जन की तरह ही होगी।
लाभ -
रीढ़ को ठंडा अफ्यूश्जन स्नान कराने से बहुत आराम मिलता इसी से जोड़ो व मांसपेशियों के दर्द से छुटकारा पाने में मदद मिलती है। कमर के ऊपरी हिस्से में न्यूट्रल अफ्यूश्जन का इस्तेमाल करने से जमा हुआ बलगम बाहर निकलता है और इस तरह अस्थमा, एंफिसीमा, पुराने ब्रोंकाइटिस, शवसनी के संक्रमण आदि विकारों के उपचार में मदद मिलती है।
• गर्म अफ्यूश्जन -
सामग्री -
किसी टोंटि मैं जुड़े पाइप या बड़े मग से ठंडा पानी शरीर पर डालने की व्यवस्था।
पानी का तापमान -
40 से 45 डिग्री सेल्सियस।
विधि -
ठंडे अफ्यूश्जन की तरह। लेकिन गर्म अफ्यूश्जन की समाप्ति पर उपचारित अंग ठंडा पानी डालना चाहिए।
लाभ -
गर्म अफ्यूश्जन से जोड़ो व मांसपेशियों के दर्द से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
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• गर्म व ठंडा अफ्यूश्जन -
सामग्री -
इसके लिए दो पाइपों की जरूरत पढ़ती है, जो बारी बारी से गर्म और ठंडा पानी सप्लाई कर सकें। इसकी स्थान पर दो बाल्टी या भी इस्तेमाल में लाई जा सकती है एक गर्म पानी के लिए और दूसरी ठंडे पानी के लिए।
पानी का तापमान -
गर्म पानी 41 से 45 डिग्री सेल्सियस, ठंडा पानी 19 से 20 डिग्री सेल्सियस।
विधि -
शरीर के निर्दिष्ट अंग पर गर्म पानी 3 मिनट तक और ठंडा पाली 1 मिनट तक डाला जाता है। इस प्रक्रिया को चार बार दोहराने के बाद इसकी समाप्ति ठंडे पानी डालकर करनी चाहिए।
लाभ -
बारी बारी से गर्म और ठंडा पानी डालकर शक्तिशाली उत्प्रेरक और टॉनिक की तरह काम करता है। इससे शरीर के उस अंग में रक्त संचार में सुधार होता है जिसका उपचार किया जाता है। इन्हीं प्रभावों के कारण इस विधि को उस स्थिति में संक्रमण के शिकार अंग पर इस्तेमाल किया जाता है, जब उस अंग को पूरी तरह पानी में डूबाना जरूरी नहीं होता। इससे मांस पेशियों व मोंच के दर्द से छुटकारा मिलता है, जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने मैं मदद मिलती है अता इस तरह यह रूमेटाइड अर्थराइटिस के उपचार में भी प्रभाव कारी है।
• ठंडे पानी से स्नान -
बहुत से लोग इस डर से ठंडे पानी से नहीं नहाते हैं कि उन्हें ठंड लग जाएगी। वास्तव में प्रतिदिन सुबह सवेरे सो कर उठने के बाद ठंडे पानी से नहाने से बढ़कर टॉनिक के असर जैसा अन्य कोई उपचार नहीं है। इससे रक्त संचार नहीं बढ़ता, बल्कि तंत्रिका है व इनका केंद्र भी क्रियाशील हो उठते हैं। ठंडे पानी से नहाने की आदत वाला व्यक्ति भारी सर्दी के मौसम में भी अपनी है आदत जारी रख सकता है और उस पर इसका कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। ठंडे पानी से नहाने की अवधि मरीज की दशा पर निर्भर करती है। सर्दी जुकाम या साइनसाइटिस के मरीजों को ज्यादा से ज्यादा 2 या 3 मिनट तक नहाना चाहिए और नहाने के समय ठंडी हवा से बचना चाहिए। कुछ देर के लिए शरीर को गर्म रखना तथा संभव हो तो थोड़ा व्यायाम कर लेना चाहिए। गर्मी के मौसम में ठंडे पानी से नहाने से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आती है।
लाभ -
ठंडे पानी से नहाने से सुस्ती (देर से सोने के कारण), मानसिक एवं शारीरिक थकान दूर होती है तथा मधपान, नशीली दवाओं का सेवन धूम्रपान जैसी बुरी आदतों से छुटकारा मिलता है। गर्म उपचार के तुरंत बाद, ठंडे पानी फिर नहाने की सलाह दी जाती है, जिससे कि शरीर द्वारा उपचार के दौरान अर्जित की जाने वाली अतिरिक्त गर्मी शरीर में ही बनी रह सके।
ठंडे पानी में नहाने से उपचार का प्रभाव बना रहता है। अत्यंत कमजोर लोग, ह्रदय संबंधी रोगों, जुकाम, इन्फ्लूएंजा व अस्थमा के मरीजों को ठंडे पानी से नहीं नहाना चाहिए।
• ट्रोमा -
सामग्री -
पाइप में लगा फव्वारा (हाथ में लेकर स्नान करने वाला हैंड शावर)
पानी का तापमान -
18 से 24 डिग्री सेल्सियस या फिर (नल का पानी)
स्नान अवधि -
10 मिनट तक।
विधि -
शॉवर को गोलाई में घुमाते हुए मध्यम दबाव डालने वाली पानी की धार सिर पर डाली जाती है। इसके बाद 45 से 60 मिनट तक सिर्फ ठंडा लपेट रखना चाहिए।
लाभ -
सिर पर पानी की हल्की धार पढ़ने से रक्त संचार में सुधार होता है। हल्की शुरू शुरू में रक्त वाहिकाएं सिकुड़ने लगती है, लेकिन बाद में प्रतिक्रिया स्वरूप रक्त वाहिकाएं फैलने लगती हैं। अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, माइग्रेशन मिर्गी, तेज बुखार, तू लगना, बालों का झड़ना, नकसीर छूटना, चक्कर आना इत्यादि जैसे विकारों में इस उपचार के उल्लेखनीय परिणाम सामने आए हैं।
चेतावनी -
अत्यंत कमजोर व्यक्ति, मलेरिया, तीव्र साइनसाइटिस और अस्थमा के मरीज ए उपचार ना कराएं।
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