गंगा राम पटेल और बुलाखी राम नाई इसी तरह अपना सफर जारी रखते हुए एक और नए नगर जा पहुंचे हैं। जहां हर बार की तरह इस बार भी नगर में प्रवेश कर बुलाखी राम ने एक अजीब सा दृश्य देखा जहां वह देखता है जो कि-
एक दैत्यनुमा आदमी और एक बारह वर्षीय बालक से संबंधित था। बुलाखी राम ने देखा कि बाजार में एक दैत्यनुमा आदमी डर कर भागा चला जा रहा था और एक लड़का जिसकी उम्र बारह वर्ष के आसपास होगी, एक जलती हुई लकड़ी लेकर उस दैत्य नुमा आदमी को पीटता जा रहा था।
बुलाखी राम नाई इस नजारे को देखकर उत्सुकता के साथ वापस लौट आया, और रात ढलने का इंतजार करने लगा। आखिरकार जब गंगाराम पटेल और बुलाखी राम नाई खाना खाकर जब अपने-अपने बिस्तर पर पहुंचे तब अपनी उत्सुकता का रहस्य खोलते हुए बुलाखी राम ने पटेल जी को पूरी बात बताई और इस रहस्य को उजागर करने का निवेदन किया-
गंगाराम पटेल ने कहा -
बुलाखी नाई सुन...!!
यहां से कुछ कुछ दूरी पर एक गांव है- खोहा।
उस गांव में एक जाट रहता था उसका नाम था। - हरि सिंह।
हरि सिंह की किरण नाम की एक बेटी थी। किरण का विवाह इसी नगर में यहां के एक धनी मानी व्यक्ति संत सिंह के साथ हुआ था। किस्मत का खेल देखो 2 साल बाद उसके पति की मृत्यु हो गई। किरण का एक बच्चा था, जिसका नाम कुंवर सिंह था।
पति की मृत्यु के बाद जब किरण का उसकी ससुराल में रहना मुश्किल हो गया तो वह अपने पुत्र को लेकर अपने पिता के पास चली आई।उसके पुत्र कुंवर सिंह का लालन-पालन अपने ननिहाल में ही हुआ।
समय बीतता गया। कुंवर सिंह भी बड़ा हो गया और गांव के अन्य बच्चों के साथ बाहर खेलने के लिए जाने लगा। एक दिन एक बालक में उसे 'बिना बाप' का कहकर चढ़ा दिया। तब उसने उस बालक की पिटाई कर डाली और घर आकर अपनी मा से जिद करने लगा कि वह उसे उसके पिता का नाम बताएं। यह भी बताएं कि इस समय वह कहां है?
बेचारी किरण..! वह अपने बेटे की बात सुनकर चुप हो गई। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
मां को रोता देखकर कुंवर सिंह उस दिन तो बाहर चला गया, लेकिन उस दिन के बाद वह बार-बार अपनी माता से आग्रह करता रहा कि उसे उसके पिता का नाम और पता बता दे।पर हर बार उसकी मां हंसकर उसके प्रश्न को टाल देती थी।
बुलाखी राम...!
एक दिन तो हद हो गई। कुंवर सिंह जब बारह वर्ष का हुआ तो एक दिन फिर उसके साथियों ने उसे 'बिना बाप' का कहकर चिढ़ा दिया। उस दिन उसे अपनी मां पर बहुत गुस्सा आया। वह घर पहुंचा और अपनी माता से बोला-मां, आज तुम्हें बताना ही होगा कि मेरे पिता कौन हैं? अगर तुमने यह बात मुझे ना बताई तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।
अपने लाडले की इस धमकी को सुनकर किरण घबरा गई फिर भी उसने बात को संभालने की कोशिश की और कहा- बेटा!
तुझे बताया तो कि इस समय मेरे पिता ही तेरे सरपरस्त हैं। वे तुझे प्यार भी तो पुत्र जैसा ही करते हैं, इसलिए तू उन्हें ही अपना पिता समझ।
नहीं मां...! मैं अपने नाना को अपना पिता कैसे मान लूं? मैं तो अपने उस पिता का नाम जानना चाहता हूं जिनकी मैं संतान हूं। जिनके अंश से मेरा जन्म हुआ है।
बेटा अपनी जिद पर अड़ गया तो मां को आखिर झुकना ही पड़ा। उसने कहा-नहीं मानता तो बेटा सुन..! तेरे पिता का नाम था संत सिंह। अब से लगभग चौदह-पंद्रह वर्ष पहले मेरा उनके साथ विवाह हुआ था, परंतु जब तेरी आयु सिर्फ एक वर्ष की थी, तब एक दिन उनकी मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु की क्या वजह थी, मां...?
