मानसिक रोग मनुष्य जीवन एक ऐसी अवस्था है जो एक मनुष्य को दूसरे से भिन्न बनाती है सामान्य अर्थ में कहा जाए तो कुछ असामान्य व्यवहार या फिर लगातार बदलते हुए अलग व्यवहार को हम सभी मानसिक रोग, मनोरोग, मानसिक बीमारी, के रूप में जानते हैं जो अन्य सभी स्वस्थ मनुष्य की तुलना में अजीब या फिर खतरनाक हो जिसके कारण कई बार मनुष्य का खुद पर काबू भी नहीं रह पाता।
मानसिक रोग |
दिमाग की यह अवस्था कई तरह की हो सकती है जिसे हम सामान्य भाषा में पागलपन का नाम देते हैं परंतु इस बीच हम सभी को यह जानना भी आवश्यक है इसके कई प्रकार होते हैं जिसमें से अधिकतर समस्याओं का उपचार किया जा सकता है विशेषज्ञ की देखरेख में रहकर या रखकर मरीज को आवश्यकतानुसार लाभ मिलता है विशेषज्ञ रोगी के रोग के बारे में जान कर उसका उपचार शुरू करता है कई बार यह बीमारी अनुवांशिकी कारणों से तो, कभी किसी गहरे सदमे, गर्भ में रहने के दौरान सिर पर लगी चोट, किसी दुर्घटना के कारण दिमाग पर लगी गहरी चोट या किसी बड़ी हानि अथवा मानसिक दबाव के कारण भी हो सकता है।
• मिर्गी क्या है (What is Epilepsy) -
Epilepsy यानी की मिर्गी मनुष्य के मस्तिष्क से जुड़े एक बीमारी है इस मानसिक विकार को न्यूरोलॉजिकल टर्म्स में इस तरह से समझा जा सकता है कि हमारे दिमाग में संचालित होने वाली तरंगों के बीच आपसी तालमेल बिगड़ जाने पर मनुष्य को मिर्गी का दौरा पड़ता है।मिर्गी के प्रकार (Types of epilepsy) -
मिर्गी के मुख्य तीन प्रकार जाने जाते हैं-(A) आंशिक दौरा (Partial seizure)
(B) सामान्यीकृत दौरा (Generalized seizure)
(C) माध्यमिक सामान्यीकृत दौरा (Secondary generalized seizure)
मिर्गी होने के कारण -
अधिक शराब पीना, अत्यधिक परिश्रम करना, शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी, कृमि, आंव, चोट आदि इस रोग के कारण हो सकते हैं।मिर्गी के लक्षण -
इस रोग में रोगी अचानक ही (चुपचाप या चिल्लाकर) एकदम बेहोश हो जाते हैं। उस दशा में मुख से झाग निकलना, नेत्र की पुतलियों का घूम जाना, शरीर कंपन, अकड़न, हाथ पैर पटकना, गर्दन टेढ़ी होना, पसीना छूटना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।मिर्गी के उपचार -
- राई को पीसकर सुंघाने से मिर्गी के कारण आई बेहोशी खत्म हो जाती है।
- रोगी व्यक्ति को लगभग 25 ग्राम अदरक का रस निकालकर एवं हल्का गर्म कर खिलाना चाहिए।
- अचेत होने की अवस्था में रोगी को प्याज सुनाने से चेतना जल्दी आती है।
- रोगी की अवस्था के अनुसार प्याज के रस में पानी मिलाकर थोड़ा थोड़ा पिलाते रहने से मिर्गी के दौरे पड़ना या तो कम हो जाते हैं या फिर समाप्त ही हो जाते हैं।
- लहसुन की कलियों को दूध में उबालकर रोग की दशा व रोगी की हालत अनुसार लंबे समय तक रोगी को पिलाते रहने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है।
- बेहोशी दूर करने के लिए उठ कर रखी हुई लहसुन सुनाएं।
- तुलसी के ताजे पत्तों की पीसी हुई लुगदी को रोगी के पूरे शरीर पर लगाकर मालिश करने से आराम मिलता है।
• उन्माद क्या है(What is Insanity) -
उन्माद यह भी मानसिक दुर्बलता या मानसिक रोग का एक प्रकार है पुराने जमाने के समय मुख्यता इस रोग से पीड़ित लोगों को भूत प्रेत आदि से जोड़कर देखा जाता था उन्माद रोग से स्त्री या पुरुष कोई भी अछूता नहीं है।उन्माद के कारण -
जीवन से निराश, नशीले पदार्थों का अधिक सेवन, अनियमित खानपान की आदत, मस्तिष्क या मेरुदंड कि कोई व्याधि, किसी गहरी चोट का लग जाना, अत्यधिक शारीरिक परिश्रम, मानसिक परिश्रम, भरपूर पौष्टिक भोजन ना मिल पाना, जेनेटिक कारणों से यह बीमारियां हो जाती हैं।उन्माद के लक्षण -
रोगी अपनी इंद्रियों से अधिकार खो बैठता है।उसकी चेतना शक्ति अव्यवस्थित हो जाती है।
वह आकारण हंसता बरोता या फिर कपड़े पड़ता है बिना बात के अजीब हरकतें भी करता है।
उन्माद के उपचार -
- रात में भी गाई हुई चने की दाल सुबह सवेरे उठकर पीस लें थोड़ी सी शक्कर मिला कर खाने से दिमाग की गर्मी के कारण उत्पन्न हुए उन्माद के लक्षण शांत हो जाते हैं।
