विदुर कौन थे, जानिए महत्मा विदुर और महाभारत के राजकुल के बीच क्या संबंध था, धृतराष्ट्र और विदुर का संबंध ,Introduction of vidur
महात्मा विदुर हस्तिनापुर की महामंत्री थे, एवं राज्य परिवार के सदस्य भी थे। लेकिन उनकी माता राज पुत्री ना होकर उसके उलट राजघराने की एक साधारण सी सेविका थी, यही कारण था कि महात्मा विदुर राजकाज अथवा राज परिवार के विषय में कोई निर्णायक भूमिका नहीं निभा सकते थे। और न ही उन्हें भीष्म पितामह से युद्ध कला सीखने का अवसर मिला।
लेकिन महात्मा विदुर अपनी विलक्षण बौद्धिक शक्ति और अन्य प्रतिभा इतनी अधिक लोकप्रिय हो गए की पितामह भीष्म, माता सत्यवती, महाराज धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, महारानी गांधारी व कुंती, तथा पांचो पांडव इनका अत्यधिक सम्मान और आदर करते थे। इनकी सलाह मान कर ही पांडव कारागृह जाने से बच पाए थे तथा इनके द्वारा कही गई विदुर नीति तो विश्व प्रसिद्ध है।
राज्य का महामंत्री होने के कारण राज्य की नीति संबंधी सभी जिम्मेदारियां महात्मा विदुर की ही थी।
महाभारत काव्य ग्रंथ को ध्यान से पढ़ने पर यह पता लगता है कि भीष्म प्रतिज्ञा के समय ही महाभारत नाम के युद्ध का बिगुल बज चुका था।
महत्मा विदुर का जन्म, राज कुल में उनका स्थान -
पितामह भीष्म के बचपन में उन्हें देवव्रत के नाम से जाना जाता था उनके माता-पिता गंगा तथा शांतनु थे। भीष्म पितामह की माता गंगा के स्वर्गवास के बाद इनके पिता शांतनु वियोग के कारण बहुत ही उदास रहने लगे थे इस दौरान देवव्रत किशोरावस्था को पार कर चुके थे और वे अपने पिता को बहुत ही प्यार और सम्मान देते थे।
एक दिन देवव्रत (भीष्म पितामह) कों पता चला कि उनके पिता निषाद राज की कन्या से प्रेम करने लगे हैं लेकिन पुत्र प्रेम एवं राज मर्यादा के कारण शांतनु विवाह ना कर पाने की वजह से अपने मन ही मन पछता रहे हैं और कष्ट भोग रहे हैं।
इस घटना को जानकर देवव्रत बहुत ही परेशान हो गए और वेदना करते हुए सीधा निषाद राज के पास जा पहुंचे तब उन्हें निषादराज द्वारा कहीं गई शर्तों का पता लगा की वे अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह महाराज शांतनु के साथ एक ही शब्द में शर्त में कर सकते हैं की सत्यवती से प्राप्त होने वाले पुत्र कोही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनाया जाए।
तब देवव्रत ने पिता को चिंतित अवस्था से बाहर निकालने के लिए निषाद राज के सामने एक प्रतिज्ञा ले लिया की-
हे निषादराज! आपकी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी होगा।
सत्यवती की संतान को उत्तराधिकार से दूर ना होना पड़े भविष्य में देवव्रत की संताने उसके आगे ना आए निषादराज की इस आशंका को दूर करने के लिए देवव्रत ने प्रतिज्ञा की-
मैं अपने पूरे जीवन ब्रह्मचारी रहूंगा .....!
