सामान्य जीवन में हमारा किया हुए हर एक कार्य किसी से बात करना, बोलना, उठना, बैठना, खाना, पीना, चलना यह तक की देखने की आदत भी हमारी शिष्टता और आचरण को दर्शाता है।
• शिष्टाचार का क्या अर्थ है? -
साधारण बोलचाल में हम सभी लोग एक शब्द का बहुत ज्यादा प्रयोग करते हैं और वह शब्द है- शिष्टाचार।
अब यह प्रश्न उठता है की इस शिष्टाचार शब्द का अर्थ क्या है?
शिष्ट शब्द का अर्थ होता है सभ्यता पूर्ण अथवा सही तरीके से एवं आचार शब्द का अर्थ होता है- आचरण करना अथवा अन्य लोगों से व्यवहार रखना।
अतः शिष्टाचार शब्द का मतलब- सभ्यता से आचरण करने वाला या सही तरीके से व्यवहार करने वाला होता है।
शिष्टाचार को अंग्रेजी भाषा में Etiquette, Comity, Courteousness, Good Manners,Usual Formality आदि कहां जाता है।
प्रत्येक मनुष्य प्रतिदिन अनेक अन्य मनुष्यों के साथ व्यवहार (बोलचाल, लेन देन, क्रय विक्रय आदि) करता है। लेकिन यह व्यवहार किस तरीके से किया जाए यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। यदि यह व्यवहार गलत तरीके से किया जाता है तो इसे अशिष्टता कहा जाएगा। यदि यह व्यवहार सही तरीके से किया जाता है तो इसे- शिष्टाचार कहा जाएगा।
प्रत्येक मनुष्य को अपने दैनिक जीवन में सही तरीके से व्यवहार करना चाहिए। इस प्रकार से सभ्यता पूर्ण व्यवहार या आचरण करने वाले मनुष्य को ही- शिष्ट, सभ्य, सज्जन आदि कहकर संबोधित किया जाता है।
• शिष्टाचार कैसे सीखें? -
हम सभी जानते हैं की शिष्टाचार या अच्छे संस्कार हमारे माता पिता और सामाजिक परिवेश की देन होती है जो कि हम बचपन से सीखते आते हैं। प्रत्येक माता पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे और शिष्ट बने, अपने से बड़ों की इज्जत करें और समाज में अपनी साख बनाएं।
यूं तो शिष्टाचार के गुण बचपन से बच्चों को सिखाने की कोशिश की जाती है परंतु यह बात जरूरी नहीं होती कि शिष्टाचार सिर्फ बचपन में ही सीखा जा सकता है इंसान अगर सीखने का इच्छुक है तो वह शिष्टाचार के कुछ विशेष नियम कभी भी सीख सकता है और अपनी वास्तविक जीवन में लागू कर सकता है।
नीचे शिष्टाचार सीखने संबंधी कुछ पॉइंट्स दर्शाए गए हैं-
- सुबह जल्दी उठने की आदत बनाएं और हो सके तो ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर नित्य कर्मों को पूर्ण कर अपनी दिनचर्या की शुरुआत करें।
- अक्सर लोगों को समय का महत्व समय हाथ से निकल जाने के बाद ही समझ आता है इसलिए समय का सदुपयोग करना सीखें।
- अपने अंदर प्रेम व सहयोग की भावनाओं को विकसित करें।
- खुद को शांत रखना सीखें एवं कोई भी कार्य करने से पहले जरूर सोचें, बिना सोचे किए गए कार्य अक्सर नुकसान दे साबित होते है।
- अपने से छोटे व बड़े उम्र के लोगों का आदर करना सीखें। बड़ी उम्र के लोगों या बुजुर्गों का आदर करें जरूरत अनुसार उनके पैर छुए। एवं अपने से छोटे लोगों के साथ मित्रता पूर्ण व्यवहार रखें सदा उन्हें सही मार्ग बताएं।
- ईश्वर की प्रति खुद में आस्था जगाए एवं खुद को आध्यात्मिक तौर पर सजग बनाएं ऐसा करने से आपको सही काम करने की प्रेरणा मिलती है।
- खुद को ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ बनाएं सदैव सत्य के मार्ग में चलने की प्रतिज्ञा लें। हम सभी जानते हैं कि अंत में केवल सत्य की ही जीत होती है।
- खुद के अंदर सहनशक्ति बढ़ाएं खासकर अगर आप एक युवा है तो अपने अंदर की सहनशक्ति को बढ़ाना आवश्यक है। आजकल अक्सर लोग छोटी-छोटी बातों पर अपना संयम खो कर आक्रोशित हो जाते हैं परंतु हमें अपना लक्ष्य पाने के लिए खुद को सहनशील बनाकर लगातार प्रयत्न करते रहना चाहिए।
