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होली के त्यौहार को किसी भी पहचान की जरूरत नहीं है यह अपने आप में एक ऐसा त्यौहार है जो सभी धर्म और जाति कि लोगों को एक साथ लाने का काम करता है सभी में मित्रता और शांति का भाव पैदा करता है।
Onlinehitam कि इस पोस्ट के माध्यम से एक निबंध के रूप में आज हम सभी होली के महत्व को समझने की कोशिश करेंगे यह निबंध विभिन्न कक्षाओं 3,4,5,6,7,8,9,10 के छात्रों हेतु बहुत ही उपयोगी होगा और भाषण व निबंध प्रतियोगिताओं में भी इसका उपयोग किया जा सकेगा।
होली |
होली पर निबंध 300 शब्दों में (Holi Essay In 300 Words) -
होली का त्यौहार विश्व प्रसिद्ध है यह त्यौहार न केवल भारत के हर धर्म व जाति के लोग घुल मिलकर बनाते हैं बल्कि विदेश के लोग भी यहां आकर होली के इस महा त्योहार को मनाते हैं। भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है और यही विभिन्नताएं होली के त्यौहार में भी नजर आती हैं यहां अलग-अलग बोली भाषा परंपराओं के हिसाब से होली का त्योहार मनाने का ढंग थोड़ा बहुत बदल जाता है। ब्रज की होली और लठ मार होली कुछ प्रचलित होली खेलने के तरीकों में से एक है। मगर होली मनाने का मूल भाव नहीं बदलता जोकि बुराई पर अच्छाई की जीत एवं प्यार और मैत्री भाव को बढ़ाने पर आधारित होता है।होली के त्यौहार की शुरुआत होली के एक दिन पहले ही हो जाती है जिसे होलिका दहन कहा जाता है और होलिका दहन के अगले दिन होली रंग उत्सव (धुरेडी) मनाया जाता है।
होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है हिरण्यकश्यप के आदेश पर उसकी बहन होलीका प्रहलाद को आग में जलाने की मंशा से प्रहलाद के साथ चिता में बैठ गई कहा जाता है कि होलिका को आग में ना जलने का वरदान मिला था। लेकिन प्रहलाद की ईश्वर भक्ति के आगे होलिका का वरदान भी काम नहीं आया और वरदान प्राप्त होलिका खुद भी जल कर भस्म हो गई। और ऐसा माना जाता है कि, इन्हीं के नाम पर होली के त्योहार का नाम भी पड़ा।
महिलाए होली के त्योहार के लिए खास खाने पीने के पकवान जैसे गुजिया, पेडे, जलेबी, जैसे पकवान कुछ दिनों पहले ही बना कर तैयार कर लेती है होली के दिन ठंडाई, भांग आदि का भी खास महत्व होता है।
सभी छोटे बड़े एक दूसरे को आदर पूर्वक होली कि शुभकामनाओं के साथ रंग गुलाल लगते है और छोटे अपने बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करते है।
होली पर निबंध (Essay on holi in hindi)
प्रस्तावना -
होली भारत के प्रमुख बड़े त्यौहारों में से एक है। होली मुख्यत रंगो का त्यौहार है होली में सूखे रंग गुलाल और पानी वाले रंग को एक दूसरे पर डालने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। होली की लोकप्रियता भारत से ले कर विदेशो तक फैली हुई है। होली की परंपरा का अंदाज़ा आप हम्पी में मिले 16 वीं सदी के अभिलेख से भी लगा सकते है जिसमें होली का वर्णन मिलता है।होली में बड़े छोटे सभी मिल कर हर्ष उल्लास के साथ होली का त्यौहार मानते है भारत में अलग-अलग जगह अलग-अलग अंदाज़ में होली मनाई जाती है मगर होली का संदेश सिर्फ एक ही होता है प्यार ,भाईचारा बढ़ाना और सारे गिले शिकवे मिटा कर प्रेम पूर्वक रहना है।
होली की शुरुआत -
भगवान विष्णु द्वारा हिरण्याक्ष के वध से क्रोधित होकर भगवान से बदला लेने कि मंशा से हिरण्यकश्यप नाम का आसुरी प्रवृति का राजा जो हिरण्याक्ष का भाई भी था।हिरण्यकश्यप ने कड़ी तपस्या के बाद भगवान से वरदान स्वरूप मांगा की उसे -
