हर बार की तरह इस बार भी गंगाराम पटेल और बुलाखी नाई एक बड़े नगर के पास अपने रात रुकने के इंतजाम करने की सोच में थे। वे दोनों एक आलीशान नगर के बीच से होते हुए नगर के दूसरे किनारे की तरफ जा पहुंचे जहां बड़े-बड़े पेड़ लगेंगे हुए थे उन दोनों ने उस रात वही अपना डेरा लगाने का मन बना लिया था।
इस सबके बीच जब वे दोनों नगर में प्रवेश कर बाजार के बीच से गुजर रहे थे। तभी बुलाखी राम ने अपनी नजरों में एक दृश्य कैद कर लिया था।
अब बारी थी कि कब मौका मिले और वह गंगाराम पटेल से उस दृश्य का वर्णन कर उसका रहस्य जान सके। किसी तरह समय बीतता गया, और दोनों ही खाना खाकर अपने पैर सीधे कर रहे थे। कि तभी बुलाखी राम से रहा ना गया और वह बोल पड़ा उसके बताएं दृश्य के हिसाब से -
उस शहर के बहुत जाने-माने रईस और सम्मानित लोगों का एक झुंड एक युवक को अपने कंधे पर उठाएं उसकी जय जय कार लगाते हुए बाजार के बीचो बीच से गुजर रहे थे। वह युवक भी अपना हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन स्वीकार कर रहा था।
बुलाखी राम नाई की बातें सुनकर गंगाराम पटेल को यह समझते देर न लगी कि अब बुलाखी राम को उस युवक की जय जय कार का रहस्य जानना था।
तभी पटेल जी ने कहा-
बुलाखी राम....!
इस घटना का रहस्य जानने से पहले तुम्हारा एक बार जानना और जरूरी है। उस बात को जानकर तुम्हारी उत्सुकता का भी अंत हो जाएगा और तुम्हें जिस रहस्य को जानने की इच्छा है वह भी समाप्त हो जाएगी।
बुलाखी ...! कुछ साल पहले यहां एक बहुत ही साधारण और गरीब आदमी रहता था उसका नाम था- जीवन राम।
जीवन राम बहुत ही मेहनती था रात दिन हड्डी तोड़ मेहनत करता था फिर भी उसे और उसके परिवार को बड़ी मुश्किल से ही भोजन मिल पाता था। जीवन राम की पत्नी का नाम था- गुलकंदी। वह अपने नाम की ही तरह बहुत मीठे स्वभाव की थी। दूसरे लोगों के घरों में चौका बर्तन का काम करके वह अपने पति की मदद में लगी रहती थी। उन दोनों का एक बेटा था। जिसका नाम दयाराम था। लेकिन लोग उसे तीस मार खां कहकर बुलाया करते थे। दयाराम भी अपने इस नाम को सुनकर बहुत खुश होता था।
उसका तीस मार खान नाम पड़ने के पीछे की कहानी यह है कि- एक बार उसने झाड़ू से चौकी में बैठी तीस मक्खियां एक ही झपटे में मार डाली थी। बस तभी से उसका नाम तीस मार खान पड़ गया।
इस गरीब परिवार का गुजारा जैसे तैसे चल ही रहा था। कि किस्मत ने एक और अजीब खेल खेला और, जीवनराम का घर जिस इलाके में था उस क्षेत्र में हैजा की बीमारी फैल गई। जिसमें जीवनराम ने अपनी जान गवा दी। अपने पिता की मृत्यु के वक्त दयाराम की आयु केवल 10 वर्ष की थी।
पति की मृत्यु के बाद कुछ दिन तक गुलकंदी में जीवन राम के द्वारा संचित धन पर अपने दिन काट लिए थे। लेकिन जब संचित धन भी खत्म होने लगा दो वह भी अपने पति की तरह मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालने लगी।
देखते ही देखते 10 साल बीत गए तीस मार खां भी एक 20 साल का गबरु युवक बन चुका था।
एक दिन उसकी माता ने उसे समझाया कि बेटा दयाराम...!
