गुरू नानक देव सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु है इनके द्वारा सिक्ख धर्म की नीव रखी गई अनेकों प्रतियोगिताओं में हमें गुरु नानक साहब के बारे में भाषण या निबंध लिखने अथवा बोलने का मौका मिलता है साथ ही यह निबंध क्लास 4,5,6,7,8 के छात्रों के लिए भी उपयोगी हो सकता है।
गुरूपुरब |
प्रस्तावना -
गुरु नानक जयंती को हम सभी गुरु पर्व या गुरुपूरब के नाम से भी जानते हैं इनके द्वारा सिख धर्म की नींव रखी गई थी इसी कारण सिख समाज के लोग गुरु नानक देव के जन्मदिन के अवसर को गुरु पर्व या गुरुपूरब के नाम से मनाते हैं। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है।गुरुपूरब का अर्थ होता है- गुरुओं का दिन
गुरु नानक देव का स्वभाव बचपन से ही शांत और भक्ति भाव से परिपूर्ण रहा है। वे सदा ही गरीब लाचार एवं दुखियों की सहायता के लिए खुद को आगे रखते थे। इन्होंने अपने विचारों का प्रचार करने के लिए , खुद के लिए एक सन्यासी जीवन चुना और कई हिंदू और मुस्लिम प्रांतों में जाकर अपने विचारों का प्रचार किया वे कट्टर मूर्ति पूजा विरोधी थे उनके अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी है इन्होंने अपने जीवन के 25 साल अनेकों जगहों पर घूम कर उपदेश देने में बिता दिए।
जन्म स्थान और परिवार -
उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी पाकिस्तान में रावी नदी के किनारे शेखुपुरा ग्राम में हुआ था।परंतु कुछ विद्वान इनका जन्म दिवस मूल तिथि के रूप में ही मनाते हैं जो कि अक्टूबर से नवंबर माह के बीच दिवाली के 15 दिन बाद पड़ने वाली कार्तिक पूर्णिमा को होता है।
इनका जन्म मूल रूप से खत्री कुल में हुआ था
इनके पिता का नाम मेहता कालू चंद खत्री था जो कि पेशे से किसी बड़े राजघराने के पटवारी के पद पर नियुक्त थे एवं इनकी माता तृप्ता देवी धार्मिक कार्यों में लिप्त रहने वाली महिला थी।
इनका जन्म होने पर इनके पिता कालू चंद खत्री एवं माता तृप्ता देवी ने इनका नाम नानक रखा था एवं इनकी बहन का नाम नानकी रखा।
श्री गुरु नानक देव का बचपन से ही सांसारिक मोह माया से कोई खास लगाव नहीं रहा था इसी बात पर चिंतित उनके माता-पिता ने 16-17 वर्ष की आयु में इनका विवाह गुरदासपुर जिले के लाखौकी गांव की रहने वाली सुलक्खनी नाम की कन्या से करवा दिया। और 32 वर्ष की उम्र में गुरु नानक देव और सुलक्खनी को प्रथम पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसका नाम उन्होंने श्रीचंद और इसके 4 वर्ष बाद उन्हें दूसरे पुत्र लखमीदास की प्राप्ति हुई।
दूसरे पुत्र की प्राप्ति के बाद में गुरु नानक देव ने अपने चार अनुयायियों के साथ तीर्थ यात्रा पर जाने का निश्चय किया।
इनके महान कार्यों एवं समाज के प्रति किए गए कार्यों की वजह से आगे चल कर तलवण्डी का नाम ननकाना पड़ गया।
शिक्षा -
बचपन से ही गुरु नानक देव का मन किताबी ज्ञान से ज्यादा धार्मिक बातों की ओर लगा रहता था। स्कूली पढ़ाई-लिखाई में उनका कोई खास उत्साह दिखाई नहीं देता था। गुरु नानक देव के इश्वर प्राप्ति के प्रश्नों से स्कूली अध्यापकों ने भी हार मान ली और इनका स्कूल 8-9 वर्ष की उम्र में ही छूट गया था।गुरु नानक की बुद्धि का तेज लोगों ने इनके बचपन में ही देख लिया था इन्होंने अपने बचपन में ही उर्दू , फारसी और संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
