Hindi story, Ganga Ram aur bulakhi naai ki rochak kahaniya
बहुत समय पहले आगरा के पास बैमन नामक गांव मैं उस इलाके के एक बहुत बड़े जमींदार हुआ करते थे जिनका नाम था गंगाराम।
गंगाराम पटेल कुछ ज्यादा पढ़े लिखे तो नहीं थे लेकिन सामाजिक व्यवहार और लोकाचार का उन्हें बहुत ही अच्छा ज्ञान था। उनकी सूझ-बूझ अनोखी थी किसी भी घटना को देखकर व तत्काल उसका हल निकाल लेते थे। उनकी विचित्र बुद्धि को देखकर गांव के सभी लोग सम्मान से उन्हें गंगाराम पटेल कहा करते थे।
बैमन गांव में ही बुलाखी नाम का एक नई भी रहा करता था, बुलाखी और गंगाराम दोनों बचपन की मित्र थे। उन दोनों की मित्रता बहुत ही घनिष्ट थी। बुलाखी भी गंगाराम पटेल की तरह तेज बुद्धि वाला व्यक्ति था। उसे भी लोक व्यवहार को समझने में गहरी दिलचस्पी रहती थी। अक्सर जब वह दोनों मिलते, तो किसी ना किसी बात को याद कर उनमें बहस शुरू हो जाती थी। बुलाखी यह सोच कर की क्या पता गंगाराम इस प्रश्न का उत्तर ना दे पाए, कोई ऐसा प्रश्न गंगाराम से पूछता, जिसका उत्तर मिलना बहुत ही कठिन होता था, लेकिन गंगाराम भी कम नहीं था, बुलाकी के पूछे हुए हर प्रश्न का उत्तर इतनी सरलता से दे देते थे कि बुलाखी की सारी उत्सुकता धरी रह जाती थी।
प्रश्न और उत्तर का सिलसिला अक्सर उन दोनों के बीच चलता ही रहता था। दूसरे लोग भी उनके प्रश्न उत्तर के बीच शांत बैठे रहते और उनकी नोकझोंक से आनंदित होते रहते थे।
एक बार गंगाराम पटेल ने मन में सोचा कि गांव में रहते हुए तो सालों बीत गए क्यों ना अबकी बार किसी तीर्थ स्थल की यात्रा पर जाया जाए।
ऐसा विचार कर उन्होंने काशी जाने का फैसला किया। पावन गंगा के तट पर बसी काशी नगरी बहुत प्राचीन समय से ही अध्यात्म का केंद्र बनी रही है। वहां के गुरुकुल में जाकर विद्या अध्ययन करना बड़े गौरव की बात मानी जाती रही है। काशी में ही भगवान शंकर का मंदिर भी है जहां के दर्शन करके मनुष्य सभी प्रकार के भव बंधनों से छूट जाता है। भगवान शंकर के दर्शन मात्र से प्राणियों को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है।
यह सब बातें सोच कर गंगाराम पटेल ने बुलाखी नाई को बुलवाया और उससे कहा -
"बुलाखी...!!
अगले सप्ताह में काफी जा रहा हूं यदि तुम चाहो तो तुम भी मेरे साथ चलो।"
"इच्छा तो मेरी भी बहुत है, पटेल जी।" बुलाखी बोला मैं भी चाहता हूं कि एक बार काशी जाकर गंगा में गोता लगाऊं, वहां के पवित्र घाटों के दर्शन करूं भगवान विश्वनाथ के मंदिर में जाकर भगवान शंकर की के दर्शन करूं, मगर....।"
गंगाराम ने पूछा - मगर क्या...? , कोई आर्थिक परेशानी?
यात्रा के लिए पैसे नहीं हैं? यदि ऐसा है। तो तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो। मेरे पास पर्याप्त धन है, हमारी यात्रा सकुशल पूरी हो जाएगी।
बुलाखी ने कहा - "फिर मुझे क्या परेशानी है?" मैं तो आपके साथ जरूर चलूंगा लेकिन....!
गंगाराम - झल्लाते हुए बोले ..., अभी भी किंतु-परंतु..
तुम साफ-साफ क्यों नहीं बताते कि मेरे साथ चलने में तुम्हें किस बात की परेशानी है?
तब बुलाखी ने कहा- परेशानी तो कुछ भी नहीं है, पटेल जी। बस साथ चलने के लिए मेरी एक शर्त अवश्य होगी।
गंगाराम - कैसी शर्त...?
