गंगाराम और बुलाखी बाजार से गुजर ही रहे थे, कि तभी बुलाखी राम ने देखा कि एक स्त्री हाथों में नंगी तलवार दिए व्यक्ति का पीछा कर रही थी। और वह जान बचाने के लिए भागा जा रहा था। रात होते ही बुलाखी ने गंगाराम से इस रहस्य पर से पर्दा हटा ने की गुजारिश की तब गंगाराम ने उसे यह कहानी सुनाई।
तीसरा चरित्र / त्रिया चरित्र |
गंगा तट पर बसे इस नगर में एक व्यापारी रहता था, जिसका नाम है- रामचरण। अब से कुछ वर्ष पहले रामचरण के पिता धर्म सेन ने उसका विवाह पटना निवासी अपने मित्र की बेटी फूलवती के साथ कर दिया था। फूलवती अति सुंदर थी उसके पिता ने उसके विवाह में काफी दान दहेज भी दिया था। इस कारण जब धर्म सिंह के घर में उसके बेटे की बहू बनकर आई तो सभी ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया।
वह घर की सबसे चहेती बहू बन गई राम चरण अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। और उसकी हर इच्छा को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार रहता था संयोग से 1 दिन सेठ धर्म सेन जब गंगा में नौका विहार कर रहे थे गंगा के भवर में नाव फस गई और भवर में चक्कर लगाने लगी इस विकट परिस्थिति से राम चरण के माता-पिता घबरा गए घबराहट में नौका का किनारा उनके हाथ से छूट गया और यह दोनों गंगा की लहरों में समा गए रामचरण ने उनकी बहुत खोज करवाई किंतु उनका कहीं पता नहीं लगा थक हार कर रामचरण ने अपने माता-पिता का क्रिया कर्म करवा कर सामाजिक दायित्व निर्वाह कर दिया।
पिता के मरने के बाद व्यापार का सारा भार राम चरण के कंधों पर आ गया इस कारण उसकी व्यस्तता बढ़ गई हिसाब किताब के सिलसिले में वे देर रात तक अपनी दुकान पर रुकने लगे।
और बाहर के प्रदेशों में भी व्यापार के सिलसिले में जाने लगे इस कारण पत्नी को देने के लिए उसके पास समय का अभाव हो गया यह स्थिति उसकी पत्नी फूलवती के लिए असहनीय हो गई।
कहां तो अपने पति से उसका मिलन प्रतिदिन होता था, और अब ऐसी हालत हो गई कि दो 2 महीने बाद जब रामचरण घर लौटता तो मात्र कुछ ही दिन घर पर ठहर पाता, व्यापार के सिलसिले में उसे फिर से यात्रा पर निकल जाना पड़ता था फूलवती प्रतिदिन उसके लौटने की प्रतीक्षा करती और रात को अकेले ही अपने बिस्तर पर मन मार कर सो जाती थी।
बुलाखी ....!!
फूलवती जवान थी, उसकी भी कुछ उमंगे थी, कुछ अरमान थे पति की निकटता पाने की इच्छा उसके मन में हर समय विद्वान रहती थी। अतः जब बहुत व्याकुल रहने लगी तो एक दिन उसके कदम लड़खड़ाने लगे और वह अपने मन को शांत करने का कोई उपाय सोचने लगी।
संयोगवश एक दिन एक (मनिहारा) चूड़ी वाला उसके पास चूड़ी बेचने आया।वह चूड़ी वाला गबरू जवान था। लंबा चौड़ा, आंखो में सूरमा सफेद कुर्ते में वह चूड़ी वाले ने फूलवती के मकान पर आकर चूड़ी बेचने के लिए आवाज लगाई तो फूल वती भी नीचे उतर आई।
वह मनिहारा पहली ही नजर में फूलवती के मन में उतर गया। और जब उसने फूलवती का कोमल हाथ अपने हाथ में लेकर यह पूछा कैसे रंग की चूड़ियां पहनाई सेठानी।
तो अनायास ही फूलवती के मुंह से निकल गया जैसी चूड़ियां तुम्हें पसंद हों।
बुलाखी...!!
