धोके बाज दोस्त
धोखे बाज दोस्त |
दोनों हम उम्र थे और एक साथ पढ़े थे। ब्रह्मदत्त की शादी हो चुकी थी और उसकी पत्नी का नाम था- रूपरानी। ब्रह्मदत्त अपनी पत्नी रूप रानी से बहुत प्यार करता था और उसकी सभी इच्छाएं पूरी करता था ब्रह्म दत्त के दोस्त गौरीदत्त की अब तक शादी नहीं हुई थी।
एक बार की बात है जब यह दोनों दोस्त शिकार के लिए जंगल को निकल गए। दोपहर होने तक वह दोनों जंगल में शिकार की तलाश में यहां वहां घूमते रहे लेकिन उन्हें कोई शिकायत नहीं मिला।
जल्दी ही वह दोनों थक कर एक बड़े पेड़ की छांव में बैठ गए तभी अचानक उन दोनों को शेरों का एक जोड़ा नजर आ गया।
बस फिर क्या था बिना देर किए वह दोनों अपने अपने घोड़े पर सवार होकर शेरों का पीछा करने लगे थोड़ा नजदीक पहुंचते ही दोनों ने अपने-अपने धनुष बाण निकालकर शेरों पर दागने शुरू कर दिए तीर लगते ही दोनों से विचलित हो गए और एक दूसरे से उल्टी दिशा में भागने लगे पहला शेर उत्तर की तरफ गया तो दूसरा दक्षिण की तरफ। वे दोनों दोस्त भी शेरों की इस चाल को भाग गए और दोनों अलग हो कर एक-एक शेर का पीछा करने लगे।
शेर पहले ही तीर की चोट से बहुत डर गए थे, और इसलिए शेर किसी भी तरह अपनी जान बचाने के लिए जंगल में यहां-वहां भागने लगे जैसे-जैसे शेर जंगल के और अंदर जाते जा रहे थे वैसे वैसे जंगल और अधिक घना होता जा रहा था।
घने जंगलों में घोड़ों को तेजी से भागने में दिक्कत होने लगी थी उनकी चाल भी अब ना के बराबर रह गई थी। घने जंगल का फायदा उठाकर शेर भी झाड़ियों में ना जाने कहां लापता हो गए।
जब शिकार नजरों से ओझल हो गया तो दोनों ने अपने अपने घोड़ों की लगाम खींचकर उन्हें रोका और आसपास की जगह को देखते हुए वापसी को लौटने लगे अब तक दोनों दोस्त बिछड़ चुके थे।
गौरी दत्त ने अपने दोस्त ब्रह्मदत्त को उस घने जंगल में बहुत ढूंढा लेकिन उसे ब्रह्मदत्त कहीं भी नहीं मिला दिन ढलने लगा था तब गौरीदत्त को खयाल आया शायद ब्रह्मदत्त वापस लौट गया हो और अब मुझे भी वापस चलना चाहिए और इसलिए गौरीदत्त भी वापस लौट गया।
लेकिन हुआ यूं कि-
जब ब्रह्म दत्त का शिकार उसकी आंखों के सामने से ही झाड़ियों में खो गया तो उसने अपने घोड़े की लगाम खींचकर उसे रोका। घोड़े से नीचे आकर वह भी आसपास के हालात का मुआयना करने लगा दूर-दूर तक अपनी नजरें घुमाई लेकिन उसे कोई भी नजर नहीं आया। उसे बहुत प्यास भी लगी थी तो उसने अपने घोड़े को एक पेड़ से बांधकर पानी ढूंढने का फैसला किया और जंगल में अंदर की तरफ बढ़ने लगा थोड़ी ही दूर जाने पर उसे एक कुटिया दिखाई पड़ी वह एक महात्मा की कुटिया थी उस निर्जन स्थान पर महात्मा कुटिया बनाकर प्रभु सेवा में लीन रहते थे।
ब्रह्म दत्त उस कुटिया में प्रवेश कर गया और महात्मा को समाधि में लीन पाया उनके पास ही एक कमंडल रखा हुआ था।
ब्रह्म दत्त ने पास पहुंचकर महात्मा को प्रणाम किया और विनम्र भाव में कहा - हे मुनि श्रेष्ठ!
