बृहदांत्र कोलन पाचन क्रिया में शामिल सामग्री का पानी रोकने तथा अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उत्तरदाई है। बृहदांत्र द्वारा यह महत्वपूर्ण कार्य पूरा करने के लिए ऐसा भोजन करना आवश्यक है, जिसमें पानी पर्याप्त मात्रा में हो। ऐसा भोजन, जिसमें रेशेदार पदार्थ कम होते हैं, बेहद हानि पहुंचाता है। समय-समय पर अपशिष्ट पदार्थों को सुखाने के बजाय, जिन्हें "मल" कहा जाता है बृहदांत्र मल मार्ग में बड़ी मात्रा में पानी भर देता है, जिसके कारण से व्यक्ति को दस्त हो जाता है।
बृहदांत्र (बड़ी आंत)|कोलाइटिस| डायवर्टिकुलाइटिस | कब्ज होने के कारण व उपचार |
पुरानी कब्ज को ही वास्तव में दस्तों का मूल कारण बताया गया है। बृहदांत्र के "मल" से अवरुद्ध हो जाने पर शरीर की रोगोंपचारी प्रणाली ऐसा विकार पैदा कर देती है, जिससे पूरी प्रणाली की सफाई हो जाती है। लेकिन, समुचित रुप से ध्यान दिए जाने पर दस्त के लक्षणों पर किसी तरह की कठिनाई के बिना एक-दो दिन में काबू पाया जा सकता है।
•कोलाइटिस (बृहदांत्रशोथ) -
बृहदांत्र में सूजन आजाने को बृहदांत्रशोथ (colitis) कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है- श्लेषमक (म्यूकस) और व्रणीय (अल्सरेटिव)।यह रोग बड़ों और बच्चों दोनों को हो सकता है।
हालांकि इस रोग का ठीक कारण मालूम नहीं है, व्रणीय कोलाइटिस की स्थिति में क्रिप्ट (बृहदांत्र में स्थिति में नलिका के आकार का गर्त) का अस्तर प्रभावित होता है। क्रिप्ट भंग हो जाते हैं और पुरुलेंट आफ्यूजन (स्पुय निः सरण) इनमें भर जाता है। श्लेष्मा झिल्ली में जलन होने लगती है, जो सूज जाती हैं। यह क्षति धीरे धीरे आंत की गहरी पर फैलने लगती है। इसे बृहदांत्र का व्यास काफी कम हो जाता है और यह असामान्य रूप से करने लगती है। इसके परिणाम स्वरूप मल उत्सर्जन में कठिनाई और दर्द होता है। मल 6-12 बार पतली अवस्था में निकलता है जिसके साथ रक्त और बलगम भी आता है इस कारण वजन भी कम हो जाता है और कुछ मामलों में तो वजन में आने वाली है गिरावट काफी हो सकती है।
उपचार -
कम से कम 3 से 6 महीने तक शरीर को आराम पहुंचाने वाला भोजन करना चाहिए। जिसमें उबली हुई सब्जियां, चावल या दाल, केला पपीता जैसे अच्छी तरह पके हुए फल आने चाहिए। कच्चे नारियल का पानी लाभकारी होता है पकाए गए (उबले हुए या भुने हुए) सेव उपचार में सहायक होते हैं।- दिन में कई बार पेट पर मिट्टी का लेप करना चाहिए।
- ठंडे पानी के साथ शरीर को फुर्तीला बनाने वाले व्यायाम करने चाहिए।
- पानी की जगह मट्ठे का एनिमा लेने से बृहदात्र के स्वस्थ जीवाणु समूह के पुनर्वास में मदद मिलती है।
• डाईवर्टीकुलाईटीस (विपुटी शोथ) -
बृहदांत्र में जगह-जगह थैलीयों जैसी कई संरचनाएं होती हैं, जो डायवर्टिकुली (विपुटी) कहलाती है। बिना पचा अपशिष्ट पदार्थ ऐसी एक या कई विपुटीयों में रुक जाने से बृहदांत्र के श्लेष्माकला अस्तर में सूजन आ जाती है तथा तीव्र व पुराने डाईवर्टीकुलाईटीस के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।पेट के निचले भाग में मरोड़ के साथ दर्द तथा अदल बदल कर कब्ज या दस्त की स्थिति पैदा होना डायवर्टिकुलाइटिस के आम लक्षणों में से हैं। पेरीटोनियम मे जलन, बुखार, चिल्स पेरीटोनाइटिस तथा फोडे आदि भी हो सकते हैं।