ना कोई इंसान या कोई जानवार,
ना ही किसी अस्त्र या शस्त्र से,
ना घर के बाहर ना अन्दर,
ना ही दिन में और ना ही रात में,
ना ही धरती में ना ही आकाश में,
उसकी मृत्यु का कारण कोई ना बने इतना बड़ा वरदान पा कर उसमे अहंकार आ गया और आगे जा कर वह खुद को ही भगवान समझ ने लगा।
उसने अपने पूरे राज्य में भगवान की भक्ति व पूजा यज्ञ पर रोक लगा दिया। उसका आदेश ना मानने वालो को मृत्यु दंड भी देता मगर आगे जा कर उसका प्रहलाद नाम का पुत्र हुआ जो भगवान विष्णु का परम भक्त बना और राजा की हजार कोशिश और प्रताड़ना के बाद भी वह
अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से नहीं रोक सका
और अंत में क्रोधित हो कर हिरण्यकश्यप ने ही अपने पुत्र को मृत्यु दण्ड देने का निश्चय किया परन्तु अपने पुत्र को कई प्रयासों के बाद भी मृत्यु नहीं दे सका और प्रहलाद कि भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और भी प्रबल होती गई।
अंत में हिरण्यकश्यप में अपनी बहन होलिका को बुलाया , होलिका को आग में भी ना जलने का वरदान मिला था । जिसका फायदा ले कर हिरण्यकश्यप ने होलिका को प्रहलाद के साथ चिता में बैठने का आदेश दिया मगर प्रहलाद की भक्ति के आगे होलिका का वरदान भी काम नहीं आया और वरदान प्राप्त होलिका भी चिता में जल कर राख हो गई और भगवान नाम का स्मरण करते हुए प्रहलाद बच गया।
यही से होली की शुरुआत मनी जाती है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
होली में रंगों का महत्त्व -
होली में रंगों के महत्व कि शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। मथुरा और वृंदावन में खेली जाने वाली होली राधा और कृष्ण के प्यार की कहानी और अनेकों रास लीलाओं से जुड़ा हुआ है जिसमें बसंत महीने के मनमोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डाल कर गर्मियों के मौसम का स्वागत किया जाता है।होली का त्यौहार मनाने के लिए देश विदेश से लोग वृंदावन और मथुरा पहुंचते है जहा की लट्ठ मार होली विश्व प्रसिद्ध है।
होलिका दहन -
होलिका दहन मनाने की मूल वजह बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रेरणा पर आधारित है। भारत में मनाए जाने वाले कई त्यौहारों की तरह होलिका दहन या छोटी होली भी सदियों पूर्व से मनाई जा रही है । हम्पी में होली संबंधित चित्र भी पाए गए है , जिसमें होलिका दहन में जलाई जाने वाली अग्नि को पवित्र व अच्छाई का प्रतीक माना जाता है इस अग्नि में सभी बुरी , नकारात्मक शक्तियों का विनाश होता है और अगले दिन होली मनाई जाती है।इस साल होलिका दहन 17 मार्च 2022 को मनाया जाएगा।
होलिका दहन कैसे बनाए-
होलिका दहन के दिन किसी भी शुभ काम नहीं किया जाता।
हर साल के फाल्गुन पूर्णिमा वाले दिन ही होलिका दहन किया जाता है। इस कार्य के लिए प्रदोष काल का समय सबसे उत्तम माना गया है। हालाकि कई बार होलिका जलाने के समय में अंतर आ जाता है। मगर इस बार शाम ढलते ही आप होलिका दहन कर सकते है
होलिका दहन की पवित्र अग्नि में पीली राई (पीली सरसों) का भी विशेष महत्व है।
कहा जाता है कि होलिका की अग्नि में पीली राई अर्पित करने से मां महालक्ष्मी की कृपा होती है।
होलिका दहन मुहूर्त –
17 मार्च 2022, गुरुवार को
09:20 शाम से 10:31 रात तक
इस वर्ष होलिका दहन का कुल समय लगभग 1 घंटा और 10 मिनट का होगा।
होलिका दहन क्यो बनाया जाता है -