आंखें खोल कर इस सेवक को आशीर्वाद दीजिए। महात्मा ने आंखें नहीं खोली वह पूरी तरह प्रभु भक्ति में डूबे हुए थे।
ब्रह्म दत्त ने उन्हें फिर से संबोधित करते हुए कहा हे मुनिराज मैं बहुत प्यासा हूं यहां कहीं पानी हो तो मुझे बता दीजिए ताकि मैं अपनी प्यास बुझा सकूं।
महात्मा इस बार भी कुछ ना बोले तब ब्रह्म दत्त ने आगे बढ़कर उनके कमंडल में झांका तो कमंडल पूरा जल से भरा हुआ था। ब्रह्मदत्त प्यास से बेहाल हो रहा था और उसने महात्मा से पूछे बिना ही उस कमंडल से जल पी लिया।
जल पीते ही उसके शरीर में एक अजीब सा परिवर्तन शुरू हो गया उसे परा विद्या का ज्ञान हो गया था।
उसकी छठी इंद्री जागृत हो गई यह जानकर ब्रह्म दत्त की नियत में खोट आ गया था उसका मंडल में अभी भी बहुत सा जल बचा हुआ था।
इसलिए उसने वह कमंडल लिया और वहां से चला गया।
ब्रह्मदत्त जिस महात्मा का कमंडल ले आया था। वह एक बड़े सिद्ध ऋषि थे और उस कमंडल में जो जल था वह अभिमंत्रित किया हुआ जल था जो उस महात्मा ऋषि ने अपने तपोबल से प्राप्त किया था।
ब्रह्मदत्त कमंडल साथ लिए जैसे तैसे उस जंगल से बाहर आ गया और काफी रात बीत जाने पर अपने महल तक पहुंचा। इस बीच उसकी पत्नी उसके वहां ना पहुंचने पर बहुत घबरा रही थी कई बार गौरीदत्त से उसके बारे में पूछ भी चुकी थी लेकिन गौरीदत्त से मिले उत्तरों से रूपरानी को संतुष्टि नहीं हो रही थी।
जब ब्रह्मदत्त महल पहुंच गया तो उसकी जान में जान आई। ब्रह्मदत्त ने अपनी पत्नी को सारी घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि जिस कमंडल को साथ ले आया है उसमें अभिमंत्रित जल है उस जल को पीने से किसी भी इंसान को परा-विद्या का ज्ञान हो सकता है। और उसके बाद वह इंसान किसी भी प्राणी के शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह सब जानकर रूपरानी भी बहुत खुश हुई उसने भी परा विद्या जानने की इच्छा जताई तो ब्रह्मदत्त ने कमंडल का कुछ जल उसे भी पिला दिया। और इस तरह रूपरानी को भी पता विद्या का ज्ञान मिल गया। देव योग से कुछ दिन बाद राजा चंद्रप्रकाश का निधन हो गया और ब्रह्मदत्त राजा बन गया।
तब उसने गौरी दत्त के पिता को सेवानिवृत्त कर गौरीदत्त को अपना मंत्री नियुक्त कर दिया।
एक दिन ब्रह्म दत्त अपने मित्र और मंत्री गौरी दत्त के साथ महल की छत पर बैठा बातें कर रहा था की संयोगवश किसी तरह परा विद्या की बात छिड़ गई। इस पर ब्रह्मदत्त ने गौरीदत्त को बताया कि उसे भी परा विद्या का ज्ञान है तो गौरीदत्त की उत्सुकता भी जाग उठी और वह इस विद्या को जानने के लिए उत्सुक हो उठा।मित्र के इस आग्रह को ब्रह्मदत्त मना ना कर पाया और कमंडल से थोड़ा जल उसे भी पिला दिया इस तरह गौरी दत्त को भी परा विद्या का ज्ञान हो गया।
लेकिन इंसान की नियत कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता थोड़ा ही लालच मन में आ जाए तो बड़े-बड़े लोगों का ईमान डोल जाता है। गौरी दत्त के साथ भी ऐसा ही हुआ परा विद्या का ज्ञान होते ही उसके मन में लालच जाग उठा और वह सोचने लगा कि किसी ना किसी युक्ति से अगर मैं ब्रह्म दत्त के शरीर में प्रवेश कर जाऊं तो सारा राजपाट और धन दौलत मेरा हो जाएगा और साथ ही साथ रूप रानी का प्यार भी मिलेगा। इसके बाद मैं बिना रोक दो पूरे राज्य पर राज कर सकूंगा।