अब तू 20 वर्ष पूरे कर चुका है। अब तक मैं जैसे तैसे कर तेरा और अपना पेट भर्ती रही, लेकिन अब मेरे हाथ पैर भी जवाब देने लगे हैं। अब तुझे कोई नौकरी या मेहनत मजदूरी का काम देख लेना चाहिए। जिससे परिवार का भरण पोषण अच्छी तरह से हो सके।
दयाराम ने मां के सामने अपनी सहमति व्यक्त कर दी किंतु उसने ना तो कोई नौकरी तलाशी और ना ही किसी तरह की मेहनत मजदूरी पड़ गया। जाता भी तो कैसे दरअसल वह एक आलसी और कामचोर व्यक्ति बन गया था। वह नौकरी करना ही नहीं जानता था। क्योंकि उसकी मां की कमाई से उसके खाने-पीने का प्रबंध हो ही जाता था, लेकिन कुछ समय बाद उसकी मां ने जब उसे ज्यादा प्रताड़ित किया तो वह कोई नौकरी खोजने के लिए तैयार हो गया।
एक दिन वह राज दरबार में जा पहुंचा वहां उसने हाथ जोड़कर राजा से विनती की और कहा- हे अन्नदाता! मैं आपके राज्य का एक बेरोजगार युवक मैं आप से यह विनती करने के लिए आया हूं कि आप मुझे कोई नौकरी दे दीजिए।
कोई और दिन होता तो राजा उसे दुत्कार देता।उसकी तरह ना जाने कितने बेरोजगार युवक राजा के पास अपनी फरियाद लेकर आते थे। लेकिन आज के दिन राजा खास तौर पर खुश था उसकी रानी ने उसे बताया था कि शीघ्र ही उसकी कोख से उसकी संतान जन्म लेने वाली है।
इसलिए राजा ने कहा ठीक है तुम्हें भी नौकरी दे देंगे पर पहले अपना नाम तो बताओ, यह भी बताओ कि तुम्हारे अंदर क्या विशेषताएं हैं?
तीस मार खान ने कहा- अन्नदाता...!!
लोग मुझे तीस मार खान के नाम से पुकारते हैं अब यह मेरा नाम कितना सार्थक है। यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा, लेकिन मैं आपको इस बात का यकीन जरूर दिलाता हूं कि जब भी आप मुझे कोई असंभव काम सौंपेंगे, मैं दिल और जान से उसे पूरा करने की कोशिश करूंगा।
राजा बोला- ठीक है, आज से हमने तुम्हें राजकीय सेवा के लिए नियुक्त किया। तुम्हारा वेतन होगा सौ रुपए प्रतिदिन। किसी दिन वक्त आने पर हम तुम्हारे कौशल का इंतिहान भी लेंगे।
और इस तरह तीस मार खान राजकीय सेवा के लिए नियुक्त हो गया। एक आकर्षक वेतन और काम-धाम कुछ भी नहीं तीस मार खान की तो जैसे मौज हो गई थी कुछ ही दिनों में उसने अपना पुराना कच्चा मकान तोड़ वाकर एक नई हवेली का निर्माण करा लिया। उसकी मां भी अब दूसरों के यहां काम करना छोड़ कर आम गृहणियों की तरह घर में रहने लगी।
तीस मार खान की उन्नति को देख राज दरबार में ही कुछ अन्य राजदरबारी उससे जलन की भावना रखने लगे वे सोचने लगे कि जब मौका मिलेगा तब तीस मार खान को नीचा दिखाए गे।
कुछ ही दिनों में उनके हाथ एक मौका लग भी गया राज्य के एक खास हिस्से में कई दिनों से कुछ डाकू सक्रिय हो उठे थे उन्होंने लूटपाट भी आरंभ कर दी थी। राजा के सिपाही उन्हें पकड़ने में असफल हो रहे थे डाकुओं का हौसला इतना अधिक हो गया था। कि अब वे दिनदहाड़े डाका डालने लगे थे। राजा का प्रशासन इनके सामने असहाय दिखाई पड़ने लगा था। जब जनता में त्राहि-त्राहि होने लगी और वहां के लोग फरियाद करने राजा के पास पहुंचने लगे तो राजा ने अपनी सभा बुलाई और दरबारियों से सुझाव मांगा कि आखिर डाकुओं को किस तरह पकड़ा जाए या फिर खत्म किया जाए।