क्या वे गंभीर रूप से बीमार हो गए थे?
नहीं मेरे लाल..! उनकी मृत्यु स्वाभाविक रूप से नहीं हुई थी, उन्हें एक प्रीत ने मार डाला था।
प्रेत ने..? लड़के ने आश्चर्य से पूछा प्रेत ने उन्हें कैसे मार डाला मां...?
क्या बताऊं बेटा। तेरे पिता का भरा पूरा परिवार था। खूब धन दौलत थी उनके पास। एक बहुत बड़ी हवेली थी, लेकिन देव योग से उस परिवार को ग्रहण लग गया। न जाने कैसे उस मकान में एक दिन एक प्रेत का संकट हो गया। उस प्रीत ने एक-एक करके परिवार के सभी लोगों को मार डाला।
जब तेरा जन्म हुआ तो मैंने तेरे पिता से उस प्रेत ग्रस्त हवेली को छोड़ देने की बहुत प्रार्थना की, लेकिन वे नहीं माने। दरअसल उन्हें भूत-प्रेतों जैसी बातों पर यकीन नहीं था। फिर हुआ यह कि एक दिन वह भी उस प्रेत का शिकार बन गए। तब मैं बहुत घबरा गई और उस हवेली को बंद करके तुझे लेकर यहां चली आई।
यहीं पर तेरा लालन-पालन हुआ और अब भी हो रहा है। यह सारी कहानी।
अपनी माता के मुख से यह कहानी सुनकर कुंवर सिंह के मन में बहुत शौक पैदा हुआ। उसने अपनी माता से कहा- हे मां..! तू मुझे उस हवेली की चाबी दे दे!
मैं वहां जाकर यह देखना चाहता हूं कि वह प्रेत कैसा है, जिसने हमारे सारे परिवार को मार डाला है?
ना बेटा, ना। पुत्र की बात सुनकर घबराई हुई मां ने कहा-मैं तुझे वहां नहीं जाने दूंगी। तू वहां गया तो वह प्रेत तुझे भी मार डालेगा। मैं तुझे खोना नहीं चाहती बेटा।
देखो मां मैं यह फैसला कर चुका हूं कि मैं उस हवेली में जाऊंगा अवश्य। तू मुझे खुशी-खुशी जाने की आज्ञा देगी तो ठीक है नहीं तो मैं तुझ से पूछे बगैर ही यहां से चला जाऊंगा। इसलिए कह रहा हूं कि उस हवेली की चाबी मुझे दे दे।
तेरा आशीर्वाद मेरे साथ रहेगा तो मैं उस प्रेत पर तो क्या, महा प्रेत पर भी विजय प्राप्त कर लूंगा।
बेटे की जिद के आगे मां हार गई। तब उसने आंसू पूछते हुए उस हवेली की चाबी कुंवर सिंह को सौंप दी। कुंवर सिंह उस दिन अपने प्रत्येक हवेली को देखने के लिए चल पड़ा।
शाम ढले वह शहर पहुंचा। रात के समय में उस प्रीत ग्रस्त हवेली पर नहीं जाना चाहता था अतः उसने एक धर्मशाला में रुक कर अपनी रात काटी। सुबह होते ही वह अपनी हवेली पर पहुंचा और चाबी से ताला खोलकर हवेली के अंदर चला गया। हवेली वर्षों से बंद पड़ी थी इसलिए उसमें बहुत गंदगी जमा हो गई थी।
जगह-जगह मकड़ियों ने अपने जाले बना लिए थे, चमगादड़ओं की तो एक तरह से पनाहगाह ही बन गई थी। पूरी हवेली में उल्लू और कबूतरों ने कई कमरों पर अधिकार जमाया हुआ था।
कुंवर सिंह हवेली की सफाई में लग गया। एक-एक करके उसने सारे कमरे साफ किए। आगन भी साफ कर दिया कमरों में अगर बत्तियां जला कर रख दी, ताकि हवेली में फैली बदबू दूर हो जाए पूरी हवेली को साफ करने में घंटों लग गए तब जाकर रहने योग्य हुई।
अब उसे चिंता हुई शाम के भोजन की।वह बाजार गया और वहां से भोजन बनाने के लिए प्रत्येक आवश्यक वस्तु खरीद लाया।कुंवर सिंह ने अपनी मां से खाना बनाना सीख लिया था। वह कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बना लेता था। उसने अपने हुनर का उपयोग करते हुए उसने तरह-तरह के व्यंजन तैयार किए। ऐसा करते-करते दिन ढल गया और रात का अंधेरा फैलने लगा। तब उसने दीपक जलाकर हर एक कमरे में रख दिया। दीपों के प्रकाश से हवेली जगमगा उठी। कुंवर सिंह ने अपने लिए भोजन परोसा और उसे लेकर चौकी में आ बैठा। अभी वह पहला निवाला तोड़ने ही वाला था कि जैसे वहां भूचाल आ गया हो। सायं-सायं की आवाजें आने लगी पूरी हवेली दहल उठी। देखते ही देखते एक महा भयंकर प्रेत आंगन में आकर खड़ा हो गया।
उस प्रीत को देखकर कुंवर सिंह पर जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा। वह एक तक उस प्रेत की ओर देखने लगा। तभी प्रेत की आवाज गूंजी-अरे लड़के..! कौन है तू, जो मेरे रहने के स्थान में निडर होकर आ बैठा है?
