सुबह होने पर गंगाराम पटेल और बुलाखी राम उठे। नित्य कर्मों को निपटा कर। सामान समेटा और अपनी यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में उन दोनों ने दोपहर के भोजन के लिए अपना पड़ाव एक नगर में डाला और दिन ढलते ढलते एक नए नगर जा पहुंचे।
वहां वे एक धर्मशाला में ठहर गए। हर बार की तरह इस बार भी बुलाकी राम रात के खाने का सामान लेने बाजार की तरफ निकल पड़ा और वहां से लौटते समय उसने जो दृश्य देखा, वह उसका भेद जानने को बेचैन हो गया।
इस बार बुलाकी राम भोजन के बाद पटेल जी के बिस्तर और हुक्के की व्यवस्था कर उनके पैर दबाता हुआ उनसे बोला- अब तो आप भोजन आदि कर चुके हैं। क्या अब मैं अपनी बात कहूं जो आज बाजार से लौटते समय मैंने देखा है?
पटेल विनोद भरे स्वर में बोले-
हां-हां भाई...! जरूर कहो। तुम्हारी इस शर्त को मान कर ही तो मैं तुम्हें साथ लाया हूं।
पटेल जी आज जब मैं बाजार से सामान खरीद कर वापस लौट रहा था तो मैंने एक दुकान के बाहर भीड़ जुटी हुई देखी। यह देख मैं भी यह जानने के लिए वहां ठहर गया कि माजरा क्या है? किस कारण यह भीड़ खड़ी है?
मैंने देखा कि एक वैश्य की दुकान के नीचे एक बारह-तेरह वर्षीय लड़के की लाश पड़ी हुई है।
लाश के समीप ही उस लड़के के मां-बाप बैठे सिसक रहे थे। तभी एक व्यक्ति वहां पहुंचा। उसमें और वैश्य में कुछ वार्तालाप हुआ, फिर उस व्यक्ति ने लड़के के पिता से किसी बात की शपथ लेने के लिए कहा। लड़की के पिता ने जैसे ही शपथ ली की मृतक लड़का जीवित होकर खड़ा हो गया।
यह देखकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा मैं तत्काल ही वहां से चलकर आपके पास पहुंचा।
बस, तभी से मेरे पेट में इस बात का रहस्य जानने के लिए मरोड़े उठ रही थी, किंतु मुझे मालूम था कि आप बिस्तर में जाने से पहले कुछ बताएंगे नहीं, इसलिए खामोश ही रहा। अब आप मुझे उस रहस्य के बारे में बताइए।
सुनो बुलाखी राम ...!!
पटेल बोले यहां से कुछ कोसो के फासले पर एक गांव है- मनकापुर।
उस गांव में चंद्रभान नाम का एक गरीब ब्राह्मण निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम पुष्पा था। नाम के अनुकूल उसकी पत्नी बहुत ही अच्छे स्वभाव की थी। ब्राम्हण भी बहुत नेक और अच्छे आचरण वाला था। उनका एक बेटा भी था, जिसकी आयु तक दस वर्ष की हो चुकी थी। उसका नाम था- सूरज।
चंद्रभान नाम का वह ब्राम्हण बहुत गरीब था। उसके पास जमीन भी ज्यादा नहीं थी,उस जमीन से जो भी अनाज पैदा होता, उसी के सहारे उनका निर्वाह होता था। अपनी आर्थिक स्थिति से तंग आकर एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा सुनो पुष्पा- यहां गांव में रहकर निर्वाह करना प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है।
इसलिए मैंने सोचा है, कि एक-दो दिन में यह गांव छोड़कर किसी बड़े नगर को चल पड़ेंगे। बड़े शहरों में काम की कोई कमी नहीं होती। ईश्वर ने चाहा तो हम वहां किसी की नौकरी कर लेंगे और आराम से जीवन व्यतीत करेंगे।
कुछ सालों बाद जब हमारे पास कुछ धन इकट्ठा हो जाएगा तो हम वापस लौट आएंगे और उस धन से कोई व्यापार कर लेंगे। इस तरह आसानी से हमारे जीवन का निर्वाह हो जाएगा। अब बताओ, तुम्हारी क्या राय है इस बारे में..?