उस दिन से कैसे उस मनिहारे और फूलवती के बीच संबंध स्थापित हो गए, यह एक अलग कहानी है फिलहाल इतना जान लो कि फूलवती उस मनिहारे से अपनी इच्छा पूर्ति करने लगी।
अब उसके स्वभाव में बहुत अधिक परिवर्तन आने लगा था अब फूलवती फूलों की तरह खिली हुई नजर आने लगी थी।
जब चूड़ी के बहाने वह मनिहारा आवश्यकता से अधिक फूलवती के मकान के आसपास चक्कर लगाने लगा था। पड़ोसियों को उसके संबंध पर शक होने लगा और दबी जुबान से यह चर्चा होने लगी कि व्यापारी रामचरण की पत्नी और मनिहरे के बीच संबंध बन गए है।
एक दिन रामचरण लगभग दो महीने के बाहरी प्रवास के बाद जब घर लौटा तो वह अपने साथ बहुत सारे उपहार लेकर आए लेकिन फूलवती ने उन उपहारों पर जैसे ध्यान ही नहीं दिया। न ही वह रामचरण के साथ समय बिताने को व्याकुल दिखी, रामचरण को शक हुआ। की कही मेरी अनुपस्थिति में मेरी पत्नी के किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध तो नहीं हो गए।
लेकिन राम चरण खुद को काबू कर चुप रहा और फूलवती के प्रति अपना व्यवहार पहले जैसा ही बनाए रखा। एक दिन उसने फूलवती से कहा- प्रिये! मुझे दुख है कि मैं अपने व्यापार के सिलसिले में ज्यादातर बाहर गांव ही रहता हूं।
फूलवती अचानक बोली तो क्या कल फिर बाहर जा रहे हो।
हां। रामचरण ने कहा- लेकिन तुम चिंता मत करो सिर्फ हफ्ते भर का काम है इस बार मै जल्दी लौट आऊंगा।
ठीक है। फूल बत्ती बोली- मै इतने दिन तक प्रतीक्षा कर लूंगी लेकिन, आप अपनी सेहत का ध्यान रखना।
इस प्रकार पत्नी को भरोसा देते हुए दूसरे दिन ही व्यापारी रामचरण घर से व्यापार करने के बहाने निकल गया। पर वह शहर से बाहर नहीं गया, उसका सारा दिन उसने अपने दोस्त के घर बिताया और रात के दस बजे होंगे जब वह अपने मकान पर जा पहुंचा।
मकान के पीछे एक ऊंचा आम का दरख़्त था रामचरण उस दरख़्त पर चढ़कर मकान की छत पर पहुंच गया। दबे पांव वह अपने कमरे की खिड़की के पास पहुंचा और खिड़की में बने छेद से उसने जो देखा उससे उसका समूचा जिस्म क्रोध से जल उठा।
स्वयं पर संयम बनाए हुए रामचरण उनकी बातें सुन रहा था। कि तभी फूलवती मनिहारेे से बोल पड़ी-अब तुम रोज रात को ही यहां आ जाया करो मेरे पति एक हफ्ते के लिए बाहर गए हैं। और जितना मैं उन्हें जानती हूं उन्हें लौटने में कम से कम दो हफ्ते जरूर लगेंगे।
फूलवती की बात सुनकर मनिहारा बोला देखो सेठानी मेरे लिए रोज-रोज यहां आना बहुत ही कठिन होता जा रहा है। मोहल्ले वाले अब हमारे संबंधों पर शक करने लगे हैं। हमारे लिए अब यही उचित होगा कि या तो हम अपने इस रिश्ते को समाप्त कर दें या फिर किसी प्रकार तुम्हारा पति रूपी कांटा सदैव के लिए मार्ग से हट जाए।
फूलवती ने कहा दूसरा उपाय उचित लगता है लेकिन इस उपाय को साकार कैसे किया जाए हम दोनों को इस पर विचार करना होगा।
खुद की मौत का षड्यंत्र सुनकर रामचरण कुछ ज्यादा देर यह सब नहीं सुन सका...।
उसने उसी क्षण निर्णय कर लिया कि आज रात ही आरपार की लड़ाई होगी इससे पहले कि यह दोनों मुझे मार डाले मुझे इन दोनों में से एक को समाप्त कर देना चाहिए ऐसा विचार करते हुए वह अपनी दुकान पर जाकर एक तेज़ धार खंजर ले आया और वापस आ कर दरख़्त के सहारे कुछ ही क्षणों में वह छत पर जा बैठा।
