हमारे इस लेख में आप सभी को इमर्शन स्नान से जुड़े इसके कुछ प्रकरो के बारे में बताया गया है। जो कि हमारी पिछले लेख में कवर नहीं हो पाए थे। इसके अलावा हमारे पिछले लेख में इमर्शन स्नान के बारे में पूर्ण जानकारी एवं प्रकरो के बारे में भी बताने कि पूरी कोशिश की गई है।
• आधा न्यू ट्रल स्नान -
यह स्नान इमर्शन स्नान टब में सुविधा पूर्वक किया जा सकता है।
पानी का तापमान -
32 से 36 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि -
15 मिनट या उससे कम।
विधि -
टब में 6 से 8 इंच की ऊंचाई तक पानी भरे। मरीज को एक या दो गिलास पानी पीकर सिर पर ठंडा लपेट रखना चाहिए। इसके बाद उसे टब में बैठकर पानी के नीचे अपने पैर फैलाने चाहिए तथा अपनी बाहों में हाथ पानी से अलग टब के किनारों पर रखनी चाहिए।
लाभ -
उच्च रक्तचाप के मरीजों को यह स्नान करते समय छाती पर ठंडा लपेट रखने की सलाह दी जाती है। इस स्नान से हृदय पेशियों को विश्राम करने में मदद मिलती है और शरीर के निचले अवयवों में रक्त का संचार होने लगता है इससे पैरों में मौजूद रिफ्लेक्स जोन प्रभावित होता है, जिसके कारण ह्रदय फेफड़ों व प्रमस्तिष्क वाहिकाओं पर आरामदायक प्रभाव पड़ता है। उच्च रक्तचाप, वेरिकोस वेंस, पैरों मैं नस चढ़ जाने, अनिद्रा, ब्रोंकियल अस्थमा, शरीर के निचले हिस्सों में आर्थराइटिस, लम्बेगो, इत्यादि में भी यह स्नान उपयोगी है।
• एप्सम साल्ट के साथ ग्रेजुएट इमर्शन स्नान -
पानी का तापमान -
40 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि -
लगभग 30 मिनट।
विधि -
इमर्शन बाथ टब में 4 से 6 इंच की ऊंचाई तक पानी भरना चाहिए। पानी में एक पौंड एप्सम साल्ट घोल लें। एक गिलास ठंडा पानी पीने और सिर पर ठंडा लपेट रखने के बाद मरीज को टब में लेटा दें। अब परिचारक को दो मिनट तक मरीज के शरीर की पैरों से ऊपर की ओर तेजी से मालिश करनी चाहिए। इसके बाद गरम पानी की टोटी खोलकर पानी का स्तर बढ़ाकर 10 से 8 इंच कर दें। पानी का तापमान 40 डिग्री से रखें। अब दोबारा एक पौंड एप्सम साल्ट पानी में घोल दे। मरीज के शरीर की दोबारा पैरों से ऊपर की ओर 3 से 5 मिनट तक मालिश करें। इसके बाद मरीज को टब में विश्राम की अवस्था में आ जाना चाहिए और ठंडे पानी की टोटी खोल देनी चाहिए, जिससे पानी धीरे-धीरे ठंडा हो जाता है। टब के पानी से भर जाने पर इसका तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस होगा। मरीज को टब में 10 से 20 मिनट तक विश्राम करना चाहिए। इसके बाद उसे टब से बाहर निकाल कर जल्दी से अपना बदन सुखा देना चाहिए।
लाभ -
यह स्नान सभी तरह के अर्थराइटिस के उपचार में सहायक है, बशर्ते इसके साथ बुखार ना हो। यह स्नान करने से पेशाब खुलकर आता है, इसीलिए यह गुर्दे संबंधी विकारों, जलंधर, सूजन आदि से ग्रस्त मरीजों के लिए भी लाभकारी है। इस स्नान से पूरी प्रणाली को विश्राम मिल जाता है, इसलिए यह अनिद्रा के उपचार में भी गुणकारी है।
चेतावनी -
उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी रोगों, कमजोरी, बुखार आदि के होने पर यह स्नान न करें।
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• अस्थमा स्नान -