स्कूल छोड़ने के बाद गुरु नानक का ज्यादा समय साधु-संतों के साथ चिंतन मनन एवं भजन कीर्तन करते ही बीतने लगा था। इन पर भरोसा करने वालो में इनकी बहन और उस गांव के क्षेत्र पाल राय बुलार प्रमुख थे।
गुरु नानक द्वारा किए गए कार्य व उपलब्धियां -
1507 में गुरु नानक अपने चार साथियों लहना,
मरदाना, बाला और रामदास के साथ एक लम्बी यात्रा पर निकल गए जहा इन्होंने 1521 तक भारत, अरब, अफगानिस्तान, और फरास के चार यात्रा चक्र और लोगो को उपदेश दिए कालांतर में इनकी यात्रा को ' उदासियां ' कहा गया।
श्री गुरु नानक साहब के अनुसार ईश्वर का वास हर जगह है वे सनातन धर्म की मूर्ति पूजा की मान्यताओं के विपरीत ईश्वर उपासना एवं ईश्वर प्राप्ति का एक अलग मार्ग दिखाते थे। इनके द्वारा हिन्दू धर्म के कुरीतियों के सुधार के लिए भी कई कार्य किए गए थे।
गुरु नानक की उपलब्धियां उपाधियां -
इनके जीवन में बचपन से ही कई अनोखी घटनाएं होने लगी थी जिनके कारण लोग इन्हें गुरु के कर पुकारने लगे थे और इस कारण ही इनके नाम के आगे गुरु शब्द जुड़ गया था।इन्हे भक्ति काल के निर्गुणधारा की ज्ञानाश्रयी शाखा में स्थान प्राप्त है। कवि श्री आचार्य राम चन्द्र शुक्ल भी गुरु नानक से काफी प्रभावित हुए वे लिखे है कि श्री ग्रंथ साहब में संग्रहित भजन गुरु नानक देव द्वारा गए जाते थे।
गुरु पर्व (गुरूपुरब) -
गुरुपूरब प्रकाश पर्व या गुरु पर्व को श्री गुरु नानक देव साहिब के जन्मदिन के दिन मनाया जाता है यह सिख समुदाय का एक विशेष पर्व होता है।गुरु नानक ने सिख धर्म की नीव रखी एवं लोगों को भेदभाव के बिना जीवन जीने की शिक्षा दी।
इस दिन सिख धर्म के अनुयाई सुबह सवेरे उठ कर को रैली निकालते है उसे प्रभातफेरी कहते हैं, इसके बाद गुरुद्वारे में रुमाल चढ़ाया जाने की खास प्रथा है और फिर विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।
गुरु नानक अंतिम समय -
इनके अंतिम समय में गुरु नानक जी को मनाने वालो में काफी वृद्धि हो गई थी एवं इनकी ख्याति भी काफी बढ़ चुकी थी ।इन्होंने करतारपुर गांव बसाया जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है।
करतार पर में इन्होंने एक बड़ी धर्म शाला का निर्माण करवाया एवं अपने कुल जनो के साथ खुद भी वाहा रह कर मानवता के कार्यों में अपना समय व्यतीत करने लगे। अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले ही उन्होंने गुरु अंगद देव
को अपना उतराधिकारी बना दिया इनका पुराना प्रचलित नाम लहना था
एवं अंत में 22 सितम्बर 1539 को गुरु नानक देव परलोक सिधार गए।
उपसंहार -
गुरु नानक देव सरल स्वभाव की व्यक्ति थे इन्हें बचपन के समय से ही ऐसा आत्मज्ञान होता था कि जैसे ही ईश्वर उनके कानों में मानवता के लिए कुछ विशेष कार्य करने को कहते हों।वे सांसारिक माया से मुक्त थे उनका मन सदैव ईश्वर के चिंतन मनन में लगा रहता था उनके पास जो भी पैसे होते हैं वह या तो गरीबों की मदद में लगा देते या फिर साधु संतों की सेवा में।
गुरु नानक साहब ईश्वर भक्ति पर जो देते थे एवं मूर्ति पूजा का खंडन करते थे इन्होंने अपने जीवन काल में कई लंबी यात्राएं की और लोगों को सही मार्ग बताया था। इनके द्वारा सिख समुदाय की नींव रखी गई एवं ईश्वर भक्ति का नया मार्ग प्रशस्त किया गया।
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