आधी रात में जब दोनों गहरी नींद में थे, मौका देखकर राम चरण अपने कक्ष में घुसा और सोते हुए मनिहारी की गर्दन रेत डाली।
सुबह जब फूलवती की आंख खुली तो उसने अपने प्रेमी को मरा हुआ पाया। और यह देखकर व घबरा गई। उसने सोचा कि यदि लाश उसके घर से बरामद हो गई तो निश्चय ही उसे फांसी पर लटकाना होगा।
इसलिए उसने बहुत सोच विचार कर लाश से पीछा छुड़ाने के लिए, उस लाश के कई टुकड़े लिए और बोरे में डाल कर, कर गंगा स्नान के बहाने उस बोरे को ले जाकर गंगा में बहा आई।
राम चरण उस वृक्ष पर चढ़कर यह सारा दृश्य अपनी आंखों से देख रहा था यह देख कर उसे इस बात का सुकून तो मिला कि आखिर उसने अपने प्रतिद्वंदी से पीछा छुड़ा लिया है। अब उसकी पत्नी की बारी थी।
दिए हुए समय के अनुसार रामचरण अपने घर वापस लौटा और अपने साथ फूलवती को देने के लिए बहुत सारी छोटी छोटी बोरियों में बंद अनेक उपहार लेकर आया उसने वह सारे उपहार अपने कक्ष के बाहर ही रख दिए।
खाना पीना खाकर जब पति पत्नी बातें करने बैठे तो पत्नी ने पूछा इस बार ऐसा लगता है, मेरे लिए ढेर सारे उपहार लेकर आए हो?
हां..! लेकिन जल्दबाजी में उन्हें दरवाजे के पास ही छोड़ आया। तुम ऐसा करो एक एक करके सारे उपहार देख लो और बोरियों से खोल कर व्यवस्थित ढंग से सजा लो।
राम चरण की पत्नी बाहर जाकर एक बोरी उठाती है, लेकिन वह उससे नहीं उठती। इस पर वह बोल उठी यह तो बहुत भारी है, मुझसे उठाए नहीं उठती।
यह सुनकर रामचरण के मुख से निकल गया-क्या यह बोरी मनिहारी की लाश से भी भारी है? जिसे तुम गंगा में बहा आई हो।
यह सुनकर फूलवती स्तब्ध रह गई। उसे समझ आ गया कि अब उसका भांडा फूट गया है। उसके पति को उसके और मानिहारे के प्रेम, और आगे जो हुआ सब का पहले से ही पता है। अब यह अवश्य मुझे दंड डलवाए बिना नहीं मानेगा।
अब इससे पहले कि यह नगर कोतवाल को इस घटना की सूचना दें मुझे इसे खत्म कर देना चाहिए।
ऐसा सोच कर फूलवती नीचे उस कमरे की तरफ फागी जहां वह तलवार रखी थी जिसे कभी दूल्हा बनते समय रामचरण ने पहना था। जब तक राम चरण को यह बात समझ आई तब तक फूलमती के हाथों में तलवार लग चुकी थी।
वह जल्दी से तलवार खूंटी से उतारकर मयान से बाहर खींचकर रामचरण की ओर दौड़ी अपनी पत्नी को साक्षात रणचंडी बना देखकर रामचरण अपने प्राण बचाने के लिए बाहर की ओर भागा।
अब स्थिति ऐसी हो गई की प्राण बचाने के लिए आगे आगे राम चरण भाग रहा था, और पीछे पीछे हाथ में तलवार लिए उसकी पत्नी फूलवती उसका पीछा कर रही थी।
कहानी को समाप्त करते हुए गंगाराम पटेल बुलाखी नाई से कहा- बुलाखीराम..!
आज तू जिस दृश्य को देख कर आया था, वह दृश्य उसी समय का था। अब बता..! तेरी जिज्ञासा शांत हुई या नहीं...?
हो गई पटेल जी।
बुलाखी बोला- आप तो जैसे अंतर्यामी हैं। सारी कहानी का खाका मेरी आंखों के सामने ऐसे नाच उठा, जैसे यह सब मेरे सामने ही घटित हुए हो।
बस तो फिर अब सो जा। आगे कल भी यात्रा करनी है। यह कहकर गंगाराम ने आंखें मूंद लीं।
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