पतिव्रता पत्नि अपने पति के लिए भरपूर सम्मान की भावना रखती है जहा एक ओर वह अपने पति के लिए हर त्याग करने के लिए भी तैयार रहती है, तो वही वक्त आने पर पति का हर कदम पर साथ देती है। पति के साथ कदम से कदम मिला कर साथ देती है। Online hitam के आज के हमारे इस पोस्ट में हम आपके लिए एक पति व्रता के समर्पण और करवा चौथ के पवित्र पर्व पर निबंध के कर आए है।
प्रस्तावना -
करवा चौथ पहले उत्तर भारत के कुछ प्रमुख हिस्सा में ही मनाया जाता था परंतु इसके बढ़ते प्रचलन के साथ अब यह व्रत लगभग संपूर्ण भारत में रखा जाने लगा है यहां तक की भारत से बाहर रहने वाले हिन्दू धर्म के परिवारों की स्त्रियां भी करवा चौथ का व्रत बड़े हर्ष और उल्लास के साथ रखती है।
करवा चौथ व्रत सुहागन स्त्रियों द्वारा रखा जाता है जो अपने सुहाग (पति) की लंबी उम्र और अच्छी सेहत की कामना करती है। वहीं कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को बड़े ही उल्लास के साथ अपने अच्छे जीवन साथी को पाने की उम्मीद से करती है जो संपूर्ण जीवन उनके साथ रहे और हर सुख दुख में साथ दे।
भारत में इस प्रथा से मिलते जुलते कुछ और भी व्रत है जो महिलाओं द्वारा रखे जाते है हड़तालिका तीज का व्रत एक ऐसा ही व्रत है जो भारतीय महिलाओं द्वारा सदियों से अपने पति की सलामती की कामना के लिए रखा जाता रहा है। कुंवारी कन्याएं भी मन मर्ज़ी वर पाने के लिए यह व्रत करती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को रखने वाली महिलाएं व कन्याएं करवा चौथ का व्रत नहीं करती पहले भारतीय महिलाओं द्वारा पूरे भारत में केवल हड़तलिका तीज का व्रत रखा जाता था जो कि गांव से ले कर शहरी क्षेत्रों तक प्रचलित था।
लेकिन कुछ समय पूर्व से महिलाओं की बदलती पसंद, टी.वी. सीरियल और फिल्मों पर करवा चौथ व्रत के बारे में देखने और जानने के बाद यह व्रत उत्तर भारत से निकाल कर अब संपूर्ण भारत में व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।
उपवास चाहे कोई भी हो महिलाओं का उद्देश्य केवल अपने पति की लम्बी आयु व कुंवारी कन्यओं का उद्देश्य अच्छे पति की प्राप्ति का ही होता है। उनकी भावनाएं कभी बदलती नहीं है।
सबसे खास बात यह भी है कि दोनों ही व्रत विधि का केंद्र भगवान शिव और माता पार्वती है महिलाएं दोनों ही व्रतों में पूरा दिन पूर्ण भक्ति भाव के साथ निर्जला व्रत करती है। हालाकि कई मायनों में हड़तालीका तीज का व्रत अन्य सभी व्रतों से ज्यादा कठोर मालूम होता है।
करवा चौथ कब होता हैं ? -
हिन्दू पंचांग के अनुसार करवा चौथ व्रत प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की चौथी तिथि (चतुर्थी) एवं दीवाली के दस दिनों पहले आता है। इस दिन मिट्टी के बर्तन यानी करवा का भी खास महत्व होता है इसलिए इसे करवाचौथ कहा जाता है।
सन् 2021 में करवा चौथ- रविवार, अक्टूबर 24 से प्रातः 3 बज कर एक मिनट से शुरू हो जाए गा।
करवा चौथ की तैयारियां -
करवा चौथ की तैयारियों को महिलाओं द्वारा महीनों पहले से शुरू कर दी जाती है खास बात तो यही है कि करवा चौथ का व्रत दशहरे और दिवाली के बीच पड़ता है इस समय बाजारों में बहुत ही ज्यादा चहल-पहल होती है हर तरफ महिलाओं का बोलबाला होता है महिलाएं कहीं घर की साज सज्जा का सामान लेते तो कहीं अपने लिए नए कपड़े पसंद करते हुए देखी जा सकती है।
बाजारों में नए कपड़ों की धूम मची रहती है दुकानदार भी लगातार आ रहे इन सारे त्योहारों की तैयारियां पहले ही कर लेते हैं।