- अंगूर का रस देना हितकारी है।
- रोगी को पौष्टिक पदार्थ खिलाने चाहिए। पोस्टिक तथा स्वादिष्ट दोनों अलग-अलग शब्द हैं और दोनों का अर्थ भी अलग-अलग है, यह ध्यान रखें। की रोगी को ऐसे पदार्थ दें जिससे उसका शरीर और मस्तिष्क पुष्ट बने अर्थात उन्हें शक्ति प्राप्त हो। रोगी को मौसम अनुसार-गाजर का रस, संतरे का रस, दूध, बादाम आदि दें।
• हिस्टीरिया क्या है (What is Hysreria )-
यह भी मनुष्य के मानसिक विकारों से जुड़ा हुआ एक रोग है सामान्यता लोगों द्वारा हिस्टीरिया और मिर्गी के बीच फर्क करना कठिन हो जाता है और लोग इसे मिर्गी का दौरा समझ कर या तो गलत उपचार करते हैं या फिर इस पर ध्यान ही नहीं देते और ऐसी गलती की वजह से हिस्टीरिया रोग को बढ़ने का मौका मिल जाता है।
यह रोग वैसे तो पुरुष और स्त्री दोनों में देखने को मिलता है परंतु पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां हिस्टीरिया रोग से अधिक ग्रसित पाई जाती हैं इसका एक प्रमुख कारण है कि, वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं अधिक संवेदनशीलता के कारण खुद पर असहज मानसिक दबाव बना लेती हैं। आयुर्वेद की मानें तो यह रोग 12 वर्ष की उम्र से लेकर 50 वर्ष की उम्र तक होने की संभावना है होती हैं।
यह भी मनुष्य के मानसिक विकारों से जुड़ा हुआ एक रोग है सामान्यता लोगों द्वारा हिस्टीरिया और मिर्गी के बीच फर्क करना कठिन हो जाता है और लोग इसे मिर्गी का दौरा समझ कर या तो गलत उपचार करते हैं या फिर इस पर ध्यान ही नहीं देते और ऐसी गलती की वजह से हिस्टीरिया रोग को बढ़ने का मौका मिल जाता है।
यह रोग वैसे तो पुरुष और स्त्री दोनों में देखने को मिलता है परंतु पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां हिस्टीरिया रोग से अधिक ग्रसित पाई जाती हैं इसका एक प्रमुख कारण है कि, वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं अधिक संवेदनशीलता के कारण खुद पर असहज मानसिक दबाव बना लेती हैं। आयुर्वेद की मानें तो यह रोग 12 वर्ष की उम्र से लेकर 50 वर्ष की उम्र तक होने की संभावना है होती हैं।
यह रोग वैसे तो पुरुष और स्त्री दोनों में देखने को मिलता है परंतु पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां हिस्टीरिया रोग से अधिक ग्रसित पाई जाती हैं इसका एक प्रमुख कारण है कि, वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं अधिक संवेदनशीलता के कारण खुद पर असहज मानसिक दबाव बना लेती हैं। आयुर्वेद की मानें तो यह रोग 12 वर्ष की उम्र से लेकर 50 वर्ष की उम्र तक होने की संभावना है होती हैं।
हिस्टीरिया के कारण -
दुख मानसिक आभार मासिक धर्म में अनियमितता संभोग में अतृप्ति, नाड़ियों में कमजोरी, जरायू व डिम्बाशयों के रोग आदि कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है।हिस्टीरिया के लक्ष्ण -
इसमें रोगी को दौरे पड़ना, शरीर में ऐंठन व मुट्ठी बंध जाना, चेहरा लाल हो जाना, उधर में गोला- सा उठता प्रतीत होना, गले में कोई वस्तु चढ़ती हुई प्रतीत होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। यह रोग पुरुषों के अपेक्षा महिलाओं को अधिक होता है।हिस्टीरिया के उपचार -
- गर्म जल में नींबू का रस, नमक, पीसी हींग, जीरा और पुदीना मिलाकर भोजन के बाद पियें।
- इस प्रकार लगभग 40 दिन तक पीते रहने से रोग मुक्त हुआ जा सकता है।
- इस रोग से होश खो देने या बेहोश हो जाने की स्थिति में रोगी की नाक में लहसुन के रस की कुछ बूंदें टप काने से यह मूर्छा दूर होती है।
- दिन में दो-तीन बार शहतूत का रस 15 से 20 ग्राम की मात्रा में दें। इस प्रकार लगभग 40 दिन तक देते रहने से लाभ जरूर मिलेगा।
- रोगिणी को ग्रीष्म ऋतु में घोड़ी का दूध पिलाने से लाभ हो जाता है। श्वास, वात, छय रोग, मिर्गी मैं भी खोरी का दूध पीना चाहिए।
- बेहोश रोशनी को हींग चढ़ाएं, होश आ जाएगा।
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