कुंवर सिंह ने विनम्र स्वर में कहा- हे प्रेतराज! आप नाराज ना हो। मेरा नाम है कुंवर सिंह और मैं किसी और जगह पर नहीं आया हूं। यह हवेली मेरे पूर्वजों की है, इसलिए इस पर मेरा ही अधिकार है, मैं अपने घर में आया हूं।
अच्छा, तो तू है इस हवेली का उत्तराधिकारी।
प्रेत गरजा- तेरे परिवार की तो सभी लोगों को एक-एक करके मैंने मार दिया था। अब तू खुद ही मरने के लिए यहां आ पहुंचा है तो तुझे भी नहीं छोडूंगा, आज ही तुझे मार दूंगा।
जरूर मार डालना..।
लड़का बोला- पर आज आप मेरे मेहमान है। विराज यह और मेरे साथ भोजन कीजिए। मैंने अपने हाथों से यह सारे व्यंजन तैयार की है। आप इन स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लीजिए।
प्रेत बोला- मुझे यह घास पत्ते खाना अच्छा नहीं लगता। मुझे तो चाहिए ताजा खून...!
तेरे इन व्यंजनों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।
अरे प्रेत महाशय! आप चख कर तो देखिए। अच्छा ना लगे तो मत खाना।
ठीक है, देखता हूं चखकर। पर मुझे यह भोजन खिला कर तू यह मत समझ बैठना कि मैं तुझ पर रहम खा कर तुझे छोड़ दूंगा। मारूंगा तो मैं तुझे तब भी।
लड़का हंसकर बोला- हां हां मार देना। पर पहले मेरे साथ भोजन तो कर लो। भूखे पेट तो आपको मुझे मरते भी नहीं बने गा। अपने वह कहावत तो सुनी होगी - भूखे भजन न होय गोपाला..।
लड़के! तू बहुत बोलता है। प्रेत थोड़ा नरम पड़ा - ला परोस।देखूं कि वाकई खाना अच्छा बनाया है या सिर्फ 'अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहा है।'
कुंवर सिंह ने तब उस प्रेत के लिए भी भोजन परोस दिया। भोजन वाकई स्वादिष्ट था रेत ने ऐसा भोजन पहले कभी नहीं खाया था उसने एक बार जो भोजन खाना शुरू किया तो सारा भोजन समाप्त करके ही दम लिया। खूब चटखारे ले-लेकर प्रेत ने सारे व्यंजन खाए। जब वह पूरी तरह से प्राप्त हो गया तो कुआं सिंह ने पूछा- कहिए प्रेतराज कैसा लगा मेरे हाथ का बनाया भोजन?
बहुत अच्छा। अति स्वादिष्ट...।
प्रेत बोला - लड़के तेरे हाथों में तो जादू है कहां से सीखा तूने इतना बढ़िया खाना बनाना?
मेरी मां ने सिखाया है मुझे, प्रेतराज लड़के ने गर्व से कहा- अब मेरे लिए क्या आज्ञा है? क्या मैं स्वयं को पेश करूं ताकि आप मुझे खा कर संतुष्ट हो सके?
प्रेत बोला - नहीं...!
अब मैंने अपना इरादा बदल दिया है। तुम यहीं रहो मेरे दोस्त बनकर। मैं तुम्हें नहीं मारूंगा, पर प्रतिदिन मुझे ऐसा ही स्वादिष्ट भोजन बनाकर खिलाना होगा।
हां-हां, क्यों नहीं जरूर बनाकर खिलाऊंगा। लड़के ने उत्तर में कहा।
उस दिन से उस प्रेत और कुंवर सिंह में सुलह हो गई। दोनों उसी हवेली में रहने लगे। प्रेत दिन में तो अन्य प्रेतों के पास चला जाता था और रात को रहने के लिए हवेली में आ जाता था। घर का यह जानने के लिए उत्सुक रहने लगा कि पता तो लगाओ कि यह प्रेत दिन में कहां चला जाता है।
एक रात उसने भोजन के समय उस प्रेत से पूछ ही लिया- प्रेतराज..! मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं। बताएंगे?
