गुरु गोबिंद सिंह पर हिंदी निबंध व जीवन परिचय
प्रस्तावना –
सिख समाज में गुरु गोविन्द सिंह को एक खास दर्जा हासिल है इन्होने
खालसा पंथ
की नीव रख कर सिख समुदाय को और मजबूत बनाने के तरफ मजबूती से कदम उठाये । वे सिख समुदाय के दसवें और अंतिम सिख गुरु थे । गुरु गोविंद सिंह एक महान आध्यात्मिक गुरु व एक महान दार्शनिक, नेता व कुशल योद्धा होने के साथ साथ शौर्य के प्रतिक भी थे। इन्होने कई बार मुगलों की कुनीतियों का खुल कर विरोध भी किया
इन्होने धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े और कई बलिदान दिये। उन्होंने
1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया ।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती कब है 2022-23 –
इस साल गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती दिन गुरुवार 29 दिसम्वर 2022 होगी।
गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थान | गुरु गोविंद सिंह का बचपन | गुरु गोविंद सिंह का इतिहास | गुरु गोविंद सिंह जीवनी (जीवन परिचय / Biography) –
श्री गुरु गोविन्द जी का जन्म बिहार की राजधानी पटना स्थित घर में 22 दिसंबर, सन 1666 में हुआ था । इनके बचपन का नाम गोविन्द राय रखा गया था । उनके पिता श्री तेग बहादुर थे जो इनके जनम के कुछ समय बाद पंजाब वापस लौट गए थे।
इन्होने अपने जन्म स्थान पर अपने शुरुआती चार साल बिताये और अब हम सभी पटना स्थित उस जगह को तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब के नाम से जानते है। सन 1670 में उनका परिवार उन्हें लेकर फिर पंजाब और बाद में
मार्च 1672 के आस पास उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया। इसे ही आज लोग आनन्दपुर साहिब के नाम से जानते है। इसी जगह पर इन्होने शिक्षा प्राप्त की। गुरु गोविन्द सिंह जी बचपन से ही वीर प्रवत्ति के थे घुड़ सवारी , हथियार पकड़ना, टोलियाँ बना कर युद्ध क्रीडा आदि उनके पसंद के खेल हुआ करते थे।
बहादुर होने के साथ साथ गुर देव काफी बुद्धि मान भी थे इन्होने बड़ी आसानी से फारसी , संस्कृत और हिंदी जैसीमहत्वपूर्ण भाषाओं का ज्ञान हासिल कर लिया था । सिर्फ 9 साल की छोटी उम्र में ही पिता के स्वर्गवास के बाद इन्हे सिखों का नया नेता घोषित किया गया।
गुरु गोविंद सिंह का इतिहास –
गुरु गोविंद सिंह का परिवार –
गुरु गोविंद सिंह के परिवार में मुख्य रूप से उनकी माता गुजरी देवी व उनके पिता श्री गुरु तेग बहादुर जो की (सिखों के नवें गुरु) का उल्लेख मिलता है । 10 साल की उम्र में इनका पहला विवाह माता जीतो से हुआ । इसके बाद उन्होंने दूसरा विवाह 17 साल की उम्र में माता सुन्दरी से शादी की और तीसरी शादी 33 साल ली उम्र में माता साहिब देवान से हुई इन सभी शादियों से गुरु गोविन्द सिंह को चार पुत्र प्राप्त हुए , जिनमे पहले 3 पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह , तथा फतेह सिंह माता जीतो की संताने थी ।और इनके चौथा पुत्र अजीत सिंह माता सुन्दरी की संतान थे।
विवाह |
तीन विवाह |
बसंतगढ़ – 21 जून 1677 |
पत्निया |
तीन पत्नियाँ |
जीतो, सुंदरी तथा साहिब दीवान |
पुत्र |
चार पुत्र |
जोरावर सिंह,
जीत सिंह तथा फतेह सिंह |
गुरु गोबिंद सिंह जयंती क्यों मनाया जाता है –
गुरु गोबिंद सिंह सिख समुदाय के दसवे गुरु होने के साथ -साथ एक महान और पराक्रमी पुरुष थे इन्होने सिखों के पवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहब को पूरा किया था । उनके जीवन के वारे में विस्तार से जानकारी उनकी आत्मकथा विचित्र नाटक अकाल उसत्त , चण्डी दी वार आदि से मिलती है। गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन को दसम ग्रन्थ के नाम से जाना जाता है । इन्होने धर्म व गरीबो की रक्षा के लिए मुगलों से 14 युद्ध किये और सभी युधों में विजयी हुए। नेकी की राह और धर्म के पथ पर चलते हुए उन्होंने अपने परिवार का भी बलिदान किया और इसलिए उन्हें ‘ सरबंसदानी ’ भी कहा जाता है। आम जन में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले, जैसे कई उपनाम से भी जाने जाते थे। उनके इसी बलिदान के प्रति सम्मान में हर साल गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाई जाती है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती कैसे मनाया जाता है –
गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10 वें गुरु थे। हर साल इनकी जयंती इनकी याद व सम्मान में मनाई जाती है। इस दिन पर देश - विदेश में सिख सभी गुरुद्वारों को सजाया जाता है और सार्वजनिक लंगर का आयोजन किया जाता है।
इस दिन नानक वाणी पढ़ी जाती है। लोग अरदास, भजन, कीर्तन के साथ गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। और दान पुण्य आदि लोक कल्याण के सभी काम किए जाते हैं। सभी गुरुद्वारों में गुरु गोबिंद सिंह जी का महाप्रसाद खाने जाते है।
Guru Gobind singh Ji ke Anmol Vachan & Quotes