इसी मंशा के साथ वह एक दिन राजा ब्रह्मदत्त के साथ शिकार पर चला गया वहां दोनों ने जंगल में एक मरा हुआ बंदर देखा। बंदर को देखते ही गौरी दत्त ने ब्रह्मदत्त से कहा-
मित्र...! तुम्हें तो परा विद्या का ज्ञान प्राप्त है और तुमने मुझे भी उस ज्ञान को सिखाया है लेकिन अभी उस ज्ञान कि हम दोनों ने ही कोई पुष्टि नहीं की है। आज अच्छा मौका है उस ज्ञान की पुष्टि करने का सामने वह मरा हुआ बंदर पड़ा है तुम यदि उसके शरीर में मुझे प्रवेश करके दिखाओ तो मैं समझूंगा कि तुम्हारा ज्ञान सच्चा है।
गौरी दत्त की बातें सुनकर ब्रह्म दत्त ने कहा- हां-हां यह कौन सा कठिन काम है मैं अभी अपने ज्ञान की परीक्षा देता हूं।
ब्रह्मदत्त गौरी दत्त की जाल को नहीं समझ पाया और अपनी विद्या के बल पर उसने अपना शरीर छोड़ बंदर के शरीर में प्रवेश पा लिया मरा हुआ बंदर तुरंत ही जीवित हो गया।
यह देखकर गौरी दत्त ने भी झटपट अपने ज्ञान का प्रयोग किया। तुरंत ही अपना शरीर छोड़कर ब्रह्मदत्त के शरीर में प्रवेश कर गया। और तलवार निकालकर अपने शरीर के कई टुकड़े कर, उन टुकड़ों को एक गहरे खड्डे में फेंक दिया।
यह सब देखकर बंदर के शरीर में ब्रह्मदत्त घबरा गया और वह तुरंत ही समझ गया कि गौरी दत्त के मन में बेईमानी जाग उठी है। यह मेरी गद्दी पर बैठना चाहता है। उसकी यह आशंका और भी पक्की तब हो गई जब गौरी दत्त ने अपने ही शरीर के कई टुकड़े करके उन्हें खड्डे में फेंक कर तलवार उठाए बंदर रूपी ब्रम्हादत्त को मारने उसके पीछे दौड़ पड़ा।
अपनी जान से प्यारी नहीं होती बंदर बने ब्रह्म दत्त ने जब तलवार उठाए गौरीदत्त को अपनी ओर दौड़ते देखा तो वह घबराकर अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग खड़ा हुआ अब आगे आगे बंदर और पीछे पीछे तलवार लिए गौरीदत्त दौड़ रहा था एका एक बंदर को ऊंचा पेड़ नजर आया और वह छलांग लगाकर उस पेड़ पर चढ़ गया।
एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाते हुए वह उस घने जंगल में गायब हो गया गौरीदत्त कुछ देर तक तो उसके नीचे उतरने का इंतजार करता रहा लेकिन जब बंदर उसे नजर नहीं आया तो वह नगर वापस लौट गया।
ब्रह्मदत्त के रूप में गौरीदत्त जब महल पहुंचा तो रास्ते में किसी को भी उस पर शक नहीं हुआ लेकिन रूपरानी के सामने उसका यह राज ज्यादा देर नहीं टिक सका उसके बाद जीत के तरीके बोली व्यवहार और उसके चलने फिरने के ढंग से जल्दी ही वह समझ गई कि उसके पति के साथ कोई हादसा हुआ है और गौरीदत्त ने उसके पति के शरीर पर कब्ज़ा कर लिया है।
उसके पति ने एक बार उसे बताया भी था कि उसने गौरीदत्त को भी परकाया का ज्ञान दिया है।
अब रूप रानी दिन रात चिंता में डूबी रहने लगी कि किस प्रकार अपने पति के बारे में कोई जानकारी प्राप्त कर सके।
