मेरुरज्जु (स्पाइनल कॉलम) में छोटी-छोटी 33 हड्डियां होती हैं, जो अत्यंत कुशलतापूर्वक खोपड़ी के निचले हिस्से से लेकर नीचे नितंब क्षेत्र तक पूरी तरह एक सीध में होती है। मेरुरज्जु ऊपर मस्तिष्क को साधती है, शरीर के मध्य में पशुर्का पिंजर (रीब केज) को सहारा देती है और नीचे श्रेणी (पेल्विक) को मिलाती है।
रीढ़ संबंधी विकार |
रीढ़ को मानव शरीर के ढांचे का भार सहने में सक्षम और लचीला होना चाहिए तथा भारी वजन पड़ने के बावजूद सभी दशाओं में झुकने व घूमने में समर्थ होना चाहिए। इसे खोखला भी होना चाहिए, जिससे नाजुक नशे व रक्त वाहिकाएं इसके अंदर से होकर गुजर सकें और इसके पर्शवों से बाहर निकल सके तथा चलने फिरने अंग संचालन आदि के दौरान क्षतिग्रस्त ना होने पाए और जीवन भर सुचारू रूप से काम करती रहे।
स्नायु व्यक्ति की कशेरुका को बांध कर रखते हैं मेरुरज्जु खोखली कशेरुकी नलिका से होकर नीचे की ओर जाती है। इसकी नसे प्रत्येक कशेरुका के पार्श्व में मौजूद खुली जगहों से बाहर निकलती है। शियाटीका नस, जो लैंबैर रीजन से निचले अवयवों तक पहली होती है, कमर में प्राय: तेज दर्द में शामिल होती है प्रत्येक कशेरुका के बीच जिलेटिनज केंद्र से निर्मित एक उपधानी (कुशन) होता है, जिसे डिस्क कहते हैं। यह शॉक अब्जॉर्बर के रूप में काम करता है और दो रेफ्रिजरेटर के बराबर वजन बर्दाश्त कर सकता है।
• सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस -
यह वह दशा है जब गर्दन की हड्डियां (ग्रेव कशेरुका) किस पर जाती है। सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस बड़ी उम्र वालों में आमतौर पर पाया जाता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कम उम्र वाले इस विकार से मुक्त हैं। वास्तव में आजकल यह विकार आयु संबंधी भेदभाव के बगैर हर किसी को अपनी चपेट में ले रहा है जिसका मुख्य कारण है-अस्वास्थ्यकर जीवन पद्धति और वह तरीका जिसमें मेरुरज्जु को रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। गलत ढंग से बैठना, वाहन चलाते समय निरंतर आगे की ओर झुके रहना, गर्दन झुका कर काम करना, दबाव व तनाव, दर्द व तनाव आदि के कारण इन सब का परिणाम गर्दन के सामने के भाग में दर्द और अकरम के रूप में मिलता है। दर्द और अकड़न के अलावा कंधे व हाथों में चमकने वाले दर्द भी इस रोग में होते हैं तथा ऐसा लगता है, मानो कोई सुईया चुभो हो रहा है। प्रायः चक्कर भी आ जाते हैं (बेसिलर धमनी की कमजोरी है मस्तिष्क को रक्त सप्लाई करने वाली बेसिलर या आधारी धमनी पर दबाव पड़ने के कारण)।कभी-कभी सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के मरीजों को कॉलर बेल्ट पहनने की सलाह दी जाती है, जो रोग से प्रभावित क्षेत्र को स्थिर बना देता है और इस तरह दर्द से आराम मिलता है। लेकिन शरीर के इस भाग के इस तरह स्थिर हो जाने से स्थाई रूप से कड़ापन पैदा हो सकता है और मांसपेशियां कमजोर पड़ सकती हैं।
उपचार -
- लगातार आगे झुक कर काम करने से बचना और इस तरह गर्दन को दबाव पड़ने से बचाना।
- गर्दन रीढ़ वह कंधों पर हल्की हल्की मालिश और इसके बाद गर्म व ठंडा अफ्यूशन या न्यूट्रल अफ्यूशन स्नान।
- अधिक जकड़न और दर्द होने पर ठंडी या गर्म सिकाई।
- हाथों में प्रतिबिंबित होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए कंट्रास्ट बाह स्नान।
- सिर व गर्दन की नियमित व्यायाम।
- समस्त कार्यों के दौरान सही मुद्राएं अपनाना।
• कमर के नीचे वाले हिस्से में दर्द -
