स्पाइनल कॉलम हमारी खोपड़ी से लेकर शरीर के निचले नितंब वाले इससे तक लगभग 33 छोटी-छोटी हड्डियों द्वारा जुड़ी हुई होती है यह हमारे शरीर को सहारा देकर शरीर के आवश्यक ढांचे को निर्धारित करती हैं नीचे इससे संबंधित कुछ ऐसी दशाओं को बताया गया है जो हमारे शरीर के पिंजर प्रणाली संबंधित विकारों को दर्शाया गया है।
• ऐंकिलोजिंग स्पोंडिलाईट्स (बद्ध कसेरुका संधिशोथ) -
यह मेरुरज्जु में सूजन आ जाने से संबंधित विकार है, जिसकी वजह से इसके ढांचे के गिर्द ढीले पर जाने से कशेरुका का फ्यूजन हो जाता है और इस कारण कड़ापन और जकड़न बढ़ जाती है। मेरुरज्जु का पूरी तरह विगलित हो जाना इस बीमारी के पर्याप्त उग्र हो जाने का लक्षण है तथा मेरुरज्जु बांस की तरह दिखाई पड़ने लगती है। इसलिए इसे 'बैंबू स्पाइन' भी कहते हैं।
उपचार -
कमर के निचले वह ऊपरी भागों में होने वाले दर्द के लिए बताए गए उपचार इस दशा के उपचार के लिए भी प्रयुक्त है।
• रूमेटाइड अर्थराइटिस (रूमेटाइड संधिशोध) -
यह एक क्रमबद्ध या पूरे शरीर में होने वाली व्याधि है। जोड़ों में अकड़न इनमें गर्मी बढ़ जाने, दर्द या सूजन हो जाने के अलावा इस बीमारी से प्रभावित मरीजों को भारी थकान, कमजोरी, घबराहट, बुखार, भूख लगने में कमी, खून की कमी और वजन में कमी महसूस होने लगती है। संयोगी उत्तक तथा हृदय, फेफड़ों, तंत्रिकाओं एवं नेत्रो समेत शरीर के अवयव क्षतिग्रस्त हो सकते।
पुनःशच अन्य कई बीमारियों की तरह रूमेटाइड अर्थराइटिस का कारण ज्ञात नहीं है। यह तो ऑटोइम्यून विकार है, जिसमें शरीर स्वयं अपने ही ऊतकों पर रहा करने लगता है। हालाकि यह बीमारी वंशानुगत नहीं है, लेकिन इसमें प्रायः वंशानुगत प्रकृति देखने को मिल जाती है।
जोड़ों को लुब्रिकेशन प्रदान करने वाला तरल पदार्थ पैदा करने वाली झिल्ली में सूजन आ जाने से जोड़ क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। सूजन के काफी समय तक बने रहने से कार्टिलेज नष्ट हो जाता है तथा जोड़ों के तंतु कमजोर पड़ जाते हैं। इससे टेंडन भी छतिग्रस्त हो सकती है। सूजन ग्रस्त जोड़ से जुड़ी मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं तथा इन में जकड़न के कारण दर्द होने लगता है दर्द की लहरों के कारण मांस पेशी की क्रियाशीलता सीमित हो जाती है, जिसके कारण कमजोरी और बढ़ जाती है यह वह परिस्थिति है जो डिस यूज एंट्रॉफी के नाम से विदित है। रूमेटाइड अर्थराइटिस के और अधिक उग्र हो जाने पर पैदा होने वाली विकृतियां व्यक्ति को विकलांग बना देती हैं।
आमतौर पर प्रभावित होने वाले जो इस प्रकार हैं- छोटे प्रॉक्सिमल जोड़, उंगलियों के जोड़, एड़ियों का ताल, कलाइयां, घुटने, टकने, कंधों, कूल्हों व कूहनियों के जोड़।
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के रूमेटाइड अर्थराइटिस से प्रभावित होने की आशंका तीन गुना अधिक रहती है।
उपचार -
जल्दी ही पता लग जाने व उपचार शुरू कर देने पर रूमेटाइड अर्थराइटिस का मरीज विकलांग हुए बिना सामान्य जीवन बिता सकता है।
आहार संबंधी कड़ी दिनचर्या का पालन करना चाहिए दूध या दूध से बने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। लोगों के मन मैं यह गलत धारणा है कि नींबू का रस अर्थराइटिस के लिए अच्छा नहीं है लेकिन यह बात सही नहीं है। वास्तव में नींबू का सेवन करने से जिसमें विटामिन सी मौजूद होता है संयोजी उत्तक मजबूत हो जाते हैं जो हड्डियों को बांध कर रखते हैं।
अक्सर ही गर्म पानी से स्नान करना चाहिए।
