पैर व बाह स्नान का उद्देश्य रक्त की संचार को बढ़ाना या इसे धीमा करना होता है इस प्रकार नियंत्रित रक्त के संचार से शरीर के निर्दिष्ट भाग में गर्मी या पसीना दोनों पैदा किया जा सकता है, अथवा तापमान को घटाया जा सकता है। इस तरह का स्नान करते समय स्टूल पर बैठ कर बाहों या पैरों को अथवा दोनों को क्रमशः कोहनियों व पिंडलियों तक टब में डुबोकर रखा जाता है।
• ठंडा पैर स्नान -
सामग्री -
स्नान हेतु एक छोटा तब या बाल्टी।
पानी का तापमान -
18 से 12 डिग्री सेंटीग्रेड।
स्नान की अवधि -
1 से लेकर 5 मिनट के बीच।
विधि -
टब में 16 से 18 इनकी ऊंचाई तक पानी भरना चाहिए। पहले से गर्व पढ़े गए पैर अब टब के पानी में डुबोने चाहिए। स्नान के दौरान पैरों को निरंतर र करते रहना चाहिए यह काम किसी परिचारक द्वारा कराया जा सकता है। या स्वयं मरीज द्वारा भी किया जा सकता है, इस क्रिया में एक पैर को दूसरे पैर से रगड़ना पड़ता है।
लाभ -
थोड़ी अवधि के ठंडे पैर स्नान 1 से 2 मिनट तक से प्रमस्तिष्किय रक्त संकुलता और गर्भाशय में होने वाली रक्त रिसाव (विशेषकर रोशन की अवधि में होने वाला जरूरत से ज्यादा रक्त रिसाव) में आराम मिलता है। लंबी अवधि तक स्नान करने से मोच, दर्द, सूजे हुए गोखरू आदि के दर्द में राहत मिलती है। यह स्नान मूत्र वर्धक उपचार की दृष्टि से उपयोगी है।
चेतावनी -
जननांग मूत्रीय अवयवों, जिगर व गुर्दे की सुझन में यह स्नान नहीं करना चाहिए।
• गर्म पैर स्नान -
सामग्री-
एक छोटा टब या बाल्टी, ठंडा लपेट, एक कंबल।
पानी का तापमान -
गरम पानी 40 से 45 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि -
15 मिनट तक।
विधि -
मरीज को एक या दो गिलास ठंडा पानी पीना चाहिए। सिर पर ठंडा लपेट रखकर इसे बचाना चाहिए। पैर पिंडलियों तक पानी में डूबे होने चाहिए और मरीज को कंबल से ढक कर रखना चाहिए (जिससे गर्मी बाहर ना निकले)। उपचार की अवधि में मरीज को प्यास लगने पर पीने को पानी दिया जा सकता है। उपचार के बाद मरीज को फौरन ठंडे पानी से नहाना चाहिए।
लाभ -
घर में पैर स्नान गर्भाशय की अनैच्छिक मांस पेशियों आंतों मूत्राशय एवं पेल्विक रीजन वक्त पेट के अन्य दूसरे अवयवों को क्रियाशील बनाता है। यह स्नान करने से गर्भाशय और डिंबाशय में रक्त की सप्लाई बढ़ जाती है। तथा इससे रोज धर्म में देरी होना रुक जाता है। इस स्नान से मोच और जोड़ों के दर्द, प्रमस्तिष्क रक्तसंकुलता की वजह से होने वाले सिर दर्द और पैरों के ठंडे होने की वजह से होने वाले जुखाम में राहत मिलती है। जुकाम खांसी और अस्थमा की स्थिति में भी स्नान किया जा सकता है।
चेतावनी -
उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी), कमजोरी और ह्रदय संबंधी रोगों में यह स्नान नहीं करना चाहिए।
• बाह स्नान -
सामग्री -
वाशबेसिन, जिस पर एक ढक्कन लगा हो और इसमें बाहें डालने के लिए दो मुख्य सुराख हो। गर्म और ठंडे पानी के लिए टोटिया तथा एक थर्मामीटर।
पानी का तापमान -
40 से 45 डिग्री सेल्सियस।
स्थान की अवधि -
अधिकतम 15 मिनट स्नान के लिए काफी होंगे।
विधि -
मरीज को एक या दो गिलास ठंडा पानी पीना चाहिए और इसके बाद कुहनियों तक अपनी दोनों बाहें पानी में डुबोनी चाहिए। मरीज को छाती पर शाल या कंबल लपेट कर बैठना चाहिए। धीरे धीरे पानी का तापमान बढ़ाकर 40 से 45 डिग्री कर दिया जाता है। स्नान करने के बात गरम पानी पूरी तरह बहा कर ठंडे पानी की टोटी खोल देनी चाहिए, जिससे 1 मिनट तक हाथों पर ठंडा पानी पड़ता रहे। बाहों को पोछने के बाद गर्म रखें।
