एक नगर में एक व्यापारी रहता था उसे कोई संतान नहीं थी। एक दिन जब अपना व्यापार पूरा कर घर की ओर लौट रहा था। तो उसे जंगल के रास्ते एक बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। सेठ भी निसंतान था, और यही कारण था कि उस बच्चे को देख सेठ की ममता जाग गई।
सेठ ने बिना देरी किए उस बच्चे को अपनी गोद में उठाया और घर ले आया। सेठ और सेठ की बीवी दोनों ही उस बच्चे को अपने बच्चे की तरह लालन-पालन देने लगे उन दोनों ने उस बच्चे का नाम पृथ्वी सिंह रखा।
जैसे-जैसे समय बीतता गया पृथ्वी सिंह बड़ा होता गया देखते ही देखते वह बच्चा बालक से किशोर हो गया।
अपने अन्य साथियों के साथ वह अक्सर खेल खेल में राजा का खेल खेला करता था। जिसमें वह स्वयं खुद को राजा बना करता था कुछ को चोर, मंत्री व सिपाही बनाता।
एक दिन जब पृथ्वी सिंह अपने साथियों के साथ खेल रहा था, तो एक बंजारा और उसकी पत्नी वहां से गुजर रहे थे बंजारा काफी चिंतित था किसी वजह से उसे कुछ पैसों की जरूरत आन पड़ी थी लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे।
वह यह सोचने लगा कि अगर उसके पास कोई वस्तु होती तो वह उसे गिरवी रख कर कुछ पैसे अर्जित कर एक नया व्यापार शुरू कर सकता था। और एकाएक उसे ख्याल आया कि क्यों ना उसकी पत्नी को किसी महाजन के पास गिरवी रखकर कुछ धन लेकर अपनी जरूरत पूरी कर लूं और कुछ दिन बाद धन अर्जित होते ही वापस आकर अपनी पत्नी को छुड़वा लूंगा।
उस बंजारे के सामने सबसे बड़ा सवाल यह आया कि उसकी पत्नी को गिरवी कौन रखेगा....! तभी उसकी नजर पृथ्वी सिंह पर पड़ी उसे देखकर बंजारे ने मन में सोचा कि यह लड़का अवश्य ही किसी अच्छे घराने का मालूम होता है। क्यों ना इससे अपनी समस्या का समाधान करने के लिए कहूं शायद यह किसी महाजन के पास मेरी पत्नी को गिरवी रखवा कर मेरी धन की समस्या को हल करवा दें।
ऐसा विचार कर बंजारा पृथ्वी सिंह के पास पहुंचा और बहुत ही विनम्र स्वरों में उसे अपनी समस्या बताने लगा पृथ्वी सिंह को उस बंजारे पर दया आ गई। उसने एक परिचित महाजन के बारे में बता कर बंजारे को उस से मिलवा दिया, महाजन उसे ऋण देने को भी सहमत हो गया और बदले में बंजारे की बीवी को गिरवी के तौर पर अपने पास रख लिया और उसे वांछित रकम दे दी।
बंजारा महाजन से कर्ज मिलने के बाद दूसरे प्रदेश चला गया। उसने उन रुपयों से पशुओं का व्यापार शुरू किया। वह सस्ते दामों में किसानों से पशु खरीद देता था, और दूसरे जरूरतमंद लोगों को महंगी कीमत में भेज देता था। इस प्रकार उसने अच्छा धन अर्जित किया।
एक वर्ष बाद बंजारा वापस लौटा और महाजन के पास जाकर बोला सेठ जी अपना हिसाब करके मुझसे रुपए ले लो और मेरी पत्नी मुझे लौटा दो।
यह सुनकर उस महाजन ने अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी, और बोला भैया क्या बताऊं अब से तीन महीने पहले तुम्हारी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। मैंने उसका बहुत उपचार भी करवाया वैद्य हकीमो को दिखाया फिर भी वह बच ना सकी, अब मैं तुम्हारी पत्नी को कहां से लाऊं।
यह सुनकर बंजारा उदास हो गया फिर वह महाजन से बोला सेठ जी...!
जो होना था वह तो हो चुका शायद मेरे नसीब में ऐसा ही लिखा था। वह मेरे साथ रहती तब भी आयु पूरे होने पर उसे मारना ही था। होनी को कौन टाल सकता है, भला !
