आंखें जीवित प्राणी मनुष्य व जानवरों सभी के लिए आवश्यक है इसके बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल होता है ऐसे में हमें भगवान द्वारा मिली इस दुर्लभ उपहार का पूरी तरह ख्याल रखना चाहिए मगर आजकल लोग इसका ख्याल रखना तो दूर उल्टा आंखों का दुरुपयोग कर रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें आंखों संबंधित विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ता है इनमें से कुछ के बारे में आज हम आपको बताएंगे।
आंखों संबंधी रोग |
• आंख आना , आंखें दुखना, आंखे आना के घरेलू उपाय (conjunctivitis) -
कारण-
आंखों में धुआं लगने, विशेष ठंड या धूप का प्रभाव पड़ने, आंख में धूल के कण गिरने, चोट लग जाने, स्वास्थ्य में अत्यधिक गिरावट आ जाने आ जाने अथवा किसी चर्म रोग विशेष या चेचक, खसरा, सूजाक आदि के कारण आंखें दुखने लगती हैं।
लक्षण -
नेत्र के ऊपरी भाग की शलैष्मिक झिल्ली में प्रदाह होने लगता है। इस रोग में नेत्रों में जलन, पीड़ा, लाली, बार-बार खुजली होना, पानी निकलना, आंखे खोलने में पीडा होना तथा कीचड़ सी भी जम जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
निर्देश -
अपने नेत्रों को धूप और धूल कणों से बचाएं इसके लिए हरे या नीले कांच के चश्मे का प्रयोग करें।
उपचार (आंख आना के घरेलू उपाय) -
- दूध में रुई का फोहा भिगोकर और थोड़ा नीचे उड़ने की बाद नेत्रों पर बांधना चाहिए। इस दौरान नेत्र बंद रहनी चाहिए। थोड़ी देर के बाद में फ़ोहा हटाकर नेत्रों को साफ कर लेना चाहिए। इस प्रक्रिया से मित्रों को ठंडक मिलती है। इस प्रक्रिया के लिए गाय या बकरी का दूध लेना चाहिए। केमिकल वाले नकली दूध का प्रयोग ना करें।
- सहन करने योग्य उबले चावल की पोटली बनाकर आंखों को बंद करके सीखने से बादी एवं कफ के कारण नेत्रों में होने वाली दर्द युक्त लाली समाप्त हो जाती है।
- श्वेत तिली के पौधे के पुष्पों पर पड़ी ओस को जाड़े की ऋतु में एकत्रित कर किसी साफ शीशी में भर लें। इस ओस की 1-2 आंखों में डालते रहने से आंखों की लालिमा कट जाती है।
- ताजे आंवले के रस को कलाईदार पात्र में भरकर पकाएं। गाढ़ा होने पर लंबी लंबी गोलियां बनाकर रख ले। इसे पानी में भरकर सलाई से लगाते रहने से आंखों की लालिमा समाप्त हो जाती है।
- आंख आना या नेत्रा भिष्यंद रोग की प्रारंभिक अवस्था में भली प्रकार पके ताजा आंवले की बूंद आंखों में टपकाते रहने से आंखों की जलन, दाहकता, पीड़ा व लालिमा दूर हो जाती है।
- हरे धनिये के पत्तों को कूट कर इसके रस की 2-3 बूंदें नेत्रों में टपकाते रहने से नेत्रों की सभी प्रकार की जलन ठीक हो जाती है। हफ्ते में 3-4 बार साफ आंखो में इस रस को डाल कर सुरक्षित बनाया जा सकता है।
- अंगूर का रस कलई के बर्तन में आग पर पकाएं। जब रस गाढ़ा हो जाए तो शीशी में भाग लें। इस रस को रात्रि में सलाई से आंखों में लगाने से आंखों की खुजली में लाभ होता है।
• गुहेरी (stye), आंख के उपर फोड़ी आना -
उपचार -
पानी में घिसी हुई लौंग को दिनभर में 3-4 बार गुहेरी पर लगाना चाहिए।
• ढलका या जाला (Muscae Volitantes) -
उपचार -
- अदरक को जलाकर उसकी राख को बारीक पीसकर रख ले। इस वाह का आंखों में अंजन करने से आंखों में ढलका जाना, जाला पढ़ना रोग दूर हो जाते है।
- कच्चे आलू को साफ पत्थर के टुकड़े पर घिसकर दो-तीन माह तक आंखों में काजल की भांति लगाने से चार पांच वर्ष पुरानी फुली या जाला नष्ट हो जाते हैं।
- प्याज के रस में रुई की बत्ती भिगोकर छाया में सुखा लें। फिर इस बत्ती को तेल के दीपक में डालकर जलाएं और उससे काजल बना कर प्रति रात सोते समय लगाएं, ऐसा कुछ दिनों तक करने से पुतली पर फैला सफेद जाला हट जाएगा।
• रतौंधी (Night Blindness) -
कारण (रतौंधी रोग किस से होता है) -
पौष्टिक पदार्थ ना मिल पाना, शरीर में विटामिन ' ए ' की कमी हो जाना, तीव्र प्रकाश में रहने या कार्य करते रहने से।
