हिंदी कहानियां - गंगाराम पटेल और बुलाखी राम नाई की रोचक कहानियां, ठग की शादी
हर बार की तरह इस बार भी गंगाराम पटेल और बुलाखी राम ने एक नगर के पास पहुंचकर अपना पड़ाव डाला और हमेशा की तरह बुलाखी राम नाई अपने वाह घोड़े के खाने की व्यवस्था के लिए बाजार को निकला।
बुलाखी राम बाजार का काम पूरा करके जब वापस पड़ाव पर लौटा दो गंगाराम पटेल बुलाखी राम का चेहरा देखकर ही उसके भाव समझ गए और बोल पड़े अरे बुलाखी तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि आज फिर तुमने कोई अजूबा दृश्य देख लिया है। लेकिन इससे पहले कि तुम उसका वृतांत मुझे सुनाओ हम अपना भोजन पानी पूरा कर लेते हैं। रात में सोने से पहले मैं तुम्हें तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान जरूर दिखलाऊंगा।
बुलाखी राम इसी तरह खुद को समझा-बुझाकर कुछ देर के लिए रुक गया फिर दोनों ने मिलकर खाना तैयार किया और शाम ढलते हुए दोनों अपने-अपने बिस्तर पर जा पहुंचे।
बिस्तर पर लेटे लेटे गंगाराम पटेल अपना हुक्का गुड़ बढ़ाते हुए बुलाखी से पूछते हैं-
तो बुलाकी आज कौन सा नया दृश्य देख कर आए हो ...?
बुलाखी बोला- पटेल जी आज जब मैं बाजार से लौट रहा था तू मैंने देखा कि राजा के सैनिक एक नौजवान को सूली पर चढ़ा रहे हैं। वहीं पर एक तपस्विनी स्त्री खड़ी है और उसके पास नौजवान भी खड़ा है उससे कुछ दूर हटकर एक स्त्री और भी खड़ी है तीनों ही बिना भाव से उस व्यक्ति को सूली पर चढ़ता देख रहे थे। जबकि वहां तमाशा देखने वाली कई स्त्रियों में कुछ ऐसी भी थी जो इस दृश्य को देखकर रोने तक लगी।
अब मेरी शंका इस बात पर आ टिकी है। कि यदि वह व्यक्ति उनकी जान पहचान या परिचित का था तो उसे सूली पर चढ़ा दी उन्हें कोई दुख का भाव महसूस क्यों नहीं हुआ?
गंगाराम पटेल पूरी बात सुनकर मुस्कुराए और बोले बुलाखी राम सुनो।
इस नगर में रति राम नाम का एक वैश्य रहता है, रतिराम बहुत ही धर्म परायण किस्म का व्यक्ति है। उसकी दो संताने हैं उसकी दो संतानें हैं एक पुत्र और एक पुत्री उनके पुत्र का नाम मदन और पुत्री का नाम सुशीला है।
दोनों संतानों में मदन के बड़े होने की वजह से उसकी शादी पहले हो गई और सुशीला अभी भी कुमारी है मदन की बीवी का नाम किरण है।
मदन का एक दोस्त है जिसका नाम है, चंपालाल अब तुम यह सुनो की इन सब के साथ क्या हुआ?