होलिका दहन की प्रथा के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलन में है जिनमे से सबसे अधिक प्रचलित है हिरण्यकश्यप और प्रहलाद, शिव पार्वती और कामदेव की कहानी ।हिरण्यकश्यप और प्रहलाद -
हिरण्यकश्यप नाम आसुरी प्रवती के राजा ने कड़ी तपस्या के बाद भगवान से एक वरदान प्राप्त किया और आगे जा कर वह खुद को ही भगवान समझ ने लगा।उसने राज्य में भगवान की भक्ति वा पूजा पर रोक लगा दिया ऐसा मा करने वाले को मृत्यु दंड भी देता मगर आगे हा कर उसका प्रहलाद नाम का पुत्र हुए जो भगवान का परम भक्त बना और राजा की हजार कोशिश के बाद भी वह ना तो अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटा सका और ना ही उसे मृत्यु दे सका।
अंत में अपनी बहन होलिका को बुलाया जिसे आग में भी ना जलने का वरदान प्राप्त था।
और प्रहलाद को होलिका के साथ चिता में बैठा कर चिता प्रज्वलित की गई मगर प्रहलाद की भक्ति का असर था जो वरदान प्राप्त होलिका जल कर राख हो गई और प्रहलाद बच गया । और यही से होलिका दहन की शुरुआत हुई
शिव पार्वती और काम देव -
हिमालय पुत्री पार्वती भगवान शिव से विवाह की इक्चुक थी शिव जी के काफी समय से तपस्या में लीन होने के कारण पार्वती कुछ नहीं कर पा रही थी और तभी उन्होंने अपनी मदद हेतु काम देव को बुलाया की वे अपने प्रेम बाड को चला कर शिव कि तपस्या भंग करे और शिव जी पार्वती को देखे और पार्वती की तपस्या पूरी हो और उन्हें भगवान शिव जैसा वर प्राप्त परन्तु कामदेव का बाड़ लगते ही भगवान शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिसके ताप से कामदेव भस्म हो गए आगे चाल कर भगवान शिव का पार्वती जी के साथ विवाह हुआ और कामदेव को भी पुनः जीवन प्राप्त हुआ।कथा के अनुसार काम देव के भस्म होने को होलिका दहन और शिव विवाह पश्चात पुनः जीवित करने को होली के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक मान्याओं के आधार पर होलिका दहन के दिन क्या नहीं करना चाहिए-
- होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थ का प्रयोग खाने के लिए नहीं करना चाहिए।
- होलिका दहन के समय सिर ढंककर (दुपट्टा या रुमाल सिर में ले कर) ही पूजा करनी चाहिए।
- नवविवाहित महिलाओं को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
- सास-बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
- इस दिन को भी शुभ काम नहीं करना चाहिए।
होली में क्या करे -
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली का त्यौहार तीन दिनों का होता है। मगर बदलते समय के साथ होली का त्यौहार सिमट कर एक या दो दिन का रह गया है।
आधुनिक समय में भी होली मानने का उत्साह और उसकी मान्यता के कमी नहीं आई है आज भी परिवार से सभी छोटे बड़े मिल कर होली कि तैयारियों में लग जाते है, ट्रे या थलो में रंग सजाए जाते है। घर की महिलाएं मेहमानों के स्वागत के लिए मिष्ठान और पकवान तैयार करने मै लग जाती है। वहीं बच्चे पिचकारियों में रंग भर कर खेलना शुरू भी कर देते है।
इसी तरह होलिका दहन के दिन मोटी बल्लियों और सुखी लकड़ियों को चौक चौराहों पर रख कर रात की होलिका दहन की तैयारियां की जाती है।
होली में भांग एवं ठंडाई का का भी बहुत महत्व है कई जगहों में इन्हे आज भी प्रयोग में लाया जाता है।
इसी तरह होलिका दहन की रात होलिका का दहन कर सच्चाई की बुराई पर जीत याद किया जाता है होलिका में जलाई जाने वाली पवित्र अग्नि में लोग पीली सरसो डाल कर महालक्ष्मी की आराधना करते है होलिका के समक्ष कई जगह कथा पढ़ने को भी शुभ माना जाता है।
