फिजियो थेरेपी जिसे आम भाषा में फिजिकल थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है यह मुख्य रूप से शारीरिक क्षमता को मजबूत बनाने, दर्द की सहन शीलता बढ़ाने शरीर को और लचीला बनाने में मदद करता है। इसका उपयोग एथेलिटस अधिक मात्रा में करते है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई आम इंसान इसका उपयोग कर फायदा नहीं ले सकता इसका उपयोग करने से शारीरिक व मानसिक दबाव कम होता है।
इसके अलावा अधिकांश मामलों में इसका उपयोग विशेषज्ञ के रिकमेंडेशन पर ही किया जाता है शरीर के अलग-अलग भागों पर इसका उपयोग अलग अलग तरीकों से होता है संबंधित विशेषज्ञ आवश्यकता अनुसार मरीज को इसका लाभ देते है। शरीर के किसी हिस्से का बीमारी या दुर्घटना के कारण आई कमजोरी एवं हड्डियों के जाम हो जाने की स्थिति में (भौतिक चिकित्सा) विशेषज्ञ एक्सरसाइज व कुछ खास उपकरणों की मदद से रोगी को उसके शरीर के उस हिस्से को फिर से ठीक करते है और पुनः पहले की तरह चलता हुआ बना देते है।
• सोनोपल्स -
यह उपरी चोटो तथा अंदरुनी उतको दोनों के लिए परा ध्वनि उपचार है।
लाभ -
यह उपचार ओस्टियोआर्थराइटिस, टेंडइनाइटिस, बरसाईंटिस,कैप्सूलाइटिस, स्पोंडिलोथ्रोसिस और ट्रीसमस से ग्रस्त होने पर किया जाता है।
इस उपचार के दौरान सुपर शॉट वेब पैदा की जाती है और इन्हें कंडेनसर पैंडो का इस्तेमाल करते हुए उत्तर को गर्म करके शरीर में गुजारा जाता है। इस उपचार से दर्द कम होता है तथा स्पलान क्रीक तंत्रिकाए क्रियाशील हो जाती हैं इससे ल्यूकोसाइट सफेद (रक्त कोशिकाओं) की संख्या बढ़ाने तथा सूक्ष्म जीवों को नष्ट करने में मदद मिलती है।
यह उपचार तंत्रिकाओं की कमजोरी परिषरीय तंत्रिकाओं के पक्षाघात, रूमेरिटिजम, स्कैपुलर पेरीअर्थराइटिस, मोच, अस्टीयोआर्थराइटिस, मयोसाई टिस इत्यादि के मामलों में प्रभावकारी है।
चेतावनी -
पेट के जख्मों, क्षय रोग, उदरीय अवयवों में ट्यूमर तथा हृदय रोग के मरीजों में यह उपचार नहीं करना चाहिए।
• एंडोमेड -
प्रभाव -
इस उपचार में दर्द में आराम मिलता है, किसी प्रकार की परेशानी के बिना मांस पेशियां सिकुड़ जाती हैं। यह अत्यंत संवेदनशील अवयवों के उपचार में लाभकारी है (उदाहरण के लिए: संयम ना बरतने की वजह से होने वाला मूलाधार मांस पेशियों का उद्दीपन या स्टिमुलेशन)।
लाभ -
परिसरिय तंत्रिका के पक्षघात, मांस पेशियों की प्रगामी डिस्ट्रॉफी, पक्षाघात, मांस पेशियों की अकड़न, कैप्सुलाइटिस, मायोसाइटिस, फाईब्रोसाइट्स, इत्यादि।
• ट्रांसकुटेनिअस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिमुलेटर (टेंस) -
यह मांस पेशियों और त्वचा दोनों के अभी वाही फाइबरों को बिजली की मदद से सक्रिय करने वाली एक प्रमाणित और अत्यंत व्यापक रूप से इस्तेमाल में लाई जाने वाली पद्धति है। यह दर्द से छुटकारा पाने की दृष्टि से अत्यंत प्रभावकारी है। फाइबरों के उद्दीप्त होने के बाद चंद मिनटों बाद ही आराम महसूस होने लगता है जिसका आमतौर पर हल्के कंपन या दोलन के रूप में अनुभव किया जाता है।
यह पद्धति मांसपेशियों की अकड़न, पेरियोडोंटटल (परीदंतीका) संक्रमण की वजह से होने वाले ओरो-फेशियल दर्द, आधा सीसी का दर्द, पुराना कमर दर्द, खेल दुर्घटनाएं इत्यादि के मामले में उपयोगी है।
