यह एक प्राचीन पद्धिती है जो कि कब्ज एवं पेट संबंधी विकारों से आराम दिलाने में सहायक होती है।एनिमा को एक बहुत ही कारगर पद्धति माना जाता है जो कि पेट में लंबे समय से जमा या पेट में सड़ रहे कचरे को पेट से बाहर करने में मदद करती है इसके अलावा आंतों के कीड़ों आदि को भी जड़ से मिटा सकते है।
वर्तमान समय में एनिमा किट बहुत ही आसानी से दुकानों में उपलब्ध है जिसे आप खुद भी कर सकते है और किसी विशेषज्ञ की मदद भी ले सकते हैं।
• एनिमा क्या है -
मलाशय के भीतर एक प्रकार का घोल पहुंचने की क्रिया को एनिमा (वस्तिकर्म) कहते हैं। इसे मलाशय की सफाई करना भी कहते हैं।
सामग्री -
एनिमा का एक डिब्बा।
पानी का तापमान -
केवल कुनकुना पानी ही उपयोग में लेना सही होगा।
विधि -
मरीज सीधा लेट कर अपना दाहिना पैर उठाकर अपना बायां पैर समकोड़ पर मोड़ लेता है। अब एनिमा का नोजल तेल या वैक्सीन लगाकर गुर्दे में अंदर डाला जाता है। धीरे धीरे एनिमा के डिब्बे को 3 फीट ऊंचा कर दिया जाता है और इसमें भरे पानी को मलाशय में जाने दिया जाता है। अगर मरीज को इस क्रिया के दौरान दर्द होने लगे तो, डिब्बे की ऊंचाई कम कर देनी चाहिए तथा पानी का बहाव कुछ देर के लिए रोक देना चाहिए। ऐसा करने पर दर्द बंद हो जाएगा।
एनिमा के डब्बे को फिर से 3 फीट ऊंचा कर दिया जाता है। आमतौर पर 2 से 4 पिंट पानी मलाशय के भीतर पहुंचाया जाता है। इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि अंतड़ियों में हवा ना पहुंचने पाए क्योंकि ऐसा होने से पेट में बहुत तेज दर्द हो सकता है, यदि एनिमा देते समय पेट में गैस की वजह से दर्द होने लगे तो अंतड़ियों के ऊपर हल्की मालिश करने से यह बंद हो जाएगा।
पानी अधिक मात्रा में अंदर नहीं पहुंचना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कभी-कभी अंतड़िया फूल जाने से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। पानी कम से कम 5 - 10 मिनट तक अंदर रखना चाहिए। पानी को अंदर रखते हुए मरीज को थोड़ा चलना फिरना चाहिए और उसके बाद शौचालय में जाकर उसे धीरे-धीरे पानी और पेट में जमे मल का त्त्याग करना चाहिए। मरीज को सारा पानी तुरंत ही बाहर निकाल देने की जल्दी नहीं करनी चाहिए।
लाभ -
गर्म पानी का एनिमा मलाशय में जमा मल आदि को साफ करने में सहायक होता है। यह चिकित्सा जगत में आंतों को साफ करने की सर्वाधिक सुरक्षित विधि है। इससे आंतों के पैरिस्टेलिक संचालन में सुधार होता है और सर्दी से छुटकारा मिलता है। 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले ठंडे पानी का एनिमा उल्टियां, दस्त, आंतों में जख्म जैसी अंतड़ियों की बीमारियों, बवासीर और बुखार में भी लाभकारी है।
40 से 42 डिग्री सेल्सियस तापमान गर्म पानी से दिया गया एनिमा मलाशय में होने वाली जलन व दर्द था तथा बवासीर के दर्द से छुटकारा दिलाने में सहायक है। यह डिस्मेनोरिया तथा ल्यूकोरिया में भी लाभकारी है। कुछ मामले में, जब आंते संक्रमण का शिकार हो जाते हैं -जैसे अमीबा रुग्णता, संक्रामक कोलाइटिस, पेट में कीड़े होना -नीम की पत्तियां उबालकर तैयार किए गए पानी का एनिमा दिया जा सकता है।