रतीराम से सेठ पहले नगर के जाने-माने धनी मानी व्यक्तियों में से एक था। पहले इसका व्यापार बहुत अच्छा चलता था। लेकिन मदन के दोस्त चंपालाल ने इस परिवार में ऐसी चिंगारी पर की की पूरा घर ही तबाह होकर रह गया।
बात ऐसी है कि- चंपालाल पहले बहुत ही सज्जन और सब चरित्र नौजवान था। उसके पिता ने उसके लिए काफी धन छोड़ा था। किंतु उसके मरने के बाद चंपालाल को परस्त्री गमन का शौक लग गया। जिसकी वजह से वह अपनी काम पूर्ति के लिए वेश्याओं के पास जाने लगा, और अपने पिता का इकट्ठा किया हुआ सारा धन उनमें पुराने लगा धीरे-धीरे चंपालाल का सारा दर्द खत्म हो गया।
तब उसने कुछ जुगत भिड़ा कर खुद ही वेश्याओं का दलाल बन गया और दूसरे लोगों को उनके पास कर ले जाने लगा ऐसा करने से उसकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक सुधर गई वह इस काम से कमाए हुए धन से ऐश करने लगा।
लेकिन बुलाखी वह कहते हैं ना पाप की कमाई से किसी का गुजारा नहीं चलता।
धीरे धीरे नगर के अधिकांश लोगों को इस बात का पता चल गया कि चंपालाल वेश्याओं का दलाल है, तब वे उससे किनारा करने लगे और चंपालाल की आए फिर से बंद हो गई वह भूखा मरने लगा।
तब चंपालाल की नजर मदनलाल के ऊपर पड़ी उसने सोचा कि किसी तरह चंपालाल को किसी वेश्या के चंगुल में फंसा दिया जाए तो वैश्या की कमाई भी हो जाएगी और मेरी दाल रोटी का साधन भी निकल जाएगा।
इस तरह वह एक अच्छी रणनीति बनाकर एक दिन मदन से मिला और उससे कहा- मित्र मदन !
कई दिनों से मैं सोच रहा हूं कि देवी दर्शन कराओ लेकिन अकेले जाने में अच्छा नहीं लग रहा क्या तुम मेरे साथ दर्शन करने आओगे?
मदन एक धर्म परायण पिता का बेटा था। उसने अपने पिता से धार्मिक संस्कार पाए थे। वह देवी दर्शन के लिए तुरंत राजी हो गया। तब चंपालाल ने अपनी रणनीति के तहत उसे देवी दर्शन के बजाय बहला-फुसलाकर वेश्या चंद्रा के यहां ले गया।
चंद्रा ने भी अपना काम बखूबी किया और उसे अपना दीवाना बना लिया अब हाल ऐसा था कि जैसे चंद्रा ने मदन पर मोहिनी मंत्र फूंक दिया हो घर में पति-पत्नी होते हुए भी वह एक वैश्या के चंगुल में फंस चुका था उस पर अपने पिता की गाढ़ी कमाई खुलेआम लूट आने लगा था चंद्रा जिस चीज पर हाथ रखती वह चीज उसकी हो जाती है, इसी तरह चंपालाल की रणनीति भी काम कर गई उसे अपना कमीशन मिलने लगा और उसके भी मौज हो गई।
जल्दी ही मदन की पत्नी किरण को इस बात का पता लग गया कि उसका पति वैश्या गामी हो चुका है इस बात को लेकर किरण ने अपने पति को बहुत समझाया बुझाया और आखिरकार मदन ने किरण को चंद्रा से दूर रहने का वचन दे दिया, लेकिन उस वचन का पालन नहीं किया वह चोरी चोरी चंद्रा से मिलने उसके पास जाता रहा।
कहानी सुनाते हुए गंगाराम पटेल बीच में रूके और अपना हुक्का बढ़ाते हुए कहा -
बुलाखी...!
तुमने सेठ के लड़के मदन की वेश्यागामी हो जाने की कहानी तो जान ली, अब इसी कहानी से संबंधित एक और घटना तुझे सुनाता हूं!
