उच्च रक्तचाप मधुमेह मोटापे तथा पाचन क्रिया संबंधी विकारों की तरह अर्थराइटिस भी सचमुच एक सार्वभौमिक बीमारी है, जो आधुनिक विश्व की आश्वस्त जीवन शैली की देन है। अर्थराइटिस की रोकथाम करना इसका उपचार करने से कहीं बेहतर है, हालाकि समस्त प्रकार के अर्थराइटिस का उपचार किया जा सकता है।
पेशीय एवं पंजर प्रणाली |
अर्थराटिस में जोड़ों में सूजन आ जाती है। इसकी कई किस्में है, जिनमें से 96 पर्सेंट की पहचान की जा चुकी है अर्थराइटिस का शिकार हो जाने पर प्रभावित जोड़ में सूजन आ जाती है और उसके नीचे मौजूद उत्तक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं दर्द और अकड़न मरीजों द्वारा अनुभव किए जाने वाले अत्यंत सामान्य लक्षण है।
जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है जोड़ अधिकाधिक कड़ा पढ़ने लगता है और इसकी क्रियाशीलता धीरे धीरे खत्म होने लगती है। एक बार जोड़ के कड़ा पर जाने पर और इसके आसपास मांस पेशियों का समुचित ढंग से व्यायाम ना होने पर यह जोड़ सिकुड़ जाते हैं और इस तरह पैदा होने वाली मांसपेशियों की कमजोरी को डिस्यूज एट्रॉफी कहते हैं।
इसमें जोड़ों के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है और अर्थराइटिस की बीमारी उग्र रूप धारण कर लेती है। स्वस्थ्य और खुश रहने के लिए किए जाने वाले अभ्यास ओं के कारण और कुछ एक पेशीय पंजर पढ़ाई संबंधी विकार पैदा हो जाते हैं, जैसे- दौड़ लगाना, एरोबिक्स, जॉगिंग।
• जोड़ किस तरह काम करता है -
अर्थराइटस की विस्तार पूर्वक चर्चा करने से पहले हमें यह समझना चाहिए कि एक जोड़ किस तरह काम करता है। शरीर में कई तरह के जोड़ होते हैं कुछ अत्यंत सक्रिय होते हैं तो कुछ स्थिर व सक्रिय दोनों, तो अन्य दूसरे पूरी तरह स्थिर।मानव शरीर में अस्थियों, मांस पेशियों व जोड़ों की संरचनात्मक व्यवस्था विस्मयकारी है, जो इसका भार उठाने में पर्याप्त सक्षम, इसके नाजुक अंदरूनी अवयवों की रक्षा करने की दृष्टि से पर्याप्त कठोर, मनुष्य के अस्तित्व को सुनिश्चित करने वाली फुर्ती उपलब्ध कराने की दृष्टि से पर्याप्त लचीली है।
हालाकि जोड़ों की संरचना जोड़ों की किस्म के अनुसार एक दूसरे से अलग होती है, अधिकतर जोड़ इन जैसे तत्वों से ही बने हुए होते हैं। जोड़ संबंधी संयोजी उत्तक की तंतुओं से बने कड़े कैप्सूल के भीतर स्थित होता है। इस उत्तक श्लेष्मक सिनोवियल (साईनोवियल) तरल निकलता है, जो हिलने डुलने वाले अंगों का स्नेहन (लुब्रिकेशन) करता है। इस कैप्सूल के बाहर तंतु दार स्थिरक जोड को घेरे रहते हैं। जिन्हें हम स्नायु (लिगामेंट) कहते हैं कैप्सूल की रक्षा करें वाली 2 हड्डियों को परस्पर जोड़ते हैं। और जोड़ के हिलने जलने को सुरक्षित सीमा के भीतर रखते हैं। एक अमेरिकी उपन्यासकार हरमन मेल मिले ने कहा था-
"मानव शरीर का एक जहाज है जिसकी हड्डियां मूल स्तर, पाल आदि जैसी चीजें हैं और जिसकी नसें (टेंडन) उपयुक्त चीजों की छोटी-छोटी फैली हुई रस्सी जैसी हैं, जो इस जहाज की संचालन व्यवस्था करती हैं।"
• जोड़ में क्या खराबी पैदा हो सकती है? -
इसका सरलतम उदाहरण मोच है। मुड़ जाने से टखने में चोट आ जाती है। इसका जोड सूज जाता है, इसमें तरल भर जाता है इस भाग में खून की सप्लाई बढ़ जाती है तथा यह गर्म हो जाता है और इसमें दर्द होने लगता है। सूजन और दर्द की वजह से चलना फिरना कम हो जाता है। हड्डी टूट जाने पर भले ही ज्यादा दर्द ना हो, व्यक्ति अपने आप ही यह कोशिश करने लगता है कि उसे टूटे हुए हिस्से पर अधिक जोर नहीं डालना चाहिए। मोच कुछ समय बाद ठीक हो जाती है लेकिन फ्रैक्चर को जोड़ने में समय लगता है। गाउट का दौरा पढ़ने पर जोड़ों में सूजन आ जाती है। और रूमेटाइड अर्थराइटिस मैं ऐसा कोई स्पष्ट कारण दिखाई नहीं पड़ता है और स्वयं या बीमारी सूजन का कारण प्रतीत होती है।अर्थराटिस कई प्रकार का होता है:
