चिकित्सा के क्षेत्र में मुत्र विज्ञान एक अलग और विस्तृत क्षेत्र है,जिसके द्वारा महिला एवं पुरुष के मुत्र मार्ग एवम् विकारों संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करता है। इस विषय-क्षेत्र के लिए संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
सामान्यता प्राथमिक चिकित्सा के बाद जब डॉक्टर द्वारा बीमारी का सही सही पता लगा लिया जाता है तब वह डॉक्टर मरीज को उस बीमारी से संबंधित विशेषज्ञ के पास जाने की सलाह देता है।
यह विशेषज्ञ हमें मूत्र संबंधी संक्रमण से लेकर छोटी मोटी बातों के लिए भी परामर्श प्रदान करते हैं। इसके अलावा कोई अधिक गंभीर बीमारी या मूत्र पथ संबंधी समस्या की ठीक-ठाक स्थिति का पता लगाने के लिए विशेषज्ञ आपको अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन या MIR स्कैन की सलाह दे सकते है।
• मूत्रीय पथ -
इस पथ का गठन गुर्दों, यूरेटर (गविनी), मूत्राशय और मूत्रमार्ग से मिलकर हुआ है शरीर के दोनों गुर्दों में से प्रत्येक में प्रत्येक में 2 करोड़ से अधिक क्रियाशील इकाइयां हैं जो नेफ्रॉन कहलाती है। यह रक्त को छानकर इससे से लगभग 22 लीटर मूत्र अलग करती है, ताकि यह शरीर से बाहर निकल सके। गुर्दों को मूत्राशय के साथ जोड़ती है, जहां मूत्रमार्ग से बाहर निकलने पर मुत्र जमा होता है।
मूत्रीय लक्षण -
संक्रमण जुलन अवरोध की वजह से पैदा होने वाले लक्षणों का संबंध मूत्र त्याग से होता है।
1) रात के समय मूत्र त्याग की बारंबारता और ऐसा करने की जरूरत मूत्रीय पथ में संक्रमण होने का लक्षण है।
2) मूत्र त्याग करते समय दर्द या मूत्र मार्ग में जलन होने का संबंध मूत्राशय और पुरस्थ ग्रंथि (प्रोस्टेट) संबंधी विकारों से होता है।
3) बिस्तर में पेशाब करने का कारण मूत्रीय पथ में संक्रमण या मनोवैज्ञानिक हो सकता है।
4) मूत्रीय असन्यती : यह स्थिति गुर्दों या मूत्रीय पथ में संरचनात्मक कमियां, शारीरिक तनाव, संक्रमण या ओवर डिस्टेंडेड मूत्राशय से संबंधित मूत्र के संक्रमणीय या ड्रिब्लिंग से जुड़ी तत्कालिकत के कारण पैदा हो जाती है।
• मूत्रीय पथ का संक्रमण (UTI) -
इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: गुर्दों के संक्रमण का शिकार होने पर ऊपरी संक्रमण और मूत्राशय या मूत्र मार्ग के संक्रमण का शिकार होने पर निचले भाग का संक्रमण इनका तत्काल उपचार कराना जरूरी है।
मूत्रीय पथ में संक्रमण कई कारणों से अक्सर ही हो जाते है, जैसे जननांग में सफाई की कमी, गर्भावस्था, मूत्र मार्ग में पथरी बन जाना, मधुमेह, मूत्र मार्ग में अवरोध, पेशाब रोक कर रखने की आदत, जिस कारण यह जमा हो जाता है इत्यादि। पाईलोनेफ्राइटिस व ग्लोमेरूलोनेफ्राईटीस जैसे संक्रमण के गंभीर परिणाम निकलते हैं, जिनमें दोनों गुर्दे प्रभावित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं और चिकित्सा करना जरूरी हो जाता है।
गिविनी, मूत्रमार्ग और मूत्राशय में होने वाले अन्य दूसरे संक्रमणों का नीचे सुझाए गए उपायों को अपनाकर उपचार किया जा सकता है यह इनकी रोकथाम की जा सकती है।
अधिक मात्रा में पेय पदार्थों का सेवन करना तथा शरीर में पहुंचने और इससे निकलने वाले द्रव्यों पर नजर रखनी चाहिए।
सार्वजनिक मंत्रालयों एवं शौचालय का इस्तेमाल करते समय जननांग की सफाई का खास तौर पर ख्याल करें।
गर्भकाल के समय खासतौर से ध्यान रखना चाहिए।
दो-तीन दिन तक उपवास रखने और पर्याप्त मात्रा में पेय पदार्थ का सेवन करने से संक्रमण दूर हो जाएगा।