इसी नगर में मोतीलाल नाम का एक अमीर व्यक्ति भी रहता था। वह लाखों की जायदाद का मालिक था। लेकिन उसे भी सट्टे और वेश्याओं का चस्का लग गया था। इसका अंजाम यह निकला कि वह भी कुछ ही दिनों में अपनी सारी दौलत गवा बैठे उसे भोजन के लाले पड़ने लगे तब वह नौकरी की तलाश में इधर उधर धक्के खाने लगा।
इत्तेफाक ऐसा हुआ कि एक दिन वह एक बगीचे में सैर करती हुई सुशीला और किरण से टकरा गया। मोती लाल ने उन्हें जब अपनी दास्तां सुनाई तो दोनों को उस पर दया आ गई और वह दोनों को से अपने साथ घर ले आए सेठ रतीराम से कह कर उसे अपने घर में नौकर रख लिया।
क्योंकि मोती लाल बहुत ठोकरे खा चुका था इसलिए वह अपना काम गंभीरता से करता था। जल्दी ही परिवार मैं उसका विश्वास बन गया। अब वे लोग किसी भी कार्य में उसका सलाह मशवरा लेने लगे थे।
मोती लाल ने एक दिन मदन को कोठे से निकलते देख लिया था। पहले मोती लाल का वहां बहुत आना-जाना हुआ करता था इसलिए उसके लिए मदन के बारे में जानकारी निकालना कोई कठिन कार्य नहीं था।
उसने यह बात सेठ रतीराम को बता दी। रती राम यह सुनकर विफल उठा उसने मदन को बुलवाया और उसे बहुत लानत मलांतें दी। उन्होंने मदन को साफ शब्दों में कह दिया कि अगर उसने अपना आचरण नहीं सुधारा तो वह उसे अपनी जायदाद से बाहर कर देंगे।
पिता की इस धमकी का मदन पर कुछ दिन तक तो अच्छा प्रभाव रहा लेकिन कुछ दिनों बाद उसने फिर से वेश्या चंद्रा के पास आना जाना शुरू कर दिया जब सेठ रती राम को सारी कोशिशें व्यस्त समझ आई दो उसने आखिर रास्ता चुना और उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया।
अब मदन के पास कोई और रास्ता नहीं था। वह एक कमरा किराए पर लेकर रहने लगा पिता के व्यापार से जो भी पूंजी उसने छुपा रखी थी उससे वह अपना गुजर-बसर चला रहा था।
एक दिन चंपालाल ने एक झूठी चिट्ठी लिखी और उसे लेकर सुशीला के पास पहुंचा। सुशीला से कहा कि एक दुर्घटना मैं तुम्हारे भाई गंभीर रूप से घायल हैं उसने तुम्हें फौरन अपने पास बुलाया मैं उसे एक व्यक्ति के पास छोड़ कर आया हूं, तुम चलकर अपने भाई से मिल लो।
सुशीला ने चिट्ठी को पढ़ा और नीचे जो दस्तखत थे उन्हें देखकर वह भी यह सब सच लगा नीचे जो दस्तखत थे वह भी उसके भाई के दस्तखत से मिलते जुलते ही थे ऐसे हाल में सुशीला ने अधिक जांच पड़ताल करना सही ना समझा और चंपालाल के साथ चल पड़ी।
चंपालाल की नियत तो शुरू से ही खराब थी चलते चलते वे दोनों जब एक बाग में पहुंचे तब सुशीला ने उससे पूछा कि मेरा भाई कहां है तो वह बेशर्मी से कहने लगा-
मिल जाएगा मेरी जान..!
वह भी मिल जाएगा...
पहले जरा वह काम तो कर लो जिसके लिए मैं तुम्हें यहां लाया हूं!
उसकी ऐसी बातें सुनकर सुशीला उसकी नियत समझ गई और मदद के लिए सीखने लगी।
मोती लाल वही पास से ही गुजर रहा था। जब उसने सुशीला की चीख सुनी वह दौड़ता हुआ बाग में पहुंचा और चंपालाल को ऐसी हरकतें करता देख एकाएक उस पर टूट पड़ा, और उसे बहुत लात घुसे से जमाए।
मोती लाल सुशीला को लेकर घर पहुंचा और सारी बात सेठ रती राम को बता दी। सारी घटना सुनकर सेठ रती राम का खून खौल उठा उसने अपने आदमी भेज कर चंपालाल को मंगवाया और वहां भी उसकी जमकर पिटाई की गई और उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया गया इन सबके बीच चंपालाल कि बहुत बेज्जती हो चुकी थी।
अब उसने इस परिवार से अपनी इस बेज्जती का बदला लेने का फैसला कर लिया वह प्रतिशोध की आग में जलने लगा कि किस तरह व मदन को किसी गंभीर मुसीबत में फंसा दे।
गंगा राम पटेल हुक्के का धुआं उड़ा कर कहानी को आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि इसी बीच किरण अपने पति मदन की चिंता में दिन-रात घूर रही थी। वह जानती थी कि मदन अपने पिता के डर से घर तो नहीं आ सकता इसलिए उसने स्वयं ही उससे मिलने का निर्णय लिया।
किरण ने एक गुजरी का भेष बनाया और दही की मटकी सिर पर उठाए उसके मदन के मकान के सामने जा पहुंची जब उसने दही ले लो....! ताजा दही ले लो....!! की आवाज लगाई तो मदन घर से बाहर एक सुंदर स्त्री को देख कर तुरंत ही हाथ में कटोरा लेकर बाहर निकला और आवाज़ लगा कर पूछा।
ऐ दही वाली.... कैसे दिया है, दही?