"शर्त ऐसी की आपको मेरी शंकाओं का समाधान करना पड़ेगा।"
बुलाखी बोला - 'रास्ते में यदि मैं कोई विचित्र बात लिखूंगा तो उसका समाधान आपको करना होगा। यदि आपने ऐसा नहीं किया तो मैं उसी दिन आपका साथ छोड़कर वापस लौट आऊंगा।"
ओह...! तो यह बात है।
गंगाराम ने मुस्कुरा कर कहा तुम चिंता मत करो बुलाखी। मैं तुम्हारी हर शंका का समाधान करता चलूंगा। यह मेरा वादा है।"
बस फिर क्या था बात बन गई। दोनों ने अपने-अपने परिवारों के गुजर बसर का इंतजाम किया और सफर के लिए आवश्यक सामान, धन आदि, लेकर काशी की ओर निकल पड़े।
दिन भर यात्रा करने के बात शाम के समय विवेक नगर के पास पहुंचे और नगर के बाहर एक सुंदर सा बगीचा देखकर वही रात गुजारने का मन बनाया। दोनों अपने अपने घोड़ों से उतरे। घोड़ों को पेड़ से बांध दिया, उनकी जीनें उतार ली और सारा सामान एक घने वृक्ष के नीचे रखकर उसकी ही छाया में आराम करने लगे।
कुछ देर बात गंगाराम ने अपनी जेब से कुछ रुपए निकाले और उन्हें बुलाखी को देकर कहा - बुलाखी..! यह पैसे लेकर बाजार जाओ और भोजन के लिए आवश्यक सामग्री खरीद लाओ। और हां, ध्यान रहे, जी जरूर लाना, घी के बिना मुझे भोजन का स्वाद नहीं आता।
बुलाखी पैसे लेकर बाजार के लिए चल पड़ा। उसने पंसारी की दुकान से आटा, चावल, मसाले और घी आदि खरीदा और वापस लौटने लगा। बाजार से गुजरते हुए अचानक उसने एक विचित्र दृश्य देखा, उसने देखा कि एक स्त्री पालकी पर बैठी हुई है। और तीन कहार और एक राजपुरुष उस पालकी को अपने कंधों पर उठाये चले जा रहे हैं। एक राजपुरुष किसी स्त्री की पालकी ढोए, यह देख कर बुलाखी की उत्सुकता अपने चरम पर जा पहुंची।
वह जल्दी जल्दी कदम नापते हुए बढ़ता हुआ बगीचे तक जा पहुंचा और गंगाराम के सामने सारा सामान रखता हुआ बोला-पटेल जी...!
अभी कुछ देर पहले मैंने बाजार में एक विचित्र दृश्य देखा। उसे देखकर मेरी उत्सुकता बढ़ गई है। मैं चाहता हूं कि आप इसका रहस्य खोलकर मेरी उत्सुकता शांत करें। यह कहकर बुलाखी रास्ते में जो कुछ देखा था वह सब गंगाराम को बता दिया।
बुलाखी के मुंह से यह सब जानकर गंगाराम पटेल ने कहा- बुलाखी..! इतना व्याकुल मत हो....।
मैं तुम्हें इस रहस्य के बारे में जरूर बताऊंगा, पर अभी नहीं। पहले भोजन बनाकर अपनी भूख मिटाएंगे। फिर रात को सोने से पहले मैं तुम्हें पालकी में बैठी उस स्त्री, एवं उसकी पालकी को ढोते हुए राजपुरुष के विषय में बताऊंगा।
अनमने भाव से बुलाकी ने अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दे दी, फिर वह भोजन की तैयारी में व्यस्त हो गया।
भोजन के बाद जब गंगाराम अपने बिस्तर पर लेट गए तो बुलाखी ने उनके लिए हुक्का तैयार किया।
गंगाराम ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए बुलाखी से कहा- हां तो बुलाखी..!
अब तू सुन उस राजपुरुष और पालकी में बैठी उस स्त्री के विषय में, पर सावधान!
ध्यान पूर्वक सुनते रहना और बीच-बीच में हुंकार भी भरते रहना, जिससे कि मैं यह जान सकूं की तू सचमुच ही गंभीरता पूर्वक मेरे द्वारा गए हुए शब्दों को सुन रहा है। तूने हुंकार देना बंद किया तो मैं कहानी बीच में ही अधूरी छोड़कर लंबी तान कर सो जाऊंगा।
मैं जागता रहूंगा, पटेल जी। बुलाखी बोला- अब आप कहना तो शुरू कीजिए। यह कहकर बुलाकी नाई ने गंगाराम पटेल के पांव दबाने शुरू कर दिए।
गंगाराम पटेल ने कहना आरंभ किया- बुलाखी!
आज बाजार में तुमने जिस स्त्री को पालकी में बैठे देखा था। वह इस नगर की महारानी थी उसका नाम है, श्यामा देवी जो राजपुरुष उसकी पालकी को कहारों के साथ अपने कंधे पर ढोकर ले जा रहा था वह इस नगर का राजा विष्णु दत्त था।
अब तुम यह पूछोगे कि राजा को अपनी रानी को अपने कंधों पर ढोकर ले जाने की क्या जरूरत पड़ गई तो इसके पीछे एक लंबी कहानी है क्या तुम उस कहानी को सुनना पसंद करोगे?