• भोजन संबंधी शिष्टाचार -
जीवन में कदम कदम पर शिष्टता का परिचय देना बड़प्पन की निशानी है। खानपान के संदर्भ में तो यह बात और अधिक लागू होती है।
अत: भोजन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखने से स्वास्थ्य की रक्षा तो होगी ही साथ ही साथ आपकी इज्जत भी बढ़ेगी -
- भोजन हमेशा हाथ मुंह धोकर, कुल्ला करके, साफ स्थान पर, उचित समय पर ही करना चाहिए।
- भोजन के बर्तन को गोद में रखकर, सोते-सोते, चलते चलते, सूर्य ग्रहण के समय तथा चंद्र ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए।
- अगर आपको किसी पंक्ति में बैठकर भोजन करना हो तो खाली स्थान पर ही जाकर बैठे हैं। पहले से ही बैठे हुए किसी अन्य व्यक्ति को उठाकर उसके स्थान पर बैठने की चेष्टा ना करें पहले से भोजन कर रहे छोटे बच्चे को भी उसकी जगह से उठाकर दूसरी जगह बैठने को कहना ठीक नहीं होता।
- अगर आप कुर्सी पर बैठकर भोजन कर रहे हो तो कुर्सी इस तरह से रखें की आने जाने वाला व्यक्ति ठोकर खाकर गिर ना पड़े। आप भी आते जाते समय किसी कुर्सी को धक्का ना दें।
- अगर आपने किसी को आमंत्रित किया हो तो समय पर ही समस्त तैयारी कर ले।
- अगर किसी दावत में सिर्फ आपको ही भोजन पर बुलाया गया है तो छोटे भाई बहन, दोस्त या रिश्तेदार को साथ ना ले जाएं।
- अगर आप भोजन पर कहीं आमंत्रित किए गए हैं तो वहां निश्चित समय पर ही पहुंचे ना ही ज्यादा जल्दी और ना ही अधिक देरी से। अगर किसी कारणवश देरी से पहुंचना हो तो समय पर सूचना भिजवा दें और मिलने पर आप की मेजबानी करने वाले व्यक्ति से क्षमा अवश्य मांग ले।
- मेजबान के रसोईघर या अन्य कमरों में ताक झांक ना करें।
- मेजबान यदि आपके रिश्तेदार या दोस्त हो तो भोजन परोसने में उनकी मदद अवश्य करें।
- अगर आप खाना परोस रहे हो तो किसी को खाने के लिए एक दो बार अनुरोध जरूर करें लेकिन किसी वस्तु को अधिक खाने के लिए बाध्य ना करें।
- भोजन परोसा जा रहा है तो उतना ही लें जितना आप खा सकें ताकि खाना व्यर्थ ना हो जाए। अगर आपको अपने हाथ से भोजन लेना हो तो एक बार में ही अपनी प्लेट ना भर ले बल्कि थोड़ा थोड़ा भोजन लेकर और खा कर पुनः और ले ले।
- अगर आप को अपने हाथों से भोजन लेना पड़े तो अपने झूठे चम्मच से कोई भी सामग्री ना लें।
- नौकर या बैरे से शिष्टता पूर्वक की कोई वस्तु मांगें।
- अगर आपको कोई वस्तु चाहिए तो जोर से आवाज देकर ना मांगे और ना ही चम्मच, गिलास आदि बजाएं। मेज पर कोहनियां टीका कर ना बैठे और नाही मैच को बजाएं।
- कौर उतना ही बड़ा ले जितना सहजता से खाया जा सके।
- अगर रोटी, पूडी-पराठे या कचौड़ी गर्म हो तो उसे टुकड़े टुकड़े करके मुंह से हवा देते हुए ना खाएं। गर्म वस्तु को मुंह में डालकर सी-सी जैसी आवाज निकालना भी अत्यंत अशोभनीय होता है।
- दाल या सब्जी में रोटी का बड़ा टुकड़ा डालकर, उसे मसल कर हाथ की पांचों उंगलियों को मुंह में डालकर ना खाएं और ना ही उंगलियों को चाटे।
- भोजन करते समय चप-चप चबाने की आवाज ना करें, चाट आदि खाते समय चटकारे ना लें। भोजन बहुत धीरे धीरे या बहुत जल्दी-जल्दी भी नहीं करना चाहिए।
- चाय, दूध आदि को इस तरह से पिए की असामान्य आवाजें ना हो। अगर जल्दी हो तथा प्लेट में डालकर चाय पीनी पड़े तो ध्यान रखें की ' सुड़क-सुड़क ' की आवाज ना आए।
- छुरी-काटे या चम्मच से खा रहे हो तो प्लेट से उनके टकराने की आवाज ना हो।