किरण बोली - दो पैसे सेर।
उस बदले हुए वेश में वह अपनी पत्नी किरण को भी नहीं पहचान सका था।
आधा शेर दही इस बर्तन में डाल दो कहकर मदन ने बसंत आगे बढ़ा दिया बर्तन देने के बहाने उसने किरण का हाथ छू लिया, जिसका किरण ने कोई विरोध नहीं किया।
इसके बाद मदन का हौसला और बढ़ गया वह बहला-फुसलाकर किरण को अंदर ले गया।
इसके बाद किरण ने भी मदन पर ऐसा मंत्र होगा कि वह दोबारा कभी उस वैश्या चंद्रा के पास नहीं गया। मदन रात दिन केबल उस गुजरी के आने का इंतजार करता था।
दूसरी तरफ उस चंद्रा ने भी अपने इस काम से बहुत धन कमा लिया था अब उसे अपने गणित काम से नफरत होने लगी थी तभी वह मदन से कई बार अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश करती लेकिन मदन उस से बुरी तरह चिपका हुआ था जब मदद ने खुद ही चंद्रा के पास जाना बंद कर दिया तो उसे बहुत खुशी हुई एक दिन उसके मन में यह विचार आया कि इस पाप कर्म से मैंने काफी धन अर्जित कर लिया है। आप क्यों ना तीर्थ स्थलों पर जाकर अपने पापों का कुछ भेज कम करूं।
ऐसा सोचकर उसने अपनी शादी धन-संपत्ति अपनी छोटी बहन चंचला को सौंप दी और तीर्थ यात्रा करने के लिए निकल गई।
चंद्रा के वहां से जाने के बाद चंपालाल का धंधा तो बिल्कुल चौपाटी हो गया था ग्राहकों को फंसा कर चंद्रा के pass ले जाने से ही तो चंपालाल की रोजी रोटी चलती थी।
चंद्रा की ईद पर चले जाने की वजह से एक बार फिर चंपालाल के भूखे मरने की नौबत आ गई। उसने समझा दी चंद्रा वह तो यही रही है पर उससे जानबूझकर नहीं मिल रही तब उसने चंदा से भी बदला लेने की ठान ली।
एक रात वह चोरी-छिपे चंद्रा के घर में घुसा अंदर कमरे में एक युवती को सोता देख उसने बिना कुछ सोचे समझे अंधेरे में ही उस व्यक्ति को चंद्रा समझ कर उसका मुंह दबोच लिया। और अपने पास रखे तेज चाकू से उस युवती का सिर काटकर एक चादर में लपेटा और रात के अंधकार में उस कटे सिर को मदन के घर रखा आया।
और स्वयं ही जाकर कोतवाली में सूचना भी दे आया सूचना के अनुसार शहर कोतवाल ने मदन के घर छापा मारा तो उन्हें एक युवती का कटा सर मिल गया तब हत्या के जुर्म में मदन को गिरफ्तार कर लिया गया।
बेटे को मुसीबत में पड़ा देख रती राम से ही रहा ना गया। और उसने एक अच्छा वकील कर मदन को छुड़ाने का हर संभव प्रयास शुरू कर दिया शेष रती राम ने पैसा बहाने में कोई कमी नहीं की थी लेकिन कुछ खास कारणों की वजह से मदन की जमानत नहीं हो पा रही थी।
पहला कारण तो स्वयं चंपालाल ही था जिसने अदालत में खड़े होकर मदन के खिलाफ गवाही दी और कहा कि उसने स्वयं ही मदन को उस युवती की हत्या करते देखा है।
दूसरा और ठोस कारण यह था कि छापा पढ़ने के दौरान मदन के घर से उस व्यक्ति का कटा सर प्राप्त हुआ था।
एक लंबी बहस के बाद आखिरकार अदालत में मदन को फांसी का हुक्म सुना ही दिया।