अवश्य ..!!
बुलाखी जल्दी से बोला- आप मुझे शुरू से इस पूरी कहानी को सुनाइए।
ठीक है तो फिर शुरू से ही सुनो गंगा राम पटेल बोले और कहानी की शुरुआत करने लगे-
बुलाखी..! इस नगर के राजा की तीन रानियां है।
जिनमें से बड़ी रानी का नाम श्यामा देवी मंझली रानी का नाम ज्ञानवती तथा सबसे छोटी रानी का नाम सोमवती है। राजा विष्णु दत्त के पास भगवान का दिया सब कुछ था।
उन्हें किसी बात की कमी नहीं थी, किंतु कोई संतान नहीं होने का दुख उन्हें रह-रहकर कचोट रहा था संतान की इच्छा से ही राजा ने तीन विवाह किए थे लेकिन उन्हें उनकी किसी भी पत्नी से संतान का सुख नहीं मिला।
राजा विष्णु दत्त इसी चिंता में घुलते रहते की उनके बाद उनके राज्य का क्या होगा। उन्हें यह भी भय था कि यदि वे संतान रहित ही मर गए तो फिर उन्हें नर्क में ही स्थान मिलेगा। इस लोग के अलावा पर लोग का भय भी उन्हें सता रहा था।
राजा को सबसे अधिक प्रिय रानियों में से अपनी बड़ी रानी श्यामा देवी थी। राजा हर बात में उससे ही विचार विमर्श करते थे। इसी कारण राजा की दोनों छोटी रानियां रानी श्यामा से इष्या रखती थी। वह मन ही मन उससे जलने लगी थी, लेकिन राजा के सामने श्यामा देवी की कोई बुराई नहीं कर पाती थी।
बुलाखी..!
गंगाराम पटेल ने आगे बताया- कहावत है कि परमात्मा सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना को एक ना एक दिन स्वीकार जरूर करते हैं, राजा विष्णु दत्त के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक दिन ईश्वर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
बड़ी रानी श्यामा देवी को गर्भ ठहर गया। यह जानकर राजा को दो बहुत प्रसन्नता हुई किंतु उनकी दोनों छोटी रानियां जलन से जल उठी।
उन्हें यह भय सताने लगा कि अब राजा की नजरों में श्यामा देवी का सम्मान और भी अधिक बढ़ जाएगा, और उन्हें कोई पूछेगा भी नहीं।
ईर्ष्या की इस भावना से प्रेरित होकर दोनों छोटी रानियां श्यामा देवी के प्रति एक षड्यंत्र बुनने में लग गई। मंजिली रानी ज्ञानवती में छोटी रानी सोमवती से कहा- सोमवती..! यदि श्यामा देवी को संतान पैदा हो गई तो अपना तो बेड़ा गर्क ही हुआ समझो।
राजा पहले से ही उस पर विशेष ध्यान देते हैं, उसकी हर इच्छा को तत्काल पूरा करवा देते हैं, संतान हो जाने पर तो वे उस पर जान छिड़कने लगेंगे। हमारी कक्ष में तो वह अब कभी कभार ही आते हैं, संतान प्राप्ति के बाद तो वे हमारे पास बिल्कुल आना ही छोड़ देंगे। हमारी हालत तो महल की किसी दासी से भी गई हुई हो जाएगी।
ठीक कहती हो बहन ज्ञानवती ! छोटी रानी ने आह भरते हुए कहा- मैं तो अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हूं। सोचती हूं राजा की उपेक्षा का शिकार बनने से पहले ही राजमहल छोड़कर अपने मायके चली जाऊं तो ठीक होगा।
तुम्हारे मायके चले जाने से क्या इस समस्या का हल निकल आएगा, सोमवती ?
मेरी मानो तो यही जमी रहो और मेरे साथ मिलकर इस स्थिति का दृढ़ता पूर्वक सामना करो। सुनो, इस समस्या का एक निदान मेरे मन में हैं। तुम साथ दो तो हम दोनों राजा की नजरों में फिर से सम्मान और प्यार प्राप्त कर सकते हैं।
वह कैसे ...?
बड़ी रानी का राज्य से निष्कासन करवा कर। मंझली रानी ने सरगोशी करते हुए बताया-यदि किसी तरह श्यामा नाम का यह कांटा दूर हो जाए तो, राजा फिर से हमें प्यार और सम्मान देना शुरू कर देंगे। हमारी खोई हुई प्रतिष्ठा हमें फिर से मिल जाएगी।
पर यह सब संभव कैसे होगा ?
