आज के इस लेख में हम जाने गे उन सभी घरेलू नुस्खों से रोगों का इलाज के बारे में जो भोज्य पदार्थों की सहायता से बनाए जाते है यह भोज्य पदार्थ इस प्रकार के हैं जो कि प्राय सभी घरों में उपलब्ध ही रहते हैं। यदि यह पदार्थ घर में ना मिल पाए तो भी फल, सब्जी या पंसारी आदि की दुकानों में मिल ही जाता है।
इलाज संबंधी सावधानियां |
मगर इसके इस्तेमाल से पहले यह जान लेना भी आवश्यक होता है कि इसके लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
• किसी भी नुस्खे को प्रयोग करने से पहले उस नुस्खे को भली-भांति पढ़ कर समझ लेना चाहिए -
उस नुस्खे में लिखे गए शब्दों का अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। मतलब यह है कि नुस्खे में लिखे शब्दों के अर्थ को पढ़कर सही से समझ ले कि वह क्या कहना चाहता है जल्दी बाजी में किसी भी नुस्खे को अधूरा पढ़कर उसका प्रयोग शुरू करने से हानि भी हो सकती है। यदि किसी नुस्खे की भाषा या विधि को आप अच्छी तरह समझ नहीं पा रहे हैं तो उस नुस्खे को छोड़ देना ही बेहतर होगा एवं उसके स्थान में किसी अन्य नुस्खे का प्रयोग करें।• शुद्धता -
किसी भी नुस्खे में जो सामग्री बताई गई है- आपको व सभी सामग्री पूर्णता शुद्ध लेनी चाहिए।यदि आप अशुद्ध सामग्री जैसे- पुरानी, बासी या नकली सामग्री आदि लेते हैं तो उस नुस्खे के प्रयोग से कोई लाभ नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए इसी नुस्खे पर लौकी का सेवन करने से किसी विशेष फायदे के बारे में बताया गया है तो उस नुस्खे पर लौकी से तात्पर्य शुद्ध व प्राकृतिक लौकी से है। आजकल देश के कई भागों में कुछ किसान ज्यादा कमाई के लिए रासायनिक दवाओं का इंजेक्शन देकर लौकी को तेजी से बड़ा कर लेते हैं और बाजार में बिकने को भेज देते हैं। अब आप खुद ही सोचिए की क्या इस तरह की अप्राकृतिक या रासायनिक लौकी से आपको किसी प्रकार का लाभ हो सकता है यही नियम सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ एवं पेय पदार्थों पर लागू होता है।
• जलवायु व वातावरण के अनुसार नुस्खे -
क्योंकि भिन्न-भिन्न स्थानों की जलवायु और प्राकृतिक वातावरण अलग-अलग होते हैं इसलिए जो नियम किसी एक स्थान विशेष के लिए बनाया जाता है, तो यह आवश्यक नहीं है कि वह नियम दूसरे स्थान पर भी वैसा ही लागू हो जाए। जगह जगह के हिसाब से उस नियम में थोड़ा बहुत परिवर्तन किया जा सकता है-लेकिन यह परिवर्तन क्या और किितना होगा यह तो उस स्थान के निवासियों को स्वविवेक से ही निर्धारित करना होगा। वास्तव में कोई भी नुस्खा या इलाज या खानपान संबंधी जानकारी सार्वभौमिक नहीं होती अलग-अलग स्थानों के हिसाब से उसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन किए जा सकते हैं।हमारे देश में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की प्राकृतिक परिस्थितियां मिलती हैं इसलिए उन अलग-अलग स्थानों के लोगों का रहन-सहन, खानपान, रूचि, मान्यताएं चिकित्सा के तरीके इत्यादि भी अलग-अलग होते हैं।
उदाहरण के लिए उत्तर भारत में 40 डिग्री सेल्सियस तापमान अधिक माना जाता है और इतने तापमान पर लोग कूलर पंखा एयर कंडीशनर आदि साधनों का प्रयोग आरंभ कर देते हैं, जबकि दक्षिण भारत काफी गर्म क्षेत्र है इसीलिए वहां के लोग इस तापमान को तो सामान्य समझते हैं। और अनेक लोगों को तो इसी तापमान पर ठंड भी महसूस होती है हमने प्रत्यक्ष अपनी आंख से देखा है कि, जब उत्तर भारत में 40-42 डिग्री सेल्सयस तापमान होता है और ऐसे में कोई दक्षिण भारत का व्यक्ति उत्तर भारत पर्यटन के लिए आता है तो वह गर्म पानी से नहाता है और चादर कंबल ओढ़ कर सोता है। यह कोई काल्पनिक बात नहीं है और एकदम सत्य घटना है।
इसी प्रकार से, उत्तर भारत में चाय और रसीले फलों का साथ साथ सेवन करना हानि प्रद माना जाता है जबकि महाराष्ट्र (नागपुर के निकटवर्ती क्षेत्र) में लोग चाय में अंगूर संतरा डूबो कर खाते हैं।