मेरी राय तो वही है जो आपकी है। चंद्रभान की पत्नी ने कहा- जैसा आपको उचित लगे वैसा कीजिए। मैं आपके साथ हूं। इस प्रकार विचार करके चंद्रभान अपनी पत्नी और पुत्र को साथ लेकर शहर के लिए चल पड़ा।
शहर में पहुंचकर चंद्रभान ने एक वैश्य के यहां नौकरी कर ली। उसकी पत्नी ने भी एक महाजन के यहां खाना बनाने की नौकरी कर ली। इस तरह से उनका निर्वाह ठीक ढंग से होने लगा।
चंद्रभान परिश्रमी आदमी था। एक साल बाद उसका काम देख कर वैश्य ने उसकी तनख्वाह बढ़ा दी। इस तरह से वह अपने परिवार का भरण पोषण करने के पश्चात कुछ धन भविष्य के लिए बचाने लगा। तीन साल बाद उन दोनों की कमाई से पांच हजार रूपए इकट्ठे हो गए तब दोनों ने अपनी अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने गांव लौट पड़े। शाम के समय वे इसी नगर में पहुंचे।उन्होंने रात्रि विश्राम के लिए किसी उपयुक्त जगह की जानकारी चाहिए थी। सामने उसी वैश्य की दुकान थी, जिसे तुम देख कर आए हो, और..
चंद्रभान उसी के पास पहुंचा और बोला सेठ जी...! मैं यहां परदेसी हूं। मेरे साथ मेरा परिवार भी है। मैं रात्रि विश्राम के लिए किसी उपयुक्त जगह की खोज में हूं। क्या आप मुझे कोई ऐसा स्थान बता सकते हैं, जहां हम सुरक्षित रह सके?
कोई जोकिंग की चीज तो नहीं है तुम्हारे पास? मेरा मतलब है रुपया-पैसा।
वह तो है सेठ जी। इसलिए तो मैं किसी सुरक्षित जगह पर रात को ठहरना चाहता हूं।
देखो भाई- तुम्हारे रात्रि विश्राम के लिए तो मैं तुम्हें जगह दे सकता हूं, लेकिन तुम्हारे पास मौजूद रुपयों की जिम्मेदारी नहीं ले सकता। यह शहर चोर लुटेरों के लिए बहुत बदनाम है। कोई चोर लुटेरा रात में आता तुम्हारा धन छीन ले गया तो मेरी बहुत बदनामी होगी। तुम एक काम करो, तुम्हारे पास जितना धन है, वह मेरे पास जमा कर दो। सवेरे जब तुम जाने लगो, तो अपना धन वापस ले लेना।
ठीक है सेठ जी। आप इस शहर के सम्मानित नागरिक हैं, हमें आप पर पूरा विश्वास है कि आप अमानत में खयानत नहीं करेंगे। मेरे पास पांच हजार रूपए हैं। उन्हें आप अपने पास जमा कर लीजिए। सुबह जाने से पहले मैं आपसे अपना रुपया वापस ले लूंगा। ऐसा कहकर चंद्रभान ने अपने पैसे उस वैश्य के पास जमा करवा दिया।
वह रात चंद्रभान और उसके परिवार ने सेठ की दुकान के बाहर लगे फट्टों पर सो कर काट ली। सुबह जब सेठ ने दुकान खोली तो चंद्रभान ने उससे अपना पैसा वापस मांगा। इस पर सेट की त्योरियां चढ़े गई। उसने तेज आवाज में पूछा- कौन सा पैसा? तुमने मुझे कोई पैसा नहीं दिया था।
इस पर दोनों में विवाद होने लगा पड़ोसी और राहगीर जमा हो गए। सेठ के पड़ोसियों ने तब उसका विवाद खत्म करने के लिए चंद्रभान से कहा-देखो भाई! तुम कहते हो कल रात तुमने इनके पास पांच हजार रूपए जमा कराए थे, जबकि यह सेट इस बात से साफ इनकार कर रहा है। अब कौन सच्चा और कौन झूठा, इसका फैसला तो शपथ लेकर ही किया जा सकता है।
क्या तुम अपने इकलौते बेटे की कसम खाकर यह बात कह सकते हो कि तुमने रात इस सेठ के पास पांच हजार रूपए जमा कराए थे?
चंद्रभान बोला- हां बिल्कुल कह सकता हूं। जो सच बात है उसके लिए मैं कैसी भी शपथ लेने को तैयार हूं।
क्यों सेठ, क्या तुम्हें भी यह बात मंजूर है?