इस पर गहन विचार होने लगा सभी लोगों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए, जिसमें कुछ ने कहा कि डाकुओं पर भारी इनाम घोषित करना चाहिए। तो किसी ने कहा डाकू को मार कर लाने वाले को इनाम देने की घोषणा करनी चाहिए। तभी राजा के एक मंत्री ने तीस मार खान का सुझाव सुझाया, उस मंत्री ने राजा को याद दिलाया कि किस शर्त में तीस मार खान को राजकीय सेवा के लिए नियुक्त किया गया था। मंत्री की बात सुनकर राजा को भी यह सुझाव उचित लगा और राजा ने तुरंत ही तीस मार खान को राजदरबार में बुलवा लिया।
राजा बोला- तीस मार खान क्या तुम्हें याद है, कि तुम्हें यह नौकरी किस शर्त पर मिली थी।नौकरी लेते वक्त तुमने कहा था कि तुम किसी भी असंभव कार्य को संभव कर सकते हो।
तो बस यूं समझ लो कि आज तुम्हारी परीक्षा की घड़ी आ पहुंची है। देश के दक्षिणी भाग में जाओ और वहां के लोगों को भय के वातावरण फैला रहे डाकुओं से मुक्त कराओ। तुम्हें जितने भी सैनिकों की आवश्यकता होगी वह तुम्हें मिल जाएंगे।
ठीक है अन्नदाता!
मैं कल ही दक्षिण की ओर रवाना हो जाता हूं, और इस काम के लिए मुझे किसी भी सैनिक की जरूरत नहीं है। मैं अकेला ही इस काम को अंजाम दूंगा।
तीस मार खान राजा के सामने बात जोश में कह तो जरूर आया था। लेकिन घर आकर वह चिंता में पड़ गया। तलवार की बात तो दूर उसने कभी कोई चाकू भी नहीं पकड़ी थी। और फिर उसका सामना तो खतरनाक लुटेरों से था।
वह इस बात को सोच सोच कर परेशान हो रहा था। कि जब राजा कि इतने सैनिक उन लुटेरों को नहीं पकड़ पाए तो वह कैसे पकड़ लेगा।
यही सब सोचते हुए सारी रात बीत गई और तीस मार खान को नींद नहीं आई बस इसी चिंता में खुलता रहा कि इस स्थिति का मुकाबला कैसे करेगा।
उसे चिंतित देख कर उसकी मां ने उससे उसकी चिंता का कारण पूछा तो तीस मार खान ने अपनी परेशानी मां को भी बताई।
अब तो उसकी मां की भी चिंता बढ़ गई उसने कहा बेटा तू यह राज्य छोड़कर किसी दूसरे राज्य में चला जा यहां तो तेरे लिए दोनों तरफ मौत है। डाकुओं से भिड़े गा तो वे तुझे जीवित नहीं छोड़ेंगे, और असफल होकर लौटा तो राज ही तुझे जेल में डलवा देगा। तेरी सारी संपत्ति भी छीन ली जाएगी। और हो सकता है, ऐसे हाल में मुझे भी जेल में डलवा दिया जाएगा।
तीस मार खान ने चिंतित स्वर में कहा ....! हां मां ऐसा करना ही सही होगा-
तब उसने अपनी मां से कहा कि तू मुझे थोड़ा सा भोजन बना कर दे दे तब तक मैं घर में रखा हुआ धन सहेज लेता हूं।
ऐसा कहकर तीस मार खां अपने घर में रखा धन एक थैले में डालने लगा। और उसकी माता रास्ते में लेकर जाने के लिए तिल के लड्डू पकाने लगी।
अचानक ही उसे कोई काम याद आ गया और वह चाशनी बनने का काम छोड़कर उस अधूरे काम को पूरा करने चली गई।
इस बीच चूहे का पीछा करते हुए एक काला नाग रसोई में आ गया उसने चूहे को पकड़ने के लिए जैसी ही छलांग मारी तो वह खुद चासनी में गिर गया।
चाशनी बहुत ही गर्म थी उस नाग का सारा शरीर पिघल कर उस चासनी में ही घुल गया, कुछ देर बाद तीस मार खान की मां वहां पहुंची।
