Vidur niti in hindi-: जानिए महत्मा विदुर ने बुद्धिमान या पंडित के क्या लक्षण बताए हैं, विदुर द्वारा कही गई 16 महत्वपूर्ण बातें जो मनुष्य के बुद्धिमान या पंडित होने को दर्शाती हैं
Vidur niti in hindi (विदुर नीति)
महात्मा विदुर महाभारत के एक ऐसे पात्र हैं जिन्होंने महाभारत के युद्ध को होने से पहले ही भांप लिया था, नीति मर्मज्ञ विदुर अपनी कुशल बुद्धि, नीति ज्ञान के लिए ही जाने जाते थे।
महात्मा विदुर राज्य के कार्यपालन मंत्री होने के बाद भी अत्यंत ही विनम्र स्वभाव के थे और अपने द्वारा कही जाने वाली हर एक बात को समझा कर सही तरह से प्रकट करना ही उनका स्वभाव था।
इन्होंने कई बार महाराज धृतराष्ट्र को अपने बहुमूल्य कथनों (अनमोल विचारों) द्वारा यह एहसास कराने का भरपुर प्रयास किया की, यह सभी क्रियाकलाप जो पांडवों के विरुद्ध किए जा रहे हैं यह कौरव वंश के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।
महाराज धृतराष्ट्र ने आधी रात में जब विदुर को बुलवाया और अपने अंदर की विचलित परिस्थितियों से अवगत कराया तब महात्मा विदुर ने उन्हें बुद्धिमान व पंडित होने की कुछ खास बातों से अवगत कराया था।
आज हम सभी अपने इस पोस्ट के माध्यम से महात्मा विद्युत द्वारा कहे गए उन अनमोल वचनों को जानते हैं जिसमें उन्होंने बुद्धिमान या पंडित होने के लक्षणों का गहराई से वर्णन किया है।
(vidur niti in hindi) बुद्धिमान या पंडित के लक्षण -
धृतराष्ट्र को समझते हुए विदुर जी ने कहा -
- जिसे अपनी शक्ति और स्वरूप का ज्ञान है, जो सामर्थ्य के अनुसार कार्य करता है, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता है तथा धर्म पर अडिग रहने का गुण है, जिसे दुनिया का कोई भी आकर्षण लुभा ना पाए, वही पंडित है।
- जो अच्छे कर्म करता है तथा बुरे कर्मों से दूर रहता है। जो ईश्वर मैं पूरा विश्वास रखता है, तथा श्रद्धा जैसे महान गुणों से युक्त है, वही पंडित है।
- जिस मनुष्य को क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता आदि दोष जीवन के मूल उद्देश्य से नहीं डिगा पाते, वही पंडित है।
- जिसकी भविष्य की योजना तथा गुप्त मंत्रणा को दूसरे लोग नहीं जान पाते, काम पूरा होने पर ही जिस के इरादे का पता लग पाता है, वही पंडित है।
- जीवन के विपरीत प्रभावों सर्दी-गर्मी, भय-प्रीति, संपन्नता-दरिद्रता आदि से जो अपने कार्य को प्रभावित नहीं होने देता, वही पंडित है।
- जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म व अर्थ के अनुकूल चलती है तथा जो विषय वासनाओं को त्याग कर धर्म रूपी प्रयोजन अर्थात पुरुषार्थ को चुनता है, वही पंडित है।
- पंडित बुद्धि मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार ही कार्य करने की इच्छा रखता है और शक्ति के अनुसार ही काम करता भी है। वह किसी वस्तु अथवा मनुष्य को महत्वहीन नहीं समझता।
- पंडित की पहचान यह है कि वह दूसरों की बात को शीघ्र समझ लेता है और धैर्य रखकर देर तक सुनने का सामर्थ्य भी रखता है, शब्द, रस, रूप आदि इंद्रियों के विषयों को जानकर कर्तव्य बुद्धि से उन पर विचार करता है, कामना या आसक्ति से नहीं, बिना पूछे दूसरों के कामों में हस्तक्षेप भी नहीं करता।
- पंडित बुद्धि मनुष्य दुर्लभ वस्तु की कामना नहीं करता नाही वह खोई हुई वस्तु के विषय में शोक करता है। विपत्ति के समय वह थोड़ा भी विचलित नहीं होता।
- जो भली-भांति निश्चय करने के उपरांत कार्य आरंभ करता है और किसी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ता, जो समय को व्यर्थ नहीं जाता और मन पर संयम रखता है, वही पंडित है।
- 'हे भरत कुलभूषण! पंडित बुद्धि मनुष्य श्रेष्ठ कार्यों में रुचि रखता है। वह ऐश्वर्य मैं वृद्धि करने वाले उन्नति कारक कार्यों में लगा रहता है। वह हित करने वाले में दोष नहीं ढूंढता।
- जो व्यक्ति आदर पाने पर गर्व से घमंड नहीं करता तथा अनादर मिलने पर दुखी नहीं होता, जिसका मन समुद्र की भांति गंभीर तथा क्षोभ रहित है, वही पंडित।
- जो व्यक्ति प्राणियों की वास्तविकता को जानता है तथा सभी कार्यों को करने की विधि जानता है और कार्य सिद्धि के उपायों की जानकारी में अग्रणी है, वही पंडित है।
- जिसकी वाणी हार नहीं मानती, जो शास्त्रों के रहस्य का विशिष्ट वक्ता है, जो तर्कशील तथा वाकपटुता जवाब देता है, जो किसी ग्रंथ के तात्पर्य को शीघ्र बताने में समर्थ है, वही पंडित है।
- जिसका ज्ञान बुद्धि के अनुसार हो तथा बुद्धि ज्ञान के अनुसार कार्य करें, जो श्रेष्ठ मनुष्यों द्वारा स्थापित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता वही पंडित कहलाने का अधिकारी है।
- लेकिन जो व्यक्ति अत्यधिक धन, विद्या पाकर भी सामान्य बना रहता है वह पंडित कहलाता है।
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