सेठ बोला- बिल्कुल मंजूर है।
न्यायकर्ताओं ने तब चंद्रभान से उसके बेटे के सिर पर हाथ रखकर यह कसम खाने के लिए कहा था कि- यदि उसकी सफर झूठी है तो तत्काल उसके बेटे की मृत्यु हो जाए।
पटेल ने आगे कहा किस्मत का खेल देखो जैसे ही चंद्रभान ने अपने बेटे चंद्रदेव के सिर पर हाथ रखकर यह शपथ ली कि तत्काल उसके बेटे की मृत्यु हो गई।
झूठा होते हुए भी उस सेठ के चेहरे पर विजय के भाव थे चंद्रभान और उसकी पत्नी भी सन्न रह गए वहां उपस्थित भीड़ और न्याय कर्ताओं ने चंद्रभान को बहुत लानत दी, क्योंकि वह झूठा साबित हो गया था। पुष्पा की हालत ऐसी हो गई जैसे भरे बाजार में उसे नंगा कर दिया गया हो। पति पत्नी दोनों ही सिसक रहे थे और भी उनका मजाक उड़ा रही थी।
तभी उस भीड़ में से निकल कर एक आदमी चंद्रभान के पास पहुंचा। उसने उससे कहा- देखो दोस्त! असली किस्सा क्या है, तुम मुझे सच्ची बात बताओ। क्या वास्तव में तुमने इस सेट को पांच हजार रूपए जमा करने के लिए दिए थे?
चंद्रभान बोला- यह बात मैं कई बार दोहरा चुका हूं लेकिन किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा, उल्टा सभी लोग मुझे बेईमान कह रहे हैं।
तब एक बार तुम मेरे सामने अपने लड़के की शपथ लेकर यह बात दोबारा कहो कि मेरी बात बिल्कुल सही है। मैंने सेठ के पास अपने पांच हजार रूपए जमा किए थे।
यदि तुम्हारी बात सत्य निकली तो तुम्हारा मृत्यु बेटा अभी जीवित होकर उठ खड़ा होगा।
फिर उस आदमी ने सीट से कहा- क्यों सेठ तुम्हें मंजूर है यह बात?
बिल्कुल मंजूर है। भला मुझे क्या एतराज हो सकता है,लेकिन यह आदमी झूठा है। इसका झूठ साबित हो चुका है। बेटे की शपथ लेने के बाद इस ने झूठ बोला, इसलिए इस के बेटे की मौत हो गई।
बेशक बेशक वह व्यक्ति बोला पर अगर इस बार शपथ लेने के बाद इसका बेटा जीवित हो जाए उस सूरत में तुम्हें इसे पांच हजार नहीं दस हजार रूपए वापस लौटाने होंगे। बोलो मंजूर है?
सेठ ने ताब में कह दिया- कहा तो है मुझे यह चुनौती मंजूर है।
उस व्यक्ति के कहने पर चंद्रभान ने अपने मृत बेटे की शपथ लेकर अपनी बात दोहरा दी। शपथ लेते ही एक चमत्कार हो गया। चंद्रभान का मृत बेटा जीवित होकर उठ बैठा। सारी भीड़ यह देखकर हैरान रह गई।तब सेठ को वादे के अनुसार चंद्रभान को पाच की जगह दस हजार रूपए लौटाने पड़े।
इतनी कहानी सुना कर गंगाराम पटेल ने आगे कहा-बुलाखी औरों की तरह तुझे भी इस बात पर जरूर आश्चर्य हो रहा होगा कि आखिर वह व्यक्ति था कौन? जिसने ना सिर्फ चंद्रभान के बेटे सूरज को जीवित किया अपितु जिसने सीट से उसे दोगुना धन वापस दिलवाया, तो सुन!
मानव के वेश में वह व्यक्ति साक्षात कलयुग था। जो अपने कलिकाल का प्रभाव लोगों को दिखाना चाहता था। यह कलयुग है बुलाकी इस काल में कैसी भी अनहोनी घटना घट जाए तो उस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए आज तू जिस दृश्य को देखकर आया था वह वही दृश्य था उम्मीद है अब तेरी जिज्ञासा शांत हो गई होगी।
पटेल जी ने इतना कहते हुए बुलाकी को यह याद दिलाया कि सुबह एक बार फिर हमें काशी के लिए यात्रा प्रारंभ करनी है और इतना कह कर उन्होंने अपनी आंखें मूंद ली और निंद्रा की गोद में समा गए।
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