तीन तत्व ऐसे हैं, जो इस भूमंडल पर मानव जीवन का अस्तित्व बनाए रखने में सहायक है।
यह तत्व है:- क्रमश: वायु, जल तथा आहार।
प्रत्येक व्यक्ति का आहार ऐसा होना चाहिए, जिनके सेवन से अत्यंत आवश्यक ऊर्जा तथा प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन व खनिज जैसे पोषक तत्व मिल सके।
पाचन संबंधी विकार |
पाचन, परी पाचन व अवशोषण के अलावा पाचन क्रिया को अन्य दूसरे महत्वपूर्ण कार्य भी अंजाम देने पड़ते हैं, जैसे पाचन प्रिया को पूरा हो जाने पर जमा होने वाले अवशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना।
पाचन क्रिया भोजन को ऊर्जा में बदल कर इसे विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल करने, या सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार है। इसके साथ ही यह विषैले पदार्थ पैदा करने में भी सक्षम है। ब्रिटेन के एक अग्रणी प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञानी हैरी बेंजामिन ने उचित कहा है कि समुचित मात्रा में किए जाने वाले भोजन से जीवन की बुनियादी गतिविधियों, इसकी वृद्धि वाह विकास के लिए उपयोगी ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके विपरीत, पोषक तत्वों के निर्धारित मात्रा से अधिक जमा हो जाने पर शरीर के अवयव व इनकी कोशिकाएं इनका भली-भांति इस्तेमाल नहीं कर सकती। मात्रा संबंधी यह सीमा बायोलॉजिकल ऑप्टिमम कहलाती है। मिसाल के तौर पर, अधिकांश व्यक्ति भरपेट भोजन करना एक स्वस्थ प्रक्रिया मानते हैं लेकिन वास्तव में यह गलत तरीका है। दूसरी ओर पेट को थोड़ा खाली रखकर मेज से उठना उचित है।
जब कोई व्यक्ति अपनी धारणा के प्रभाव में यह जानते हुए भी अतिरिक्त भोजन अपनी प्लेट में डालते हैं कि उसे इसकी कोई जरूरत नहीं है, तो वे इस तरह अपने शरीर में भोजन को व्यर्थ ही जमा करने की अनुमति देता है। यह अतिरिक्त भोजन बिना पचा और प्रयुक्त रह जाता है तथा धीरे-धीरे अंतड़ियों को अवरुद्ध कर देता है। इससे अम्ल पैदा होते हैं और अंतडीयो का पेशी समूह कमजोर पड़ने लगता है, जिसके कारण कब्ज पैदा हो जाता है। यह कब्ज अनेक शारीरिक व्याधियों के लिए उत्तरदाई होता है।
अम्ल बनाने की यह प्रक्रिया चलती रहती है आज शरीर स्थाई रूप से अम्लता की अस्वास्थ्य कर अवस्था में फंस जाता है, जो तंदुरुस्ती के लिए आवश्यक सामान्य क्षारीय अवस्था के विपरीत होती है। इस प्रकार के कब्ज से अंततः पोषण प्रणाली हानिकारक अम्लों से प्रभावित होने लगती है, जो अच्छी तंदुरुस्ती के लिए हानिकारक है। लेकिन एक बार ऐसा होने देने पर कब्ज पुराना पड़ने लगता है, जिसके कारण भोजन की अतिरिक्त मात्रा जमा होकर सड़ने लगती है और रक्त में अनावश्यक विषैले पदार्थ मिलने लगते हैं। इस बीच आंतों में पढ़ने वाले अपशिष्ट पदार्थ पेथोजेन (बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव) की उत्पत्ति के आधार के रूप में काम करने लगते हैं और इस तरह इन्हें गंभीर किस्म के बुखारों व विकारों का उत्पत्ति स्त्रोत बना देते हैं।
बढ़ती हुई अम्लता और शरीर में पनपते हुए पुराने कब्ज से उग्र स्थिति पैदा हो जाती है। इस स्थिति के परिणाम स्वरूप पैदा होने वाली बीमारी उस व्यक्ति द्वारा शरीर में पैदा की गई रोग रोधी क्षमता पर निर्भर करती है।