उपचार -
कब्ज की स्थिति दूर करनी चाहिए।• दस्त -
दस्त स्थिति है, जिसमें मल की बारंबारता, इसकी तरलता (जल तत्व) और इसकी मात्रा में वृद्धि हो जाती है। बृहदांत्र के बिना पचे अपशिष्ट पदार्थों का पानी सूखने का अपना निर्धारित काम करने में असमर्थ हो जाने पर अक्सर ही मल में पानी की जरूरत से ज्यादा मौजूदगी की शिकायत रहने लगती है और मल पतला आता है। इसका संबंध बृहदांत्र की अवशोषण क्षमता या शूंदांत्र तथा अन्य दूसरे पाचक अवयवों की अवशोषक कार्य क्षमता में कमी से होती है।प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों के अनुसार दस्त स्वाभाविक रूप से पैदा होने वाली स्थिति है, जिसके दौरान अपशिष्ट पदार्थ तेजी से शरीर से बाहर निकल जाती है।
उपचार -
- पहले कुछ दिनों तक वर्ष के ठंडे पानी का एनिमा देना चाहिए।
- प्रति 2 घंटे के अंतराल पर मिट्टी के लेप या तोलिया लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
- दो-तीन दिन तक पूरी तरह उपवास रखना और केवल मट्ठे व कच्चे नारियल के पानी पर रहना चाहिए तथा काफी मात्रा में पानी पीना चाहिए, जो कि शरीर में जल तत्व को बनाए रखने के लिए जरूरी होता है।
- 2-3 दिन उपवास रखने के बाद दस्तों के लक्षण खत्म होने तक साबूदाने की खीर, दही चावल, पके केले वह मट्ठे का सेवन करना चाहिए।
• कब्ज -
कब्ज अंतरियो के कामकाज में परिवर्तित हो जाने के कारण होता है, जिसके दौरान यह सामान्य तौर पर लगने वाले समय की अपेक्षा काफी अंतराल पर कठिनाई बिना या कठिनाई के साथ खाली होता है।यह आधुनिक समाज की एक आम बीमारी है, जो रहन-सहन की अस्वास्थ्य कर पद्धति के कारण हो जाती है। आम जनता के बीच कब्ज के मामलों में भिन्नता पाई जाती है। बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन एक या दो बार मल त्याग करते हैं और इसे सामान्य समझा जाता है लेकिन दिन में प्रतिदिन 3 बार से अधिक मल त्याग करना असामान्य कहा जा सकता है। अधिकांश व्यक्ति मल त्याग की अवधि व बारंबारता से परेशान हो उठते हैं। मल की मात्रा कम होने या इसका पूरी तरह उत्सर्जन ना हो पाने से भी लोग चिंतित होते हैं।
कब्ज कई कारणों से हो सकता है, जैसे पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ ना लेना, भोजन में रिश्तेदार चीजों की कमी, नियत रूप से व्यायाम न करना, त्रुटिपूर्ण खानपान, नियत समय पर मल मूत्र उत्सर्जित ना करना, इत्यादि।
उपचार -
- पेट पर मिट्टी का लेप या ठंडा लपेट रखें।
- रोजाना ठंडा कटि स्नान करें।
- सप्ताह में दो से तीन बार अदल बदल कर कटि स्नान करें।
- रोजाना रात को पेट लपेट का प्रयोग करें।
- सप्ताह में दो या तीन बार गैस्ट्रो हैपेटिक लपेट रखें।
- शुरू में नियमित रूप से एनिमा ले और जैसे-जैसे भोजन व व्यायाम का प्रभाव दिखाई देने लगे इसकी बारंबारता कम कर दें।
- शुरू में 2 से 3 दिन तक उपवास रखें। इसके बाद कुछ दिनों तक भोजन में फल या कच्ची सब्जियां ले। धीरे धीरे भोजन में ऐसे पदार्थ लें जिनमें अधिक रेशे हो।
- पानी अधिक मात्रा में पिये।
- प्रातः काल शौच कर्म से निवृत्त होने की नियमित आदत डालें।
- भावनात्मक समस्याओं के साथ तालमेल स्थापित करें।
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