हृदय वाहिकाएं तंत्र में आधुनिक समय की अव्यवस्थित जीवन शैली के कारण होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में नीचे दर्शाया गया है।
• उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) -
रक्तचाप या हाइपरटेंशन आधुनिक समाज की देन है। वर्तमान सामाजिक आर्थिक संस्कृति में व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन अक्सर ही व्यक्ति की सहनशीलता की सीमा के दायरे से बाहर तक फैल जाता है। इसके कारण अनेक बीमारियां पनपने लगते हैं जिसे उच्च रक्तचाप (high blood pressure) प्रमुख बीमारी है।
इस समय विश्व के औद्योगिक दृष्टि से विकसित देशों की आबादी का सातवां भाग उच्च रक्तचाप का शिकार है। यह बीमारी पहले से कोई चेतावनी दिए बिना ही धर दबोचती है, इसलिए इसे प्रायः (साइलेंट किलर) खामोशी के साथ मारने वाली बीमारी कहां जाता है।
विडंबना तो यह है कि उन समस्त बीमारीयों में, जिनमें रोगियों की अकाल मृत्यु हो सकती है हाइपरटेंशन पर काबू पाना सबसे आसान है।
रक्त का दबाव वह दबाव है जो शरीर के समस्त भागों को समान रूप से रक्त की सप्लाई करने के लिए आवश्यक होता है। रक्तचाप आमतौर पर 110/60mm.Hg से 140/85mm.Hg.
से ऊपर चले जाने पर उस व्यक्ति के उच्च रक्तचाप का मरीज समझा जाता है।
बिना वजह उच्च रक्तचाप (ऐसी स्थिति जिसमें हृदय गुर्दों और अधिवृक्क ग्रंथियों में किसी तरह की बुनियादी समस्याओं के बिना रक्त का दबाव बढ़ जाता है) का कारण अभी तक अज्ञात है। वृद्धि के इस स्तर को देखते हुए रक्तचाप को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: मंद, मध्यम और तीव्र।
रक्त के दबाव में अचानक वृद्धि हो जाने तथा तीव्र उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में न रख पाने के कारण अनेक जटिलताएं पैदा हो जाती हैं, जैसे पक्ष घात, दिल का दौरा, अचानक हृदय गति बंद हो जाने, गुर्दों और का काम करना बंद कर देना और रेटिना के अलग हो जाने पर दृष्टिहीनता।
एक बार पता चल जाने पर रक्तचाप की स्थाई रूप से उपचार करना चाहिए।
रक्त के दबाव को सुरक्षित स्तर पर बनाए रखना ही उच्च रक्तचाप से ग्रस्त मरीज का उद्देश्य होना चाहिए। इसके लिए कतिपय नियमों का पालन करने के लिए थोड़े समय व संकल्प की जरूरत होती है।
उपचार -
निम्नलिखित कारकों के कारण रक्त का दबाव सामान्य तौर पर सुरक्षित सीमाओं के भीतर रहता है :-
1. हृदय की रक्त को पंप करने की गतिविधि।
2. रक्त वाहिकाओं का लचीलापन।
3. शरीर के बहने वाले रक्त की गुणवत्ता।
4. रक्त की श्यानता (गाढ़ापन)।
5. परिसरिय धमनी प्रतिरोध।
औषध रहित पद्धति अपनाकर उपयुक्त सभी कारकों पर ध्यान दिया जा सकता है। कड़ी आहार व्यवस्था अपनाकर रक्त की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है, जिन में निम्नलिखित चीजें शामिल होनी चाहिए-
1. अधिक वजन होने पर कैलोरी सीमित करें।
2. 10 से 15 प्रतिशत वसा (चिकनाई), 60 से 70 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 15 से 20 प्रतिशत प्रोटीन।
3. ऐसी चीजें, जिनके सेवन से कोलेस्ट्रॉल कम बने।
4. कम नमक का सेवन करें जिससे अतिरिक्त जल तत्व में कम होते हैं।
5. रेशेदार खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में इस्तेमाल।
अर्ध न्यूट्रल स्नान, फ्रिक्शन के साथ न्यूट्रल और इप्सम नमक मिलाकर अर्ध स्नान तथा भाप स्नान (मध्यम दर्जे के उच्च रक्तचाप में) करने से परीसरिय वाहिका विस्फार (पेरीफेरल वेसोड़ाईलेटेशन) होता है, जिससे हृदय की मांसपेशियों को आराम मिलता है और परिसारिय धमनी प्रतिरोध में सुधार होता है। गर्म और ठंडे जल के उपचारों के जरिए परिसरिय एवं अंदरूनी अवयवों में रक्त की सप्लाई में सुधार किया जा सकता है। "वाहिका प्रशिक्षण"
के नाम से लोकप्रिय इन उपचारों की मदद से रक्त वाहिकाओं के पीलेपन (इनका संकुचन और फैलाव) में सुधार किया जा सकता है।
ठंडा रीढ़ स्नान, सिर व रीढ़ पर बर्फ की मालिश, सिर पर स्पंज बाथ, ठंडा लपेट, ठंडा फ्रिक्शन, स्पंज बाथ, मिट्टी स्नान तथा छाती पर ठंडी लपेटो का इस्तेमाल-इन सब से रक्तचाप को तुरंत नीचे लाने में मदद मिलती है।