होगा सोमवती जरूर होगा। तुम बस देखती जाओ यह कहकर ज्ञानवती धीरे-धीरे उसे अपनी योजना समझाने लगी।
योजना के अंतर्गत एक दिन दोनों रानियों ने राजपुरोहित को अपने कक्ष में बुलवाया। उन दोनों ने राजपुरोहित का भरपूर स्वागत सत्कार किया उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए भोजन करके जब पुरोहित तृप्त हो गया तब मंझली रानी ने अपना मंतव्य उसे बताया उसका मंतव्य जानकर पुरोहित भय से कांप उठा ....
उसने कहा मैं इस जघन्य कार्य में आप लोगों का साथ नहीं दूंगा इतनी मुद्दत के बाद तो हमारे राजा की इच्छा पूरी होने जा रही है मैंने अगर इसमें व्यवधान डाला तो मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी बाद में जब राज्य के लोगों को इस बात का ज्ञान होगा तो हर जगह मेरी बेज्जती होगी।
लोग मुझ पर थुंकेंगे। वह मुझे देशद्रोही करार दे देंगे। मैं राजा की नजरों में ही गिर जाऊंगा हो सकता है राजा क्रोध में भरकर मेरा वध करने का ही आदेश दे दें नहीं नहीं...!
मुझे तो आप लोग माफ ही कर दीजिए मैं इस कार्य में शामिल नहीं हो सकता।
बात बिगड़ती देख मंझली रानी ने पासा फेका- राजपुरोहित जी! घबराइए नहीं आज की दुनिया में सबसे बड़ी चीज है... धन।
इस काम के बदले हम आपको इतना धन देंगे कि फिर आपको राजा की नौकरी की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। और आप तो स्वयं ही समझदार हैं, धन लेकर किसी दूसरे राज्य में चले जाना। आप और आपके शेष परिवार का जीवन बड़े सुख से व्यतीत होगा।
राजपुरोहित लालच में फस गया। तुम्हारा रानी से एक लाख सोने की मोहरी लेकर वह उनके षड्यंत्र में शामिल हो गया।
अगले दिन जब राजा विष्णु दत्त अपने दरबार में बैठा हुआ था तो राजपुरोहित उसके पास पहुंचा उसके चेहरे पर चिंता के भाव थे उसे चिंतित देखकर राजा ने उससे पूछा राजपुरोहित जी क्या बात है आवाज बहुत गंभीर और चिंतित नजर आ रहे हैं?
क्या बताऊं महाराज राजपुरोहित ने उदास स्वर में कहा- बात ही चिंता की है।
कुछ हमें भी तो बताइए हो सकता है हम आपकी चिंता का निवारण कर सकें राजा ने उत्तर में कहा।
महाराज राजपुरोहित बोला मेरी चिंता का विषय आपके परिवार को लेकर ही है मैं सारी रात यह सोच कर परेशान होता रहा हूं कि इस बात को आपसे कहूं या नहीं?
यदि ऐसी बात है तब तो आप हमें उस बात को अवश्य ही कहें राजा ने कहा।
तो सुनिए महाराज!
राजपुरोहित बोला- यह तो आपको मालूम ही है कि मुझे ज्योतिष का अच्छा ज्ञान है अपने उसी ज्ञान में से मैंने पता लगाया है। की आपका आगामी काल बहुत संकटग्रस्त होता दिखाई पड़ रहा है। आप आने वाले दिनों में एक बहुत बड़ी विपत्ति में फंसने वाले हैं।
वह किस कारण से? राजा ने आशंकित स्वर में पूछा-क्या हमारा कोई दुश्मन राजा हम पर हमले की तैयारी कर रहा है?
नहीं महाराज ऐसा कुछ नहीं है ईश्वर की कृपा से आप इतने सक्षम हैं कि किसी भी दुश्मन के हमले को विफल करने की शक्ति आप में है मेरी चिंता का कारण तो आपकी होने वाली संतान है।
मेरी संतान हम कुछ समझे नहीं राजपुरोहित जी राजा ने व्यग्र स्वर में पूछा-आप हमें शादी बातें खुलकर और विस्तार पूर्वक बताईए।
राजन आपकी बड़ी रानी के गर्भ में जो शिशु पल रहा है वह आपके लिए बहुत अनिष्टकारी है मीरा ज्योतिष ज्ञान कहता है कि उसके जन्म के बाद जैसे ही आप उस शिशु का मुंह देखेंगे आपके नेत्रों की ज्योति चली जाएगी।
आप हमेशा के लिए अंधे हो जाएंगे महाराज यही मेरी चिंता का विषय है।
ओह!
राजा ने यह बात सुनकर एक लंबी सांस भरी और फिर उसने चिंतित स्वर में राजपुरोहित से कहा-राजपुरोहित जी!
हम अंधे बन कर जीवन व्यतीत करना नहीं चाहते लेकिन हम यह भी नहीं चाहते कि अपनी औलाद के सुख से वंचित रहें क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे कि हम अंधे भी ना हो और अपने पुत्र के सुख को भी प्राप्त कर सकें?