फिर भी आप अपना रुपया तो ले ही लीजिए, ताकि मुझे इस बात का संतोष आ जाएगी मैंने अपना ऋण चुका दिया है, मैंने आप का कर्ज चुका कर अपनी पत्नी को गिरवी रखने का कलंक से खुद को बचा लिया है।
सेठ बोला- नहीं भाई...!
अब मैं तुमसे वह पैसे नहीं ले सकता हूं। यूं ही कैसे जब तुम्हारी अमानत ही नहीं लौटा सकता, तो अपना कर्ज वापस लेने का मुझे कोई हक नहीं है।
बंजारे ने बार-बार उससे अपना ऋण लेने का आग्रह किया, किंतु सेठ नहीं माना। उदास भाव से बंजारा जब वहां से निकला तो रास्ते में वह फिर उसी स्थान पर पहुंचा जहां वह पृथ्वी सिंह से मिला था। हमेशा की तरह पृथ्वी सिंह अपने साथियों के साथ चबूतरो पर बैठा चोर सिपाही का खेल खेल रहा था। बंजारा उसके पास पहुंचा और सारी बातें उसे बता दी।
बंजारे की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने कहा....!
बंजारे उस सेठ ने तेरे साथ धोखा किया है। तेरी पत्नी निश्चित रूप से जीवित है। देखने तेरी पत्नी को या तो अपने घर में ही छुपा कर रखा है, या फिर उसने उसे अपने किसी परिचित के यहां दूर किसी जगह पर भेज दिया है। अब तू ऐसा कर यहां के राजा के पास चला जा, और राजा से प्रार्थना करें कि वह उससे को बुलाकर तेरी पत्नी तुझे दिला दें।
राजा श्री देव एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। वह निश्चित ही तेरी पत्नी को उस सेठ पर जोर डालकर तुझे दिला देंगे।
पृथ्वी सिंह की बात मानकर बंजारे ने राजा श्री देव के दरबार पर गुहार लगाई और उसे अपनी सारी कहानी सुना कर अपनी स्त्री को दिलवाने की प्रार्थना की।
बंजारे की प्रार्थना सुनकर राजा ने महाजन को बुलाया और उससे कहा सेठ!
क्या यह बात सच है कि यह व्यक्ति कुछ रुपयों के बदले अपनी पत्नी को तुम्हारे पास गिरवी रख कर गया था?
महाजन ने स्वीकार करते हुए कहा कि-
हां राजन..! बंजारे की यह बात बिल्कुल ठीक है।
तब तुम इसकी पत्नी को लौटते क्यों नहीं ?
महाजन बोला- कैसे लौटा दूं महाराज ?
मैंने इसे बताया तो था कि अब से तीन माह पूर्व इसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है। अब मैं धर्मराज के पास जाकर तो इसकी पत्नी को वापस नहीं ला सकता।
कोई गवाह है तुम्हारे पास इस बात का कि इसकी पत्नी मर चुकी है?
महाजन बोला- जी हां अन्नदाता..!
मेरी बात की पुष्टि वह वैध कर देगा जिसने इस बंजारे की पत्नी का उपचार किया था। वह चार व्यक्ति भी इस बात की गवाही दे देंगे जो इसकी पत्नी का शव श्मशान में फूंक कर आए थे।
महाजन ने यह बात इतने आत्मविश्वास के साथ कि कि राजा श्री देव को उस पर भरोसा हो गया तब उसने बंजारे को समझा-बुझाकर वहां से वापस भेज दिया।
बंजारा फिर से पृथ्वी सिंह के पास पहुंचा और जो कुछ दरबार में राजा और महाजन ने कहा, वह सारी बात पृथ्वी सिंह को बताई।