करवा चौथ के लिए भी विशेष रूप से उपयोग में आने वाले तरह तरह से सजाए गए करवा (मिट्टी के बर्तन) व छलनी बाजारों में नजर आने लगते है।
महिलाएं व्रत विधि को पूरा करने के लिए पहले से ही सम्पूर्ण पूजन सामग्री के साथ खुद के लिए बाकी सोलह श्रृंगार जुटाने में लग जाती है।
करवा चौथ विधि -
करवा चौथ के दिन शादी शुदा महिलाएं एवं कुंवारी लड़कियां सुबह सूर्य उगने से पहले ही सरगी खा कर अपना व्रत शुरू करती है। शादी शुदा महिलाओं के लिए सरगी उनकी सास के द्वारा बनाया जाता है। इसके बाद करवा चौथ का व्रत शुरू हो जाता है और महिला पूरा दिन निर्जला (बिना पानी पिए या कुछ खाए) व्रत रहती है। सारा दिन पूरी भक्ति भाव के साथ भगवान का भजन एवं करवा चौथ की कथा का पाठ करती है और चंद्र देव, भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश कार्तिक की पूजा करती है।
शाम होते ही महिलाएं किसी नई दुल्हन की तरह लाल साड़ी के साथ पूरे सोलह सिंगार करके घर की छत या किसी गार्डन में इकट्ठा होकर अपने दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ चांद निकलने का इंतजार करती है। जैसे ही चांद बादलों से बाहर आता है महिलाएं छलनी पर जलते हुए दीपक को रखकर पहले चांद को देखती है इसके बाद अपने पति को देखकर और उनके हाथों से मिट्टी के करवे में रखें शुद्ध जल को पी कर, अन्न ग्रहण कर अपने इस उपवास का अंत करती है।
उपसंहार -
भारत में लगभग हर महीने कोई ना कोई त्यौहार या व्रत होते हैं हमारा समाज भले ही पुरुष प्रधान है परंतु प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति में स्त्री और पुरुष को सामान्य दर्जा देकर पूजनीय माना गया है।
करवा चौथ का यह व्रत पति पत्नी के बीच के अटूट प्रेम को दर्शाता है जहां पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला होकर व्रत रहती हैं तो वही पुरुष भी अपनी पत्नी की सारी जिम्मेदारियां खुद पर लेकर हमेशा उसका ख्याल रखने को बाध्य होते हैं। करवा चौथ का त्यौहार महिलाओं के अंदर की सहनशीलता को भी दर्शाता है।
कहने के लिए तो करवा चौथ के व्रत में महिलाओं का प्रमुख योगदान होता है परंतु महिला चंद्र दर्शन के बाद खुद ही अपना व्रत नहीं खोल सकती इसके लिए इनके पति अपने हाथों से अपनी पत्नियों को जलपान व अन्य ग्रहण कराकर इन का व्रत खुलवाते हैं।
करवा चौथ के लिए 10 लाइन -
- करवा चौथ भारतीय महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए रखा जाता है।
- इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, चंद्र देव की पूजा की जाती है।
- महिलाएं बाजार से रंग-बिरंगे करवा एवं रंग बिरंगी छलनी लेकर आती है।
- यह व्रत हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कठोरतम व्रतों में से एक है।
- महिलाएं करवा चौथ में चंद्र दर्शन से पहले पूरे सोलह सिंगार करती है।
- महिलाएं व कुंवारी कन्या अपने हाथो व पैरों में मेहंदी लगाती हैं।
- करवा चौथ के उपवास को शुरू करने के लिए सांस के हाथों से बना सरगी का विशेष महत्व होता है।
- महिलाएं इस व्रत से जुड़ी कई तरह की कहानियां पढ़ती है जिसमें पत्नी की शक्ति का उल्लेख मिलता है जो वक्त आने पर अपने पति को यमराज से भी वापस लेकर आ जाती हैं।
- यह व्रत भारत के साथ-साथ विदेश में रहने वाले भारतीय या हिंदू महिलाएं भी बनाती है।
- करवा चौथ व्रत का समापन महिलाएं चंद्र दर्शन के बिना नहीं कर सकती।
यह भी पढ़े 👉
Tags:
Essay