खालसा पंथ की स्थापना –
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो की सिख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया। इन्होने एक कड़ी परीक्षा लेते हुए उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का निर्माण किया। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा पहले पांच खालसा का निर्माण करने के बाद उन्हें छठवा खालसा नाम दिया गया और इनका नाम गोविन्द राय की गोविन्द सिंह पड़ गया।
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा एक लोहे के कटोरे में पानी और शक्कर (चीनी) को दो धारी तलवार से घोल कर उसे अमृत का नाम दिया गया। इनके द्वारा ही खालसा पंथ के लिए
पांच ककारों का महत्व समझाया और – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा को सिख के लिए आवश्यक बताया ।
खालसा पंथ की स्थापना की कहानी –
खालसा पंथ के निर्माण के पहले एक बार सिख समुदाय की एक सभा में गुरु गोबिंद सिंह सबके सामने एक सवाल पुछा की – "कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है"? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए आगे आया और गुरु गोबिंद सिंह उसे अपने साथ तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे तो एक खून से लिपटी तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ में लोगों से वही सवाल पुछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सनी तलवार उनके हाथ में थी। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।
गुरु गोबिंद सिंह की मृतु –
'मुक्तसर' नामक स्थान पर 8 मई सन 1705 में मुगलों से
भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी की
जीत हुई। आगे 1706 में गुरुजी को औरंगजेब की मृत्यु की खबर मिली जिसके बाद उन्होंने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में पुरी मदद की। बहादुरशाह व गुरुजी के
संबंधों को देखकर नवाब वजीत खाँ डर गया। और दो पठानों की मदद से उसने गुरुजी पर धोखे से जानलेवा हमला
करवाया , जिसके बाद 7 अक्टूबर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड साहिब
में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। आखरी वक्त
में गुरु जी ने सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा
व खुद भी माथा टेका। गुरुजी के बाद (माधोदास) बंदासिंह बहादुर ने, सरहद पर आक्रमण किया
और अत्याचारियों पर जीत प्राप्त की।
उपसंहार -
गुरु गोविंद सिंह विद्वानों के संरक्षक होने के साथ-साथ स्वयं भी कई भाषाओं के ज्ञाता थे वह एक महान लेखक चिंतक और विद्वान थे उनके दरबार में 52 कवि और लेखकों की उपस्थिति सामान्य थी इन्हीं कारणों से उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था उन्होंने पूरे देश को शांति और एकता का संदेश पहुंचाया था उनके बलिदान के किस्से भी कोई नहीं भूल सकता उन्होंने धर्म की राह पर चलते हुए अपने संपूर्ण परिवार को निछावर कर दिया इन्होंने सिखों के पवित्र ग्रंथ को भी पूरा किया गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु बने और आयु से ही अपने एक कुशल नेता होने का परिचय दिया सिख समुदाय और खालसा पंथ के प्रति गुरु गोविंद सिंह जी का एक विशेष योगदान है।
गुरु गोबिंद सिंह
जयंती पर 10 लाइन में निबंध (Guru Gobind Singh Jayanti Par 10 Line Me Nibandh) –
- गुरु गोविन्द जी का जन्म पटना, बिहार में 22 दिसंबर, सन 1666 में हुआ था ।
- सिख समुदाय के दसवें और अंतिम सिख गुरु थे।
- गुरु गोविंद सिंह एक महान आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक व नेता थे।
- इनके बचपन का नाम गोविन्द राय रखा गया था ।
- 1699 में गुरु गोविंद सिंह आनंदपुर साहिब में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की।
- इन्होने सिखों के पवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहब को पूरा किया था ।
- धर्म के रास्ते पर चलते हुए उन्होंने सभी मुश्किलों को पार कर अपने परिवार का बलिदान किया और इसलिए उन्हें ‘ सरबंसदानी ’ भी कहा जाता है।
- वे एक कला प्रेमी थे उनके दरबार में 52 कवी व लेखक थे।
- इन्होने सिखों को पांच ककारों का महत्व समझाया।
- गुरु गोबिंद सिंह जी 7 अक्टूबर 1708 को दिव्य ज्योति में लीन हो गए।
FAQ –
Q 1. गुरु गोबिंद सिंह जी बचपन का नाम क्या था?
Ans - गोबिंद राय।
Q 2.गुरु गोबिंद सिंह जी को उपनाम या उपाधि से भी जाना जाता है।
Ans - सरबंसदानी कहा जाता है।
Q 3.गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रथम विवाह किस उम्र में हुआ था ।
Ans - 9 वर्ष की आयु में।
Q 4. सिखों को पांच ककारों के नाम क्या है।
Ans - केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा ।
Q 5. गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु कब हुई ।
Ans - 7 अक्टूबर 1708 को दिव्य ज्योति में लीन हो गए।