यह सब सुनकर पृथ्वी सिंह ने कहा मैंने राजा श्री देव को इतना अविवेकी नहीं समझा था, मुझे दुख है कि उसने तुम्हारे साथ कोई न्याय नहीं किया।
उसने सेठ की बातों पर तो यकीन कर लिया और तुम्हें समझा बुझा कर वापस भेज दिया अब मेरा परामर्श मानकर तुम एक बार फिर राजा के पास जाओ और उसे कहो कि सिर्फ दो घंटे के लिए वह अपनी राजगद्दी पर मुझे बैठने का अधिकार दे दे तब मैं उसे बताऊंगा कि न्याय किसे कहते हैं।
बंजारा एक बार फिर राजा के पास पहुंचा और जैसा कुछ पृथ्वी सिंह ने कहा था उसे कह कर सुनाया। सुनकर राजा श्री देव ने कहा हमें दो घंटे के लिए राजगद्दी छोड़ने में कोई एतराज नहीं है। यदि ऐसा करने से तुम्हें न्याय मिलता है। तो हम दो घंटे के लिए उस युवक के हक में अपनी राजगद्दी छोड़ देंगे।
तुम उस युवक को राज दरबार में ले आओ बंजारा जाकर पृथ्वीराज को बुला कर ले आया और राजा ने उस दो घंटे के लिए अपना पद पृथ्वी सिंह को दे दिया।
गद्दी पर आसीन होते ही पृथ्वी सिंह ने महाराज के सामने उस महाजन को दरबार में प्रस्तुत करवाया और उसे कहा सेठ जी आपने कहा कि इस बंजारे की पत्नी आपके पास रहते हुए तीन माह पहले स्वर्ग सिधार गई। आप यह भी कहते हैं कि आपके पास इसकी पत्नी के मरने के गवाह हैं। मैं उन गवाहों से मिलना चाहता हूं।
पृथ्वी सिंह के आदेश पर महाजन के गवाह पेश किए गए सबसे पहले पृथ्वी सिंह ने उस वेद से बाकी जिसने बंजारे की बीवी का इलाज किया था। पृथ्वीराज ने पूछा वैध जी आपने इस बंजारी की पत्नी का उपचार किया था?
जी हां श्रीमंत।
उपचार आपसे किया जाकर करते थे या से तुम से उसके लिए स्वयं आकर दवा ले जाते थे?
सेठ जी मेरे औषधालय पर स्वयं आकर दवा ले जाते थे।
यानी तुम विश्वास के साथ यह नहीं कह सकते कि- वह दवा सेठ जी इसकी पत्नी के लिए ले जाते थे या किसी और के लिए?
हां श्रीमंत यह बात मैं यकीन के साथ नहीं कह सकता।
वैद्य ने कहा- लेकिन सेठ जी मुझसे दवाएं जरूर लेकर जाया करते थे।
और तुम मरीज को देखे बिना ही दवाएं देते रहे? यह तो बहुत ही गंभीर अपराध है। तुम दवा के स्थान पर जहर भी तो दे सकते थे। और हो सकता है, तुम्हारे लिए हुए जहर से ही इस बंजारी की पत्नी की मृत्यु हुई हो।
पृथ्वी सिंह की यह बातें सुनकर वैद्य का चेहरा डर से पीला पड़ने लगा।
वह भयभीत स्वर मैं बोला नहीं- श्रीमंत..!
ऐसा हरगिज नहीं हो सकता भला मैं अपने ही किसी मरीज को दवा के बदले जहर क्यों दूंगा? और इस तरह से मेरी सारी प्रतिष्ठा भी धूल में मिल जाएगी।
अब तो तुम ऐसा ही कहोगे मैं तुम्हें अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाही और एक मरीज के जीवन से खिलवाड़ करने के अपराध में सौ कोड़े लगाने का आदेश देने जा रहा हूं। इसके साथ ही तुम्हारा मुंह काला करके सारे नगर में तुम्हें घुमाया भी जाएगा।
अब सोच लो वैधराज....
सच बोलोगे या फिर मैं सैनिकों को तुम्हें गिरफ्तार करने का आदेश दूं ?