मरीज को इमर्शन टब में लेट जाना चाहिए, जो पानी से आधा भरा होता है और जिस का तापमान 37 से 38 डिग्री सेल्सियस होता है इसके बाद गरम पानी की टोटी खोलकर पानी का तापमान बढ़ाकर 40 से 42 डिग्री सेल्सियस कर दिया जाता है। इस स्नान की अवधि 4 मिनट की है। इसके बाद शरीर को रगड़ा जाता है। इस कार्य की शुरुआत बाएं पैर से होती है। इसके बाद क्रमवार बाई बांह, पेट, छाती, दाहिने पैर, पीठ, और और रीढ़ का घर्षण किया जाता है। रीढ़ को तब तक रगड़ा जाता है, जब तक तो अच्छा लाल ना पड़ जाए। रीढ़ के घर्षण के बाद 3 - 4 मिनट तक छाती व पेट का घर्षण किया जाता है। घर्षण का काम पूरा हो जाने पर गर्म पानी की टोटी बंद कर दी जाती है। जिसके बाद मरीज को सीधा बिठाकर उसे क्षणभर को सांस छोड़ने को कहा जाता है।
उसके ऐसा करते ही उसकी कमर पर एक बाल्टी ठंडा पानी डाल दिया जाता है। इसके तुरंत बाद मरीज को सांस लेने को कहा जाता है और आधा बाल्टी पानी उसकी छाती पर डाला जाता है उसे दोबारा दो-चार मिनट तक टब में लेटने को कहा जाता है।
इस प्रक्रिया को दो तीन बार दौरा ना पड़ता है। टब के पानी को हमेशा 37 से 38 डिग्री सेल्सियस सेंटीग्रेड के तापमान पर लाना पड़ता है। अंत में 2 मिनट तक ठंडे पानी से नहाने और तत्पश्चात 30 से 40 मिनट तक विश्राम करने की सलाह दी जाती है।
लाभ -
इस उपचार से सांस की गहराई बनाने में मदद मिलती है और फेफड़ों की रक्त संकुलता दूर होती है। इसलिए यह स्नान अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एंफी, इत्यादि की अवस्था में गुणकारी है।
• व्होलपुल (भंवर)स्नान -
पानी का तापमान -
ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री सेल्सियस, न्यू ट्रल पानी 32-36 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि -
15 मिनट।
विधि -
पानी कुएं जैसे एक बड़े टब मैं भंवर की तरह घूमता है। मरीज के टब में उतारते ही भंवर की तरह बहने वाले पानी से उसके शरीर की धीमे-धीमे मालिश होती है। अच्छी सेहत वाला एक आम व्यस्क ठंडे पानी से स्नान कर सकता है।
लाभ -
यह स्नान मांसपेशियों एवं रक्त संचार संबंधी क्रियाओं को अभी प्रेरित करता है। ठंडे पानी के साथ स्नान करने से शरीर का तापमान कम हो जाता है, लेकिन इससे पसीना खुलकर आता है, ह्रदय एवं शरीर के अन्य दूसरे अंगों की कार्यप्रणाली में सुधार होता है। ठंडे पानी में नहाने से रक्तचाप बढ़ जाता है, इसलिए उच्च रक्तचाप के मरीजों को ठंडे पानी से नहाना चाहिए। संवर्धित श्वसन क्रिया की वजह से मस्तिष्क कहीं ज्यादा सजग और सक्रिय हो जाता है। अचानक ठंडे पानी के संपर्क में आने से गुर्दों, जिगर कथा आज की पेरी स्टेलीसिस (क्रमाकुंचन) की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। इसलिए पुराने कब्ज, गुर्दों व जिगर के विकारों में यह स्नान उपयोगी रहता है। शरीर में पोषण तत्वों का पूरी तरह परी पाचन ना होने पाने के कारण दुर्बल हो गए व्यक्ति को ऐसे स्थान से लाभ पहुंचेगा, क्योंकि इससे भूख बढ़ती है पाचन एवं परिभाषा क्रिया समुचित रूप से होती है। भाप स्नान, सूर्य स्नान, सौना बाथ जैसे गर्म स्नानो के बाद थोड़े समय के लिए यह स्नान कराया जा सकता है।