राजपुरोहित ने कहा महाराज उपाय तो है लेकिन मुझे शंका है कि आप इस उपाय को पूरा कर पाएंगे या नहीं।
महाराज....!!
उपाय यह है कि आप अपनी संतान के पैदा होने से पहले ही आपको अपनी रानी का त्याग कर देना चाहिए जिससे रानी अपने होने वाले पुत्र को राज्य से बाहर जन्म दें और इस तरह ना तो आपको पुत्र का चेहरा देखना पड़ेगा और ना ही आपको कोई संतान थीम कह सकेगा।
राजा राजपुरोहित पर अंधा विश्वास करता था। और इसी कारणवश राजा राजपुरोहित की बातों में आ गया, और फिर एक दिन तीर्थ स्थल पर जाने का बहाना बनाया और उसे साथ लेकर चल पड़ा।
चलते चलते जब शाम ढलने लगी तो उसने रानी से जंगल में रुक कर विश्राम करने को कहा।
लगभग आधी रात के आसपास अपनी रानी को उस घने जंगल में अकेला छोड़ राजा भाग गया और उनके पास अपना एक पत्र छोड़ दिया जिसमें लिखा था..
अब तुम पूरी तरह आजाद हो, और जहां मर्जी जा सकती हो.....!!
सुबह जब रानी की आंख खुली तो खुद को अकेला पाकर वह बहुत ही भयभीत हो गई और रोने लगी राजा का नाम लेकर जोर से पुकारने लगी मगर राजा तो उसे छोड़कर भाग चुका था, अब मैं वापस कहां से आता?
कुछ देर बाद रानी की स्थिति सामान्य हुई और पास पड़ा पत्र पढ़कर उसे पूरी बात समझ आई कि राजा ने उसे जान-बूझ कर त्याग दिया है।
अब रानी की चिंता और अधिक बढ़ गई थी वह सोच में पड़ गई अब अपने साथ-साथ अपने गर्भ में पल रहे उस अबोध शिशु को लेकर कहां जाएगी।
कुछ देर बाद रानी अपना मन शांत कर एक कच्चे रास्ते पर चल पड़ी कुछ देर चलने के बाद रानी एक आश्रम पहुंची जहां स्थित साधु रानी की हालत देख अचंभित हो गया और इस अवस्था में रानी का घने जंगल के बीच स्थित आश्रम में पहुंचने का कारण पूछा, रानी ने उस साधु को अपने ऊपर गुजरी सारी आपबीती सुनाई तो साधु का मन यह सब सुन कर भी भीच गया।
और साधु ने कहा बेटी अब तुम्हें और कहीं भटकने की जरूरत नहीं है तुम इस आश्रम में रहकर अपना गर्भ काल पूर्ण कर सकती हो, मुझसे जो हो सका मैं हर संभव मदद तुम तक पहुंच जाऊंगा।
जल्दी ही रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया और साधु महाराज ने उस का नाम विशाल रखा। देखते ही देखते विशाल बारह वर्ष का हो गया। अब आश्रम में विद्या अर्जन के लिए आने वाले अन्य छात्रों के साथ विशाल भी गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने लगा।
जब कभी अन्य बच्चे अपने माता-पिता के बारे में बातें करते तब विशाल उनकी बातें सुन मायूस हो जाता क्योंकि विशाल को कभी अपने असली पिता से भेंट कर ने का सौभाग्य नहीं मिला था विशाल के साथ गुरुकुल में पढ़ने वाले अन्य विद्यार्थी विशाल को जब उसके पिता के बारे में पूछते थे तब साधु महाराज को अपना पिता पता कर यह कहता कि उन्होंने ही बचपन से मुझे पाला है इसलिए वही मेरे पिता हुए।
वक्त का पहिया ऐसे ही चलता रहा....!!