यह सुनकर वैद्य का सारा शरीर सूखे पत्ते की तरह कांप उठा। वह पृथ्वीराज के कदमों में जा गिरा और बोला- मुझे माफ कर दीजिए हुजूर।
मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने सेट के बताए किसी मरीज का कोई भी इलाज नहीं किया। सेठ मुझे पांच सौ रुपए दिए और कहा था कि यदि गवाही की आवश्यकता पड़े तो मैं ऐसा कह कर उसके पक्ष में गवाही दे दूं। बस, मेरा अपराध इतना ही है कि मैंने लालच में आकर इसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
पृथ्वी सिंह ने कहा- कुछ भी हो, अपराध तो किया ही है तुमने। झूठी गवाही के इल्जाम में मैं तुम्हें तीस कोड़े लगाने का आदेश देता हूं।
पृथ्वी सिंह के आदेश से सैनिकों ने तत्काल ही वैद्य को पकड़ लिया और भारी दरबार में उसे कोड़े लगाए। पहला कोडा लगते ही वैध चीख पड़ा- रहम... मुझ पर रहम... कीजिए हुजूर।
हाय... मैं मर गया।
वैद्य के गले से ह्रदय विदारक आवाजें निकलने लगी उसकी चीखें सारे राज दरबार में गूंज उठी।
वैद्य के साथ ऐसा होते देख महाजन के गवाह के तौर पर बुलाए उन चार व्यक्तियों के कलेजे दहल गए, जिन्होंने बंजारे की पत्नी को श्मशान में ले जाकर फूटने की बात कही थी।
अब बारी आई उन चार गवाहों की।
पृथ्वी सिंह ने उनसे पूछा तुम लोगों का कहना है कि तुम चारों इस बंजारे की मृत पत्नी का शव लेकर उसे श्मशान में फूंकने के लिए ले गए थे।
मुझे यह बताओ कि अंतिम संस्कार से पहले जब मृत शरीर को स्नान कराया जाता है तब उसे कफन में लपेटकर अर्थी पर रखा जाता है। स्नान के दौरान क्या तुमने उस स्त्री का मृत शरीर देखा था?
नहीं हुजूर उसका मृत शरीर तो हमने नहीं देखा था अभी जब तैयार हो चुकी थी तब हमें उसे श्मशान ले जाने कहा गया था।
और तुम चारों ने यह जानना नहीं चाहा कि उस अवधि में सच में कोई मृत मनुष्य है या कोई जीवित व्यक्ति कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई आ सकते या किसी विषैले पदार्थ से बेहोश व्यक्ति उस अर्थी पर लेटा हो। और तुम उसे श्मशान में जलाकर आए हो। यह तो बेहद गंभीर अपराध है इसके लिए तुम लोगों को मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।
विचारों व्यक्ति भयभीत तो पहले से ही थे पृथ्वी सिंह से मृत्युदंड की बात सुनकर उन सभी के हाथ पैर मानो बिल्कुल ही ठंडे पड़ गए पृथ्वी सिंह ने विजई भाव से महाजन की ओर देखा उसका चेहरा भय से काला पड़ गया था।
पृथ्वी सिंह ने महाजन से कहा- सेठ..?
तुम्हारे पांचों गवाहों की तो हवा निकल गई अब बताओ इच्छा के विपरीत किसी को जबरदस्ती घर में रोके रखने उसे बंधक बनाने अमानत में खयानत के अपराध में तुम कौन सी सजा पाना पसंद करोगे?
महाजन का चेहरा मानो भाई से सफेद ही पड़ गया हो उसके मुंह से कोई बोल नहीं पूछ रहे थे पृथ्वी सिंह ने आगे कहा- सेठ!
इससे पहले कि मैं तुम्हें 5 साल की कठोर कारावास की सजा दूं अब भी समय है कि तुम इस बेचारे बंजारे की पत्नी को दरबार में हाजिर कर दो।
सजा के डर से महाजन ने तुरंत अपने सेवकों को घर भेज कर बंजारे की पत्नी दरबार में प्रस्तुत कर दी पृथ्वी सिंह ने बंजारे की पत्नी उसे सौंप दी और महाजन को 3 महीने की कैद की सजा सुना दी झूठी गवाही के अपराध में उन चारों गवाहों को भी कड़ी सजा दी जिन्होंने बंजारे की पत्नी का सब श्मशान में जाने की झूठी गवाही दी थी।
यह सब मात्र 2 घंटे में ही पूरा हो गया फिर पृथ्वी सिंह ने राजा के आसन को पुनः वापस सौंप दिया।
कहानी को बीच में रोक कर गंगाराम पटेल ने बुलाखी राम नाई से कहा- बुलाखी ...!
आज तू जिस युवक को चबूतरे में बैठा देखकर आया है वह पृथ्वी सिंह ही था और जो व्यक्ति बार-बार उसके पैर छू रहा था, वह बंजारा था।
उन दोनों के साथ खड़ी वह स्त्री जो कृतज्ञता पूर्ण नजरों से कभी अपने पति और कभी उस युवक को देख रही थी वह स्त्री बंजारे की पत्नी थी।
और इतना कहकर गंगाराम पटेल ने कहानी का समापन किया और दोनों अपने-अपने बिस्तर में पैर तान कर सो गए।