वर्तमान दैनिक जीवन इतना अधिक थकान तनाव एवं भागदौड़ से भरा है की हमें अपने शरीर की देखभाल के लिए भरपूर समय ही नहीं मिलता लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा सुझाए गए कुछ बेहद ही आसान नुस्खे के द्वारा भी हम अपने शरीर के तनाव एवं थकान को मिटा सकते हैं नीचे हमने मालिश एवं स्पाइनल बाथ के कुछ फायदे बताए गए हैं।
• तेल मालिश -
तेल मालिश एक ऐसा उपचार है, जिसमें पूरे शरीर पर तेजमल कर इसे सिलसिलेवार ढंग से गूंथा जाता है। मरीज को विश्राम की अवस्था में इस काम के लिए विशेष रूप से बनाई गई एक गद्देदार मेज पर लिटाया जाता है। मालिश करने का यह काम मालिश करने वाले हाथों से किया जाता है। मालिश शरीर के उस भाग के हिसाब से की जाती है, जिसका इलाज किया जाता है। आधा घंटे तक शरीर को थपका जाता है, रगड़ा जाता है, एक प्रकार से गूंथा जाता है। हल्के हल्के दबाया जाता है तथा हिलाया डुलाया जाता है।
यह क्रियाएं रक्त के बहने की दिशा से की जाती हैं। मालिश की शुरुआत शरीर में दाहिनी ओर से दाहिने पैर के साथ होती है और अंत में सिर व गर्दन की बारी आती है।
मरीज को 20 मिनट तक धूप स्नान करने और तेल मालिश कराने के बाद गर्म पानी से नहाने की सलाह दी जाती है।
लाभ -
मालिश से शरीर को आराम मिलता है। इससे रक्त के संचार में सुधार होता है मालिश के विभिन्न तरीकों से शरीर के भिन्न-भिन्न भागों पर पड़ने वाले दबाव से रक्त संचार प्रणाली की शिराओं की प्रमुख वाहिकाओं में बहने लगता है।
इस बड़े हुए रक्त संचार से धमनियों में रक्त का प्रभाव बढ़ जाता है तथा इससे शरीर के विभिन्न भागों को पोषण व ऑक्सीजन मिलती है।
मालिश से त्वचा की क्रियाशीलता बढ़ने में भी मदद मिलती है तथा इसके छिद्र खुल जाते हैं, जिनके कारण पसीना खुलकर आता है तथा वसामय ग्रंथियां, जो त्वचा में धस जाती हैं, अधिक रक्त संचार से खुल जाती हैं। त्वचा के प्रभाव से त्वचा में लाखों की संख्या में मौजूद तंत्रिकाओं के सिरे उत्तेजित हो जाते हैं।
चेतावनी -
बुखार, गर्भावस्था, रोजमर्रा की अवधि, त्वचा संबंधी विकारों, दस्त, उल्टियां, जलन या सूजन की दशा में अथवा उपवास के दौरान मालिश नहीं करानी चाहिए।
• वाइब्रो मालिश -
इस मालिश के दौरान शरीर पर टेलकम पाउडर लगाया जाता है और समस्त क्रियाएं एक मशीन के जरिए की जाती है। शरीर के विभिन्न भागों की मालिश करने के लिए मशीन के अलग-अलग एप्लीकेटर इस्तेमाल में लाए जाते हैं। इस विधि से की जाने वाली मालिश में शरीर का भाग विशेष तरंगित होने लगता है। और इस प्रकार रक्त संचार एवं तंत्रिका प्रणालियां प्रभावित होती हैं। इस मालिश की अवधि 30 मिनट है।
चेतावनी -
बुखार, जलन या रोजधर्म, गर्भावस्था, कमजोरी, उल्टी, दस्त तथा उपवास की दशा में मालिश नहीं करानी चाहिए।
• ठंडा फ्रिक्शन -
सामग्री -
गर्म पानी की थैली, टर्किश तौलिए के कपड़े से बने दस्ताने, एक कंबल, एक बाल्टी ठंडा पानी।
पानी का तापमान -
18 से 22 डिग्री सेल्सियस।
उपचार की अवधि -
15 मिनट या इससे कम।
विधि -
मरीज को मेज पर पेट के बल लिटा कर उसके पैरों पर गर्म पानी की थैली रखती जाती है। परिचारक दस्तानों को ठंडे पानी में भिगोकर मरीज के शरीर की तेजी से रगड़ाई (घर्षण या फिक्शन) करता है। यह क्रिया पैरों से ऊपर की ओर की जाती है। इसमें चेहरा व कमर भी शामिल होती है। प्रत्येक अंग का कसकर फ्रिक्शन करने के बाद इसे कंबल से ढक दिया जाता है। इलाज के बाद मरीज को ठंडे पानी से नहीं लाया जाता है।
लाभ -
यह मालिश उच्च रक्तचाप, बुखार, सामान प्रारइटस का इलाज करने के लिए उपयोगी है।
चेतावनी -
बेहद कमजोरी, सर्दी बुखार होने पर तथा खुले घावों की परिस्थितियों में यह मालिश नहीं करनी चाहिए।
• सिर व रीढ़ की बर्फ से मालिश -
सामग्री -
एक पतले तौलिए में लिपटे हुए (आइसक्यूब) बर्फ के टुकड़े।
उपचार की अवधि -
7 मिनट तक।
विधि -