अन्य दूसरे न्यूट्रल स्थानों की तरह न्यूट्रल वर्लपूल स्नान करने से शरीर को आराम मिलता है और परिसरिय रक्त वाहिकाएं फैल जाती हैं। इस स्नान का मांसपेशियों के ऊतकों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है और इस उपचार के दौरान ऊतकों में निहित विषैले पदार्थ तेजी से बाहर निकल जाते हैं। यह स्नान मस्तिष्क, तंत्रिका एवं मांस पेशियों प्रणालियों में जलन आदि की व्यवस्था में लाभकारी है।
• पानी के नीचे प्रेशर स्नान -
इस स्नान को जल चिकित्सा में अभी हाल ही में शामिल किया गया है यह स्नान करने से शरीर पर पानी के तापमान का ही नहीं बल्कि उस दबाव का ही प्रभाव पड़ता है जो पानी की जोरदार धार के कारण शरीर पर पड़ता है वास्तव में स्नान में दो तत्व शामिल है पहला सामान्य इमर्शन स्नान और दूसरा मालिश।
पानी का तापमान -
ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री सेल्सियस अथवा न्यूट्रल पानी का तापमान 32-36 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि-
15 मिनट तक।
विधि -
स्नान विशेष रूप से बनाएं टब में कराया जाता है, जिसमें एक जैट पाइप लगा होता है। पानी के नीचे न्यूट्रल मालिश कराते समय मरीज उपचार शुरू करने से पहले एक या दो गिलास ठंडा पानी पीता है। इसके बाद मरीज का शरीर पानी में उठने वाले हल्के कंपन से प्रभावित होता है।
इसके बाद जेट बाइक से उसकी कमर और छाती पर पानी का स्प्रे किया जाता है।
पानी के नीचे न्यूट्रल मालिश हो जाने के बाद मरीज के सिर पर ठंडा पानी डाला जाता है इसके बाद मरीज को 30 से 40 मिनट तक विश्राम करने की सलाह दी जाती है।
लाभ -
पानी के नीचे ठंडी प्रेशर मालिश रक्त के प्रवाह को परिसरिय रक्त वाहिकाओं की ओर मोड़कर त्वचा की गतिविधियों को संवर्धित करने में सहायक है। मांसपेशियों की अतिरिक्त गर्मी समाप्त हो जाती है और मांसपेशियां मजबूत होती हैं इसीलिए यह मांस पेशियां कमजोर पड़ने पर उन्हें सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से उपयोगी है।
पक्ष घात, पोलियोमैलाई टिस और पैरिप्लीजिया के मामलों में पानी के नीचे ठंडी मालिश का एक बहुमूल्य उपचार है। इससे तो अच्छा ही क्रियाशील नहीं होती बल्कि संपूर्ण तंत्रिका प्रणाली की गतिविधि का संवर्धन भी होता है।
इसलिए यह मालिश तंत्रिकाओं की हर तरह की दुर्बलता के उपचार में प्रभाव कारी है पानी के नीचे ठंडी मालिश से पाचन क्रिया में सुधार होता है और इसे गैसीय रस अधिक मात्रा में पैदा होते हैं। इसलिए यह मालिश उन मरीजों के लिए उपयोगी है, जिनके शरीर में गैसीय रसो का रिसाव का होने से उन्हें भूख कम लगती है।
32-36 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पानी के नीचे मालिश करना कड़ी शारीरिक गतिविधियों के बाद शरीर को आराम देने वाला उपचार है,
जैसे व्यायाम, सैर इत्यादि। खेलकूद में भाग लेने के बाद यह उपचार करने से थकी हुई मांस पेशियों को आराम मिलता है। यह अनिद्रा की स्थिति में भी लाभकारी है और इससे मांसपेशियों व तंत्रिका प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। स्पोंडिलोसिस, शिआटिका, अर्थराइटिस, स्कालियोसिस तथा हड्डियों व जोड़ो के अन्य दूसरे विकारों में भी पानी के नीचे न्यूट्रल मालिश उपयोगी है।
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