विदुर नीति हिंदी में, महात्मा विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को दिए गए उपदेशों के पीछे का कथा सार, Vidur niti kahani saar in hindi, Vidur niti in hindi
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहे जाने वाले अर्जुन को जिस तरह भगवान श्री कृष्ण ने कुल के रिश्तेदारों से मोह से छुड़ाने एवं धर्म युद्ध के लिए तैयार करने के लिए उन्हें श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश दिया था।
ठीक वैसे ही नीति के जानकार विदुर जी ने हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र को पुत्र प्रेम से मुक्ति दिलाने और अपने सही कर्तव्यों की तरफ आगे बढ़ कर अन्य उम्मीदों और चिंताओं को पीछे छोड़ते हुए युद्ध का अंधेरा घिर आने से पहले उन्हें जीवन के व्यवहारिक व सैद्धांतिक अलग-अलग नीतियों से अवगत करवाया था।
महात्मा विदुर ने धृतराष्ट्र को विदुर नीति का ज्ञान क्यों दिया विदुर नीति कहानी सार (vidur niti in hindi) -
दुर्योधन और उनके मामा शकुनी ने बहुत ही चालाकी से ऐसी चालें चली की पांडव खत्म हो जाए और कौरव जिंदा बचे एवं हस्तिनापुर के राज सिंहासन पर राज करें। राजगद्दी तक पहुंचने से पहले ही पांडवों को खत्म करने के लिए जो सभी षड्यंत्र गढ़े गए थे।
यह सभी षड्यंत्र विदुर जी की दूरदृष्टि और कुटिल बुद्धि से छुप नहीं पाए। विदुर जी ने बड़ी ही चालाकी से कई बार पांडवों को संकट से बचाया और आने वाले संकट के लिए चेतावनी भी दी।
शकुनि के बनाए हुए चक्रव्यूह द्वारा, दुर्योधन ने कर्ण और मामा शकुनी की सहायता से पांडवों को पासे (जुएं) के खेल में हरा कर पूरे राज्य पर अपना एकाधिकार करने में सफल हो गए। द्रोपति का चीरहरण भरी सभा के सामने करके उन्हें अपमानित भी किया गया। दुर्योधन ने महाराज धृतराष्ट्र को राजगद्दी से बांधकर खुद के लिए पूरा राज्य सुरक्षित कर लिया और पांडवों को बारह वर्ष के वनवास पर जाने के लिए मजबूर कर दिया।
योजना यही थी कि वनवास में भेज कर किसी भी युक्ति की सहायता से पांडवों को समाप्त कर देना, लेकिन अनेकों प्रयास के बाद भी दुर्योधन सफल ना हो सके और महापराक्रमी व धर्मपरायण पांडवों की किस्मत उनका पूरा साथ दे रही थी। और वे हर बार मृत्यु को मात देकर खुद को बचाने में सफल हो जाते।
यूं ही देखते देखते बारह वर्ष बीत गए। और पांडव अपना बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास समाप्त कर जब वापस हस्तिनापुर लौटे तो शर्त के हिसाब से उन्हें उनका राज्य वापस वापस मिल जाना चाहिए था।
लेकिन कौरवों ने पांडवों को राज पाठ ना देने का मन बना लिया था और महाराज धृतराष्ट्र अपने पुत्रों के प्रेम में फसे हुए थे यही कारण था कि जो दुर्योधन ने चाहा, वही होता चला गया।
दुर्योधन सिर्फ नाम के लिए ही युवराज था लेकिन व्यवहारिक तौर पर राज पाठ से जुड़े सारे काम दुर्योधन के कहने पर होने लगे थे।
भीष्म पितामह, विदुर जी एवं कुल के सभी शुभ चिंतक इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि अब पांडवों को उनका राज्य वापस सौंप देना चाहिए।
लेकिन अब दुर्योधन के मन में खोंट आ चुका था। दुर्योधन ने अपने पिता महाराज धृतराष्ट्र के सामने ऐसी परस्थितियों का निर्माण किया की उनके पास दुर्योधन के मन की बात पूरी करने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचा था,
और उसने पांडवों को उनका राज्य वापस लौटने से साफ इंकार कर दिया।
दुर्योधन के बारे में कहा जाता है कि उनके जन्म के समय ही उनकी जन्म कुंडली के जानकारों ने आशंका जताई थी कि, यह बच्चा आगे चलकर पूरे कुल के लिए घातक सिद्ध होगा इसकी वजह से कुल का नाश हो सकता है परंतु धृतराष्ट्र पुत्र मोह में डूब कर जन्म के समय से ही दुर्योधन को और अधिक प्रेम करने लगे थे।
धीरे धीरे दुर्योधन की जिद और दुष्टता पूर्ण गतिविधियों के कारण हस्तिनापुर राजपरिवार में अशांति का माहौल महसूस होने लगा था,मर्यादाएं टूट चुकी थी, पानी सर से ऊपर गुजर चुका था।
महाराजा धृतराष्ट्र अब मानसिक तनाव से गिर चुके थे -
एक ओर न्याय न मिलने के कारण पांडवों के युद्ध की धमकी एवं भगवान कृष्ण का पांडवों के साथ खड़ा होना और दूसरी ओर राज्य में हिस्सा ना देने की पुत्र की हठ।
और यही स्थिति थी जब चिंतन मनन करते हुए रात के अंधेरे में अपने अकेलेपन से बातें करते हुए शांति पाने तथा अंधेरे में प्रकाश की कोई किरण तलाशने के उद्देश्य से महाराज धृतराष्ट्र ने परम नितिनिपुर्ण एवं धैर्यवान विदुर को याद किया।
महात्मा विदुर जी ने महाराज धृतराष्ट्र से उनकी समस्याओं का चिंतन मनन करते हुए जो भी बाते कहीं थी आज वही सारी बातें विदुर नीति के नाम से विख्यात हैं। महाभारत के आठ अध्यायों (33 से 40) में विदुर नीति का यह जन कल्याणकारी प्रकरण व्याप्त है।
FAQ -
Q1. विदुर नीति में कितने अध्याय है?
विदुर नीति का उल्लेख है।
Q2. विदुर का असली नाम या पहला नाम क्या
था?
Ans- विदुर का पहला नाम धर्म देव रखा गया
था।
Q3. विदुर नीति में क्या है?
Ans- महत्मा विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को कहे गए
जीवन के व्यावहारिक व सैद्धांतिक वचन
ही विदुर नीति के नाम से जाने जाते है।
Q4. पुत्र मोह के लिए कौन प्रसिद्ध है?
Ans- धृतराष्ट्र।
Q5. चाणक्य नीति और विदुर नीति में क्या
अंतर है?
Ans-चाणक्य नीति बिल्कुल सही और
ऐतिहासिक है इसका ज्यादातर हिस्सा
इतिहास में कहीं ना कहीं मिल जाता है।
लेकिन इसके विपरित विदुर नीति को पूरा
सत्य मान कर उसका अनुसरण करना
थोड़ा कठिन है।
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