परिचय -
यह तो सभी जानते हैं की प्रकृति सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक है और मानव द्वारा अपना शिकार बनाने वाली अनेकों बीमारियों का उपचार करने के लिए प्रकृति के अपने पांच तत्व पृथ्वी जल अग्नि आकाश वायु को अपनाकर इनसे चिकित्सा करना की नेचुरोपैथी चिकित्सा कहलाती है।
मनुष्य को अपने जीवन काल में अच्छी आदतें डालकर अच्छा पौष्टिक भोजन लेकर और अपनी जिंदगी में व्यायाम को जगह दे कर एवं इन सभी के माध्यम से अनेकों बीमारी से बचा जा सकता है, लेकिन यह सभी सावधानियां बर्तन के बाद भी अगर बीमारियां घेरले तब प्राकृतिक चिकित्सा और योग को अपनाकर इनका उपचार संभव हो सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा की सबसे अच्छी बात यही है कि इसमें किसी भी तरह का औषधीय प्रयोग या रासायनिक प्रयोग नहीं होता जिसकी वजह से सभी प्रकार के हानिकारक प्रभावों से बचा जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल करते समय पूरी सावधान रखना चाहिए और मरीजों को इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि यह पद्धति गलत ढंग से ना की जाए, मरीजों को सलाह दी जाती है कि इस पद्धति को करने से पूर्व इसका पूरी तरह से ज्ञान प्राप्त करना ही सही होगा अगर समझने में कोई भी समस्या हो तो विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए।
उद्देश्य -
किसी भी रोगी को उसके उपचार से पहले उपचार विधि यह बारे में बताना आवश्यक वाह पहला कदम होता है जिसके कारण रोगी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति और योग से अच्छी तरह घुल मिल जाए और चिकित्सा के दौरान संपूर्ण सहयोग के साथ भरपूर लाभ उठाएं । इन उपचारों को सही तरह से समझ कर इनसे अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
निम्नलिखित उपचार के लिए नीचे कुछ सामान्य नियम बताए गए हैं:-
- कम से कम 2 लीटर पानी प्रतिदिन अवश्य पीना चाहिए।
- उपचार के बाद कम से कम 1 घंटे भोजन ना करें इसी प्रकार भोजन और उपचार के बीच का समय 3 घंटे का जरूर होना चाहिए।
- साफ और शुद्ध पानी उपचार के लिए जरूरी होता है।
- एक बार उपचार के लिए यूज किया गया पानी दोबारा उपयोग में नहीं लेना चाहिए।
- उपचार से पहले प्रयोग में लिए जाने वाली चादर को गर्म पानी से अच्छी तरह धो कर सुखा लेना चाहिए।
- उपचार के लिए कंफर्टेबल कमरे का चुनाव करना चाहिए जो ना तो ज्यादा गर्म और ना ही ज्यादा ठंडा हो रोगी के लिए आरामदेह हो, एवं उपचार के समय रोगी को सीधी हवा से बचना चाहिए।
- ज्यादा कमजोर रोगियों को या फिर हाई ब्लड प्रेशर, शुगर, बुखार, डिप्रेशन, थकान जैसी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को ज्यादा देर तक ना तो उपचार लेना चाहिए, और ना ही स्टीम लेनी चाहिए उनके लिए सही उपचार किसी एक्सपर्ट की देखरेख में होना चाहिए।
- हाइड्रोपैथिक उपचार या (जल चिकित्सा) के दौरान इससे ज्यादा से ज्यादा फायदा पाने के लिए निश्चित तापमान और समय का ध्यान सक्ती से रखना चाहिए ज्यादा जल्दी फायदे के लिए अधिक देर तक उपचार लेना हानिकारक हो सकता है।
ठंडे पानी से उपचार -
ठंडे पानी से उपचार कराने से पहले और उसके बाद रोगी को गीले फर्श या घास पर नंगे पैर नहीं चलना चाहिए और ना ही ठंडी हवा लेनी चाहिए पैरों को ठंड से बचाने के लिए मोजे व चप्पल का उपयोग करना चाहिए।
ठंडे पानी उपचार करने के बाद रोगी को जल्दी से जल्दी अपना शरीर पांचवा सुखाकर कसरत या व्यायाम करनी चाहिए, किसी भी कारण से रोगी द्वारा व्यायाम करने में असमर्थ होने पर कम से कम 20 मिनट तेजी से चलने का प्रयास करना चाहिए या फिर 30 मिनट तक खुद को पूरी तरह से किसी मोटे कंबल में लपेट कर रखना चाहिए।
ठंडे पानी के उपचार के बाद अगर रोगी को सर्दी महसूस होने लगी हो तो रोगी को तुरंत या इलाज रोक देना चाहिए।
ठंडे पानी से इलाज के 45 से 60 मिनट के बाद ही स्नान करना चाहिए।
गर्म पानी से उपचार-
गरम पानी से उपचार करवाते समय इसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा लाभ पाने के लिए बताए गए सभी आवश्यक नियमों को सावधानीपूर्वक समझ लेना चाहिए जिससे की आपको किसी भी नुकसान का सामना ना करना पड़े।
गर्म पानी से उपचार कराने के लिए बाहर जितना जल्दी हो ठंडे पानी से नहाना चाहिए।
गर्म पानी से किसी भी तरह का उपचार कराने से पहले रोगी को दो गिलास ठंडा पानी जरूर पीना चाहिए सिर्फ हमेशा देखे पौधों से बचा कर रखना चाहिए जिससे दिमाग को ठंडक मिलती रहे। वरना रोगी का सर चकरा सकता है या उसे उल्टी का आभास हो सकता है कमजोरि या थकान के थोड़े भी लक्षण देखने पर उपचार जल्दी ही बंद कर देना चाहिए।
पीरियड के बीच या शुरू होने पर महिलाओं को किसी भी तरह के उपचार से बचना चाहिए, बहुत ही जरूरी होने पर एनिमा , या दूसरे छोटे उपचार अपना सकती है।
गर्भावस्था के बीच किसी भी महिला को 3 माह पूरे होने तक ठंडे पानी से भरे टब में बैठने की सलाह दी जाती है, एवं इससे अधिक समय बीतने पर केवल ठंडे तौलिए कल अपडेट करने की सलाह दी जाती है और इससे अधिक किसी भी उपचार व सहायता के लिए विशेषज्ञ से मिलना आवश्यक है।
उपचार संकट या हीलिंग क्राइसिस की जैसी स्थिति भी कभी-कभी आपके सामने आ सकती है ऐसी स्थिति में होने वाले लक्षण निम्नलिखित प्रकार है :-
- दस्त उल्टी त्वचा संबंधी रोग बुखार एवं अन्य लोगों का बढ़ जाना ऐसी स्थिति के समक्ष आने पर हमें घबराने की जगह खुद को संभाल कर स्थिति को समझना चाहिए।
- यह केवल निम्नलिखित रोग में नष्ट करने का उपचार किया जा रहा है उन्हें समाप्त करने की प्रभाव कारी क्रिया का एक हिस्सा है उपचार के दौरान हमें अपने खानपान का शक्ति से ध्यान रखना चाहिए आवश्यकतानुसार बेड रेस्ट करना चाहिए खुद को वह अपने शरीर को दूषित तत्व दूषित पानी दूषित हवा आदि से बचा कर रखना चाहिए जैसे-जैसे उपचार आगे बढ़ता है शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति का पुनः संचार शुरू हो जाता है
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