देवव्रत कि इस प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से जाना जाता है और इसी कारण देवव्रत का नाम आगे चलकर बीच में हुआ और बड़ी आयु में हस्तिनापुर राजघराने का बड़ा और एक प्रमुख सदस्य होने के कारण उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
आगे चलकर महाराज शांतनु से विवाह कर सत्यवती महारानी बन गई। महाराज को देवव्रत की प्रतिज्ञा का बहुत ही बड़ा आघात हुआ था लेकिन किस्मत के सामने वह भी कुछ ना कर सके।
भीष्म देवव्रत अविवाहित रह गए और महारानी सत्यवती ने दो पुत्रों को जन्म दिया चित्रांगद और विचित्रवीर्य।
पुत्र भीष्म देवव्रत द्वारा किए गए त्याग से महाराज का मन एक बार फिर अशांत रहने लगा था और महाराज शांतनु अधिक दिनों तक यह सुख भी ना भूख सके और चित्रांगद तथा विचित्रवीर्य के जवानी में कदम रखने से पहले ही उन्होंने अपना देह त्याग कर दिया।
महाराज शांतनु के स्वर्गवास के बाद निषादराज को दिए गए वचन अनुसार भीष्म ने महारानी सत्यवती के बड़े पुत्र चित्रांगद को हस्तिनापुर का महाराज बनाया और स्वयं ढाल बंद कर अंकित से राज्य की रक्षा करने लगे लेकिन चित्रांगद अधिक दिनों तक राज्य नहीं ले पाए और गंधर्व राज के साथ युद्ध में वह वीरगति को प्राप्त हुए।
उस समय तक विचित्रवीर्य युवा नहीं हो पाए थे पेश होने विचित्रवीर्य को राजगद्दी पर बैठाया और स्वयं उनके संरक्षक बंद राज्य के कार्यों का संचालन करने में मदद करने लगे।
कुछ ही दिनों पश्चात विचित्रवीर्य अब विवाह योग्य हो चले थे और तभी उन्हें पता लगा कि काशी नरेश अपनी 3 कन्याओं के लिए स्वयंवर आयोजित कर रहे हैं तो विचित्रवीर्य काशी जाकर अपनी वीरता के बल पर प्रत्याशियों तीन आंखों के सामने से तीनों कन्याओं को प्रभाकर हस्तिनापुर ले आए, लेकिन 3 कन्याओं में से काशी नरेश की बड़ी बेटी ने विभाग से इंकार कर दिया और अन्य दो कन्याओं का विवाह विचित्रवीर्य के साथ हो गया इन दोनों राजकुमारियों का नाम अंबिका और अंबालिका था विचित्र वीर का विवाह दोनों राजकुमारियों के साथ विधि पूर्वक किया गया।
लेकिन किस्मत में कुछ और ही था विचित्रवीर्य वी कुछ ही दिनों बाद किसी रोग की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त हो गए।
अब महारानी सत्यवती और भीष्म ने आपस में विचार-विमर्श कर कुल की रक्षार्थ नियोग हेतु विवाह से पहले पराशर मुनि के संसर्ग से उत्पन्न हुए अपने पुत्र कृष्ण द्वैपायन को बुलाया इन्हें व्यास नाम से भी जाना जाता है।
विचित्रवीर्य की पत्नी अंबिका ने नियोग के समय घबराकर अपनी आंखें बंद कर ली थी और इसीलिए उन्होंने अंधे पुत्र को जन्म दिया जिन्हें आगे चलकर जो धृतराष्ट्र के नाम से जाना गया।
अंबालिका नियोग के समय डर से पीली पड़ गई और उसने पांडु रोग से पीड़ित पुत्र पांडू को जन्म दिया।
और अंबिका की दासी के साथ नियोग से विदुर का जन्म हुआ।
इस प्रकार विदुर राजकुल के होते हुए भी राज अधिकार में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे परंतु अपने बुद्धि और कौशल तथा माता सत्यवती व भीष्मा पितामह के आशीर्वाद के कारण हस्तिनापुर में उन्हें विशेष स्थान प्राप्त था
FAQ -
Q1. विदुर के पिता का नाम क्या है?
Ans- महर्षि वेदव्यास।
Q2. विदुर किस क्षेत्र के ज्ञाता थे?
Ans- विदुर एक महान व्यक्तित्व, दार्शनिक और
Q3. विदुर शब्द का अर्थ क्या है?
Ans- विदुर का अर्थ है ज्ञानी पुरुष।
Q4. विदुर ने युद्ध में भाग क्यों नहीं लिया था?
Ans- विदुर दासी पुत्र थे इसलिए उन्हें शस्त्र
उठाने एवं युद्ध में भाग की अनुमति नहीं
थी। और यही कारण था कि वे धृतराष्ट्र
से युद्ध कला नहीं सीख पाए।
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