हिंदी कहानी - धोखे की सजा, गंगा राम और बूलाखी नाई की रोचक कहानियां हिंदी में | hindi story dhokhe ki saja | gangaram aur bulakhi nai ki rochak kahaniyan
आगे बढ़ते हुए गंगाराम पटेल और बुलाखी नाई ने एक और नगर पहुंचकर जब अपना पड़ाव डाला तो वहां बुलाखी नाई ने एक और अजीब नजारा देखा। उसने देखा कि एक चौराहे के पास एक चबूतरा बना हुआ है, उस चबूतरे पर एक जूता पड़ा है। उसके पास से लगकर एक सिपाही बैठा हुआ वहां की निगरानी कर रहा है। जो कोई भी राहगीर वहां से गुजरता वही उस जूते को उठाकर उस चबूतरे पर पांच बार मारता था।
यह सब कुछ देख कर जब बुलाखी वापस लौटा दो उसने पटेल जी से इस गुत्थी को सुलझाने का निवेदन किया। रात को सोते समय पटेल ने तब उसे कहा - बुलाखीराम...! अब मैं तेरे इस सवाल का उत्तर देता हूं, और तू ध्यान लगाकर सुन - इस नगरी के राजा का नाम है- वीर सिंह।
राजा वीर सिंह बड़ा प्रतापी राजा है, इस राजा की तीन रानियां थी सबसे बड़ी रानी का नाम श्यामा, मंझली रानी का नाम कृष्णा और सबसे छोटी रानी का नाम चंचला था।
राजा, अपनी दोनों बड़ी रानियों की अपेक्षा छोटी रानी चंचला को ज्यादा प्यार करता था, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि यह रानी बहुत दुष्टा और पपीता थी।
हे बुलाखीराम...! एक बार राजा वीर सिंह शिकार करने के लिए जंगल में गया तो उसने देखा कि एक गाय को एक सिंह ने अपने पंजों में दबाया हुआ था। गाय पीड़ा से बुरी तरह रंभा रही थी। वह उस दिन के पंजों से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, लेकिन सिंह ने उसे एक बुरी तरह से दबोचा हुआ था कि बेचारी गाय का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पा रहा था। यह देखकर राजा वीर सिंह को उस गाय पर बहुत दया आई। उसने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और तीर का निशाना बनाकर बाण छोड़ दिया। निशाना अचूक बैठा। राजा का बांड सिंह के कलेजे में जा धसा।
सिंह ने गाय को छोड़ दिया और पीड़ा से तड़पता हुआ चारों ओर चक्कर लगाने लगा, और कुछ ही देर बाद उसकी मृत्यु हो गई।
जब राजा को यह यकीन हो गया कि सिंह दम तोड़ चुका है तो वह गाय के समीप पहुंचा। गाय आभार भरी दृष्टि से उसकी दो देख रही थी। तभी वहां एक चमत्कार हुआ। जैसे ही राजा ने गाय के समीप पहुंचकर उसके घावों को सहलाना चाहा, अचानक गाय एक सुंदर स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई। यह देखकर राजा की आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। वह अचरज भरी नजरों से उस सुंदर स्त्री की तरफ देखने लगा। राजा को आश्चर्य में पड़ा देखकर उस स्त्री ने कहा -
हे राजन....! तुम आश्चर्य मत करो। दरअसल, मैं एक गंधर्व कन्या हूं जो इस वन में भ्रमण के लिए आई थी, और यह जो सिंह तुम ने मार दिया है, यह एक यक्ष था, जो मेरा कौमार्य भ्रष्ट करना चाहता था। इसे अपने पर जोर जबरदस्ती करते देख मैं घबरा गई और एक गाय का रूप धारण कर यहां से भागने लगी। इस यक्ष ने मेरा मंतव्य तार लिया। और इसने भी शेर का रूप धारण कर लिया और मेरा पीछा करने लगा। मैं जानती थी कि मेरे जोर-जोर से रंभाने की आवाज सुनकर कोई ना कोई दयालु शिकारी इधर जरूर आएगा, और मुझ पर दया कर मुझे बचा लेगा। प्रभु ने मेरी प्रार्थना सुन ली और तुमने मुझे आकर बचा लिया।
