काशी की यात्रा पर आगे बढ़ते हुए वे दोनों एक दूसरे बड़े नगर के पास वाले जंगल में जा ठहरे हर बार की तरह इस बार भी गंगाराम पटेल ने अपने कुर्ते से कुछ पैसे निकाल कर बुलाखी राम को थमा दिए और खाने का सामान तथा घोड़े का चारा लेने जाने को कहा।
बुलाखी राम खाने-पीने की सामग्री जुटा कर वापस लौट ही रहा था कि रास्ते में एक अजीब सा दृश्य देखकर वह खड़ा रह गया।
उसने देखा कि सोलह साल का एक लड़का एक मिट्टी के चबूतरे पर बैठा है। एक पुरुष उस लड़के के पैर छूकर बार-बार उसके सामने हाथ जोड़ रहा है उस पुरुष के पास ही एक स्त्री खड़ी है जो चिंतित नेत्रों से कभी उस पुरुष को, तो कभी उस लड़के को देख रही है।
यह अजीब सा दृश्य देखकर बुलाखी राम को कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन उसका चेहरा यह सोचकर खिल उठा कि आज तो गंगाराम पटेल फस ही गए समझो।
अब मैं जाकर यह दृश्य उन्हें बताऊंगा तो शायद वह इसका जवाब ना दे पाए। और तब मुझे यात्रा बीच में ही खत्म कर वापस लौटने का बहाना मिल जाएगा। यही सब सोचता हुआ वह शीघ्रता से लौट पड़ा वहां पहुंचकर उसने पटेल के सामने सारा वृत्तांत बता दिया और अंत में कहा पटेल जी अब या तो आप मुझे उन तीनों के बारे में बता कर मेरी शंका का समाधान करें, नहीं तो सुबह होते ही मैं अपने गांव की ओर चल दूंगा।
बुलाखी की जल्दबाजी देखकर पटेल मुस्कुराए और बोले - तू भी बुलाखी बस यूं ही है।
अरे रात तो होने दे। पहले पेट की भूख मिट जाने दे। फिर रात को सोने से पहले तेरी इस शंका का समाधान भी हो जाएगा। अब पहले तो घोड़े के भोजन की व्यवस्था कर। तब तक मैं भोजन तैयार कर लेता हूं।
रात को वे दोनों खाना खाकर फुर्सत हुए और बुलाकी राम ने पटेल जी का हुक्का भर कर उन्हें दिया। एक-दो कश लगाने के बाद पटेल जी बोले हां तो बुलाखी अब मैं तेरी शंका का समाधान करता हूं। सुन -
हम जिस नगर में ठहरे हुए हैं यहां के राजा का नाम है श्री देव। इस नगर के राजा को घोड़ों का बहुत शौक है।
एक बार गुलाम हुसैन नाम का एक मुस्लिम व्यापारी अपनी बेटी के साथ राजा के दरबार में अपने लाए हुए घोड़ों की सूचना देने पहुंचा।
मगर राजा की नजर व्यापारी की बेटी पर पड़ गई जो बहुत ही खूबसूरती थी। राजा पहले से ही विवाहित था। उसकी दो रानियां थी मगर उन दोनों से ही राजा को पुत्र की प्राप्ति अब तक नहीं हो पाई थी, दोनों ही रानियों से राजा को पुत्रियां ही प्राप्त हो सकी थी। यही सोचकर राजा ने किसी तरह उस व्यापारी को उसकी बेटी सहिरा और अपने विवाह के लिए किसी तरह मना लिया और फिर दोनों का विवाह हो गया।
देखते ही देखते राजा ने साहिरा के लिए एक अलग महल भी बनवा दिया भगवान की कृपा से कुछ ही दिनों में सहिरा गर्भवती हो गई, और कुछ ही दिनों बाद उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
यह खबर सुनते ही राजा की दोनों रानियों के कान खड़े हो गए और उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी कि अब तो उनकी कोई इज्जत ही नहीं रहेगी। राजा सारा प्यार और सम्मान सिर्फ सहिरा को ही देंगे, इसी डर वश उन्होंने राजा के खास ज्योतिषाचार्य को बुलवाया उन्हें बुलाकर अपना सारा दुखड़ा सुनाने लगी।
तब ज्योतिष आचार्य ने कहा- हे रानियों!
इस पर मेरा कोई जोर नहीं चल सकता, मैं भला राजा के आगे क्या कर सकता हूं। तब रानियों ने ज्योतिषाचार्य को धन दौलत का लालच देकर उन्हें अपनी नीति के बारे में बताया ज्योतिष इतनी ज्यादा धन और दौलत के बारे में सोच कर ही कुछ ना बोल सका और वह भी उन दोनों के साथ उस षड्यंत्र में शामिल हो गया।
कुछ दिनों बाद राजा ने ज्योतिषाचार्य को अपने बेटे की ग्रह नक्षत्रों के बारे में जानने के लिए बुलवाया और यहीं से दोनों रानियों और ज्योतिषाचार्य का षड्यंत्र भी शुरू हो गया।
ज्योतिषाचार्य अपनी पूरी जांच पड़ताल और नक्षत्रों का गणित करने के बाद राजा से बोला- हे राजन..!
