इस नगर से बहुत दूर एक गांव में पूरन नाम का एक आदमी रहता था।वह भोजन बनाने में बहुत ही प्रवीण था। जो कोई भी एक बात उसके बनाए हुए स्वादिष्ट व्यंजनों को चैक लेता था, वह उसकी प्रशंसा करते नहीं रुकता था दूर-दूर से शादी विवाह के अवसर पर लोग उसके पास आते थे। पूरन की छाती दूर दूर तक फैली हुई थी।
एक बार अपने किसी दोस्त के यहां शादी के मौके पर बीजापुर के एक अमीर अयूब खान है उसके बनाए हुए खाने का स्वाद चख लिया।
उसे सभी व्यंजन बहुत स्वादिष्ट लगे। उसने अपने मित्र को बुलाकर उस कारीगर का नाम पूछा जिसने यह व्यंजन तैयार किए थे तो उसके मित्र ने उसे पूरन से मिलवा दिया।
अयूब हां तब उसे अपने साथ ही आने का निमंत्रण देने लगा और अच्छे वेतन पर अपना रसोईया नियुक्त करने की बात कह डाली।
उस अमीर की तीन बीवियां थी। पहली 60 वर्ष की थी, दूसरी की उम्र 40 थी, और तीसरी 25 साल की थी, जबकि स्वयं अमीर की उम्र 60 वर्ष से अधिक हो चली थी। अमीर एक अय्याश मिजाज आदमी था इसलिए नई नई बीवियां रखने का उसको शौक था।
पूरन ने वहां पहुंचकर रसोई घर की सारी व्यवस्था संभाली। वह हमेशा नए नए पकवान बनाकर पूरे परिवार को खिलाने लगा। अयूब खा की सबसे छोटी बीवी का नाम जुबेदा जुबैदा था।
अयूब ने उसके पिता को बहुत सारा धन देकर शादी की थी, इसलिए वह अपने से घृणा करती थी। जाहिर तौर पर बताती रहती थी कि उसे अपने पति से बहुत प्यार है किंतु मन ही मन उसे पूछती रहती थी कि कब बुढ़ा मरे और मेरा इससे पीछा छूटे।
जब जुबैदा ने पूरन जैसे गबरु जवान को देखा तो वे उसकी ओर आकर्षित हो गई। जब भी मौका मिलता रसोई घर में चली जाती और पूरन से बात करते हुए उसे चाहत भरी नजरों से देखा करती थी। पूरन पहले तो उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता था, लेकिन जब पूरन भी दिल के हाथों मजबूर हो गया तो एक दिन दोनों के दिल आपस में मिल गए।
एक दिन जुबैदा ने उसे कहा -पूरन मैं अपने बूढ़े पति से तंग आ चुकी हूं तुम अगर मेरा साथ दो तो हम दोनों यहां से किसी और राज्य में भाग चलें।
पूरण ने कहा - जुबैदा!
मैं भी तुमसे प्यार करने लगा हूं,लेकिन मुझे डर है कि यदि तुम मेरे साथ भाग गई तो यह बूढ़ा अमीर हमें पाताल से भी ढूंढकर मंगवा लेगा और फिर यह हमारी बहुत बुरी हालत बना देगा।
जुबैदा ने कहा-कैसी बुजदिली भरी बातें कर रहे हो पूरन मुझे पता है यह बूढ़ा ऐसा कुछ भी नहीं करेगा कुछ दिन जरूर हमें तलाश करेगा लेकिन फिर शांत होकर बैठ जाएगा।
कुछ तो चाहत का असर और कुछ जवानी का तकाजा, पूरन उसकी योजना से सहमत हो गया। एक दिन जुबैदा ने अपने शोहर की तिजोरी साफ कर डाली और बहुत साधन और जेवरात लेकर पूरन के साथ भाग गई। दोनों एक शहर में पहुंचे और एक किराए का मकान लेकर आराम से रहने लगे।
उधर अयूब खान ने कुछ दिन तक तो उन्हें खोजने का प्रयास किया लेकिन उनके ना मिलने पर दुर्भाग्य पर अफसोस कर शांत बैठ गया लेकिन मन ही मन अयूब खां को जुबेदा के जाने से ज्यादा उसके जेवरात जाने का गम था।
पूरन और जुबैदा कुछ दिन तक तो जुबेदा के द्वारा लाए गए धन पर ऐश करते रहे लेकिन जब वर्धन समाप्त होने लगा तो वह चिंतित होने लगे जुबेदा पूरण को फिर से अपना काम करने की आने लगी लेकिन क्योंकि अब पूरन को हराम की खाने की आदत पड़ चुकी थी अतः वह टालमटोल करने लगा।
घर के हालात दिन-ब-दिन ज्यादा खराब होते गए तो मन मार के पुराने फिर से एक हलवाई के यहां नौकरी कर ली लेकिन उस नौकरी से उसे इतने पैसे नहीं मिलते थे। कि आराम से एक गृहस्थी का गुजारा हो जाता। पैसे की तंगी होने लगी तो पूरन और जुबैदा में लड़ाइयां शुरू हो गई और घर का माहौल खराब रहने लगा।
एक दिन जुबेदा बाजार देवघर के लिए कुछ सामान खरीदने निकली वही उसकी मुलाकात एक ऐसे रहीस जादे से हुई जिसके पास धन की कोई कमी नहीं थी।
दोनों की नजर आपस में मिल गई और एक नया सिलसिला शुरू हो गया। नतीजा यह निकला कि एक दिन जुबेदा उसके साथ भाग गई।दिन भर नौकरी करने के पश्चात शाम को जब पूरन अपने घर पहुंचा तो घर खाली था।पूरन समझ गया कि जिस तरह मुझ पर आसक्त होकर जुबेदा मेरे साथ भाग आई थी उसी तरह उसकी निगाहें किसी और नौजवान के साथ मिल गई और वह उसे छोड़ कर चली गई।
बस तभी से वह उदास रहने लगा।
गंगाराम ने आगे उसे बताया- बेचारे पूरन की बदनसीबी का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ। एक दिन बूढ़ा आयु किसी काम से इस नगर में आया।
वह एक हलवाई की दुकान पर मिठाई खरीदने के लिए पहुंचा तो उसकी नजर पूरन पर पड़ गई। बस फिर क्या था उसने उसे राजा के सैनिकों से पकड़वा दिया।
अयूब ने उस पर अपनी बीवी को भगाने और अपने धन को चुराने का इल्जाम लगाया। नतीजे के तौर पर पूरन को 6 महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। सजा काटकर जब वह अपने घर लौटा तो अपने मकान पर किसी और व्यक्ति का कब्जा पाया। मकान मालिक ने किराया ना चुकाने के कारण अपना मकान किसी और को दे दिया था। इतना ही नहीं जब पुराने अपने पुराने काम को करने के लिए अपने मालिक के पास पहुंचा तो उसने भी उसे नौकर रखने से साफ इनकार कर दिया।
बस तभी से उसकी हालत दीवानों जैसी हो गई। अब वह लगभग हमेशा चौराहे पर बैठा रहता और मुंह से ठंडी आहें निकालता हुआ यह कहता कि हाय रे अभागे ...यह तूने क्या किया?
आगे पटेल जी बुलाखी राम से कहते हैं बुलाखी अब तो तुम समझ ही गए होगे कि वह व्यक्ति कौन था अब तुझे तेरे प्रश्न का उत्तर मिल ही गया है, तो चादर तान और सो जा।
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