अब वह समय पास आ गया था जब साधु महाराज अपनी अंतिम सांसे ले रहे थे तब उन्होंने श्यामा और विशाल को अपने पास बुला कर कहा बेटी श्यामा..! भगवान की तरफ से मेरा बुलावा आ चुका है अपना शरीर छोड़ने से पहले मैं तुम्हें दो वस्तुएं देना चाहता हूं यह कहते हुए साधु महाराज ने अपनी शैय्या के नीचे से दो चीजें निकली। इन दोनों चीजों में से एक कपड़े की बनी मामूली थैली जान पड़ती थी और दूसरा था एक तीर।
उन्होंने यह दोनों चीजें साधु महाराज को सौंपते हुए कहा बेटी श्यामा! यह कोई मामूली थैली नहीं है।
यह मंत्र द्वारा सिद्ध की हुई थैली है जिसे मैंने कठिन तपस्या के बाद अपने गुरु से प्राप्त किया था इसकी विशेषता यह है कि इसमें रखा धन कभी खत्म नहीं होगा इस थैली से दिन में एक बार तुम जितना भी धन मांगोगी तुम्हें प्राप्त हो जाएगा। और इस तीर की विशेषता यह है कि यह कभी भी चुकता नहीं है। एक बार इसे धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा कर जिस पर भी लक्ष्य करोगे वह वस्तु तीर द्वारा भेद दी जाएगी, फिर चाहे वह कितनी भी बड़ी विशाल और ताकतवर क्यों ना हो।
इतना कहते हुए साधु महाराज ने अपना देह त्याग कर दिया।
साधु महाराज के बाद अब मां बेटे का जैसे उस आश्रम में मन ही ना लग रहा हो.... वह दोनों स्वयं को बहुत असहाय महसूस करने लगे थे। साधु महाराज को याद कर दोनों के नेत्रों से आंसुओं की झड़ी बहने लगती कुछ दिनों बाद दोनों जब सामान्य हुए तब विचार-विमर्श कर उन्होंने महाराज विष्णु दत्त के राज्य के पास ही एक छोटा मकान खरीद लिया और वहां रहने लगे। और इस तरह पांच वर्ष का समय और बीत गया।
कहानी को बीच में रोककर गंगा राम पटेल फिर आगे बोले- बुलाखी..!
चल अब तुझे राजा विष्णु दत्त का हाल बताता हूं इतने दिनों में उसका क्या हुआ?
बड़ी रानी श्यामा देवी की अनुपस्थिति में मंझली रानी ज्ञानवती ने राजापुर राजा पर ऐसा मोह जाल फेंका कि अब वह बस उसका ही होकर रह गया।
रानी ज्ञानवती उसे अपनी उंगलियों में नाचने है वह जो कुछ भी कहती वैसा ही होता राजा का यह हाल हो गया कि अब राज कार्यों में हिस्सा नहीं लेता था। राज्य की सारी जिम्मेदारियां मंत्रियों पर आ टिकी थी, राजा जैसे सब कुछ त्याग कर सिर्फ ज्ञानवती के कक्ष में पड़ा रहता था।
इस बीच छोटी रानी सोमवती बिल्कुल अकेली पड़ गई राजा द्वारा उपेक्षा किए जाने से वह मन ही मन कुढ़ती रहती।
बुलाखी..!
वह कहावत है ना कि सहने कि भी एक सीमा होती है, राजा द्वारा की जा रही उपेक्षा से जब सोमवती का सब्र टूट गया तो उसकी नज़दीकियां राज्य के रक्षा मंत्री के साथ बढ़ गई... और रक्षा मंत्री को, महल की बहुत सी अंतरंग बातें पता चल गई राज्य रक्षा मंत्री भी एक महत्वकांक्षी व्यक्ति था। रानी का सहयोग साथ देख कर उसने राज्य को हथियाने का मन बना लिया।
रक्षा मंत्री ने पड़ोसी राज्य के राजा के पास अपना गुप्त संदेश भेजते हुए राज्य पर हमला करने का न्योता दिया और मदद स्वरूप अपनी सेना को सही मौका देखकर हथियार डाल देने का विश्वास भी दिया इस प्रकार विष्णु दत्त का राज्य शीघ्र ही उसके पड़ोसी राजा के कब्जे में आ जाएगा और इस तरह वे दोनों राज्य को अधा आधा बांट लेते।
विष्णु दत्त के रक्षा मंत्री का यह प्रस्ताव देख पड़ोसी राजा ने उसका प्रस्ताव खुशी खुशी स्वीकार कर लिया और सही समय देख कर विष्णुदत्त के राज्य पर हमला कर दिया।
हमेशा की तरह राजा विष्णु दत्त उस समय अपने महल में रानी ज्ञानवती के साथ कक्ष में भोग विलास में मग्न थे।
अभी हांफता हुआ एक प्रहरी आकर राजा को यह सूचना देता है कि दुश्मन राज्य है उन पर हमला कर दिया है यह सुनकर राजा कुछ क्षणों के लिए भौचक्का रह जाता है।
और फिर खुद को संभालते हुए तुरंत ही उठ कर बाहर की ओर भागता हुआ शत्रुओं से लोहा लेने की तैयारी करने लगता है।
आनन-फानन में राजा सेना को युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश देता है। दोनों राज्यों के बीच भीषण युद्ध होता है बहुत ही अधिक मारकाट के बाद......