लाभ -
यह स्नान करने से हाथों की रक्त वाहिकाएं फैल जाती हैं, जिससे रक्त वक्ष गुहिका की ओर से बाहों की और बहने लगता है और इस तरह इनमें खून की कमी दूर हो जाती है। इससे पसीना भी आता है तथा इन दोनों ही प्रतिक्रियाओं से खांसी एवं फेफड़े से संबंधित अन्य दूसरे विकारों से राहत पाने में मदद मिलती है। इससे अस्थमा के दौरे में भी लाभकारी लाभ पहुंचता है। इस स्थान से आंत की मांसपेशियों के दर्द में तुरंत लाभ मिलता है।
चेतावनी -
गर्म पैर स्नान के संदर्भ में बतलाई गई सभी सावधानियां बरतें।
• पैर व बांह का एक साथ गर्म स्थान -
पैर व बांह के साथ साथ गर्म स्नान से समस्त प्रकार के सिर दर्द, अस्थमा, जुकाम, साइनसाइटिस सरीखी ब्रोंको नैसल रक्त संकूलता तथा अन्य दूसरे विकारों में कहीं ज्यादा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
पानी का तापमान -
स्नान में तापमान धीरे-धीरे बढ़ाकर 40 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड कर देना चाहिए।
अवधि -
इस स्नान की अवधि 15 मिनट है।
विधि -
मरीज को अपनी छाती पर शाल या कंबल लपेट कर बैठना चाहिए। अन्य दूसरे गर्म में उपचारों की तरह उपचार शुरू करने से पहले मरीज को ठंडा पानी पीने को देना चाहिए तथा उसके सिर पर गीला तोलिया रखना चाहिए। उपचार के शीघ्र बाद मरीज को ठंडे पानी से नहाना चाहिए।
• कंट्रास्ट बांह स्नान -
सामग्री -
इस स्नान के लिए विशेष रूप से बनाया गया टब, इसमें अलग-अलग हाथों के लिए 2 हिस्से होते हैं जिस में लगी छेद वाली नालियों से पानी की धाराएं फूटती हैं। यह नालियां इस तरह से लगी होती है जिससे पूरे हाथ इनके छिद्रों के ऊपर आ जाते हैं।
पानी का तापमान -
ठंडा पानी 19 - 20 डिग्री सेल्सियस और गर्म पानी 42 - 44 डिग्री सेल्सियस।
विधि -
मरीज स्टूल पर बैठकर अपनी दोनों का बाहें अलग-अलग हिस्सों में लगता है और टब को धातु की एक चादर से ढक दिया जाता है। पहले तो नलियों से 3 मिनट तक गर्म पानी निकलता है और इसके बाद 1 मिनट तक ठंडा पानी यह प्रतिक्रिया प्रक्रिया 4-5 बार दोहराई जाती है। और इसकी समाप्ति ठंडे पानी के साथ होती है।
चेतावनी -
इस बात का ध्यान रहे की पानी शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर ना गिरने पाए, क्योंकि इससे रक्त संरचना में बाधा पड़ती हैं।
लाभ -
इससे भुजाओं की हल्की मालिश हो जाती है और शरीर के अन्य दूसरे भागों में रक्त की कमी, मोच का दर्द और अकड़न कम होती है। यह स्नान मांस पेशियों की कमजोरी और रूमेटाइड अर्थराइटिस उपचार में भी सहायक है।
• कंट्रास्ट पैर स्नान -
सामग्री -
स्नान करते समय बांह स्नान तब जैसा टब जैसा विशेष रूप से निर्मित एक उपकरण प्रयोग में लाया जाता है।
पानी का तापमान -
गरम पानी 40 से 45 डिग्री सेल्सियस, एवं ठंडा पानी 18 से 20 डिग्री सेल्सियस।
इस स्नान में पानी धार के रूप में दोनों पैरों पर पड़ता है।
विधि और चेतावनी -
कंट्रास्ट बांह स्नान की तरह, लेकिन इसमें बाहों की जगह दोनों पैर टब में रखे जाते हैं।
लाभ -
इस स्नान से पैरों की मसाज हो जाती है एवम् आराम करने में सहायता मिलती है। यह मांसपेशियों की मोच दबाव और सिर दर्द के इलाज में प्रभाव कारी है। अर्थराटिस में भी लाभकारी है।
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