हेलो दोस्तों आज हम अपने साथ आपको भी लेकर चलेंगे जबलपुर के एक और महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल जिससे काफी लोगों की आस्था जुड़ी हुई हैं यही नहीं यह दिगंबर जैन पंथ का लगभग 500 साल पुराना एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। जोकि हम सभी को यह बताता है कि मनुष्य अपने दृढ़ निश्चय से कुछ भी कर सकता हैं।
Pisanhari ki madhiya मेरा ख्याल है कि अब तक आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित पिसनहारी की मढिय़ा के बारे में जोकि एक प्राचीन स्थल होने के साथ-साथ अपनी कलाकृति, खूबसूरती और अपने हरियाली भरे माहौल के लिए भी प्रसिद्ध है। |
पिसनहारी की मढिय़ा -
यह जमीन से 300 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी में स्थित है यहां जाने के लिए लगभग 250-300 के आस पास या अधिक घुमावदार सीढ़ियां बनाई गई हैं सीढ़ियां चढ़ते ही आपको एक भव्य द्वार नजर आएगा जोकि मंदिर का प्रवेश द्वार है।
यह लगभग 18 एकड़ में फैला हुआ एक विशाल परिसर है जहां आपको 24 छोटे-छोटे मंदिर बने हुए देखने में लेंगे जिनमें संगमरमर की 100 से ज्यादा मूर्तियां एवं कई अन्य अनूठी कलाकृतियां भी शामिल है। आपको बता दें कि यह मंदिर अपनी अनूठी कलाकृति के लिए भी प्रसिद्ध है। जो कि संगमरमर पर भी की गई है।
मंदिर में 55 फीट ऊंची बाहुबली की मूर्ति और नंदीश्वर द्वीप भी आकर्षण का केंद्र है। आपको यहां कुछ प्राचीन छोटी-छोटी गुफाएं भी देखने मिलेंगी जिसका यह अर्थ होता है। कि पहले भी यहां ऋषि मुनियों का बसेरा रहा करता था।
इसके साथ ही मंदिर परिसर में आचार्य श्री विद्यासागरजी के आशीर्वाद से वृद्धाश्रम, औषधालय, श्री ब्राह्मी विद्या आश्रम, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान आदि कई जनकल्याण से जुड़ी योजनाएं कार्यरत हैं।
पिसनहारी माता -
14 शताब्दी में चक्की चला कर अपना पोषण करने वाली गरीब वृद्ध महिला द्वारा मंदिर बनवाने के निश्चय की बात अपने आप में आश्चर्यचकित कर देने वाली है।उन्होंने अपने प्रयासों से एक मंदिर का निर्माण भी कर लिया जिनमें उनके द्वारा अर्जित किए गए धन के अलावा बहुत ही अधिक मेहनत भी थी।
बाद में लोगों द्वारा उस वृद्ध महिला के इस समर्पण भाव को नमन किया जाने लगा और इन्हें पिसनहारी माता की संज्ञा दी गई इसके साथ ही आस पास के उस इलाके को भी इसी नाम से जाना जाने लगा।
पिसनहारी की मढिय़ा का इतिहास -
कहा जाता है, लगभग 500 से 650 साल पहले मध्य प्रदेश जबलपुर में मदन महल की पहाड़ियों के पास एक अन्य पहाड़ी में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला जो अपने हाथों से चक्की चला कर आटा पिसती और अपना भरण पोषण एवं जीवन यापन करती थी।
कुछ समय बाद उनकी मुलाकात एक ऋषि मुनि से हुई जिनकी बातें एवं उपदेशों को सुनकर वह वृद्ध महिला बहुत ही प्रभावित हुई एवं उन्होंने निश्चय कर लिया की वह एक भव्य मंदिर का निर्माण करेगी एवं दीन दुखियों को सहारा देंगी।
तत्पश्चात वृद्ध महिला हमेशा की तरह चक्की चला कर एवं आटा पीस कर धन अर्जित करती और अपनी प्रारंभिक अब आवश्यकताओं को पूरा कर अपने भरण-पोषण के बाद जो पैसे बचते उन्हें मंदिर निर्माण एवं भूखों को भोजन कराने में लगा देती।
बाद में आम जन द्वारा उनके द्वारा किए गए इन कार्यों को सराहा गया एवं इनके समर्पण को यादगार बनाने के लिए उनके द्वारा चलाई जाने वाली चक्की के हिस्सों को आज भी संजोकर रखा गया है।
यहां 14 वीं सदी से संबंधित कुछ शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं जिन्हें अब तक सही ढंग से पढ़ा नहीं जा सका है।
पिसनहारी की मढिय़ा कैसे जाए -
वैसे तो यह मंदिर बदलते समय और बढ़ते शहरी करण के साथ शहर के बीचो बीच स्थित हो गया है।मंदिर के नीचे से जाने वाली सड़क जबलपुर के मेडिकल हॉस्पिटल (नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल हॉस्पिटल) को शहर के मुख्य मार्ग से जोड़ती है।
जबलपुर मुख्य रेलवे स्टेशन से पिसनहारी की मढिय़ा की दूरी 10 किलोमीटर , बस स्टैंड से 5 किलोमीटर एवं निकटतम हवाई अड्डा डुमना एयरपोर्ट से भी यहां आने का लगा हुआ रास्ता है।
अगर हम अपने निजी वाहन से यहां आना चाहते है तो हमें शहर के मुख्य भाग शास्त्री ब्रिज से मदन महल की ओर जाना होगा मदन महल से मेडिकल हॉस्पिटल के बीच पिसनहारी की मढिय़ा स्थित है इसकी सही लोकेशन पाने के लिए हम गूगल मैप्स की मदद भी ले सकते हैं।
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