पूर्व की योजना के अनुसार रक्षा मंत्री ने जाकर राजा के सेनापति से कहा-
सेनापति क्यों व्यर्थ में अपने सैनिकों को मरवा रहे हो दुश्मन की सेना बहुत बड़ी है। उसके पास हमसे अच्छे हथियार हैं उचित यही है कि सेना को हथियार डालने का आदेश दे दो।
नहीं मंत्री जी मैं एक सैनिक हूं, मर जाऊंगा लेकिन हथियार नहीं डालूंगा हम सच्चे देशभक्त हैं। शत्रुओं को हमारी लाशों को लांघ कर ही हमारे राज्य में प्रवेश करना होगा हमारे जीते जी यह असंभव होगा।
रक्षा मंत्री ने जब सेनापति की हिम्मत को भाप लिया तब उसने कहा लेकिन मैं इस राज्य का रक्षा मंत्री हूं..!
देश की सारी सेना मेरे आधीन है और मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि जैसा मैंने कहा है वैसा ही करो मैं व्यर्थ में राज्य के नौजवानों को मरवाना पसंद नहीं करूंगा रक्षा मंत्री के आदेश के बाद सेनापति मजबूर हो गया और उसने हथियार डाल दिए।
राजा विष्णु दत्त जो मैदान के एक दूसरे छोर में दुश्मनों से लोहा ले रहा था। वह एकाएक अपनी सेना को हथियार डालते देख अचंभे में पड़ गया लेकिन इससे पहले कि वह अपनी सेना को शत्रु को खदेड़ने का आदेश देता, एक साथ दुश्मन के सैकड़ों सैनिकों ने राजा को तीनों और से घेर लिया और उसे बंदी बनाने का प्रयास करने लगे।
ठीक उसी समय जब एक शत्रु सैनिक राजा को बंदी बनाने वाले थे। एक युवक तीर की तरह शत्रु के सैनिकों को चीरता हुआ राजा विष्णु दत्त के पास पहुंचा और उससे कहा - राजन हथियार उठाइए आपने युद्ध करना बंद क्यों कर दिया?
राजा अभी भी उस झटके से उबर नहीं पाया था कि आखिर क्यों सेना ने एकाएक हथियार डाल दिए। उस युवक द्वारा कही गई कोई भी बातें राजा के समझ नहीं आ रही थी, या तो फिर राजा उनका जवाब नहीं दे पा रहा था।
युवक ने दुश्मन सेना को आगे आता हुआ देख खुद आगे बढ़कर राजा के हाथ से धनुष लेकर अपने थैले में पड़ा एक तीर निकाला और निशाना साध कर शत्रु सैनिकों पर छोड़ दिया।
तीर सनसनाता हुआ शत्रुओं की ओर लपका राजा और दुश्मन सैनिकों की आंखें आश्चर्य से फैल गई। जब युवक द्वारा छोड़ा हुआ एक तीर जब पच्चीस सैनिकों को एक साथ धरा शाही कर वापस उस युवक के पास लौट आया।
ऐसे ही युवक लगाता तीर उड़ता रहा और तीर द्वारा गिराए जा रहे सैनिकों की शवों की संख्या बढ़ती जा रही थी कुछ देर बाद यह हाल हुआ कि दुश्मन देश के सैनिक आश्चर्य से इस कारनामे को देखकर राजा को कैद में लेने का इरादा छोड़ कर खुद अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए।
राजा विष्णु दत्त जिन्हें अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था कि जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा वह सच है..! या फिर कोई मायाजाल।
अब राजा खुद को सचेत करते हुए युवक से पूछते हैं-युवक तुम कौन हो और यह चमत्कार तुमने कैसे कर दिखाया।
राजन यह सब इस चमत्कारी तीर के कारण संभव हुआ है यह तो मात्र कुछ हजार सैनिक थे।
अगर इससे कहीं बड़ी सेना भी सामने होती तो यह तीर उन सभी का वध कर देता कहते हुए युवक ने अपना तीर राजा को दिखाया।
राजा उस युवक का बहुत ही आभारी था अतः उसने कहा हे युवक मैं तुम्हारी बहादुरी से बहुत प्रसन्न हूं अगर तुम सही समय पर नहीं पहुंचते तो यकीनन शत्रु सैनिक या तो मुझे कैद कर लेते या फिर मेरा वध कर देते।
मैं तुम्हारा आभारी हूं कृपया मेरे साथ नगर चलो युवक यह सुनकर प्रसन्नता के साथ उसके साथ नगर के लिए तैयार हो गया।
कहानी सुनाते हुए बीच में ही गंगाराम पटेल ने बुलाखी नाई से पूछा-क्या तुम समझ गए हो कि वे युवक कौन था..?
हां पटेल जी..!!
विशाल के अलावा और कौन हो सकता था। वह युवक और वह तीर जिससे उसने इतनी विशाल सेना को खत्म कर दिया उन्हीं साधु महाराज का दिया हुआ था।
बिल्कुल ठीक समझे वहीं युवक विशाल ही था। अब सुनो आगे की कहानी कहकर गंगाराम पटेल कहानी को आगे बढ़ाते हुए-
बुलाखी!