इसके दौरान मरीज पेट के बल लेटता है। उसकी पीठ ऊपर रहती है। तौलिए में लिपटे हुए बर्फ के टुकड़े को धीरे धीरे गर्दन के नीचे से लेकर रीढ़ के निचले सिरे तक घुमाया जाता है।
लाभ -
यह उच्च रक्तचाप का एक अत्यंत उपयोगी उपचार है, क्योंकि इस मालिश का तंत्रिकाओं पर असर पड़ता है।
गर्दन और सिर के पीछे के हिस्से पर यह मालिश करने से आधा सीसी (माइग्रेन) के दर्द में भी आराम मिलता है।
• रीढ़ स्नान (स्पाइनल बाथ) -
रीढ़ स्नान इस कार्य के लिए विशेष रूप से तैयार की गई टबों में कराया जाता है। कटि स्नान की तरह यह स्नान भी ठंडे, न्यूट्रल और गर्म तापमान पर कराया जाता है। टब के बीचो बीच एक चिद्रित नली लगी रहती है। इन छिद्रों में से तेजी से ऊपर निकलने वाली पानी की फुहारों से पूरी रीढ़ की हल्की हल्की मालिश हो जाती है। यह टब सुविधाजनक नहीं है, बल्कि इससे पानी का तापमान एक जैसा बनाए रखने में भी मदद मिलती है। पानी की इस हल्की हल्की मालिश के शीघ्र और अच्छे परिणाम निकलते हैं। मरीज को टब में लेटना पड़ता है, जिससे कि उसकी पूरी मेरुरज्जु (स्पाइनल कॉर्ड) पानी छोड़ने वाले क्षेत्रों के सामने रह सके।
• ठंडा रीढ़ स्नान -
पानी का तापमान -
ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि -
15 मिनट तक।
विधि -
मरीज कपड़े उतार कर स्पाइनल बाथ टब में लेट जाता है और अपने शरीर का टब में पानी ऊपर की ओर छोड़ने वाली नली के साथ इस तरह तालमेल बिठाता है। जिससे कि गर्दन के नीचे से लेकर आखिरी सिरे तक उसकी पूरी रीढ़ इस नली में छूती रहे।
जूते अवश्य पहनने चाहिए, जिससे कि रक्त के संचार में कोई बाधा ना पड़े। स्नान के बाद मरीज को तेज गति से घूमना या सूर्य नमस्कार करना चाहिए जिससे शरीर में गर्मी पैदा हो सके। कमजोर होने की स्थिति में मरीज को कंबल का बिस्तर में लेट जाना चाहिए।
लाभ -
ठन्डे रीढ़ स्नान से तंत्रिकाओं की उत्तेजना, थकान, उच्च रक्तचाप और तनाव से छुटकारा मिलता है। हिस्टीरिया, दौरा पड़ना, मानसिक विक्षिप्ता, अनिद्रा, याददाश्त की कमजोरी, तनाव इत्यादि परिस्थितियों में यह स्नान करने की सलाह दी जाती है।
चेतावनी -
सर्वाइकल व लंबैर सपोंडिलोसिस तथा अर्थराइटिस के मरीजों कोई ऐसा नहीं करना चाहिए।
• न्यूट्रल रीढ़ स्नान -
पानी का तापमान -
34 से 36 डिग्री सेल्सियस तक।
स्नान की अवधि -
15 मिनट या उससे कम।
विधि -
स्नान करने से पहले मरीज को एक या दो गिलास ठंडा पानी पीना चाहिए और सेल ठंडा रखना चाहिए। यह स्नान ठंडे स्नान की तरह से ही किया जाता है, लेकिन स्नान के बाद व्यायाम नहीं करना चाहिए। इसके बजाय मरीज को आधा घंटे तक आराम करना चाहिए।
न्यूट्रल रीढ़ स्नान प्रसन्नता देने वाला और लोगों को शांत करने वाला उपचार है, विशेषकर उन परिस्थितियों में, जिनमें तंत्रिकाएं तनावग्रस्त रहती हैं। अनिंद्र की स्थिति में एक आदर्श उपचार के रूप में यह स्नान करने की सलाह दी जाती है। इससे काफी देर तक बैठने व्यायाम या मेहनत करने से आज आने वाली थकान से कशेरुका की मांस पेशियों में पैदा होने वाले तनाव में भी कमी होती है। इससे फेफड़ों की जकड़न भी दूर होती है तथा हृदय पेशियों को आराम मिलता है।
इससे तंत्रिका प्रणाली को कमर की मांस पेशियों को तथा कमर के निचले हिस्से में आने वाली मोच आदि की स्थिति में आराम मिलता है। यह स्नान शियाटीका का के इलाज में भी प्रभाव कारी है।
• गर्म रीढ़ स्नान -
पानी का तापमान -
40 से 45 डिग्री सेल्सियस।
स्नान की अवधि -
अधिकतम 10 मिनट।
विधि -
यह स्नान न्यूट्रल रीढ़ स्नान की तरह ही किया जाता है।
इस उपचार के दौरान वे सारी सावधानियां बरतनी चाहिए, जिनमें गर्म कटी स्नान के दौरान बरतने की सलाह दी गई थी।
लाभ -
गर्म रीढ़ स्नान तंत्रिकाओं को सक्रिय करने में सहायक होता है, विशेषकर जब यह तनावग्रस्त स्थिति में होती है। इससे कमर दर्द, शियाटीका और गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल विकारों में भी आराम मिलता है।
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