1. डीजेनरेटिव (व्यपजनन)-
जैसे आस्टोयो अर्थराइटिस, सर्वाइकल व लम्बैर सपोंडीलाइटिसा।
2. इन्फ्लेमेटरी (शोथज)-
जैसे रूमेटाइड अर्थराइटिस, अंकेलोसिस, स्पोंडिलाइटिस तथा सोरीएटिक अर्थराइटिस।
3. इंफेक्टिव (संक्रमी)-
जैसे बैक्टीरियल न्यूमो, गोनों, मेनिंगो, स्ट्रिप्टो व स्टाइफ्लो और बाइबल (रूबेला)।
4. मेटाबोलिक (चयापचयी)-
जैसे गाउट।
• आस्टियोआर्थराइटिस -
आस्टियोआर्थराइटिस अर्थराइटिस की अक्सर ही होने वाले आम किस्म है, शरीर के जोड़ों कि घिसने पीटने की बीमारी जो आयु बढ़ने के साथ-साथ सामान्य रूप से हो जाती है। यह जोड़ों में उपस्थितयों (कार्टिलेज) के घिस जाने के कारण होती है। हड्डियों के आखिर में उपस्थिति के पैड चिकने और सपाट होने की बजाय तिरछी व खुरदुरा हो जाते हैं, जिससे जोड़ों के सामान्य कामकाज में रुकावट आने लगती है। जोड़ एक अच्छी तेल डाली हुई मशीन की तरह सुचारू रूप से काम करने के बजाए जंग खाए दरवाजे की तरह खडखड़आहट करने लगते हैं।आस्टियोआर्थराइटिस से प्रायः वजन संभालने वाले बड़े-बड़े जोड़ों (घुटने व नितंब) के साथ-साथ रीड भी प्रभावित होती है।
गुरुत्व मनुष्य के वजन संभालने वाले जोड़ों का शत्रु होता है। इन पर बारंबार पड़ने वाले प्रभाव से सूक्ष्म आघात पहुंचता है, जिससे जोड़ बिगड़ने लगते हैं अर्थात जोड़ में आस्टियोआर्थराइटिक परिवर्तन होने लगते हैं। मोटे व्यक्तियों के ओस्टियोआर्थराइटिस का शिकार होने की संभावना रहती है।
ओस्टियोआर्थराइटिस का प्रकोप चोट लगने या खिलाड़ियों के मामलों में किसी जोड़ का बार-बार दुरुपयोग करने के बाद होता है। अभी तक यह ज्ञात नहीं हो पाया है कि अपने जोड़ों का लगाता दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति इससे क्यों बच्चे रहते हैं, जबकि अन्य दूसरे इसका शिकार हो जाते हैं।
दर्द और अकड़न इसके अत्यंत सामान्य लक्षण है यह प्राय: मौसम में बदलाव आने के साथ दिखाई पड़ते हैं। कभी-कभी रोग ग्रस्त जोड़ नाजुक हो जाता है और सुज जाता है।
उपचार -
उपचार की बारंबारता और अवधिबीमारी की गहनता और वांछित प्रभाव पर निर्भर करती है।• घुटने भटकने की जोड़ों का ओस्टियोआर्थराइटिस -
घुटने व टखने के जोड़ों में दर्द व इन की सूजन से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित उपचार उपयोगी हैं :- जोड़ के गिर्द मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए जोड़ों की हल्की मालिश।
- दर्द और जकड़न से आराम पाने के लिए गर्मी व ठंडी सिकाई व आफ्यूजन।
- ऊपरी सूजन वर्धा से छुटकारा पाने के लिए जोड़ों का ठंडा लपेट।
- घर में रखने वाले (पैक) भी दर्द जकड़न और सूजन से राहत दिलाने में सहायक हैं।
- पानी में एप्सम साल्ट मिलाकर 15 से 20 मिनट तक न्यूट्रल इमर्शन और अर्ध न्यूट्रल स्नान।
- कंट्रास्ट स्नान भी दर्द व जकड़न को दूर करने में अत्यंत सहायक होते हैं।
- सीधे गर्म में मिट्टी का लपेट करने से दर्द कम होता है।
- जोड़ों को मोड़ने और फैलाने जैसे नियमित व्यायाम से मांस पेशियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है।
- किसी कुशल चिकित्सक की देखरेख में संयमित भोजन की दिनचर्या अपना कर वजन घटाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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