स्वामी विवेकानन्द एक महान व्यक्तित्व, राष्ट्रभक्त, महापुरुष और हिंदूवादी संत थे इन्होंने संपूर्ण विश्व को अपने तेज से प्रभावित किया भारत में इनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आज हम सभी Onlinehitam के इस पोस्ट में स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध के माध्यम से जानेंगे यह निबंध स्कूल, कॉलेज, भाषण प्रतियोगिताओं आदि के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकता है।
विवेकानन्द निबंध |
विवेकानन्द जी पर निबंध 500 शब्दों में |
2022 Swami Vivekananda Nibandh In Hindi[500 Words]
प्रस्तावना-
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था हर वर्ष इनके जन्म दिवस 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इन्हें एक महान संत महापुरुष दार्शनिक और देशभक्त के रूप में जाना जाता है इनकी ख्याति विदेशों तक फैली हुई थी। स्वामी विवेकानंद एक बहुत ही अच्छे वक्ता भी थे इन्होंने शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में अपनी अपने 2 मिनट के भाषण में ही अपनी प्रतिभा का सबूत दे दिया था।11 सितम्बर 1893 को इनके द्वारा कहे गए शुरुआती कुछ शब्दों को सुनकर ही विश्व धर्म संसद सम्मेलन में आए लोग खुद को तालियां बजाने से नहीं रोक पाए थे तत्पश्चात इन्होंने संपूर्ण विश्व के लोगों को भारत और हिंदू धर्म से अवगत कराया।
जो लोग पहले भारतीय मूल के लोगों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। अब वही लोग स्वामी विवेकानंद के कथनों से प्रभावित होने लगे थे उन्हें बार-बार भाषण के लिए आमंत्रित किया जाने लगा था और इसी तरह स्वामी विवेकानंद ने 4 साल तक विदेश में रहकर भारत व हिंदुत्व का भरपूर प्रचार किया था।
स्वामी विवेकानंद का परिवार व शिक्षा -
स्वामी विवेकानंद के पिता श्री विश्वनाथ कोलकाता हाईकोर्ट में वकील के तौर पर नियुक्त थे एवं उनकी माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला की इनकी स्वामी विवेकानंद के अलावा और आठ संताने भी थी।स्वामी विवेकानंद के जन्म पश्चात उनके माता-पिता ने इनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा था। नरेंद्र नाथ बचपन से ही बहुत मेधावी छात्र थे परंतु इनकी पढ़ाई काफी रुक रुक कर हुई इन्होंने अपनी पढ़ाई का ज्यादातर भाग अपने घर पर ही पढ़कर पूरा किया था तत्पश्चात इन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्ययन अपनी शिक्षा को पिता की मृत्यु हो जाने के कारण विराम दिया।
स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व और विचार -
स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व उन्हें उनके माता-पिता से ही प्राप्त हुआ था कहा जाता है कि जिस तरह उनके पिता तर्क वादी थे ठीक उसी तरह स्वामी विवेकानंद के पास भी अनेकों सवाल होते थे। एवं इनकी माता जो आध्यात्मिक स्वभाव की थी उनसे ही इन्हें अध्यात्म, ध्यान, योग आदि को ग्रहण किया तत्पश्चात इन्होंने अपने आप को अध्यात्म की ओर ही समर्पित करने का फैसला कर पहले ब्रह्म समाज और फिर श्री रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य बने जहां से इनके साधु जीवन की शुरुआत हुई।इनके विचार बहुत ही राष्ट्रवादी और धार्मिक थे इन्होंने लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर संपूर्ण भारत का भ्रमण भी किया था। स्वामी विवेकानंद के कथन,भाषण और विचारों ने कई लोगों को प्रभावित किया उनमें एक नई ऊर्जा का संचार किया जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानी भी शामिल है।
उपसंहार -
स्वामी विवेकानंद को हम सभी एक महापुरुष के रूप में जानते हैं जिनके जन्मदिवस को 1985 के बाद से राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा आज भी स्वामी विवेकानंद युवाओं के लिए एक प्रेरणा का आधार है।स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही निपुण व कर्मठ योगी थे और बेलूर स्थित एक मठ में स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में गहन ध्यान की अवस्था में अपने प्राण त्याग दिए।