उसने जल्दी-जल्दी लड्डू तैयार किए और उन्हें पोटली में बांध कर रख दिए।
तीस मार खां ने भी अपनी पूंजी एक थैले में भरी और कुछ धन अपनी माता के लिए छोड़कर दोनों थैलियां लेकर घोड़े पर सवार हो गया और अपने रास्ते चल पड़ा।
सारा दिन यात्रा करने के बाद शाम को वह किसी गांव में ना ठहर कर जंगल में ही एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गया। घोड़े को चरने के लिए छोड़ा और अपनी दोनों पोटलियों पेड़ की एक डाली में टंगा दी। वह इतना थक चुका था कि कुछ ही देर में उसे कब नींद आ गई कुछ पता ही ना चला।
सबसे बड़े संयोग की बात यह हुई कि राजा ने तीस मार खां को जिन डाकू को पकड़ने भेजा था उन्हीं डाकुओं का झुंड उस जंगल में आ पहुंचा। डाकूओं ने एक अकेले मुसाफिर को पेड़ के नीचे सोता देखा और उसके पास आ पहुंचे पास आते ही उनकी नजर पेड़ पर लटकी हुई उन पोटली पर पड़ी तो उन्हें यह समझ लेने में देर ना लगी कि वह पोटली उस मुसाफिर की ही है।
लुटेरों के सरदार के आदेश पर दोनों पोटलियों को पेड़ से नीचे उतारी गई और उन्हें खोला गया, सबसे पहले पोटली में बहुत सारा धन और दूसरी पोटली में लड्डू मिले धन की पोटली तो लुटेरों की सरदार ने पहले ही अपने कब्जे में कर लिया था। लेकिन डाकू भूखे भी थे इतने स्वादिष्ट लड्डू पाकर उनसे रहा ना गया और उन सभी ने लड्डू खाकर अपने पेट की आप को शांत कर दिया।
लड्डू खाने के कुछ ही देर बाद उन सभी की हालत खराब होने लगी, जल्दी ही वे सभी बेहोश हो गए। और बेहोशी की हालत में ही वे सभी डाकू मृत्यु की गोद में समा गए।
सुबह-सुबह जब तीस मार खान की आंख खुली तो उसने अपनी पोटलियों को खुला पाया, और अपने आसपास पड़े उन डाकुओं और बिखरे हुए लड्डुओं को देखकर वह समझ चुका था कि जरूर कुछ ना कुछ गड़बड़ हुई है मां के लड्डू बनाते समय जरूर ही इसमें कुछ विषैला पड़ गया था जो इन सभी की जान चली गई।
बस फिर क्या देर ना करते हुए तीस मार खान ने अपनी तलवार निकाली और एक-एक करके उन सभी के सर काटना शुरू कर दिया, वह डाकू भी संख्या में तीस ही थे।
इसके बाद उसने डाकुओं के पास जो कुछ भी कीमती मिला सब अपने कब्जे में कर सभी के सर अपने साथ लेकर वापस नगर लौट आया और राजा के पास जाकर अपना कारनामा राजा को सुनाने लगा।
राजा यह सुनकर बहुत ही खुश हुआ और उसने तीस मार खान की बहुत प्रशंसा कि। उसे ढेरों अन्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। और उसकी तंखा में भी बढ़ोतरी के आदेश दिए गए उसके इस बहादुरी भरे कारनामे के कारण ही शहर के अमीर और सम्मानित लोगों ने उसे अपने कंधों में उठाकर पूरे नगर में उसकी जय जयकार करते हुए उसे घुमाया।
कहानी को यहां तक सुना कर पटेल जी ने बुलाकी नाई से कहा तो बोला कि अब तुम समझ ही गए होगे कि आज शाम तुमने जो नजारा देखा था वह उसी समय का था।
नागरिकों के कंधे पर जो व्यक्ति बैठा था वही तीस मार खान था। और पीछे जो लोग उसकी जय जय कार कर रहे थे वे शहर के धनी मानी व्यक्ति और राज दरबार के कर्मचारी थे।
और इस तरह बुलाखी राम नाई जो दृश्य बाजार से देख कर आया था गंगाराम पटेल ने इस कहानी द्वारा उसका रहस्य उजागर किया।