प्रेत ने विनोद भरे स्वर में कहा- पूछो..।
आप सारे दिन कहां रहते हैं?
अरे भाई...! हम भूत प्रेतों की एक अलग दुनिया है। हमारे कार्य और क्षेत्र निर्धारित रहते हैं। मानवों की तरह हमें भी अपने उन कार्यों को करना होता है।
आपके जिम्मे में कौन सा कार्य है?
आजकल मैं धर्मराज की सेवा में नियुक्त हूं। वह जैसा आदेश देते हैं मैं वैसा करता हूं।
धर्मराज वही न जो हर प्राणी के कार्यों का हिसाब-किताब रखते हैं और उसी के अनुसार उन्हें दंड अथवा पुरस्कार देते हैं?
हां भई। वही धर्मराज...।
तब तो प्रेतराज। उन्हें यह भी मालूम होगा कि किस व्यक्ति की आयु कितनी है? कितने दिन बाद जीवित रहेगा और कब, किस दिन, वह मरेगा?
हां भई हां ...! उन्हें सब मालूम होता है। पर तुम यह सब बातें किस लिए पूछ रहे हो?
लड़के ने कहा-
प्रेतराज...! मुझे यह जानना है कि मेरी उम्र कब तक की है? मैं कितने उम्र तक जीवित रहूंगा? क्या आप मुझ पर कृपा करके धर्मराज से मेरी उम्र कर पूछ कर मुझे बता देंगे?
प्रेत बोला- यह कौन सा बड़ा काम है? मैं कल ही तुम्हारी आयु के विषय में पूछ कर बताऊंगा।
दूसरे दिन जब प्रेत ने धर्मराज से पूछा तो उन्होंने अपने बही-खाते खोलकर कुंवर सिंह की आयु बता दी। रात को प्रेत ने आकर लड़के को बता दिया कि धर्मराज ने तुम्हारी आयु पछत्तर वर्ष बताई है।
यह सुनकर लड़का बोला- प्रेतराज! मेरी आयु बताकर आपने मुझ पर बड़ा एहसान किया है। इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। आप कृपा करके मेरा एक और काम कर दीजिए।
हां-हां बोलो। कौन सा काम है वह?
आप धर्मराज से यह पूछ कर आएगी क्या मेरी मृत्यु आयु से पहले या बाद में भी हो सकती है?
तब रेत में धर्मराज से पूछा और उसे यह बात भी बता दी। उसने लड़के से कहा- धर्मराज ने कहा है कि ईश्वर ने जितनी आयु जिस व्यक्ति को दी है, उतने वर्ष तक वह निश्चित ही जीवित रहता है, इसमें ना तो एक पल बढ़ाया जा सकता है और ना एक पल घटाया जा सकता है। यही ईश्वर का अटल नियम है। इसमें फेरबदल की तने की गुंजाइश नहीं है।
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इतना सुनते ही कुंवर सिंह के चेहरे के भाव बदल गए। उसने चूल्हे से एक मोटी सी जलती हुई लकड़ी निकाल ली और उस लकड़ी को रेत के मुंह पर दे मारा।
फिर वह गरज कर बोला- अरे मूर्ख प्रेत...! जब विधाता भी समय से पहले मुझे नहीं मार सकता, तो तू कैसे मुझे मारेगा? ठहर जा शैतान।
आज मैं तेरा किस्सा ही खत्म कर देता हूं। आज मैं तुझसे अपने उन सब परिवार जनों की हत्या का बदला चुकाता हूं जिनकी तू ने हत्या की है। ऐसा कहकर वह जलती लकड़ी लेकर उस प्रेत पर टूट पड़ा।
प्रेत इस अप्रत्याशित घटना से इतना घबरा उठा की वह वहां से भाग छूटा, लेकिन लड़के ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
अब हालत यह थी कि आगे आगे वह प्रेत भाग रहा था और पीछे पीछे जलती हुई लकड़ी लेकर वह लड़का था।
बुलाखी राम..! उम्मीद है अब तूने सारी कड़ियां आपस में जोड़ ली होंगी आज जो दृश्य तूने देखा था वह यही था।
हां पटेल जी मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया अब आप भी सो जाइए और मैं भी सोता हूं अंत में दोनों अपने पैर तान कर सो गए।
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