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प्रस्तावन-
भारत में अनेकों को महापुरुषों ने जन्म लिया है उनमें से ही एक है स्वामी विवेकानंद जिन्हें उनके अद्भुत कार्य धार्मिक निष्ठा व ज्ञान के लिए आज भी याद किया जाता है अनेकों अनेक युवाओं के लिए वे आज भी एक आइडल के रूप में अपना स्थान रखते हैं।स्वामी विवेकानंद का स्थान और परिवार-
स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था इनका बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। इनके पिता विश्व नाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के एक वकील थे। और इनकी माता भुवनेश्वरी देवी थी।नरेंद्र नाथ दत्त अपने माता पिता की आठ संतानों में से एक थे। बचपन से ही बहुत मेधावी और होशियार थे पढ़ाई के अलावा इन्हे भक्ति,ध्यान, अभिनय, कुश्ती जैसे खेलों में बहुत दिलचस्पी थी।।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा-
महापुरुष स्वामी विवेकानन्द जी लडप्पं से ही काफी बुद्धि मान थे बावजूद इसके उनकी शिक्षा में काफी रुकावटें हुई और उन्होंने अपनी पढ़ाई बहुत रुक रुक कर पूरी की एवं अपनी पढ़ाई का ज्यादा समय उन्होंने घर में ही पढ़ाई कर के बिताया था।तत्पश्चात उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्ययन को पूरा किया उनकी खास रूचि दर्शनशास्त्र में थी।विवेकानंद बचपन से ही अपने मन की आत्म शांति के लिए व्याकुल थे और पिता की मृत्यु होने पर उन्होंने अपनी पढ़ाई पर विराम लगाया और ब्रम्ह समाज से जा जुड़े परंतु वह भी उन्हें उनके प्रशनो के उत्तर नहीं मिले।
इस सब के बाद स्वामी विवेकानंद ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी श्री रामकृष्ण पमहंस के बारे में सुना था और वे उनसे मिलने पहुंचे पुजारी जी से मिलने की पश्चात विवेकानंद पर श्री रामकृष्ण का बहुत गहरा असर हुआ विवेकानंद जी उनसे व उनके आध्यात्मिक ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए और जल्दी ही उनके शिष्य बन गए।
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स्वामी विवेकानंद के गुरु -
विवेकानंद बचपन से ही धार्मिक प्रवत्ति वाले थे श्री रामकृष्ण परमहंस जी से मिलने के बाद इनका आध्यात्मिक और धार्मिक झुकाव और बढ़ गया उनके अंदर के उमड़ने वाले प्रश्नों का अंत हुआ और जल्दी ही विवेकानंद ने उन्हें अपने गरू के रूप में स्वीकार कर अपनी साधु जीवन शुरुवात किया।श्री रामकृष्ण को अपना गुरु स्वीकार करने के बाद इनका नाम नरेंद्र दत्त से विवेकानंद हुआ स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरु भक्त थे उन्हें सारी सफलताएं और सिद्धि को प्राप्त करने के बाद भी वे अपने गुरु को नहीं भूले और उनका नाम रोशन करते हुए श्री रामकृष्ण मिशन की शुरुआत की।
स्वामी विवेकानंद द्वारा गए कार्य -
स्वामी विवेकानंद को एक महापुरुष के रूप में जाना जाता है इन्होंने राष्ट्र के प्रति अनेकों ऐसे कार्य किए जिसकी ख्याति देश से लेकर विदेशों तक पहुंची।अपने साधु जीवन की शुरुआत करने के बाद वह अपने अन्य साधु भाइयों के साथ बुरा नगर स्थित मठ में रहने लगी और कुछ दिनों बाद उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण करने का निर्णय लिया तत्पश्चात वे भारत की कई शहरों का भ्रमण करने के बाद दक्षिणी छोर के तिरुवंतपुरम शहर पहुंचे जहां उनसे शिकागो में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने का आग्रह किया गया और स्वामी विवेकानंद ने शिकागो जाने का निर्णय लिया।
स्वामी विवेकानंद को दी गई उपाधियां-
स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र दत्त था और ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद को विवेकानंद की उपाधि खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने दी थी।स्वामी विवेकानंद के विचार -