युवक की आभार से दबा राजा विष्णु दत्त उसे अपने महल ले आया जहां उसने युवक का खूब स्वागत सत्कार किया।उसे एक उच्च आसन प्रदान किया फिर पूछा युवक अब मुझे अपना नाम बताओ और अपने माता-पिता के बारे में बताओ कौन है वह..? और तुम कहां रहते हो?
युवक ने बताया-
राजन! मेरा नाम विशाल है। मैं अपनी माता के साथ आपके नगर के निकट एक बस्ती में रहता हूं, मेरी माता का नाम श्यामा देवी है। पिता का नाम बताने में मैं असमर्थ हूं क्योंकि आज तक मैंने भी उन्हें नहीं देखा और मेरे बार-बार आग्रह करने पर भी मेरी माता ने उनका नाम नहीं बताया।
विशाल के मुंह से श्यामा देवी का नाम सुनकर राजा विष्णु दत्त का कलेजा कुछ पल के लिए धड़क उठा। राजा मन में सोचने लगा कहीं इस युवक की माता श्यामा देवी हमारी बड़ी रानी तो नहीं जिन्हें गर्भावस्था की हालत में राजपुरोहित के कहने पर मैं जंगल में छोड़ आया था। और यह बहादुर युवक विशाल कहीं मेरा ही पुत्र तो नहीं?
जिसके विषय में राजपुरोहित जी ने भविष्यवाणी की कि कि यदि तो अपने पुत्र का मुख देख लिया तो उसी समय जीवन भर के लिए अंधे हो जाओगे?
मन में ऐसा विचार करते हुए राजा ने विशाल से अपनी माता के दर्शन करवाने का आग्रह किया।
राजा की बात सुनकर विशाल ने कहा क्यों नहीं महाराज यह तो उनका अहोभाग्य होगा कि एक राजा अपनी प्रजा के एक साधारण से नागरिक से मिलने खुद उसके घर जाए।
विशाल बहुत ही खुशी के साथ विष्णु दत्त को अपने घर ले गया राजा ने जो विशाल की मां श्यामा देवी को अपनी सामने देखा तो एक नजर में ही उसे पहचान गया।
अचानक उसके मुंह से निकला- महारानी श्यामा देवी तुम...?
श्यामा देवी ने झुककर राजा के चरण छुए और बोली हां महाराज आपने ठीक पहचाना है। मैं आपके चरणों की दासी वही श्यामा देवी हूं और यह युवक विशाल आपका ही पुत्र है स्वामी।
रानी श्यामा देवी रोने की आवाज लेकर बताती हैं कि- यह अभागा एक ऐसा व्यक्ति है जो अभी तक अपने पिता के सुख से वंचित है।
राजा लगातार अपने पिछले व्यवहार के लिए रानी श्यामा देवी से माफी मांग रहा था और कहा महारानी अब तक जो हो चुका है उसे भूल जाइए और अब राजमहल में चलकर अपने पद को प्रतिष्ठित कीजिए।
राजा की बात सुनकर रानी श्यामा देवी कुछ बोलती कि उसके पहले विशाल बोल पड़ा- राजन इतना तो मैं जान चुका हूं कि आप मेरे पिता है। किन्ही कारणों से आपने गर्भावस्था में मेरी माता का त्याग कर दिया था। मैं उन कारणों को जानना नहीं चाहता किंतु इतना अवश्य कहूंगा कि मेरी माता अब आपके राज महल में एक शर्त पर वापस जाएगी।
सशांक स्वर में राजा ने पूछा। कौन सी शर्त पर बेटा..?
आप स्वयं अपना कंधा लगाकर कहारों के साथ इन्हें पालकी में बिठाकर ले चलेंगे वह तब ही महल जाएंगी वरना नहीं।
राजा अपने पुत्र की है सर खुशी-खुशी स्वीकार कर लेता है और रानी की पालकी ढोने के लिए तैयार हो जाता है।
कहानी का समापन कर गंगाराम पटेल ने बुलाखी नाई से कहा अब तो तुम समझ ही गए होगे की पालकी में बैठी वह प्रौढ़ स्त्री कौन थी और उसकी पालकी को कहारों के साथ ढोने वाला राजपुरुष कौन था?
हां पटेल जी बिल्कुल समझ गया और मेरी शंका का भी समाधान हो गया अब मैं वापस जाने का विचार छोड़ कर आपके साथ यात्रा मैं आगे चलूंगा।
तो ठीक है अब तू भी सो जा और मुझे भी सोने दे मुझे नींद आने लगी है सुबह उठकर फिर से यात्रा शुरू करनी है कहकर गंगाराम ने चादर ओढ़ ली और बुलाखी भी सोने की कोशिश करने लगा।
Tags:
Hindi story