पेट पर नियमित रूप से मिट्टी लपेट का इस्तेमाल करने से उदरिय क्षेत्र में रक्त प्रभाव में सुधार होता है।
सप्ताह में एक या दो बार पूरे शरीर की नीचे से ऊपर की ओर मालिश करने से रेखित मांस पेशियों को ही आराम नहीं मिलता बल्कि इससे परिसरिय प्रवाह और लसिका निकास में भी सुधार होता है।
योग चिकित्सा से, जिनमें योगिक क्रियाएं, प्राणायाम, आसन और योग निद्रा शामिल है, शरीर की अंदर से सफाई करने में, इसकी रोग रोधी क्षमता और आंतरिक अवयवों की कार्यक्षमता, लचीलापन, फुर्ती व सहनशीलता बढ़ाने और आराम महसूस करने में मदद मिलती है। ह्रदय की मांसपेशियों को आराम मिलते ही नब्ज, ह्रदय गति और रक्तचाप की दर में कमी आ जाती है।
अन्य दूसरी पुरानी बीमारियों की तरह उच्च रक्तचाप का स्थाई रूप से उपचार करना चाहिए। ऊपर बतलाई गई बातों का पालन करने से रक्त का दबाव जीवन भर सुरक्षित स्तर पर रखा जा सकता है।
• वेरीकोस वेंस (अप्सफित शिराए) -
वेरीकोस वेंस की स्थिति में शिराएं बेतरतीब फेल्का लंबी हो जाती हैं और मोटी पड़ जाती हैं।
यह शरीर के किसी भी भाग में दिखाई दे सकती हैं- ग्रासनली शिराएं, मलाशय शिराएं और वृषण शिराएं। लेकिन आमतौर पर यह टांगों में दिखाई पढ़ती है। विकसित देशों की लगभग 20% आबादी टांगों में वेरीकोस वेंस का शिकार है महिलाएं इसकी चपेट में अधिक मात्रा में है जिस का अनुपात 5:1 और इस बीमारी में दाहिनी टांग की अपेक्षा बाईं टांग अधिक प्रभावित होती है। इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों में से 66% के परिवार में पहले से ही वेरीकोस वेंस की बीमारी चली आ रही है।
यह शिराएं वे वाहिकाए हैं, जो रक्त को ह्रदय में वापस ले जाती है। इनमें वाल्व लगे होते हैं, जिनसे रक्त का एक ही दिशा में प्रवाह सुनिश्चित होता है इन शिराओं के फैल जाने पर यह वाल्व काम करना बंद कर देते हैं, जिस कारण रक्त उपरिस्थ शिराओं में रुक कर जमा होने लगता है। इसके परिणाम स्वरूप इस तरह जमा होकर रुकने वाले रक्त में मौजूद जल तत्व टांग में उत्तक के बीच की जगह में जाने लगता है, जिसके कारण सूजन हो जाती है और आगे चलकर त्वचा के रंग में परिवर्तन (पिगमेंटेशन), वसीय उत्तको का क्षय, एक्जिमा, अंततः अरक्तता (रक्त सप्लाई में कमी) और अल्सरेशन होने लगती है।
वेरीकोस वेंस आमतौर पर उन व्यक्तियों में पाई जाती है जो काफी देर तक खड़े होकर या बैठकर काम करते हैं। यातायात पुलिस कर्मियों अध्यापकों तथा अन्य दूसरे धंधों से जुड़े लोगों के तथा काफी देर तक बैठकर काम करने वालों के इस बीमारी की चपेट में आने की संभावनाएं अधिक होती है गुरुत्व की दिशा में भार उठाने वालों, मोटे शरीर वालों तथा हार्मोन से प्रभावित लोगों में यह विकराल रूप धारण कर लेती है।
वेरीकोस वेंस के कारण टांगों में दर्द होने लगता है, थकान और भारीपन रहने लगता है, टखने सूज जाते हैं, रात के समय टांगों में ऐठन होने लगती है, त्वचा का रंग बदल जाता है, स्टेटीस डर्मेटाइटिस, निचले अंगों में सेल्यूलाइटिस आदि बीमारियां हो जाती है।
उपचार -
वजन अधिक होने पर शरीर का वजन कम करें।
लंबे समय तक खड़े हैं बैठे रहने से बचे।
इप्सम नमक मिलाकर न्यूट्रल इमर्शन स्नान करें।
ऐठन, दर्द आदि से छुटकारा पाने के लिए बारी बारी से गर्म व ठंडा पैर स्नान करें।
प्रतिदिन रात को टांगों पर ठंडे लपेट का इस्तेमाल करना भी लाभदायक रहता है।
अगर कोई अल्सर नहीं है, तो कभी टांगों पर सीधे ही मिट्टी लपेट का इस्तेमाल करना अच्छा रहता है।
प्रभावित टांग को तकिया लगा कर ऊंचा रखना चाहिए। इससे जमे हुए रक्त को उसकी जगह से हटाने में मदद मिलती है।
कच्चे नारियल के पानी, जौं के पानी, धनिया के पानी या खीरे के पानी का नमक बिना सेवन करें। ऐसा करने से शरीर में अतिरिक्त जल तत्व कम हो जाएगा।
अगर काफी देर तक खड़े या बैठे रहने से नहीं बचा जा सकता तो इलास्टिक वाले घुटनों के लंबे मोजे या स्टॉकिंग्स का इस्तेमाल करना चाहिए।
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