दूसरी तरफ ब्रह्मदत्त बंदर बंद कर वैसे ही बेहाल था और गौरीदत्त जो कि अब ब्रह्म दत्त की गद्दी पर बैठ कर राजकाज संभाल रहा था उसने कुछ ही दिनों में एक अजीब घोषणा नगर में करवाई की राज्य के सभी बंदर पकड़कर मार दिए जाएं या उन्हें पकड़कर राज्य के बारे में रख दिया जाए जो भी व्यक्ति एक बंदर जिंदा या मुर्दा पकड़ कर लाएगा उसे दस रूपए प्रति बंदर के हिसाब से इनाम दिया जाएगा।
गौरीदत्त को यह डर था कि किसी दिन बंदर बना ब्रह्मदत्त महल में आकर अपनी पत्नी रूप रानी से ना मिल ले, रूप रानी पहले ही उसे शंका भरी नजरों से देखने लगी थी।
अगर किसी तरह बंदर बने ब्रह्म दत्त ने रूपरानी से संपर्क बना लिया तो उसका भांडा फूट जाएगा रूपरानी उससे सारे राजकीय अधिकार छीन कर उसे कैद करवा देगी और इसलिए उसने बंदरों को पकड़ने और मारने की घोषणा करवा दिया।
₹10 काफी बड़ी रकम थी इस घोषणा का बहुत ज्यादा प्रभाव देखने मिल रहा था सारे नगर और राज्य के पहेलियां और शिकारी बंदरों को पकड़ने में जुट गए थे और राज दरबार लाकर राजा से इनाम पा रहे थे।
ब्रह्मदत्त भी आखिर एक बंदर ही बन गया था एक दिन एक बहेलिया ने जमीन में चने रखकर उसे लालच में फंसा ही लिया और आखिर में बंदर बना ब्रह्मदत्त भी पकड़ लिया गया।
उस बहेलिया ने बंदर को घर लाकर बांध दिया उसका इरादा था कि अगले दिन बंदर को राजदरबार मैं सौंप कर इनाम की रकम लेगा।
लेकिन रात में ही एक घटना घट गई बहेलिया का एक रिश्तेदार उसके घर आ पहुंचा पहेली ने उसे रात में मंदिरा पिलाई मंदिरा पीते पीते दोनों आपस में बातें करने लगे।
पहेली ने रिश्तेदार से कहा कि मित्र राजा की इस घोषणा से तो अपना बहुत फायदा हो गया है। मैं तो अब तक कई सौ बंदर पकड़कर सरकारी कर्मचारियों तक पहुंचा चुका हूं और इनाम की रकम भी प्राप्त कर चुका हूं तुम बताओ तुमने अब तक कितने बंदर पकड़े हैं?
मैं भी काफी बंदर पकड़ कर राज दरबार में ले जा चुका हूं लेकिन एक बात है जो मेरे समझ नहीं आई कि हमारे राजा को बंदरों से क्या दुश्मनी आन पड़ी वह क्यों बंदरों को पकड़कर मरवा रहा है?
बहेलिए ने कहा कि- भाई वह राजा है उसकी बातें वही जाने हमें इन सब से क्या मतलब हम तो बस इस धंधे से अपना धन बना रहे हैं।
उन दोनों की बातें सुनकर बंदर बने ब्रह्म दत्त का कलेजा भी डर से धड़क गया। वह समझ गया कि सिर्फ उसके प्राण पाने के लिए ही गौरीदत्त तक सारे बंदरों का दुश्मन बन बैठा है। वह मुझे मार कर पूरे राज्य पर अपना कब्जा कर लेना चाहता है यह जानकर उसने अपने छूटने के प्रयास और तेज कर दिए।
बहेलिए ने लोहे का एक कड़ा उसकी गर्दन में डालकर एक मोटी रस्सी से उसे बांध दिया था अब हालत यह थी कि कड़ा तो टूट नहीं सकता था इसलिए ब्रह्म दत्त ने अपने तेज दातों से उस रस्सी को काटना शुरू कर दिया था आधी रात होते-होते उसने अपनी रस्सी काट डाली और आजाद होकर वही घर की मुंडेर पर जाकर बैठ गया।
सुबह-सुबह जब बहेलिया जागा तो उसने अपनी नजर बंदर पर घुमाई लेकिन बंदर वहां नहीं दिखा तो बहेलिया का दिल भी धड़क उठा वह मन ही मन सोच पड़ा की गया मेरे दस रुपए।
बंदर भी गया और साथ ही साथ रुपए-दो रुपए का लोहे का कड़ा भी ले गया,उसे फसाने जो चने खरीदे वो नुकसान अलग सब बेकार हो गया।
तभी मुंडेर पर बैठा बंदर बोला-क्या हुआ दोस्त मुझे ही ढूंढ रहे हो ना..!