रतौंधी के लक्षण -
रोगी को रात में अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है यह बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता।
उपचार -
- किसी भी प्रकार से टमाटर का सेवन करते रहने से रतौंधी में लाभ होता है।
- दिन में दो बार सुबह शाम आंखों में प्याज के रस का अंजन करने से रतौंधी ठीक हो जाती है।
- सोने से पहले देशी शहद का अंजन करना रतौंधी में लाभप्रद होता है।
- काली मिर्च का बारिक कपड़छन चूर्ण ले। उसे गाय के ताजा दही में घिस कर सुबह शाम अंजन करने से रतौंधी में लाभ हो जाता है।
• मोतियाबिंद, मोतियाबिंद की आयुर्वेदिक दवा (Cataract) -
कारण (मोतियाबिंद क्यों होता है) -
अजीर्ण, डायबिटीज, धमनी रोग, गठिया, आंखों में चोट लगने, घाव, सब्जमोतिया, धुम्रदृष्टी, चिरकाल तक टीवी प्रकाश अथवा गर्मी के कुप्रभाव आदि के कारण एक या दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो जाता है।
मोतियाबिंद के लक्षण -
आंखो की पुतलियों पर थोड़ा नीलिमा युक्त पानी जैसा इकट्ठा होने लगता है यह मोतियाबिंद कहलाता है। यह प्रायः 40 वर्ष तक की आयु के लगभग होता है। इसमें रोगी व्यक्ति की नेत्र दृष्टि धीरे-धीरे कम होती हुई अंत में पूरी तरह लुप्त हो जाती है।
उपचार -
रोगी की प्रारंभिक अवस्था में नींबू केरस थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर व खींच कर दिन में दो बार अंजन करते रहने से मोतियाबिंद का बढ़ना रुक जाता है।
मोतियाबिंद का ऑपरेशन कब करवाना चाहिए? -
यदि रोग पुराना पड़ चुका हो तो उसका ऑपरेशन करा लेना चाहिए यही एक अंतिम विकल्प शेष होता है।
• नजर कमजोर होना (Amblyopia) -
उपचार -
- आंखों की ज्योति कम होने की स्थिति में देसी घी में अरहर की दाल को कल कारखाने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
- समान मात्रा में पालक और गाजर का रस मिलाकर रोग अनुसार नियमित रूप से लेते रहें।
- गाय की ताजा छाछ में 2 से 4 रति सेंधा नमक मिलाकर पीने से आंखों से धुंधलापन हट जाता है और दृष्टि तीव्र होती है।
- गाय के दूध से बने हुए ताजा घी में देसी खांड और पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर रख लें, इसमें से नियमित सुबह खाली पेट दो दो चम्मच सेवन करते रहने से नेत्र की ज्योति बढ़ जाती है।
- भोजन के बाद सौंफ चबाने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
• आंखों के सफेद भाग के रोग -
उपचार -
तांबे के पात्र में लौंग को पीसकर, शहद मिलाकर अंजन करने से नेत्र के सफेद भाग के अनेक एका समाप्त हो जाते हैं।
• पलकों की सूजन (Blephritis) -
उपचार -
पिसी काली मिर्च को ताजा मक्खन में मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित रूप से चाटते रहें- ऐसा करते रहने से पलकों की सूजन समाप्त हो जाएगी। स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें आवश्यकतानुसार थोड़ी सी देसी खांड भी मिलाई जा सकती है।
विशेषता -
विटामिन ' ए ' युक्त खाद पदार्थ और सब्जियां- टमाटर, गाजर, हरी पत्ते वाली सब्जियां,
फल- आम, पपीता, संतरा।
अन्न- मक्का, सोयाबीन, गेहूं, बाजरा।
दालें- मसूर, अरहर, चना।
मेवा- पिस्ता, काजू आदि का सेवन करना सभी नेत्र रोगों खासकर रतौंधी में लाभदायक होता है।
- विटामिन ' बी2 ' युक्त पदार्थ जैसे- दूध, सोयाबीन, हरी सब्जियां, पनीर, मूंगफली, काजू, बादाम आदि- नेत्रों के विभिन्न रोगों जैसे- धुंध, लालिमा, दीवांधता, दाह, जाला, गुहेरी, पलकों की सूजन, मोतियाबिंद आदि की प्रतिषेधक औषधि का कार्य करते हैं।
- किसी कटोरे जैसे बर्तन आदि में ताजा ठंडा पानी भरकर इसमें आंखें खोली बंद करनी चाहिए। यह क्रीया सुबह मंजन आदि करके तथा रात्रि को सोते समय नियमित रूप से करना चाहिए। इससे मित्रों की थकान दूर होती है, ध्रुवीकरण आदि दूर होती है व ज्योति बढ़ती है।
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