अधिकांश व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी किसी ना किसी दर्द का शिकार हो ही जाते हैं। यह गलत मुद्राओं में उठने बैठने का ढंग है सिर दर्द के बाद यह कमर दर्द ही है जो दर्द का एक मुख्य कारण है। कमर दर्द का अनुभव करने वाले अधिकांश मरीज अन्यथा सामान्य जीवन बिताते हैं।तेज दर्द में औषधियों से आराम तो मिल जाता है या मांस पेशियां शिथिल पड़ जाती हैं, लेकिन इनसे दाद का उपचार नहीं हो पाता। अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने से यह दवाई लेने की आदत पड़ सकती है और इस तरह वास्तव में दर्द की बारंबारता में वृद्धि हो जाती है।
अक्सर ही दर्द बने रहने से शरीर की शक्ति कम होने लगती है, थकान व अवसाद बढ़ जाता है। कमर दर्द का निदान करने पर पाया गया है कि मरीजों में या निकले हिस्से का दर्द सामान्य तौर पर पाया जाता है। मनोवैज्ञानिक दबाव भी कमर के दर्द को बढ़ाने के लिए उत्तरदाई है। इसमें जकड़न के कारण कमर में लहरें उठने लगती हैं, जिनसे कमर दर्द होने लगता है।
रीड का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने, इस पर दबाव पढ़ने व अधिक समय तक बैठे रहकर काम करने की आदत के अलावा कमल की मांस पेशियों का कमजोर पड़ जाना, पेट का बाहर निकल आना (बाहर निकला हुआ पेट कमर की मांसपेशियों को आगे की ओर खींचता है, जिसके कारण कमर पर अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है), जरूरत से ज्यादा व्यायाम करना (जैसे जोगिंग एरोबिक्स इत्यादि), उम्र बढ़ने की प्रक्रिया भी कमर दर्द में अपना योगदान करती है।
वास्तव में कमर दर्द करीब 80 से 85 प्रतिशत मामलों में मांसपेशियों की कमजोरी, इन पर पढ़ने वाले दबाव इत्यादि के कारण तथा 15-20 प्रतिशत मामलों में शरीर के ढांचे की खामियों या अन्य बीमारियों जैसे ओस्टियोआर्थराइटिस, प्रोलेप्सड उत्तक कशेरुका डिस्क, लंबेर स्पोंडिलोसिस, स्पाइनल केनाल स्टेनोसिस, फेसेट ज्वाइंट सिंड्रोम तथा स्पोंडीलोस्थीसिस के कारण होता है।
खड़े रहने की तुलना में बैठे रहने से 40 प्रतिशत अधिक दबाव पड़ता है, जबकि लेटी हुई अवस्था में खड़ी अवस्था में पड़ने वाले दबाव के 25 प्रतिशत के बराबर कमी हो जाती है। छींकने, हंसने व खांसने से भी डिस्क पर दबाव बढ़ जाता है इसलिए कमर दर्द तेज हो जाता है।
उपचार -
कमर में बहुत तेज दर्द होने पर पहले 24-28 घंटों के दौरान निम्नलिखित बातों का सहारा देना चाहिए:- दर्द से प्रभावित हिस्सों को आराम देना चाहिए।
- थोड़े अंतराल से बारंबार बर्फ पैक रखना चाहिए।
- बीच-बीच में ठन्डे पेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
- दर्द से प्रभावित क्षेत्र को ऊंचा कर रखना चाहिए, जिससे की इसमें जमानत दूसरे भागों में जा सके।
इनके अलावा निम्नलिखित बातें भी ध्यान में रखनी चाहिए:-
- कमर के निचले हिस्से की हल्के हल्के मालिश और इसके बाद गर्म व ठंडे आएफ्यूशन या सिकाई करनी चाहिए।
- दर्द से प्रभावित भाग का पराबैगनी किरणों (इंफ्रारेड) उपचार और इसके बाद इस पर सीधे मिट्टी के लेप या ठंडे लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
- दर्द कम करने तथा निचले भागों में सुन्नता, झनझनाहट कम करने के लिए न्यूट्रल रीड स्नान करना चाहिए।
- पानी में इप्सम नमक मिलाकर 10 से 20 मिनट तक न्यूट्रल इमर्शन और स्नान करना चाहिए।
- 10:12 मिनट तक गर्म कटी स्नान करना चाहिए।
- कमर की मांसपेशियों की जकड़न दूर करने के लिए न्यूट्रल जेट मालिश, वर्लपूल (भंवर) स्नान तथा पानी के नीचे मालिश करनी चाहिए।
- ताप ऊष्मा से मांसपेशियों को विश्राम देने की दृष्टि से भाप स्नान भी उपयोगी रहता है।
- कमर को झुकाने वाले व्यायाम तथा इसे सही रूप में रखने का अभ्यास नियमित रूप से करना चाहिए। भारी वजन नहीं उठाना चाहिए तथा झटको से बचना चाहिए।
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