मैं यही हूं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था चाहता तो कब का चला गया होता लेकिन मैं तुम्हारी गरीबी दूर करवाने के लिए यहां रुका हुआ हूं।
एक बंदर के मुंह से इंसानों की भाषा सुनकर पहले तो बहेलिया कुछ परेशान सा हो गया उसे लगा कि जरूर वह किसी भूत-प्रेत के चक्कर में फस गया है। फिर भी उसने हिम्मत करके पूछ ही लिया सच बताओ तुम कौन हो बंदर होकर भी इंसानों की भाषा कैसे बोल पा रहे हो और तुम मेरी गरीबी कैसे दूर कर सकते हो?
बंदर बोला- मैं कौन हूं और इंसानी भाषा कैसे बोल पा रहा हूं इन बातों को छोड़ो, हां यह बात सुनो कि मैं तुम्हारी गरीबी कैसे दूर करवा सकता हूं...!
तुम मुझे एक कागज और कलम ला कर दो जिसमें मैं कुछ लिख सकूं, मैं तुम्हें एक पत्र दूंगा। तुम वह पत्र ले जाकर महल में राजा की रानी रूपमती को दे देना। बदले में रानी तुम्हें सौ सोने के सिक्के देगी। उन सिक्कों को पाकर तुम्हारी गरीबी भी दूर हो जाएगी और तुम उनसे को से कुछ अच्छा व्यापार भी शुरू कर सकते हो।
तब बहेलिया उस बंदर को कागज और कलम लाकर देता है और उसे अपनी चिट्ठी तैयार करने कहता है।
बंदर के हाथ कागज और कलम लगते ही वह एक पत्र तैयार कर देता है उस पत्र में उसने उन सारी घटनाओं के बारे में लिखा जो उसके साथ अब तक हुई थी साथ ही उसने रानी रूपमती को यह निर्देश भी दिया कि जो व्यक्ति या चिट्ठी लेकर आए उसे सौ सोने के सिक्के इनाम के रूप में दे देना।
पत्र को मोड़ कर बंदर ने बहेलिया के हाथ सौंप दिया, और कहा- देखो दोस्त....!
सावधान रहना। इस बात का खास ध्यान रहे कि यह पत्र किसी दूसरे व्यक्ति के हाथ में ना पड़ जाए यह पत्र सावधानीपूर्वक रानी रूपमती के हाथ में ही सौंपना।
बहेलिया बोला- घबराओ नहीं। इस पत्र को तो मैं अपनी जान से ज्यादा संभाल कर रखूंगा यह पत्र सौ सोने के सिक्कों की कीमत का है आज ही इसे रानी को सौंप कर आऊंगा।
बंदर और बहेलिया के बीच हो रही इन सभी की बातों को उस समय दीवार के पीछे छुपा बहेलिया का पड़ोसी वैश्य सुन रहा था। बंदर के मुंह से इंसानों की भाषा देखकर वह तुरंत समझ गया था कि-राजा ने बंदर को पकड़ने की घोषणा क्यों जारी करवाई है। अब तो अपने मन में सोचने लगा कि इस पत्र को इस बहेलिया से खरीद दिया जाए और जाकर राजा को दे दिया जाए तो राजा उससे प्रसन्न हो जाएगा और ढेर सारा इनाम दे देगा ऐसा विचार कर वह बहेलिए से मिला और उसे बहला-फुसलाकर सौ सोने के सिक्के देकर वह पत्र उसने खरीद लिया बहेलिए को घर बैठे सौ सोने के सिक्के मिल गए इसलिए उसने भी बिना सोचे वह पत्र उस वैश्य को दे दिया वैश्य वह पत्र लेकर घर के अंदर चला गया।
बंदर अभी भी उस मुंडेर पर बैठा हुआ था घर आकर वैश्य ने चतुराई दिखाई और एक रस्सी का फंदा बनाकर उसने ब्रह्म दत्त के गले पर फसा लिया इस तरह वह बंदर जो बहुत मुश्किल से आजाद हुआ था एक बार फिर वैसे की कैद में फस गया।
उधर वैश्य के जाते ही बनिए का मन भी बदलने लगा उसने सोचा कि 100 सोने के सिक्के तो मुझे मिल ही गए हैं अब अगर बंदर से हुई बातें और उसके द्वारा लिखे हुए पत्र की बात वह जाकर रूप रानी को बता दे तो उसे और ढेर सारे पुरस्कार मिलेंगे।