यह शिशु वर्णसंकर है। मेरे ज्योतिष ज्ञान के अनुसार आगे चलकर यह आपको बहुत कष्ट पहुंचाएगा जब इसकी आयु 16 वर्ष की होगी तो यह आपको राज गद्दी से उतार बाहर कर स्वयं ही राजा बन बैठेगा। और आपको कारागार में रहना पड़ेगा।
राजा श्री देव जो कुछ देर पहले तक पुत्र की प्राप्ति से बहुत प्रसन्न हो रहा था। ज्योतिष की यह बात सुनकर अचंभित रह गया उसने शंकालु स्वर में ज्योतिष से कहा-ज्योतिषी जी आप एक बार फिर से अपना हिसाब देख लीजिए। कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हुई आप एक बार फिर ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन कीजिए।
ज्योतिष बोला -
मेरा ज्योतिष ज्ञान कभी गलत बात नहीं कहता राजन..!
मैंने बहुत अच्छी तरह से आपके बेटे के ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन कर अपना निर्णय बताया है। आगे जैसी आपकी मर्जी।
यह कहकर ज्योतिष तो अपने रास्ते चल दिया। लेकिन राजा की रातों की नींद साथ ले गया। अब राजा रात भर सिर्फ यही सोचते रह गया कि क्या करूं या तो उसे मरवा दूं या फिर अपनी राजगद्दी का त्याग करूं यही सोचते हुए राजा ने अंतिम निर्णय लिया कि अपने पुत्र का वध करवाना ही सही होगा।
अगले ही दिन उसने दो जल्लादों को बुलवाया और उन्हें आदेश दिया की किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर इस शिशु का वध कर देना।
और साथ ही यह भी कहा कि अगर तुम दोनों ने यह काम सफलतापूर्वक पूरा कर दिया तो तुम्हें उचित इनाम दिया जाएगा। और यदि तुम दोनों यह काम सही से ना कर सके तो बीच चौराहे में तुम दोनों का सर कलम करवा दिया जाएगा।
धन की लालच में वे दोनों जल्लाद उस शिशु को एक पोटली में लेकर नगर से बाहर निकल गए एक वन में पहुंचकर वे दोनों उस बालक को नीचे रखकर उसे खत्म करने की तैयारी करने लगे तभी उस मासूम से शिशु ने अपनी भोली भाली आंखों और मासूमियत से उन दोनों जल्लादों का दिल मोह लिया था।
अब हाल यह था कि- वे दोनों में से कोई भी उस बालक की हत्या करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इसीलिए उन्होंने एक उपाय सोचा और एक सुरक्षित स्थान पर उस शिशु को छोड़कर निकल गए। वापस जाते हुए रास्ते में एक खरगोश का शिकार कर उसकी दोनों आंखें निकाल ली और महल पहुंचकर राजा को सबूत के तौर पर उस खरगोश की दोनों आंखें दिखा दी। यह देखकर राजा भी संतुष्ट हो गया।
भगवान की कृपा उस बालक पर बनी हुई थी। वे दोनों जल्लाद जहां उस बालक को छोड़ कर गए थे। वहीं से एक तेली व्यापारी अपना तेल का व्यापार पूरा कर जब शाम को लौट रहा था तो उसकी नजर उस बालक पर पड़ी।निसंतान होने की वजह से उसने भी उस बालक को भगवान का प्रसाद समझ अपने घर ले गया और उसका नाम पृथ्वी सिंह रख दिया।
समय के साथ जब पृथ्वी सिंह बड़ा होने लगा तो वह अपने दोस्तों के साथ भी खेल-खेल में राजा ही बनता और किसी को चोर तो किसी को सिपाही बनाता।
जैसे-जैसे उस बालक की आयु में वृद्धि हो रही थी वैसे ही उसके स्वभाव में भी उसके पिता का स्वभाव झलकने लगा था।
इतना कहकर गंगाराम पटेल बोले बुलाखी राम आज तुमने जिस बालक को मिट्टी के चबूतरे पर बैठा देखा था वह वही वाला पृथ्वी सिंह था।
आगे गंगाराम पटेल बुलाकी राम से कहा कि अब तो तुम समझ ही गए होंगे कि वह पूरा दृश्य और घटना क्या थी। अब चलो सो जाओ कल सुबह फिर एक नई दिशा में यात्रा प्रारंभ करना है।
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