जैसा कि हम सभी ऊपर जान चुके हैं कि स्वामी विवेकानंद बचपन से ही आध्यात्मिक मनोवृति के थे उनकी रुचि हिन्दू धर्म और शास्त्रों में थी वे व्यायाम, शास्त्रीय संगीत, कुश्ती आदि में विशेष रुचि रखते थे।स्वामी विवेकानंद ने अपने राष्ट्रवादी विचारों एवं भाषणों से लोगों का ध्यान आकर्षित किया था इनके बारे में सी राजगोपालचारी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। स्वामी विवेकानंद जी के धर्म और राष्ट्र के प्रति लिखे गए लेखों से बाघा जतिन, बालगंगाधर तिलक, सुभाष चन्द्र बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानी भी प्रभावित हुए।
स्वामी विवेकानंद का अंतिम समय -
शिकागो सम्मेलन के बाद स्वामी विवेकानंद अपने भाषणों के लिए प्रसिद्ध हो गए उन्होंने एक लंबा समय विदेश में भी बिताया था जहां लोग उन्हें बार-बार उनके भाषणों को सुनने के लिए आमंत्रित किया करते थे कुछ ही समय में स्वामी विवेकानंद की ख्याति उनसे पहले ही पूरे विश्व समेत भारत तक भी पहुंच गई और जब स्वामी विवेकानंद भारत लौटे तब वे एक ऐसा व्यक्तित्व बन चुके थे जिन्होंने भारत हिंदू धर्म का नाम पूरे विश्व में रोशन किया था।इनकी मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद एक अद्भुत योगी भी थे जो कठिन से कठिन ध्यान मुद्रा करने में सक्षम थे। कहां जाता है इनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित एक मठ हुई थी उन्होंने अपने सहयोगियों को यह आदेश दिया था कि उन्हें अपने ध्यान के समय कोई भी व्यवधान नहीं चाहिए और ऐसा माना जाता है कि ध्यान के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।।
उपसंहार -
स्वामी विवेकानंद न सिर्फ केवल एक महापुरुष के रूप में जाने जाते हैं बल्कि वे गुरु भक्ति के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी दयनीय पारिवारिक स्थिति होने के बाद भी गुरु के प्रति अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण किया।वे एक सच्चे देशभक्त दार्शनिक और महान संत थे जिन्होंने दुनिया को भारतीय संस्कृति से अवगत करवाया। स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को आज भी युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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स्वामी विवेकनन्द पर 10 वाक्य (10 लाइन में निबंध) -
- स्वामी विवेकानंद एक प्रख्यात वक्ता साधु और देशभक्त भी थे।
- उनका स्वभाव उनकी माता-पिता की देन थी उनकी माता एक धार्मिक विचारों वाली महिला थी जबकि उनके पिता तर्क वितर्क करने वाले थे जो पेशे से वकील थे।
- इन्हे इनकी गुरु भक्ति के लिए भी जाना जाता है।
- इनकी रूचि भारतीय धर्म शास्त्रों और साहित्य एवं कुश्ती आदि में थी।
- स्वामी विवेकानंद 1893 शिकागो सम्मेलन में भाग लेकर सारे विश्व को भारत और हिंदुत्व का बोध करवाया था।
- प्रत्येक वर्ष को इनके जन्म दिवस 12 जनवरी
- को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- अनेकों ऐसे स्वतंत्रता सेनानी भी थे जो इनके द्वारा लिखे गए लेखों को पढ़कर खुद में एक नई ऊर्जा का भाव महसूस करते थे।
- श्री रामकृष्ण परमहंस जी से मिलने के बाद इनके जीवन की असली साधु यात्रा शुरू हुई।
- इनके द्वारा रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
- अपनी घरेलू समस्याएं होने के बाद भी विवेकानन्द ने अपने गुरु की गुरु भक्ति में कोई कमी नहीं की।
- श्री रामकृष्ण परमहंस भी विवेकानंद की गुरु भक्ति से प्रसन्न थे एवं इनकी मृत्यु के पश्चात विवेकानंद की उनके शिष्यों के प्रमुख बने।
FAQ -:
Q.1 स्वामी विवेकानन्द अमेरिका की यात्रा का
निश्चय कब किया?
ANS- 31 मई 1893
Q.2 विवेकानंद विदेश यात्रा का खर्च किस ने
देना स्वीकार किया।
Ans- खेतड़ी के दीवान जगनमोहन लाल
द्वारा।
Q.3 विश्व धर्म सम्मेलन में विवेकानंद के किन
शब्दों में 2-3 मिनट तलिया बजती रही
थी।
Ans- 'सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका’
Q.4 स्वामी विवेकानन्द जी की जयंती कब
होती है।
Ans- 12 जनवरी "राष्ट्रीय युवा दिवस"
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