गंधर्व कन्या ने आगे कहा राजन क्योंकि तुमने मेरी जान बचाकर मुझ पर बड़ा उपकार किया है, इसलिए मैं भी तुम्हें एक रहस्य की बात बताना चाहती हूं सुनो सिंह बने इस यक्ष के पेट में ऐसा दिव्य फल है, जो किसी को भी चिर यौवन दे सकता है। उस फल को खाने से व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होगा वह व्यक्ति सदैव जवान बना रहेगा, अतः तुम इस सिंह के पेट को का डालो और उस पल को निकाल लो घर ले जाकर पहले इसे गंगाजल से खूब अच्छी तरह धोना और इसका उपयोग करना इससे तुम्हारी आयु बढ़ जाएगी और तुम पर बुढ़ापा नहीं आ पाएगा।
ऐसा कहकर वह गंधर्व कन्या अदृश्य हो गई राजा ने तब सिंह का पेड़ पालक व दिव्य पल निकाल लिया और उसे लेकर नगर लौट गया घर आकर उसने विफल गंगाजल से धोकर शुद्ध कर लिया वह उसे खाने का विचार कर ही रहा था कि तभी उसके मन में एक विचार आया उसने सोचा कि क्यों ना यह पल रानी चंचला को खिला दूं इस फल के खा लेने से उसका यौवन चिर स्थाई हो जाएगा और फिर अनेकों वर्षों तक मैं उसके यौवन का उपभोग करता रहूंगा।
ऐसा विचार कर राजा अपनी छोटी रानी चंचला के कक्ष में जा पहुंचा और उसने वह फल उसे देकर बोला - मेरी हृदयेशश्वरी रानी चंचला यह पल मैं तुम्हारे लिए विशेष रूप से लेकर आया हूं तुम इसे खा लो इस फल की विशेषता यह है कि जो भी व्यक्ति से खाएगा उससे कभी बुढ़ापा छू नहीं सकेगा तुम इसे खा लोगी तो तुम्हारा यवन भी अनंत काल के लिए स्थाई हो जाएगा तुम कभी बूढ़ी नहीं होगी।
रानी चंचला बोली ठीक है स्वामी आप इसे यहीं रख दीजिए मैं स्नान करके शुद्ध होकर इसका सेवन कर लूंगी।
बुलाखी! राजा सचमुच ही अपनी इस रानी को हृदय से चाहता था किंतु रानी चंचला का उसके प्रति प्यार सिर्फ एक दिखावा था वह राजा से प्यार नहीं करती थी। वह तो एक युवा सन्यासी से प्यार करती थी जो प्रायः आशीर्वाद देने के बहाने उसके महल में आता रहता था राजा के जाने के बाद रानी चंचला ने सोचा कि क्यों ना मैं इस पल को अपने प्रेमी उस सन्यासी को दे दूं फल खाकर वह हमेशा जवान रहेगा और मैं वर्षों तक उसके साथ आनंद लेती रहूंगी ऐसा विचार कर उसने वह फल वही रख दिया।
बुलाखी...।
गंगाराम पटेल ने आगे बताया वह सन्यासी भी चरित्र का गंदा था रानी के साथ-साथ उसने एक वेश्या के साथ भी अपने अनैतिक संबंध बनाए हुए थे वह उस वजह से बहुत प्यार करता था।
अतः उसने स्वयं वह फल खाने के स्थान पर अपनी प्रेमिका को दे दिया फल पाकर वैश्या अपने मन में विचार करने लगी कि मेरी जिंदगी तो एक पाप भरी जिंदगी है ना जाने कैसे-कैसे लोग मेरे पास आते हैं और कुछ धन देकर मेरे शरीर को रौंद कर चले जाते हैं, जाने कब तक यह पाप में जीवन जीना पड़े जबकि मै ऐसी हालत में ज्यादा दिन तक जीना नहीं चाहती। और इसलिए उसने यह विचार बनाया कि क्यों ना इस फल को मैं इस नगर के राजा को भेद कर दूं राजा इस फल को खाकर सदैव जवान रहेंगे और अधिक समय तक इस देश को और अपनी प्रजा को सुखी रख सकेंगे।