बहेलिया तुरंत ही रानी से मिलने को निकल पड़ा वह भागता हुआ रानी के पास पहुंचा और उसे सारी बात बता दी। उसकी जुबान से यह सारी बातें सुनकर रानी सब कुछ समझ गई और उसने बहेलिए को सौ सोने के सिक्के इनाम देकर उसे चलता किया, और फिर बंदर बने अपने पति को बचाने के लिए युक्ति सोचने में लग गई।
बहेलिया जब रानी से मिलकर बाहर लौटा तो उसके दिमाग में एक और नई खुराफात आ गई धन की लालच में वह अंधा हो गया था और वह सीधा राजा के दरबार पहुंचा वहां उसने वैश्य के विरुद्ध शिकायत लिखवा दी कि कल रात उसने एक बोलने वाला बंदर पकड़ा था किंतु उसके पड़ोसी ने वह बंदर उससे छीन लिया उस बंदर पर उसका अधिकार है और इसलिए उसके पड़ोसी से वह बंदर उसे वापस दिलाया जाए उसकी शिकायत पर राजकीय अधिकारियों ने कुछ सैनिक भेजकर बंदर सहित उस वैश्य को पकड़ना ने भेज दिया।
इधर बहेलिया के जाते ही रूपरानी भी अपने पति को बचाने के लिए नए-नए उपाय सोचने लगी और बहुत सोचने समझने के बाद उसने अपनी सेविकाओं को बाजार भेज कर एक तोता मंगवाया और उसे पिंजरे में डाल कर अपने आंगन में टांग दिया।
कुछ ही देर बाद में हल्की नीचे लोगों का शोर सुनाई देने लगा कारण जानने के लिए उसने भी छत से नीचे झांका तो कुछ सैनिक एक बंदर को खींच कर राज दरबार में लाते हुए दिखाई पड़ने लगे साथ ही साथ कुछ सैनिक एक आदमी को भी पकड़ कर ला रहे थे रूप रानी को यह नजारा देख समझने में देर न लगी कि यह बंदर ही उसका पति है जिसके बारे में अभी वह बहेलिया बता कर गया है।
रूपरानी जल्दी से जाकर आंगन में दंगे उस तोते के पिंजरे को ले आई।
जब बंदर को महल में खींचकर लाया जा रहा था तो वह मन ही मन रो रहा था और अपनी प्रिय पत्नी रूप रानी को याद कर रहा था।
ब्रह्म दत्त मन ही मन यह सोच रहा था कि कुछ ही देर बाद मेरा वध कर दिया जाएगा पता नहीं अब मैं अपनी प्रिय रानी को देख पाऊंगा या नहीं यह सोच कर आखिर बार देखने के लिए उसने ऊपर की ओर देखा तो उसी समय रानी वहां खड़ी थी उसने बंदर को इशारा किया और तोते को पिंजरे से बाहर निकाल कर उसकी गर्दन पकड़ कर मरोड़ दी बंदर के लिए इतना संकेत काफी था और वह तोते के शरीर में प्रवेश कर गया रानी ने प्रेम पूर्वक उसके शरीर को सहला कर उसे पिंजरे में बंद कर दिया और फिर पिंजरे को उसकी जगह पर टांग।
बंदर की अचानक मृत्यु से उसे ले जाने वाले सैनिक भी बहुत घबरा गए वहां स्थित सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ बोलने वाले बंदर को देखने काफी भीड़ सैनिकों के पीछे पीछे चल रही थी सैनिक भी भयभीत हो गए थे कि दंडाधिकारी को क्या उत्तर देंगे लेकिन उनके पीछे चल रही भीड़ उनकी गवाह थी इसलिए उनका डर कुछ कम हुआ वहां सभी लोगों ने देखा था कि बंदर एकाएक अपने प्राण छोड़ गया था।