• ग्रेजुएटेड एनिमा -
नियमित रूप से एनिमा लगाने की आदत छुड़ाने के लिए यह विधि अपनाई जाती है। पहले दिन मरीज को 3 पिंट पानी का एनिमा दिया जाता है जिसका तापमान शरीर के तापमान जितना होता है। इसके बाद प्रतिदिन पानी की मात्रा में एक या दो पिंट की कमी कर दी जाती है। अंतिम 3 दिनों के दौरान मलाशय को क्रियाशील बनाने के लिए मरीज को केवल एक या दो पिंट पानी का एनिमा दिया जा सकता है।
• योनि की सफाई (वैजिनल इरीगेशन)-
यह विधि आमतौर पर वैजिनल डूश के नाम से सुविदित है। इस क्रिया के दौरान बिना किसी तरह का दबाव या आंशिक दबाव डालें योनि द्वार से पानी भीतर पहुंचाया जाता है।
सामग्री -
इस क्रिया के लिए विशेष प्रकार का नोजल इस्तेमाल किया जाता है यह नोजल एनिमा के डिब्बे या रबर की थैली से जुड़े नली में लगाया जा सकता है।
पानी का तापमान -
ठंडा, न्यूट्रल या गर्म।
विधि -
मरीज पीठ के बल लेटकर अपने नितंबों को थोड़ा ऊंचा उठाता है। योनि से निकलने वाला पानी जमा करने के लिए एक उपयुक्त पात्र इसके नीचे रख दिया जाता है यह बात ध्यान देने योग्य है कि एनिमा के डिब्बे का नोजल गर्भाशय में नीचे की तरफ हो जिससे योनि में पानी प्रवेश के बाद अच्छी तरह घूम सके और इसके सभी भाग पानी की ऊष्मा (गर्माहट) से प्रभावित हो जाए।
इसकी प्रतिक्रिया योनि की श्लेमा झिल्ली पर ही नहीं होती बल्कि पेल्विक रीजन के अवयवों में रक्त संचार पर भी इसी क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
• ठंडे पानी से सफाई -
यह मेनोरेजिया (अतिरज: स्राव) की स्थिति में, जब जननांगों में जलन होने लगती है, अत्यंत उपयोगी है। 10 से 15 मिनट तक ठंडे पानी से सफाई करने से गर्भाशय की कार्यशीलता में वृद्धि होती है। इससे पेशाब करने से जिसके दौरान जलन भी हो सकती है, तथा मूत्र मार्ग संक्रमण की वजह से होने वाली खुजली इत्यादिसे आराम मिलता है।
• न्यूट्रल पानी से सफाई -
कहा जाता है कि उक्त क्रिया का सहारा लेने पर विशेषकर मधुमेह, ल्यूकोरिया तथा वैजीनल प्रूर्तूस सरीखी परिस्थितियों में योनि द्वार व गर्भाशय में जलन व खुजली में आराम मिलता है। कई मामलों में यह साबित हो चुका है कि गर्म कटी स्नान के साथ साथ पानी से योनि को साफ करते रहने से रोज धर्म नियमित समय पर होता है।
• गर्म पानी से सफाई -
लाभ -
40 डिग्री सेल्सियस वाले पानी से सैल्फिन जाइटिस, सेल्यूलाइटिस, पुराने मेट्राईटिस, ऑफेरेटिस, व एंडोमेटाईटीस जैसी बीमारियों में दर्द से आराम मिलता है। और रक्त के संचार में सुधार होते हैं।
गर्भावस्था के दौरान गर्म पानी से सफाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे गर्भपात होने की आशंका हो सकती है। लेकिन प्रसव पीड़ा शुरू हो जाने पर गर्म पानी से सफाई करने से गर्भाशय ग्रीवा के जल्दी से फैलने में मदद मिलती है। अदल बदल कर गर्म हवा ठंडे पानी से योनि के अंदर साफ करना पेल्विक रीजन के अन्य अवयवों को क्रियाशील बनाने की दृष्टि से अच्छा है।
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