20 मिनट न्यू ट्रल इमर्सन तथा अर्ध न्यू ट्रल स्नान करना चाहिए।
बीच-बीच में भाप स्नान व सौना स्नान करना चाहिए।
गर्म व ठंडा आफ्यूजन तथा प्रभावित जोड़ों की सिकाई करनी चाहिए।
बीच-बीच में गर्म पानी से पैर व बाह स्नान करना चाहिए।
प्रभावित जोड़ों पर ठंडे लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
पराबैगनी (इंफ्रारेड किरण) उपचार और इसके बाद प्रभावित जोड़ पर सीधे ही मिट्टी का लेप करना चाहिए।
गर्म पानी के जेट से मालिश, पानी के नीचे मालिश और वर्लपूल स्नान करना भी उपयोगी है।
• गाउटी अर्थराइटिस -
गाउट चयापचय संबंधी एक बीमारी है, जो प्राय: परिवारों में पाई जाती है। यह शरीर में यूरेटों के असामान्य रूप में जमा होने के कारण हो जाती है। बार-बार होने वाला जटिल अर्थराइटिस, जिसमें आमतौर पर एक जोड़ प्रभावित होता है तथा बाद में शरीर में विकृतियां पैदा करने वाला अर्थराइटिस इसके आरंभिक लक्षणों में से है। गाउट के लगभग 90% मरीज पुरुष हैं, जिनकी आयु आमतौर पर 30 वर्ष से अधिक है।
तेज गाउटी अर्थराइटिस में आमतौर पर परिसरिय जोड़, मुख्य रूप से पंजे का प्रपद जून से प्रभावित हो जाता है। इतना लाल व गर्म हो जाता है कि सूज कर मुलायम हो जाता है की बिस्तर से छू जाने भर से ही बुरी तरह दर्द होने लगता है। इसका दौरा अचानक ही और कभी-कभी इतना तेजी से पड़ता है कि मरीज की नींद खुल जाती है।
कुछ दिनों बाद इसके लक्षण व संकेत स्वयं ही लुप्त हो जाते हैं और प्रभावित जोड़ों के ऊपर की त्वचा उतरने लगती है। इस तरह के दौरे कुछ एक सप्ताहों, महीने या वर्षों के बाद दोबारा पढ़ा सकते हैं।
गाउटी अर्थराइटिस के पुराना पड़ जाने पर इसके बार-बार पढ़ने वाले दौरों के कारण कार्टिलेज कथा टॉफी कि रचना से संबंधित हड्डी धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती हैं, जिससे काफी विकलांगता आने लगती है और ओस्टियोआर्थराइटिस का प्रकोप शुरू होने लगता है। टोफी नोडुलर थिकनिंग की स्थिति है, जो टेंडन कि खोल, स्लैश पुटी तथा कान के कार्टिलेज में होती है। गाउट के 10 प्रतिशत मरीजों को गुर्दे में पथरी हो जाती है। खून में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है।
उपचार -
घुटनों व टखनों के ओस्टियोआर्थराइटिस में किए जाने वाले उपचार गाउटी अर्थराइटिस के लिए भी सर्वथा उपयुक्त हैं।
खून में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ने से रोकने के लिए निम्नलिखित चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए-
- मांस, मछली और अन्य मांसाहारी पदार्थ।
- फलियां मटर गोभी और पालक।
- कॉफी, चाय, चॉकलेट और मंदिरा।
- साबुत अनाज, फलियों, दूध, पनीर मक्खन व चीनी की मात्रा कम करें।
- अधिक मात्रा में पानी पीने से यूरिक अम्ल को शरीर से बाहर निकलने में मदद मिलती है।
• निचले अंगों के अन्य विकार -
• कैलकैनीयल -
यह स्थिति कैल्केनी अस्थि (हील बोन) केगेल से कैल्शियम जमा हो जाने से पैदा होती है, जिसके कारण दर्द होने लगता है। यह दर्द विशेषकर पैरों को फर्श पर रखते सा महसूस होता है, जो कुछ कदम चलने पर खत्म हो जाता है।
उपचार -
- ज्यादा वजन होने से यह समस्या और अधिक हो जाती है, इसलिए वजन घटाना आवश्यक है।
- सोने से पहले तथा सुबह सोकर उठते ही गर्म पानी में इप्सम नमक मिलाकर पैर स्नान करने से दर्द से छुटकारा मिलता है।
- नर्म और मुलायम हील वाली स्लीपर पहनने चाहिए।
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