नियमित अंतराल पर पेट के निचले भाग पर मिट्टी लपेट का इस्तेमाल करने से जलन व खुजली कम हो जाती है।
बुखार का उपचार ठंडे फ्रिक्शन स्नान, स्पंज बाथ या छाती लपेट व माथे पर ठंडे लपेटा को नियमित इस्तेमाल से करना चाहिए।
15 से 20 मिनट की अवधि का गर्म कटी स्नान दर्द और जलन से छुटकारा दिलाने में सहायक होता है।
संक्रमण की तीव्रता के दौरान दिन में दो या तीन बार और बाद में सोने से पहले एक बार गीले कमर लपेट का इस्तेमाल करने की आदत डालनी चाहिए।
पेशाब की मात्रा में सुधार करने के लिए गुर्दा लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
कच्चे नारियल, जौ का पानी, धनिए का पानी या छाछ का अधिक अधिक मात्रा में सेवन करना लाभदायक है।
• पुरस्थ ग्रंथि (प्रोस्टेट ग्लैंड) का बढ़ जाना -
पुरस्थ ग्रंथि पुरुष के मूत्राशय की गिर्द होती है और यह मूत्र मार्ग का पहला भाग है। 60 वर्ष से अधिक की आयु के लोग में पुरस्थ ग्रंथि का बढ़ जाना एक सामान्य बात है। लेकिन इस बात का पता लगना जरूरी होता है कि यह वृद्धि किस प्रकार की है। आमतौर पर पुरस्थ ग्रंथि की वृद्धि अधिकतर आहानिकारक होती है। लेकिन बढ़ी हुई ग्रंथि की बायोप्सी से पुष्टि हो जाएगी कि यह कैंसर जनित तो नहीं है।
पुरस्थ ग्रंथि में वृद्धि के लक्षण हैं -
विशेषकर रात में बार बार पेशाब के लिए उठना, पेशाब कम और रुक रुक कर आना, जल्दी बाजी और तीव्रता। अगर यह लक्षण अधिक प्रबल नहीं है, तो आराम पाने के लिए निम्नलिखित साधारण उपाय किए जा सकते हैं।
- दिन में लगभग 9 से 10 गिलास पानी पीना अच्छा होता है।
- सुसंतुलित भोजन करना चाहिए, जिसमें फलों और सब्जियों का सलाद होना चाहिए।
- कब्ज तुरंत दूर करना चाहिए, व अन्यथा मलाशय पर पड़ने वाले दबाव से समस्या और गंभीर रूप धारण कर सकती है।
- इप्सम नमक मिले गर्म पानी से नहाना लाभकारी होता है।
- 15 से 20 मिनट तक गर्म व ठंडा कटि स्नान भी लाभदायक रहता है।
- मूत्राशय के ऊपर गर्म सिकाई करने से प्राय: पेशाब खुलकर आने में मदद मिलती है।
- मूत्र की मात्रा में व्रद्धि के लिए सप्ताह में 2-3 बार गुर्दा लपेट का इस्तमाल करना चाहिए।
- दिन में दो तीन बार गीले कमर लपेट का इस्तेमाल करने से पुरस्थ ग्रंथि की सूजन कम हो जाती है।
- पुरस्थ ग्रंथि की मालिश करने से भी सूजन कम हो जाती है।
- जौ का पानी, धनिए का पानी, कच्चे नारियल का पानी या छाछ का सेवन करने से पेशाब खुल कर आता है।
- रात को 8 बजे के बाद पेय पदार्थ नहीं लेने चाहिए।
• अपने लिए सही स्पेसिलिस्ट कैसे ढूंढे -
प्रत्येक रोगी के रोग का पता लगाने से ले कर एक अच्छे विशेषज्ञ के रिकंडमेशन तक की शुरुआत जनरल चेकअप के बाद ही होती है
परन्तु उपचार शुरू करने से पहले जरूरी है कि आप कुछ पहलुओं पर बारीकी से ध्यान दें जिस से आगे चलकर आपको उपचार में कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े।
नीचे कुछ बिंदु दर्शाए गए है -
- सर्वप्रथम किसी विशेषज्ञ का रेफरल मिलते ही अपने करीबियों से इस बारे में बात करे।
- विशेषज्ञ के एक्सपीरियंस और ख्याति के बारे में पता लगाएं।
- विशेषज्ञ संबंधित अस्पताल मिलने वाली सुविधाओं के बारे में पता लगाएं।
- उपचार शुरू करने के पूर्व विशेषज्ञ के जेंडर का ध्यान रखें अगर आप एक महिला ने तो किसी महिला विशेषज्ञ से मिलना उचित होगा।
- उपचार के पहले संबंधित अस्पताल में अपनी बीमा पॉलिसी को लेकर बात करें, एवं संतुष्टि के स्तर को मापे।
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