जब न्यायधीश ने मदन को फांसी का फैसला सुना दिया तब उसकी पत्नी ने एक अकल्पनीय फैसला लिया और स्वयं यह लिखकर दे दिया कि वह हत्या मदन भी नहीं बल्कि किरण ने स्वयं की थी। इसलिए उसे बंदी बनाया जाए और उसके पति मदन को निर्दोष होने की वजह से रिहा कर दिया जाए।
न्यायधीश ने किरण की इस अर्जी को स्वीकार किया और मदन को रिहा कर किरण को बंदी बना लिया गया अब नए सिरे से तहकीकात के आदेश जारी कर दिए गए।
इसी बीच मोती लाल भी लगातार भागदौड़ करता रहा उसने उस कटे हुए सिर को देखा था। क्योंकि वह पहले चंद्रा से भी मिल चुका था, इसलिए उसे पूरा संदेह था कि वह फिर चंद्रा का ना होकर उसकी छोटी बहन चंचला का है।
इस बात को प्रभु की कृपा समझ लीजिए या फिर सिर्फ एक संयोग।
इसी बीच तीर्थ यात्रा बीच में छोड़कर वैश्या चंद्रा घर लौट आई। उसने घर पहुंच कर देखा कि सब लोग उसे भूल भूल कर देख रहे हैं,उन लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिस चंद्रा के कत्ल में मदन पर मुकदमा चल रहा है वह चंद्रा जिंदा है।
और तब चंद्रा खुद ही अदालत में जा पहुंची न्यायाधीश को बताया कि कल उसका नहीं बल्कि उसकी छोटी बहन चंचला का हुआ है चंद्रा ने न्यायाधीश के सामने जो देखकर यह बयान भी दिया कि बहुत दिनों से चंपालाल उसे और मदन को मुसीबत में फंसाने के लिए धमकी दे रहा था हो सकता है मुझसे बदला लेने के लिए यह कतले उसी ने किया हो।
चंद्र के इस बयान पर न्यायाधीश ने कोतवाल को यह आदेश दे दिए कि चंपालाल को हर हाल में हिरासत में लेकर उससे पूछताछ की जाए एक बार फिर से मुकदमे की तफ्तीश जारी हुई चंपालाल के घर की तलाशी ली गई जहां से वह जीवन बरामद हो गए जो उस दिन चंचला ने पहने हुए थे।
उस रात चंपालाल सिर काटने के बाद चंचला के मृत शरीर से उसके सारे जीवन भी उतार लाया था। वह कटार भी उसके घर से बरामद हो गई रे चंचला का सिर काटा गया था।
चंपालाल में यह सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी उसके घर की तलाशी होगी और कटार उसके घर से बरामद हो जाएगी और शायद इसलिए उसने उसे धोया तक नहीं था चंचला के शरीर पर सूखा हुआ खून अब भी उस प्रकार पर लगा हुआ था।
बहरहाल चंपालाल के ऊपर कत्ल का मुकदमा चला। वह दोषी सिद्ध हुआ।न्यायाधीश ने किरण और उसके पति मदन को बाइज्जत बरी कर दिया।
कहानी को समाप्ति की ओर लाते हुए गंगाराम पटेल ने बुलाकी राम से कहा-
आज कुछ अजीब दृश्य को देखकर आया है वह यही दृश्य था। आज चंपालाल को सूली पर लटकाया जा रहा था। वहां जो तेजस्विनी सी स्त्री खड़ी थी, वह मदन की पत्नी किरण थी और युवक स्वयं मदन था। उससे कुछ हटकर जो इस थी खड़ी थी वह वैश्या चंद्रा थी।
बस अब मुझे लगता है कि तेरी सभी शंकाओं का समाधान हो गया होगा इतना क्या कर गंगाराम पटेल सोने की तैयारी करने लगे।