• सर्वाइकल एंड लंबैर इंटरमिटेंट ट्रेक्शन -
यह ट्रेक्शन इकाई मीटर गियर लीवर प्रणाली पर आधारित है।
लाभ -
यह सर्वाइकल व लंबेर स्पांडिलाइसिस, परिवर्तनों के उपचार में सहायक है।
• मिल ट्रैक कंप्यूटर -
यह ट्रेक्शन (कर्षण) कंप्यूटर प्रोग्राम पर आधारित है। इस ट्रैक कंप्यूटर की मदद से निम्नलिखित ट्रेक्शन दिए जा सकते हैं।
1. हॉरिजॉन्टल ट्रैक्शन
2. इंटरमिटेंट ट्रेक्शन
3. इंटरमिटेंट फोर्स ट्रैक्शन
यह ट्रेक्शन डीजेनरेटिव परिवर्तनों कमल व गर्दन के स्पोंडिलोसिस के मामले में लाभदायक है।
• मोम स्नान (वैक्स बाथ) -
शरीर के प्रभावित अंग पर 42 से 45 डिग्री तापमान वाला पिघला हुआ मोम लगाया जाता है। तथा इसे 10-15 मिनट के भीतर शरीर के तापमान पर सूखने दिया जाता है। सेंकाई की तरह मोम में स्नान भी अर्थराइटिस, अर्थराइटिस डिफार्मैंस तथा मांस पेशी में मोच के दर्द के उपचार के उपयोगी है।
• मायो-मैटिक -
लाभ -
यह स्पोंडी लोजिस, आस्टियो अर्थराइटिस, खेल दुर्घटनाओ इत्यादि की वजह से होने वाले तेज और पुराने दर्द के मामलों में भी उपयोगी है।
• वैसोट्रेन -
वैक्यूम/कंप्रेेशन थेरेपी यूनिट -
इसमें शरीर के निचले अंगों में रक्त का अधिकतम प्रभाव बनाए रखने में मदद मिलती है, जोकि मधुमेह के रोगियों में प्राय सीमित हो जाता है। रक्त संचार की अधिकतम संख्या सीमित बने रहने से शरीर के ऐसे निर्दिष्ट अंग में गैंग्रीन फैल सकता है। या फिर इसका कांटा जाना विलंबित किया जा सकता है।
लाभ -
चुपचाप से इस उपचार से मधुमेह, गैंग्रीन, उच्च रक्तचाप, दर्द और शरीर के अवयवों में जलन की परिस्थितियों में परीसरिय ऊतकों को क्रियाशील बनाने में मदद मिलती है।
• लेसर थैरेपी -
अंग्रेजी में Laser का फूल फॉर्म "Light Amplification By Stimulated Emission Of Radiation" इस परिभाषा से लेसर की कार्यप्रणाली स्पष्ट हो जाती है, जिसमें उत्सर्जक प्रकाश नहीं होता है, जो इसलिए फोटोनी है और इसका दिखाई पडना या ना पडना इसके तरंग धैर्य (वैवलेंथ) पर निर्भर करता है। यह उत्सर्जन सर्वप्रथम विद्युत चुंबकीय विकिरण से उद्दीपित होता है, जिसके फलस्वरूप एक ऐसी किरण निकलती है, जिसके प्रचाल (पैरामीटर)- आवृति, फेज, ऊर्जा - पूरी तरह एक जैसा होता है। अपने मूल आधार फोटोनी स्तर पर लेसर किरण अाधारण प्रकाश से भिन्न नहीं होती। यह उस फेज में उत्सर्जित होने वाले फोटॉर्न का पुनर वर्गीकरण है, जिनसे एक सुसंगत और शक्तिशाली किरण निकलती है। लेसर प्रकाश जैसी कोई चीज नहीं है, यह तो मात्र लेसर प्रभाव है जो प्रकाश पर लागू होता है।
लेसर थेरेपी (लेसर बिम) सूजन व दर्द कम करने में उपयोगी है। यह स्नायविक (लिगामेंट) लचीलापन को बढ़ाकर, इन्हें आराम पहुंचा कर तथा हड्डियों व ऊतकों के उपचार के जरिए मरीज को तेजी से स्वास्थ्य लाभ कराने की दृष्टि से भी उपयोगी है इस प्रकार लेसर थेरेपी मांस पेशियों के खिंच जाने, मोच आ जाने,
टेंडीनाइटिस, मांसपेशियों की जकड़न, टेनिस एल्बो, टखनों की सूजन, क्षतिज चोट (ट्रामेटिक ब्लोज), अर्थराइटिस और बरसिटिस में लाभ कारी है।
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