इस सारी घटना के बाद उसी रात ब्रह्मदत्त बना गौरीदत्त रानीवास में पहुंचा उसके पहुंचने से पहले ही रूप रानी ने एक बकरी का मेमना मंगवा लिया था गौरीदत्त जब उसके पास उसके कमरे में पहुंचा तो रूप रानी ने रूखे पन से उसका स्वागत किया अब गौरीदत्त से भी रहा ना गया और वह बोल पड़ा प्रिय जब से मैं 1 में शिकार खेल कर लौटा हूं तुम्हारा व्यवहार तभी से मेरे लिए बहुत अजीब हो गया है अब तुम मुझसे पहले की तरह प्यार से बात तक नहीं करती ना ही अपने सेज पर सोने देती हो आज मैं तुमसे उन सब बातों का कारण जानकर ही जाऊंगा की ऐसी क्या वजह है कि तुम मेरे साथ इतना रूखा व्यवहार करने लगी हो
रूप रानी ने सारी बातें सुनने के बाद कहा कि जी हां आपका कहना बिल्कुल ठीक है इसके पीछे एक कारण ही है और वह कारण यह है कि मुझे आप पर शंका है कि आप मेरे पति के शरीर में कोई और व्यक्ति हैं आप मेरी इस शंका का निवारण कर दीजिए तो मैं आपसे पहले जैसा प्रेम करना शुरू कर दुगी।
तब गौरी दत्त ने पूछा तो बताओ रानी इसके लिए मैं क्या करूं कि तुम्हें मुझ पर यकीन हो जाए।
रानी ने कहा मैं जानती हूं कि आपको परकाया प्रवेश का अच्छा ज्ञान है मैंने एक बकरी का बच्चा मंगवा कर रखा है मैं उसे मार देती हूं आप मुझे अपनी विद्या के प्रभाव से उस में प्रवेश करके दिखाइए यदि आपने ऐसा कर दिया तो मुझे पता चल जाएगा कि मेरी यह शंका बिना वजह थी और यदि आप ऐसा नहीं कर सके तो मैं यह समझ लूंगी की मेरा शक करना बिल्कुल सही था।
रूप रानी की बात सुनकर और उसे पाने की जल्दी में गौरी दत्त ऐसा कर दिखाने के लिए तैयार हो गया रूपरानी में उसके सामने ही उस बकरी के बच्चे को मार दिया अब गौरीदत्त ने भी अपना काम कर दिया वह ब्रह्मदत्त का शरीर छोड़कर उस बकरी के बच्चे के शरीर में प्रवेश कर गया। मौका देखते ही रानी ने तोता बनी ब्रह्मदत्त को अपने शरीर में आने का इशारा किया और संकेत पाकर ब्रह्मदत्त भी जल्दी ही अपने शरीर में वापस आ गया रानी ने देर ना करते हुए तुरंत ही तोते के शरीर के कई टुकड़े कर दिए और इस तरह गौरीदत्त उस बकरी के बच्चे के शरीर में कैद होकर रह गया।
तो आज तुम जो दृश्य उस बड़े मैदान में देख कर आए हो वह दृश्य यही था राजा ब्रह्मदत्त स्वयं धोखेबाज गौरीदत्त को अपने हाथों से सजा देना चाहता था और उसे 1 साल जनिक स्थल में ले जाकर उसका वध करने की तैयारी कर रहा था आसपास जो लोग खड़े थे उनमें से कुछ नगर के दशक यानी कि नागरिक थे और राजा के साथ उसकी पत्नी रूप रानी भी थी अब मुझे लगता है कि तुम्हें सारी बात साफ समझ आ गई होगी।
Hriday Vahikaye Tantra Sambandhi Bimariyan Hone ke Karan Aur Upaye
Diverticulitis kyo hota hai kabj karan & upaye
Badiannt, Diverticulitis , kabj hone ke Karan aur Upchar Hindi Me
Garm aur thanda lapet kaise karte hai
lapet kampres aur senkaai kaise kare
prakriatik chikitsaa upchaar kya hai | thande aur garam pani se upchar kese kare
Naturopathy snann kaise kare jane eska sahi tarika aur eske prakar hindi me
Poshan evam chayapchay Sambandhi vikar
Peshiya Evam Panjar Pranali Sambandhit Vikar Aur Upchar kaise kare
Malish Evam Ridh Snnan(Spainal Bath) kya hai eske kya fayde hai