ऐसा विचार करते हुए वह वैश्या राजा के दरबार में जा पहुंची और वह दिव्य पल राजा को भेंट कर दिया राजा ने तुरंत वह पल पहचान लिया और वह सोच में पड़ गया कि यह दिव्य पल तो मैंने अपनी नानी चंचला को खाने के लिए दिया था इस वेश्या के पास यह पल कैसे पहुंच गया उसने वैश्या से पूछा कि तुम्हारे पास यह पल कहां से आया तो वैश्या ने उसे बताया राजन एक नौजवान सन्यासी ने मुझे यह फल दिया था,
वह सन्यासी मेरी सुंदरता पर मोहित है यदा-कदा मेरे पास आता रहता है यह कहकर उस सन्यासी का हुलिया राजा को बता दिया सन्यासी का हुलिया जानकर राजा समझ गया कि निश्चित यह वही सन्यासी व्यक्ति है जो आशीर्वाद देने के बहाने अक्सर रानी चंचला के महल आता रहता है तब उस फल को लेकर राजारानी चंचला के पास पहुंचा उसने रानी से पूछा रानी मैंने जो दिव्य फल तुम्हें खाने के लिए दिया था क्या तुमने उसे खा लिया है।
हां स्वामी रानी मुस्कुरा कर बोली उसे तो मैंने उसी दिन खा लिया था झूठ बोलती हो तुम राजा क्रोध में भरकर बोला सच तो यह है कि तुमने उस फल को खाया ही नहीं बल्कि अपने प्रेमी सन्यासी को दे दिया था जो अक्सर तुम्हारे कक्ष में तुम्हें आशीर्वाद देने के बहाने आता रहता है वह सन्यासी के रूप में एक शैतान है हमने पता लगा लिया है कि उसके एक वेश्या के साथ भी शारीरिक संबंध है उसी वैश्या से हमें यह दिव्य पलाज प्राप्त हुआ है यह कहकर उसने रानी चंचला के आगे वह पल रख दिया।
उस पल को देखकर रानी चंचला कुछ ना बोल पाई उसका चेहरा पीला पड़ गया उसके मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था वह राजा के पैरों पर गिर पड़ी और अपना अपराध कबूल कर लिया राजा से माफी मांगने लगी लेकिन राजा तो क्रोध में भरा हुआ था उसने उसी घड़ी जल्लाद को बुलाकर रानी का सिर कटवा दिया सन्यासी को भी ढूंढ कर उसने उसे कारागार में डलवा दिया फिर उसने चौराहे पर रानी का कटा से और उसका धड लाकर उसे जमीन पर दफन करवा दिया।
उसने उस स्थान पर एक चबूतरा चबूतरा बनवाया और नगर वासियों के लिए आदेश जारी करवा दिया कि जो कोई भी नागरिक उस स्थान से गुजरे हुए उस बेवफा रानी की मजार पर दिनकर पांच जूते जरूर मारे।
सो यही है बुलाखी! आज तुझे दृश्य को देखकर आया है वह उसी रानी की मजार है राजा के आदेश से वहां से गुजरने वाले लोग उस मजार पर पांच जूते मार कर ही आगे बढ़ते हैं ऐसा न करने वाले को दंडित किया जाता है इसी के लिए वहां एक सिपाही बैठा रहता है जो इस बात का ध्यान रखता है कि किसने राजा के आदेश का पालन किया है। और किसने नहीं।
इतना कहकर गंगाराम पटेल चुप हो गए इस बार उन्होंने बुलाकी से यह पूछने की आवश्यकता महसूस नहीं की कि उसकी समस्या का समाधान हो गया है या नहीं वह अपनी चादर ओढ़ कर निंद्रा देवी की गोद में चले गए और अगले दिन फिर एक यात्रा के लिए खुद को तैयार जो करना था।
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