- फल का बीज या गुठली आदि निकालनी हो तो चम्मच को अपने होठों के पास ले जाकर मुंह से उसमें बीज डालें तथा फिर से उसे प्लेट के एक कोने पर रख दे।
- अगर चम्मच कांटा आदि जमीन पर गिर जाए तो उससे काम ना लें, एवं दूसरी नई चम्मच का प्रयोग करें।
- बिना देखे हुए पानी को ना पिए। पानी पीने से पहले देख ले की उसमें कुछ पढ़ा हुआ ना हो। इसी प्रकार पान आदि भी बिना देखे ना खाएं।
- पल हमेशा धोखा ही उपयोग में लें।
- जग से पानी सीधा, ऊंचा करके उड़ेलते हुए ना पिए। पानी सदा बैठकर धीरे-धीरे ही पिएं।
- मुंह भरा हुआ हो तो बात ना करें। खाना खाते समय ना तो जोर जोर से हंसे ना ही बात करें।
- खाना खाते समय अखबार, पुस्तक, पत्रिका आदि ना पढ़े।
- भोजन इस प्रकार करें कि उसका द्रव्य पदार्थ, सब्जी का रस आदि भूमि अथवा वस्त्रों पर ना गिरे।
- भोजन में कोई कमी दिखाई ना पड़े या बाल, कंकर, आदि आ जाए तो बोलकर प्रकट ना करें। भोजन की ना तो किसी से तुलना करें और नाही आलोचना करें।
- अगर कई व्यक्ति एक साथ खाना खाने बैठे हो तो एक साथ ही उठे। सब लोगों से पहले उठ कर हाथ धोना अशोभनीय माना जाता है।
- जूठे बर्तन सही स्थान पर रखें। अपने जूठे हाथ गिलास में डुबोकर ना धोए और थाली में कुल्ला भी ना करें। हाथ सदैव उपयुक्त स्थान पर या वास वेसिन में ही धोए। यदि वहां पर कोई अन्य व्यक्ति खड़ा हो तो थोड़ा इंतजार करना सही होगा।
- गीले हाथ इधर उधर ना झाड़ें, ना कमीज आदि से पोंछे। हाथ मुंह स्वच्छ तौलिए या रुमाल से पोंछे।
- नैपकिन का प्रयोग पूरा चेहरा पोंछने के लिए ना करें। उससे केवल हाथ तथा होंठ ही पोंछे।
- लौटते समय मेजबान को धन्यवाद दें तथा उससे खाने की थोड़ी बहुत प्रशंसा अवश्य करें।
• दस शिष्टाचार (10 शिष्टाचार) की बातें -
- सबसे पहले अपने गुरु, मित्र या बड़ो से मिलने पर अभिवादन (जैसे नमस्कार, सुप्रभात, हेलो।)
- करने की आदत बनाएं जोकि एक सभ्य व्यक्ति की निशानी होती है।
- आवश्यकता पढ़ने पर या फिर कोई आपकी मदद करे तो आपके द्वारा उस व्यक्ति के लिए थैंक यू या सॉरी बोलने की आदत डालें इस बात पर यह जरूरी नहीं है कि सामने वाला आपसे छोटा है या बड़ा।
- जोश में किसी भी बात का निर्णय ना लें पहले सही और गलत का पता लगाएं।किसी भी बात को लेकर जल्दी ना करें और धैर्य रखना सीखें।
- जरूरतमंद की मदद या किसी के साथ शेयरिंग करना आवश्यक हो तो बिना झिझक ऐसा ही करने की कोशिश करे।
- अपनी इच्छा अनुसार ईश्वर पर आस्था रखें एवं खुद को आध्यात्मिकता की ओर लेकर जाएं इससे आपका मन भी शांत होगा एवं एकाग्रता बढ़ेगी।
- अगर आप किसी के साथ हैं और उनसे आगे आप चल रहे हों तो उसके लिए आप नम्रता के साथ कार या फिर होटल का दरवाजा खोल सकते हैं इस बात से बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता कि वह व्यक्ति स्त्री हो या पुरुष।
- किसी से बात करते हुए उससे आई कॉन्टैक्ट बनाकर रखें इससे सामने वाले पर आपके लिए एक सकारात्मक विचार उत्पन्न होता है और ऐसा लगता है कि आपका पूरा ध्यान उसकी बातों पर ही है।
- चुगली और निंदा करने की आदत बहुत ही बुरी होती है हमें ऐसी आदतों से बचना चाहिए। अगर सही समय में इन आदतों से पीछा नहीं छुड़ाया गया तो हमारे व्यक्तित्व पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है।
- सामने चाहे कोई बड़ा हो अथवा छोटा हमें अपनी वाणी में सदैव शिष्टता का आचरण रखना चाहिए एवं हमारे स्वर मधुर होने चाहिए यह हमारे सभ्य होने को दर्शाता है।
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