अगली सुबह धुरेहड़िं को सुबह बड़ों से आशीर्वाद ले कर मस्तक में सूखे रंगो व गुलाल का तिलक लगा कर होली खेलना शुरू करते है,
जिसमें सभी बड़े छोटे मिल कर एवम् सारी इष्या , द्वेष भावना को भूल कर पूरे उत्साह से रंगों का ये त्यौहार मानते है।
होली पर ध्यान रखने योग्य कुछ बातें (सावधानियां)-
- होली में रंगों का बहुत महत्व होता है इसलिए सबसे पहले हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले रंग पूरी तरह प्राकृतिक हो केमिकल द्वारा बनाए जाने वाले रंगों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- होली खेलने से व खेलते समय अपनी स्किन और आंखों का ख्याल रखें स्किन में ऑयल या बॉडी लोशन का प्रयोग करें।
- होली में गीले व पक्के रंगों की जगह सूखे रंगों का और कम पानी का प्रयोग करना चाहिए इससे हमारी सेहत को नुकसान भी नहीं होता और पानी के दुरुपयोग से भी बचा जा सकता है।
- बच्चों के साथ होली खेलते समय उनका खास ख्याल रखना चाहिए जिससे उनकी आंखों का मुंह में कोई रंग ना पहुंच पाए।
- होली के दिन शराब आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उपसंहार -
होली मिलजुल कर मनाया जाने वाला एक त्यौहार है होली में विभिन्न तरह के अलग-अलग रंग वाले कलरों का प्रयोग किया जाता है जिसे अनेकता में एकता के रूप में भी समझा जा सकता है। इस दिन सभी नाते रिश्तेदार और बड़े बुजुर्ग, दोस्तों आदि से पुराने सभी द्वेष भूल कर हंसी खुशी मिलना चाहिए।होली पर निबंध दस लाइन में निबंध (होली पर 10 वाक्य) -
- होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसका इतिहास सदियों पुराना है।
- होली को रंगों का त्योहार भी कहा जाता है इस दिन सभी छोटे बड़े मिलकर होली खेलते हैं एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाते हैं।
- होली के त्यौहार से पहले फागुन के गीत गाए जाते हैं।
- होली से एक दिन पहले होलीका दहन किया जाता है जिसमें मोटी बल्लियों लकड़ियों आदि को जला कर बुराई पर अच्छाई की विजय को याद किया जाता है।
- होली पर हर घर में गुजिया, पपड़ी, जलेबी जैसे मीठे व नमकीन पकवान बनाए जाते है।
- होली के दिन ठंडाई, भांग आदि का प्रयोग भी किया जाने कि परम्परा है।
- होली में सूखे व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो हमे नुकसान भी ना पहुंचाए और पानी की बचत भी हो।
- भारत में मनाई जाने वाली होली दुनिया भर में फेमस है होली का त्यौहार मानने विदेशों से भी पर्यटक भारत पहुंचते है।
- इस दिन अल्कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- होली खेलने से पहले अपने बालों व स्किन पर अच्छी तरह तेल लगा लेना चाहिए जिससे हमारी स्किन व बालों को नुकसान ना पहुंचे एवं अपनी आंखों का भी ध्यान रखना चाहिए।
FAQ -
Q1. 2022 में होली कब मनाई जाएगी?
Ans- 18 मार्च 2022
Q2. होलिका(Holika) कौन थी?
Ans- हिरण्यकश्यप की बहन और विष्णु भक्त
प्रहलाद की बुआ थी।
Q3. इस त्योहार का नाम होली कैसे पड़ा?
Ans- आग में भी ना जलने का वरदान पाने
वाली होलिका के नाम पर इस त्योहार
का नाम होली पड़ा ।
Q4. होली को अन्य कीन नामों से जाना जाता
है?
Ans- इस त्योहार का विश्व प्रसिद्ध नाम होली
ही है विदेशों में भी से त्योहार को होली
नाम से जाना जाता है। लेकिन भारत के
कुछ हिस्सों में इसे आका एवं बंगाल व
उड़ीसा में इसे डोल पूर्णिमा नाम से
सेलिब्रेट किया जाता है।
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