इसलिए यह निश्चित रूप से हमारे द्वारा किया जाने वाला भोजन और इसकी मात्रा ही है, जो उन विभिन्न बीमारियों का मूल कारण बनती है, जिन्हें आमतौर पर पाचन संबंधी विकार कहा जाता है। आइए हम इनमें से प्रत्येक पर विस्तार पूर्वक गौर करें।
2. अल्सर (व्रण)
3. वादग्रस्त बदहजमी
4. गैसट्राईटीस
5. छोटी आत के विकार
6. डुओ डेनाइटीस (ग्रहणी शोथ)
7. बृहदांत्र (बड़ी आंत)
8. कोलाइटिस (बृहदांत्र शोथ)
9. डाईवर्टीकुलाईटीस (विपुटी शोथ)
10. दस्त
11. पुरानी अमीबा रुग्णता
12. कब्ज
ऊपर बताए गए पाचन संबंधी विकारों में कुछ प्रमुख विकार नीचे बताए जा गए है।
• अम्ल पित्त (हाइपरऐसिडिटी) -
चीनी और स्टार्च का जरूरत से ज्यादा सेवन करने से पाचन प्रणाली में अल्प अम्ल पैदा होने लगता है। यह अतिरिक्त अम्ल खून में मिलकर इसे अल्प क्षारीय बना देता है। बीच में भोजन ना करना या इसे समुचित अंतराल पर ना करना अम्लपित्त के अन्य कारण है, जिन से पेट में अम्ल का अति स्त्राव होने लगता है, जो अत्यंत नाजुक श्लेष्मकला (म्यूकोसल) अस्तर को जला देता है। बीच-बीच में यह अम्ल प्रत्यावाही होकर इधर उधर पहुंचने लगता है, जिसके कारण गले में जलन होने लगती है। तेज मसालेदार भोजन करने कॉफी चाय, मंदिरा, धूम्रपान, तंबाकू, आदि का सेवन करने, दबाव व तनाव आदि से ग्रस्त रहने का सीधा परिणाम पेट में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के अति रिसाव के रूप में निकलता है।उपचार -
- मिट्टी लपेट या ठन्डे लपेट जैसे रोजमर्रा के उपचार दिन में दो बार या रोजाना ठंडा कटि स्नान।
- कभी-कभी पेट में गर्म और ठंडी सिकाई।
- प्रतिदिन रात में पेट पर ठंडे लपेट का इस्तेमाल।
- कभी-कभी गुर्दा लपेट।
- नियत समय पर नियत मात्रा वाला संतुलित भोजन।
- पर्याप्त मात्रा में पानी पीना।
- कभी-कभी ठंडे छाती लपेट का इस्तेमाल।
- उपचार के शुरू में आंतों मे जमे अपशिष्ट पदार्थ की सफाई करने के लिए 3 दिन तक एनिमा।
• अल्सर(व्रण) -
श्लेष्माकला अस्तर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण अम्लों का जरूरत से ज्यादा स्त्राव होने से पेट में अल्सर हो जाते हैं। जैसा कि भली-भांति विदित है, जल्दबाजी, चिंता, मसाले व चिकनाई युक्त सब्जियां-यह तीनों ही चीजें इस विकार को भड़काती है।अल्सर होने पर पेट में जलन होने लगती है तथा खाली पेट में दर्द होने लगता है। भोजन करते ही या भोजन के 2 घंटे बाद यह दर्द बंद हो जाता है। दर्द होना भोजन करते ही इसका शांत हो जाना वह आराम आ जाना अल्सर की मौजूदगी के लक्षण हैं।
उपचार -
- शुरुआत में नियमित अंतराल पर ठंडा दूध पीना चाहिए।
- बाद में नियमित अंतराल पर भोजन करना चाहिए, जो मसालों, उत्तेजक पदार्थों, रसदार फलों व इनके रसों, मांसाहारी पदार्थों, कच्चे सलाद कच्चे फलों से मुक्त होना चाहिए।
- पेट में जमा गंदगी को बाहर निकालने के लिए कुछ दिनों तक ठंडे पानी का एनिमा लेना चाहिए।
- प्रतिदिन ठंडी लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
- गेस्ट्रो हेपैटिक लपेट के इस्तेमाल से दर्द से राहत मिलती है।
- पेट पर मिट्टी का लेप करने से किण्वन कम होता है तथा गैस बाहर निकलती है।
- प्रतिदिन ठंडा कटी स्नान करने की सलाह दी जाती है।
- जलन होने पर पेट पर बर्फ की थैली तथा गुर्दा लपेट का इस्तेमाल करें।
- शारीरिक और मानसिक रूप से विश्राम करना चाहिए।
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