इन सब कारणों से हमारे देश में एक कहावत प्रचलित हो गई है कि- कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी।
• किसी भी नुस्खे का प्रयोग करने से पहले रोगी की स्थिति का ध्यान रखें -
उदाहरण के लिए यदि किसी नुस्खे में मट्ठा या दही का प्रयोग बताया गया है लेकिन आप को जिस रोगी की चिकित्सा करनी है, वह रोग उसे ठंड लगने के कारण हुआ है तो फिर ऐसे रोगी के लिए छाछ, दही का प्रयोग करना बिल्कुल भी सही नहीं होगा।• किसी भी नुस्खे का प्रयोग करने से पहले रोगी की रुचि को भी ध्यान में रखना चाहिए -
मान लीजिए यदि कोई रोगी दैनिक जीवन में प्याज लहसुन का प्रयोग नहीं करता है तो उसे प्याज लहसुन से बनने वाला नुस्खा ना देकर कोई अन्य नुस्खा देना चाहिए।यदि किसी नुस्खे हैं बहुत ज्यादा मात्रा में गर्म प्रकृति के पदार्थ में पाए गए हो तो उस नुस्खे का सेवन गर्मी के दिनों में ना करें। इसी प्रकार ठंडी प्रकृति के पदार्थों का सेवन ठंडे दिनों में ना करें।
• शब्दों के अर्थ सावधानी से समझे -
किसी भी शब्द का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग अर्थ हो सकता है। वास्तव में प्रत्येक शब्द की अलग-अलग विस्तृत व्याख्या करना किसी के बस की बात नहीं है। अतः इस प्रकार के शब्दों का अर्थ ग्रहण करते समय बहुत ही अधिक सावधानियां बरतनी चाहिए और इस प्रकार के शब्दों का अर्थ- परिस्थितियों के अनुसार स्वविवेक से करना चाहिए।उदाहरण के लिए हमारे कुछ पोस्ट में अनेकों स्थानों पर
' गरम ' शब्द का प्रयोग किया गया है। लेकिन अलग-अलग स्थानों पर इस शब्द का भी अलग-अलग अर्थ होगा।
जैसे कि- जाड़ों में मनुष्य को गरम पानी से नहाना चाहिए तो यहां पर गरम का अर्थ केवल गुनगुने पानी से होगा। ऐसे की अगर बात गरम पानी पीने या फिर गरम तेल को कानों में डालने की हो तो यहां गरम से मतलब सुहाते गरम (जितना गर्म सहा जा सके) होगा।
इस तरह से स्पष्ट हो जाता है कि अलग-अलग स्थानों पर एक ही शब्द अलग अलग अर्थों के लिए प्रयुक्त किया जाता है इसीलिए हमें स्वविवेक से काम लेकर शब्दों के अर्थों को समझना चाहिए।
• नुस्खा अनुकूल ना होने पर -
यदि किसी भी कारण से प्रयोग किया जाने वाला नुस्खा रोगी के लिए सही ना हो या किसी प्रकार का नुकसान पहुंचा रहा हो तो तुरंत ही उस नुस्खे का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। एवं किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से कोई दूसरा नुस्खा अपनाना चाहिए।वैसे तो लगभग सभी प्रकार के नुस्खों के साथ यह दिया गया होता है कि उसमें उसके को कितनी मात्रा में लेना है लेकिन यदि किसी ने उसके के साथ में मात्र ना लिखी हो तो मात्रा का निर्धारण अपने स्वविवेक से करना चाहिए नुस्खे का इस्तेमाल रोगी की स्थिति, उसकी आयु, शारीरिक सेहत, रोग की तीव्रता, आदि को देख कर करना चाहिए।
• नुस्खे की सामग्री ना मिलने पर -
यदि किसी नुस्खे की सामग्री बाजार में नहीं मिल रही हो तो आप उस मुझसे को छोड़कर किसी अन्य नुस्खे का प्रयोग करें।प्रायः प्रत्येक रोग के उपचार के लिए एक से अधिक नुस्खे मिल जाते हैं। इसलिए किसी नुस्खे की सामग्री ना मिल पाए तो परेशान नहीं होना चाहिए बल्कि उसके स्थान पर किसी अन्य नुस्खे का प्रयोग करना चाहिए।
• परहेज और पालन (पथ्य व अपथ्य) -
प्रत्येक रोग में रोगी को पथ्य व अपथ्य का ध्यान रखकर उनका पालन करना चाहिए।पथ्य का अर्थ होता है कि किसी रोग में क्या खाना चाहिए।
अपथ्य का अर्थ होता है कि-इसी रोग में क्या नहीं खाना चाहिए।
यदि रोगी व्यक्ति परहेज का पालन नहीं करेगा तो उसे दवा का प्रयोग करने से लाभ भी नहीं मिलेगा हालांकि दवा लेना प्रारंभ करने से तात्कालिक लाभ भले ही मिल जाए लेकिन स्थाई लाभ नहीं मिल पाएगा। इसलिए रोगी के लिए आवश्यक है कि-वह खानपान में पथ्य - अपथ्य का पूर्ण ध्यान रखें।
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